अध्याय 4: वन्य समाज एवं उपनिवेशवाद (Forest Society and Colonialism)
परिचय
जंगलों ने दुनिया के अधिकांश हिस्सों को कवर किया है। 1700 से 1995 के बीच, विश्व के कुल भूमि क्षेत्र का 9.3% (लगभग 139 मिलियन वर्ग किमी) उद्योग, कृषि, ईंधन और आवास के लिए साफ कर दिया गया था।
औद्योगीकरण के युग के साथ, वनोपज की आवश्यकता बढ़ गई। 1700 से 1995 के बीच, $139$ मिलियन वर्ग किलोमीटर वन भूमि को कृषि, उद्योगों, चरागाहों और जलाऊ लकड़ी के लिए साफ कर दिया गया। भारत में, वनों की कटाई की प्रक्रिया ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान तेज हुई।
4.1 वनों का विनाश क्यों? (Why Deforestation?)
वनों के विनाश के कई कारण थे, जिनमें से अधिकांश उपनिवेशवाद से संबंधित थे:
- **भूमि में वृद्धि:** 19वीं शताब्दी की शुरुआत में, ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने कृषि भूमि में वृद्धि करने पर जोर दिया ताकि खाद्य उत्पादन बढ़ सके और वे नकदी फसलें उगा सकें। खेती का विस्तार जंगलों की कीमत पर हुआ।
- **स्लीपरों की मांग:** रेलवे के विस्तार के लिए लकड़ी के स्लीपरों की भारी मांग थी। एक मील रेलवे ट्रैक के लिए 1760 से 2000 स्लीपरों की आवश्यकता होती थी। 1850 के दशक में भारत में रेलवे का विस्तार शुरू हुआ।
- **जहाज निर्माण:** शाही नौसेना के लिए जहाजों के निर्माण के लिए लकड़ी की आवश्यकता थी।
- **खनन:** औपनिवेशिक सरकार को रेलवे पटरियों को बिछाने और जहाजों को चलाने के लिए कोयले की आवश्यकता थी।
- **वृक्षारोपण:** चाय, कॉफी और रबर के बागान स्थापित करने के लिए भी बड़े वन क्षेत्रों को साफ किया गया।
4.2 वाणिज्यिक वानिकी का उदय (The Rise of Commercial Forestry)
19वीं शताब्दी तक, यूरोपीय लोगों को यह महसूस होने लगा कि अनियंत्रित वनों की कटाई से मूल्यवान वन समाप्त हो सकते हैं। इसलिए, **वैज्ञानिक वानिकी (Scientific Forestry)** की शुरुआत की गई।
- 1864 में, **डाइटिच ब्रांडिस (Dietrich Brandis)** को भारत का पहला **महानिरीक्षक वन (Inspector General of Forests)** नियुक्त किया गया।
- ब्रांडिस ने वैज्ञानिक वानिकी की प्रणाली की शुरुआत की।
- वैज्ञानिक वानिकी में, प्राकृतिक वनों को काटा गया और उनकी जगह एक ही प्रकार के पेड़ लगाए गए। उदाहरण के लिए, **सागौन (teak)** और **साल (sal)**।
- किसानों द्वारा जंगल के उत्पादों का उपयोग और **स्थानांतरी खेती (shifting cultivation)** पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- 1865 में, **भारतीय वन अधिनियम (Indian Forest Act)** अधिनियमित किया गया। इसे 1878 में संशोधित किया गया।
- अधिनियम ने वनों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया:
- **आरक्षित वन (Reserved Forests):** ये सबसे अच्छे वन थे, जहाँ गाँवों के लोगों को बिना अनुमति के प्रवेश की अनुमति नहीं थी।
- **संरक्षित वन (Protected Forests):** इन वनों में कुछ अधिकारों की अनुमति थी, लेकिन उन पर सख्त प्रतिबंध थे।
- **ग्राम वन (Village Forests):** ये वन ग्रामीणों के उपयोग के लिए थे, लेकिन उन पर प्रतिबंध थे।
- ब्रांडिस ने वन अनुसंधान संस्थान (Forest Research Institute) की भी स्थापना की।
4.3 वन कानूनों का लोगों पर प्रभाव (How were the Lives of People Affected?)
