अध्याय 5: आधुनिक विश्व में चरवाहे (Pastoralists in the Modern World)
परिचय
चरवाहे या घुमंतू समुदाय वे लोग होते हैं जो अपने जीवनयापन के लिए जानवरों पर निर्भर रहते हैं और मौसम या चरागाहों की उपलब्धता के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं। भारत में, वे हिमालय की पहाड़ियों से लेकर शुष्क रेगिस्तानों तक विभिन्न क्षेत्रों में पाए जाते हैं। औपनिवेशिक शासन के दौरान उनके जीवन में बड़े बदलाव आए।
5.1 भारत में घुमंतू चरवाहे (Pastoral Nomads in India)
भारत में विभिन्न प्रकार के घुमंतू चरवाहे समुदाय हैं:
पहाड़ों में (In the Mountains):
- **गुज्जर बकरवाल (Gujjars Bakarwals) और गद्दी (Gaddi):** ये जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के घुमंतू चरवाहे हैं।
- वे **जाड़ों में निचले पहाड़ी इलाकों में** रहते थे और अपने पशुओं को शुष्क झाड़ियों में चराते थे।
- **गर्मियों में, वे हिमालय के ऊंचे घास के मैदानों (बुग्याल) में चले जाते थे** क्योंकि बर्फ पिघलने के बाद चारा उपलब्ध हो जाता था।
- उनकी आवाजाही पहाड़ी और मैदानी इलाकों के बीच चारे की उपलब्धता के मौसमी बदलावों से निर्धारित होती थी।
- **भोटिया (Bhotiyas), शेरपा (Sherpas) और किन्नौरी (Kinnauris):** ये उत्तराखंड और नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं। ये भी अपनी मवेशियों और भेड़ों के साथ मौसम के अनुसार ऊंचे और निचले इलाकों के बीच आते-जाते रहते हैं।
पठारों, मैदानों और रेगिस्तानों में (On the Plateaus, Plains, and Deserts):
- **धंगर्स (Dhangars):** ये महाराष्ट्र के एक महत्वपूर्ण चरवाहा समुदाय हैं।
- अधिकांश धंगर्स चरवाहे थे, लेकिन कुछ कंबल और शॉल भी बुनते थे।
- वे **दक्कन के पठार पर वर्षा-आधारित शुष्क क्षेत्रों में** रहते थे, जहाँ वर्षा कम होती थी और ज्वार और बाजरा उगता था।
- अक्टूबर के आसपास, वे अपने पशुओं के साथ **कोंकण क्षेत्र** की ओर बढ़ते थे, जो एक उर्वर कृषि क्षेत्र था।
- मॉनसून की शुरुआत के साथ, वे वापस दक्कन की ओर लौट जाते थे, क्योंकि कोंकण में उनके मवेशियों के लिए दलदली और नम स्थितियाँ उपयुक्त नहीं थीं।
- **कुरुमा (Kuruma) और कुरुवा (Kuruva):** ये कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के चरवाहे समुदाय हैं। वे भेड़ और बकरियाँ पालते थे और कंबल बुनते थे।
- **बंजारे (Banjaras):** ये घुमंतू व्यापारी थे जो राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के गाँवों में रहते थे।
- वे विभिन्न स्थानों पर चारागाहों की तलाश में भटकते थे।
- वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर अनाज बेचते और खरीदते भी थे।
- **राइका (Raisika):** ये राजस्थान के चरवाहे हैं।
- वे ऊंट पालने के लिए जाने जाते हैं।
- वे **जाड़ों में अपने ऊंटों के साथ चारागाहों की तलाश में** जाते थे और **गर्मियों में अपने गाँव लौट आते थे**।
- बारिश के बाद, वे बाजरा जैसी फसलें उगाते थे।
इन समुदायों का जीवन उनके पर्यावरण और मौसम के साथ जुड़ा हुआ था, जिसमें वे अपने पशुओं के लिए चारे और पानी की तलाश में लगातार प्रवास करते रहते थे।
5.2 औपनिवेशिक शासन और चरवाहा जीवन (Colonial Rule and Pastoral Life)
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने चरवाहों के जीवन में बड़े बदलाव लाए:
- **वन कानून (Forest Acts):**
- औपनिवेशिक सरकार ने विभिन्न **वन अधिनियम** बनाए, जिन्होंने वनों को आरक्षित, संरक्षित और ग्राम वनों में विभाजित किया।
- इन कानूनों ने चरवाहों की जंगलों में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया, जहाँ उनके पशु पारंपरिक रूप से चरते थे।
- अब उन्हें विशेष परमिट के बिना जंगल में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, और यदि वे प्रवेश करते थे, तो उन्हें भारी जुर्माना देना पड़ता था।