वन कानूनों ने भारत के वन समुदायों के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। उनके पारंपरिक अधिकारों और प्रथाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- **स्थानांतरी खेती (Shifting Cultivation):** जिसे झूम खेती या कर्तन एवं दहन (slash-and-burn) खेती भी कहा जाता है, पर औपनिवेशिक सरकार द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया था। सरकार ने इसे वन भूमि के लिए हानिकारक माना और यह भी सोचा कि इससे कर लगाना मुश्किल होगा।
- **शिकार (Hunting):** वन कानूनों के माध्यम से शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हालांकि, ब्रिटिश अधिकारी और शिकारी बड़ी संख्या में जानवरों का शिकार करते थे, यह दावा करते हुए कि यह भारतीय समाज को सभ्य बनाने का एक तरीका था।
- **वन्य उत्पाद (Forest Produce):** ग्रामीणों को वन से लकड़ी लेने, पशुओं को चराने, या जंगल से फल, कंद, पत्ते आदि एकत्र करने की अनुमति नहीं थी।
- **वन ग्राम (Forest Villages):** वन विभाग द्वारा लकड़ी काटने और परिवहन के लिए श्रम प्रदान करने वाले कुछ गाँवों को वन ग्राम घोषित किया गया।
वन कानूनों ने स्थानीय समुदायों को उनके पारंपरिक आजीविका स्रोतों से वंचित कर दिया, जिससे उनके जीवन में कठिनाई हुई और विरोध प्रदर्शन हुए।
4.4 वन विद्रोह (Forest Rebellions)
भारत और जावा में कई वन समुदाय औपनिवेशिक वन कानूनों के खिलाफ उठ खड़े हुए।
बस्तर का विद्रोह (The Rebellion in Bastar):
- बस्तर वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है, और इसमें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा की सीमाएँ हैं।
- 1905 में, ब्रिटिश सरकार ने आरक्षित वन क्षेत्रों में विस्तार करने का प्रस्ताव रखा, जिससे वनवासियों के लिए जंगल तक पहुंच सीमित हो जाएगी।
- यह निर्णय सूखे के समय आया, जब लोगों को अपनी आजीविका के लिए जंगल पर अधिक निर्भर रहना पड़ रहा था।
- **गुंडा धूर (Gunda Dhur)**, नेतानार गाँव के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति, विद्रोह में एक केंद्रीय व्यक्ति थे।
- विद्रोह ने जंगल के उत्पादों को एकत्र करने और उनकी बिक्री के एकाधिकार का विरोध किया।
- विद्रोह 1910 में शुरू हुआ। बाजार लूट लिए गए, अधिकारियों और व्यापारियों के घर जला दिए गए।
- ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह को दबाने के लिए सैनिकों को भेजा। विद्रोही नेता भाग गए, और शांति बहाल की गई।
- हालांकि, विद्रोह ने सरकार को जंगल के कानूनों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया और आरक्षित वन का क्षेत्र कम कर दिया गया।
4.5 जावा में वन परिवर्तन (Forest Transformations in Java)
जावा (अब इंडोनेशिया का एक हिस्सा) वह स्थान है जहाँ डच ने अपनी उपनिवेशवादी नीतियों को लागू किया।
- डच द्वारा जावा में **वैज्ञानिक वानिकी** शुरू की गई थी।
- जावा में रहने वाले एक वन समुदाय **कालांग (Kalangs)** थे, जो कुशल वन काटने वाले और स्थानांतरी किसान थे।
- 1770 में, कालांगों ने डच किले पर हमला किया, लेकिन विद्रोह को दबा दिया गया।
- 1882 में, जावा में रेलवे स्लीपरों के लिए **280,000 स्लीपरों** का निर्यात किया गया।
- डच ने वनों पर कठोर कानून लागू किए। उन्हें जंगल में प्रवेश करने से पहले विशेष अनुमति लेनी पड़ती थी।
- बाद में, डच ने **वन्य सेवाओं के लिए मुफ्त श्रम (Bedundung System)** की शुरुआत की, जहाँ गाँव के लोगों को मुफ्त में काम करना पड़ता था।
- **प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918)** और **द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945)** ने जावा में वन प्रबंधन पर गंभीर प्रभाव डाला।
- जापानी उपनिवेशवाद (1942-1945) के दौरान, जापानियों ने अपने युद्ध उद्योगों के लिए जंगलों का बड़े पैमाने पर शोषण किया।
- युद्ध के बाद, इंडोनेशिया में डच और जापानी औपनिवेशिक शासन के बाद, वन प्रबंधन को स्थानीय सरकार को सौंप दिया गया।
आज के समय में वानिकी (Forestry in the Present)
1980 के दशक से, सरकार ने वन समुदायों को वनों के संरक्षण में शामिल करना शुरू कर दिया है।
- भारत में, संयुक्त वन प्रबंधन (Joint Forest Management) जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए हैं।
- स्थानीय समुदाय अब वनों के स्थायी प्रबंधन में भाग लेते हैं।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)
I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।
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भारत में पहला महानिरीक्षक वन कौन था?
डाइटिच ब्रांडिस (Dietrich Brandis)।
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भारतीय वन अधिनियम कब अधिनियमित किया गया था?
1865 में।
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स्थानांतरी खेती के अन्य नाम क्या हैं?
झूम खेती या कर्तन एवं दहन (slash-and-burn) खेती।
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बस्तर वर्तमान में किस राज्य में स्थित है?
छत्तीसगढ़।
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बस्तर के विद्रोह का नेतृत्व किसने किया था?
गुंडा धूर (Gunda Dhur)।
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जावा में डच उपनिवेश के तहत कौन सा वन समुदाय प्रसिद्ध था?
कालांग (Kalangs)।
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डच द्वारा जावा में शुरू की गई प्रणाली का नाम क्या था, जिसमें गाँव के लोगों को मुफ्त में काम करना पड़ता था?
बेडुंग सिस्टम (Bedundung System)।
II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30-50 शब्द) में उत्तर दें।
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औपनिवेशिक शासन के दौरान वनों के विनाश के दो प्रमुख कारण क्या थे?
औपनिवेशिक शासन के दौरान वनों के विनाश के प्रमुख कारणों में कृषि भूमि में वृद्धि की मांग और रेलवे के विस्तार के लिए लकड़ी के स्लीपरों की बढ़ती आवश्यकता शामिल थी। ब्रिटिशों ने अधिक खाद्य और नकदी फसलों के लिए जंगलों को साफ किया, और विशाल रेलवे नेटवर्क बिछाने के लिए लाखों पेड़ों को काटा गया।
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वैज्ञानिक वानिकी क्या थी और इसे क्यों शुरू किया गया था?
वैज्ञानिक वानिकी एक प्रणाली थी जिसमें प्राकृतिक वनों को काट दिया जाता था और उनकी जगह एक ही प्रकार के पेड़ (जैसे सागौन या साल) लगाए जाते थे, जिन्हें पंक्तिबद्ध तरीके से व्यवस्थित किया जाता था। इसे इसलिए शुरू किया गया था ताकि वनों का "प्रबंधन" किया जा सके और लकड़ी जैसे मूल्यवान संसाधनों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके, क्योंकि यूरोपीय लोगों को डर था कि अनियंत्रित कटाई से वन समाप्त हो जाएंगे।
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वन कानूनों ने स्थानांतरी खेती करने वालों के जीवन को कैसे प्रभावित किया?