- यह जंगल तक उनकी पहुंच को प्रतिबंधित करके लकड़ी जैसी मूल्यवान वन उपज का दोहन सुनिश्चित करने के लिए किया गया था।
- **चरागाहों का सिकुड़ना (Shrinking of Pastures):**
- औपनिवेशिक सरकार ने कृषि भूमि के विस्तार को बढ़ावा दिया ताकि अधिक राजस्व एकत्र किया जा सके।
- चरागाहों को खेती योग्य भूमि में बदल दिया गया, जिससे चरवाहों के लिए चारे की उपलब्धता कम हो गई।
- **चराई कर (Grazing Taxes):**
- 19वीं शताब्दी के मध्य से, औपनिवेशिक सरकार ने **चराई कर** लगाना शुरू कर दिया।
- प्रत्येक पशु पर एक निश्चित कर लगाया जाता था, और चरवाहों को अपने पशुओं के लिए पास (परमिट) खरीदना पड़ता था।
- इस कर से चरवाहों की आर्थिक स्थिति और बिगड़ गई, क्योंकि उनके लिए कर चुकाना मुश्किल हो गया।
- **आपराधिक जनजाति अधिनियम (Criminal Tribes Act) 1871:**
- इस अधिनियम ने कुछ चरवाहा समुदायों (और अन्य घुमंतू समुदायों) को **"आपराधिक जनजाति"** के रूप में वर्गीकृत किया।
- उन्हें स्वाभाविक रूप से अपराधी और जन्म से अपराधी माना गया।
- इन समुदायों को अधिसूचित ग्राम बस्तियों तक सीमित कर दिया गया और उन्हें बिना पास के बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी।
- ग्राम पुलिस उनकी निगरानी करती थी।
- इस अधिनियम ने इन समुदायों को सामाजिक रूप से कलंकित किया और उनकी गतिशीलता को प्रतिबंधित कर दिया।
5.3 चरवाहों ने परिवर्तनों का सामना कैसे किया? (How did Pastoralists Cope with these Changes?)
इन प्रतिबंधों के बावजूद, चरवाहा समुदायों ने विभिन्न तरीकों से अनुकूलन किया:
- **रास्तों का परिवर्तन:** कुछ चरवाहों ने अपने चराई क्षेत्रों और प्रवास के मार्गों को बदल दिया।
- **पशुओं की संख्या में कमी:** कई चरवाहों ने अपने पशुओं की संख्या कम कर दी क्योंकि चारे की उपलब्धता कम हो गई थी।
- **नए काम:** कुछ ने नए काम अपनाए, जैसे मजदूरी करना या कृषि मजदूर बनना।
- **उधार लेना:** कई गरीब चरवाहों को अपनी आजीविका चलाने के लिए साहूकारों से कर्ज लेना पड़ा।
- **विद्रोह:** कुछ समुदायों ने कानूनों के खिलाफ विद्रोह किया, जैसा कि पिछले अध्याय में बस्तर के विद्रोह में देखा गया था।
- **भूमि खरीदना:** समय के साथ, कुछ धनी चरवाहों ने जमीन खरीदी और बस गए, जिससे उनकी पारंपरिक घुमंतू जीवन शैली बदल गई।
5.4 अफ्रीका में चरवाहे (Pastoralism in Africa)
भारत की तरह, अफ्रीका में भी बड़े चरवाहा समुदाय हैं।
- अफ्रीका की लगभग आधी आबादी (लगभग 22 मिलियन लोग) चरवाहा समुदायों से बनी है।
- इनमें से कुछ समुदायों में **मासाई (Maasai), बेडूइंस (Bedouins), सोमाली (Somali), बोरान (Boran)** और **तुर्काना (Turkana)** शामिल हैं।
- इनमें से कई समुदाय मवेशियों, ऊंटों, बकरियों और भेड़ों को पालते हैं।
मासाई समुदाय (The Maasai Community):
- मासाई मुख्य रूप से पूर्वी अफ्रीका (केन्या और तंजानिया) में रहते हैं।
- वे अपने पशुओं को चराने के लिए पारंपरिक रूप से अपनी भूमि पर निर्भर रहते थे।
- उनके पास विस्तृत चरागाह भूमि थी।
औपनिवेशिक शासन का प्रभाव (Impact of Colonial Rule):
- यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने मासाई चरागाहों को कृषि और शिकार के मैदानों में बदल दिया।
- मासाई भूमि का लगभग आधा हिस्सा खो गया।
- 1885 में, मासाई भूमि को ब्रिटिश केन्या और जर्मन तांगानिका के बीच विभाजित कर दिया गया।
- मासाई को छोटे क्षेत्रों में बंद कर दिया गया, जिससे उनकी गतिशीलता और चारे तक पहुंच सीमित हो गई।
- चरागाहों के सिकुड़ने से पशुओं की संख्या कम हो गई और सूखे के दौरान बड़े पैमाने पर मौतें हुईं।
- खेती को बढ़ावा दिया गया, जिसे मासाई पसंद नहीं करते थे।
- मासाई समाज में मुखिया (चीफ) नियुक्त किए गए, जिन्हें औपनिवेशिक सरकार ने मान्यता दी, जिससे उनके पारंपरिक सामाजिक संरचना में बदलाव आया।