वन कानूनों ने स्थानांतरी खेती (झूम खेती) को प्रतिबंधित कर दिया, जिससे वन समुदायों की पारंपरिक आजीविका छीन गई। सरकार ने इसे वन भूमि के लिए हानिकारक माना और कर लगाने में कठिनाई के कारण इस पर प्रतिबंध लगाया। इस प्रतिबंध ने इन समुदायों को अपनी जीवनशैली बदलने और नए तरीकों से अपनी आजीविका कमाने के लिए मजबूर किया, जिससे अक्सर गरीबी और विस्थापन हुआ।
III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।
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भारतीय वन अधिनियम, 1878 के प्रमुख प्रावधानों का वर्णन करें और इसका वन समुदायों पर क्या प्रभाव पड़ा।
भारतीय वन अधिनियम, 1878, एक महत्वपूर्ण कानून था जिसे ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने वनों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने और वाणिज्यिक वानिकी को बढ़ावा देने के लिए अधिनियमित किया था। इस अधिनियम ने वनों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया: **आरक्षित वन (Reserved Forests)**, जो सबसे मूल्यवान थे और जहाँ ग्रामीणों के प्रवेश पर सख्त प्रतिबंध थे; **संरक्षित वन (Protected Forests)**, जहाँ कुछ अधिकारों की अनुमति थी लेकिन सख्त नियमों के अधीन; और **ग्राम वन (Village Forests)**, जो ग्रामीणों के उपयोग के लिए थे लेकिन उन पर भी प्रतिबंध लागू थे। इस वर्गीकरण का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के लिए मूल्यवान लकड़ी (जैसे सागौन और साल) की अबाध आपूर्ति सुनिश्चित करना और स्थानीय लोगों के पारंपरिक अधिकारों को सीमित करना था।
इस अधिनियम का वन समुदायों पर गहरा और विनाशकारी प्रभाव पड़ा। उनकी पारंपरिक प्रथाओं जैसे स्थानांतरी खेती, शिकार, जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने और पशु चराने पर प्रतिबंध लगा दिया गया या उन्हें बहुत सीमित कर दिया गया। जो लोग इन कानूनों का उल्लंघन करते थे, उन्हें दंडित किया जाता था। इस अधिनियम ने वन dwellers की आजीविका के पारंपरिक तरीकों को नष्ट कर दिया, उन्हें गरीबी में धकेल दिया, और उन्हें अपने ही जंगल में "अपराधी" बना दिया। इसने वन समुदायों में व्यापक असंतोष पैदा किया, जिससे बाद में बस्तर जैसे कई बड़े वन विद्रोह हुए, जो औपनिवेशिक वन नीतियों के खिलाफ प्रतिरोध का एक बड़ा उदाहरण था।
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बस्तर के विद्रोह के कारणों और परिणामों की व्याख्या करें।
बस्तर का विद्रोह 1910 में हुआ, जो वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है, और ब्रिटिश औपनिवेशिक वन नीतियों के खिलाफ एक प्रमुख प्रतिरोध आंदोलन था। विद्रोह का मुख्य कारण 1905 में ब्रिटिश सरकार द्वारा आरक्षित वन क्षेत्रों को विस्तारित करने का प्रस्ताव था। इस प्रस्ताव का अर्थ था कि वनवासियों की जंगल तक पहुंच और भी सीमित हो जाएगी, जिससे वे अपनी आजीविका के लिए आवश्यक संसाधनों से वंचित हो जाएंगे। यह निर्णय उस समय आया जब क्षेत्र में सूखे की स्थिति थी, जिससे लोगों की जंगल पर निर्भरता और भी बढ़ गई थी। इसके अतिरिक्त, ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा लगाए गए कर और वन उत्पादों की बिक्री पर एकाधिकार ने भी लोगों में गहरा असंतोष पैदा किया। **गुंडा धूर**, नेतानार गाँव के एक प्रभावशाली व्यक्ति, ने इस विद्रोह में एक केंद्रीय भूमिका निभाई।
विद्रोह 1910 में शुरू हुआ, जिसमें स्थानीय लोगों ने बाजारों को लूटा, अधिकारियों और व्यापारियों के घरों को जलाया, और वन कानूनों का उल्लंघन किया। विद्रोहियों ने पारंपरिक रूप से एकजुट होने के लिए आम और मिर्च का उपयोग किया, जिससे यह संदेश पूरे क्षेत्र में फैला। ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह को दबाने के लिए सैनिकों को भेजा, जिसके परिणामस्वरूप संघर्ष हुआ और कई विद्रोही मारे गए। हालांकि विद्रोह को अंततः दबा दिया गया, और गुंडा धूर जैसे नेता भाग गए या पकड़े गए, इसने ब्रिटिश सरकार को अपनी वन नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया। विद्रोह के परिणामस्वरूप, आरक्षित वन का क्षेत्र कम कर दिया गया और ग्रामीणों को वन उपयोग के लिए कुछ रियायतें दी गईं। इस विद्रोह ने दिखाया कि कैसे औपनिवेशिक नीतियाँ स्थानीय समुदायों को प्रभावित कर सकती हैं और कैसे वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर सकते हैं।
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