- पशुओं को भी चरवाहों से छीन लिया गया, और उन्हें मजदूरी करने के लिए मजबूर किया गया।
आधुनिक विश्व में, चरवाहा समुदायों को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें शहरीकरण, कृषि विस्तार और बदलती पर्यावरणीय नीतियां शामिल हैं। हालांकि, कई चरवाहे समुदाय आज भी अपनी पारंपरिक जीवन शैली को बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं और पर्यावरण के साथ सह-अस्तित्व के महत्वपूर्ण ज्ञान को धारण करते हैं।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)
I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।
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जम्मू-कश्मीर के एक प्रमुख चरवाहा समुदाय का नाम बताएँ।
गुज्जर बकरवाल।
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हिमाचल प्रदेश के एक प्रसिद्ध चरवाहा समुदाय का नाम बताएँ।
गद्दी।
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महाराष्ट्र के एक चरवाहा समुदाय का नाम बताएँ जो कम्बल भी बुनते थे।
धंगर्स।
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राजस्थान के किस चरवाहा समुदाय को ऊंट पालने के लिए जाना जाता है?
राइका।
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किस अधिनियम ने कुछ चरवाहा समुदायों को 'आपराधिक जनजाति' के रूप में वर्गीकृत किया?
आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871।
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पूर्वी अफ्रीका में रहने वाले एक प्रमुख चरवाहा समुदाय का नाम बताएँ।
मासाई।
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मासाई की भूमि को 1885 में किन दो औपनिवेशिक शक्तियों के बीच विभाजित किया गया था?
ब्रिटिश केन्या और जर्मन तांगानिका।
II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30-50 शब्द) में उत्तर दें।
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गुज्जर बकरवाल और गद्दी जैसे पहाड़ी चरवाहे अपने प्रवास को कैसे समायोजित करते थे?
गुज्जर बकरवाल और गद्दी जैसे पहाड़ी चरवाहे मौसमी प्रवास करते थे। वे जाड़ों में निचले पहाड़ी इलाकों में आते थे, और गर्मियाँ शुरू होते ही हिमालय के ऊंचे घास के मैदानों (बुग्याल) की ओर चले जाते थे। यह आवाजाही चारे और पानी की उपलब्धता पर निर्भर करती थी, जिससे उनके पशुओं को पूरे वर्ष पर्याप्त भोजन मिल पाता था।
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औपनिवेशिक सरकार ने चराई कर क्यों लगाए?
औपनिवेशिक सरकार ने अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए चराई कर लगाए। उन्होंने प्रत्येक पशु पर एक निश्चित कर लगाया और चरवाहों को अपने पशुओं को चराने के लिए परमिट (पास) खरीदने पड़ते थे। यह कर प्रणाली चरवाहों के लिए एक अतिरिक्त आर्थिक बोझ बन गई, जिससे उनकी पारंपरिक आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
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आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 का चरवाहा समुदायों पर क्या प्रभाव पड़ा?
आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 ने कुछ चरवाहा समुदायों को 'आपराधिक जनजाति' घोषित कर दिया। उन्हें जन्म से ही अपराधी माना गया और उन्हें अधिसूचित गाँवों तक सीमित कर दिया गया। उन्हें बिना पास के इन क्षेत्रों से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी और ग्राम पुलिस द्वारा उनकी लगातार निगरानी की जाती थी। इस अधिनियम ने इन समुदायों को सामाजिक रूप से कलंकित किया और उनकी गतिशीलता तथा स्वतंत्रता को गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर दिया।
III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।
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औपनिवेशिक शासन ने भारतीय चरवाहों के जीवन को कैसे बदल दिया?
औपनिवेशिक शासन ने भारतीय चरवाहों के जीवन में कई महत्वपूर्ण बदलाव लाए, जिससे उनकी पारंपरिक जीवन शैली और आजीविका गंभीर रूप से प्रभावित हुई। ब्रिटिश सरकार ने कई **वन अधिनियम** बनाए, जिन्होंने वनों को आरक्षित, संरक्षित और ग्राम वनों में विभाजित किया। इन कानूनों ने चरवाहों की जंगलों में प्रवेश और अपने पशुओं को चराने पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे उन्हें अपने पारंपरिक चारागाहों तक पहुंच से वंचित कर दिया गया। उन्हें अब विशेष परमिट के बिना जंगल में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, और उल्लंघन करने पर भारी जुर्माना लगाया जाता था। यह नीति ब्रिटिशों के लिए मूल्यवान लकड़ी संसाधनों के निर्बाध दोहन को सुनिश्चित करने के लिए थी।
इसके अतिरिक्त, औपनिवेशिक सरकार ने कृषि भूमि के विस्तार को बढ़ावा दिया ताकि अधिक राजस्व एकत्र किया जा सके, जिसके परिणामस्वरूप **चरागाहों का सिकुड़ना** हुआ। यह चरवाहों के लिए चारे की उपलब्धता को कम करता गया, जिससे उनके पशुओं के लिए भोजन खोजना मुश्किल हो गया। 19वीं शताब्दी के मध्य से, ब्रिटिशों ने **चराई कर** भी लागू किए, जिसमें प्रत्येक पशु पर एक कर लगाया जाता था। यह चरवाहों पर एक नया आर्थिक बोझ था, जिससे उनके लिए अपनी आजीविका बनाए रखना और भी कठिन हो गया। सबसे विनाशकारी कानूनों में से एक **आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871** था, जिसने कुछ चरवाहा समुदायों को "जन्म से अपराधी" के रूप में चिह्नित किया। उन्हें निश्चित गाँवों तक सीमित कर दिया गया और उनकी गतिविधियों पर सख्त निगरानी रखी गई, जिससे उनकी स्वतंत्रता और सामाजिक प्रतिष्ठा पर गहरा प्रभाव पड़ा। इन परिवर्तनों ने चरवाहों को नई रणनीतियाँ अपनाने या अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करने के लिए मजबूर किया।
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मासाई समुदाय पर औपनिवेशिक शासन के प्रभावों का वर्णन करें।
मासाई समुदाय, जो पूर्वी अफ्रीका (केन्या और तंजानिया) के प्रमुख चरवाहे हैं, औपनिवेशिक शासन के तहत गंभीर रूप से प्रभावित हुए। यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों ने मासाई की विशाल चरागाह भूमि को कृषि, शिकार के मैदानों और बाद में राष्ट्रीय उद्यानों में बदल दिया। 1885 में, मासाई भूमि को ब्रिटिश केन्या और जर्मन तांगानिका के बीच विभाजित कर दिया गया, जिससे उनकी कुल भूमि का लगभग आधा हिस्सा छिन गया। मासाई को छोटे, शुष्क क्षेत्रों में सीमित कर दिया गया था, जिससे उनकी गतिशीलता और पशुओं के लिए चारे और पानी तक पहुंच सीमित हो गई।
चरागाहों के इस सिकुड़ने और सीमित पहुंच के कारण मासाई के पशुओं की संख्या में भारी गिरावट आई, और सूखे के दौरान बड़े पैमाने पर मौतें हुईं क्योंकि उनके पास पर्याप्त चारे और पानी तक पहुंच नहीं थी। औपनिवेशिक प्रशासन ने मासाई को खेती अपनाने के लिए भी प्रोत्साहित किया, जिसे वे पारंपरिक रूप से हेय मानते थे। उनकी पारंपरिक सामाजिक संरचना भी बदल गई, क्योंकि औपनिवेशिक सरकार ने 'मुखिया' (चीफ) नियुक्त किए, जिससे पारंपरिक 'एम्परर' (वयस्क योद्धा) की शक्ति कम हो गई। इन परिवर्तनों ने मासाई के आर्थिक आधार, सामाजिक संगठन और सांस्कृतिक पहचान को कमजोर कर दिया, जिससे उनके जीवनयापन का तरीका बदल गया और उन्हें अपनी पारंपरिक जीवन शैली से दूर हटना पड़ा।
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