अध्याय 2: भारत का भौतिक स्वरूप (Physical Features of India)
परिचय
भारत एक विशाल देश है जिसमें विभिन्न प्रकार की भू-आकृतियाँ हैं। हमारे देश में पहाड़, मैदान, रेगिस्तान, पठार और द्वीप समूह सभी मौजूद हैं। भारत की भूमि भूगर्भीय रूप से विभिन्न प्रकार के क्षेत्रों को दर्शाती है। भारतीय भू-आकृतियों का निर्माण विभिन्न भूगर्भीय प्रक्रियाओं और प्लेट टेक्टोनिक्स के सिद्धांत के परिणामस्वरूप हुआ है।
2.1 प्रमुख भौतिक विभाग (Major Physiographic Divisions)
भारत की भौतिक विशेषताओं को निम्नलिखित प्रमुख भू-आकृतिक विभागों में बांटा जा सकता है:
1. हिमालय पर्वत (The Himalayan Mountains)
- हिमालय भूगर्भीय रूप से युवा और संरचनात्मक रूप से मोड़दार (folded) पर्वत श्रृंखलाएँ हैं।
- ये भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित हैं।
- ये पर्वत श्रृंखलाएँ पश्चिम-पूर्व दिशा में सिंधु से ब्रह्मपुत्र तक फैली हुई हैं।
- हिमालय विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है।
- हिमालय को मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियों में बांटा गया है:
- **महान या आंतरिक हिमालय (Himadri):**
- यह सबसे उत्तरी और सबसे सतत श्रृंखला है।
- इसमें 6,000 मीटर की औसत ऊँचाई वाले सबसे ऊंचे शिखर शामिल हैं।
- इसमें माउंट एवरेस्ट (8848.86 मीटर) और कंचनजंगा (8598 मीटर) जैसे विश्व के सबसे ऊँचे शिखर हैं।
- इस श्रेणी का क्रोड ग्रेनाइट का बना है।
- **हिमाचल या लघु हिमालय (Himachal or Lesser Himalaya):**
- यह हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित है।
- इसकी ऊँचाई 3,700 से 4,500 मीटर के बीच और औसत चौड़ाई 50 किलोमीटर है।
- पीर पंजाल, धौलाधार और महाभारत पर्वतमालाएँ इस श्रेणी का हिस्सा हैं।
- इसमें कश्मीर की घाटी, कांगड़ा और कुल्लू की घाटियाँ जैसे कुछ प्रसिद्ध हिल स्टेशन शामिल हैं।
- **शिवालिक (Shiwaliks):**
- यह हिमालय की सबसे बाहरी श्रृंखला है।
- इसकी चौड़ाई 10-50 किलोमीटर और ऊँचाई 900 से 1100 मीटर के बीच है।
- ये श्रेणियाँ असंपीडित तलछटों से बनी हैं जो मुख्य हिमालय श्रेणियों द्वारा लाई गई हैं।
- घाटियों को अनुदैर्ध्य घाटियों (longitudinal valleys) के नाम से जाना जाता है, जिन्हें **दून (Duns)** कहते हैं। जैसे देहरादून, कोटली दून, पाटली दून।
- **महान या आंतरिक हिमालय (Himadri):**
2. उत्तरी मैदान (The Northern Plains)
- उत्तरी मैदान तीन प्रमुख नदी प्रणालियों - **सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र** - और उनकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़ निक्षेपों से बने हैं।
- यह मैदान लाखों वर्षों में हिमालय के तल में स्थित एक बड़े बेसिन में जलोढ़ के निक्षेपण से बना है।
- यह 7 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है।
- इसकी लंबाई लगभग 2,400 किलोमीटर और चौड़ाई 240 से 320 किलोमीटर है।
- यह सघन जनसंख्या वाला क्षेत्र है क्योंकि यहाँ की मिट्टी उपजाऊ, पर्याप्त पानी और अनुकूल जलवायु है।
- इसे मोटे तौर पर तीन भागों में विभाजित किया गया है:
- **पंजाब का मैदान:** सिंधु और उसकी सहायक नदियों द्वारा बना है। इसका एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में है।
- **गंगा का मैदान:** घग्गर से तीस्ता नदियों के बीच फैला हुआ है। यह हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड के कुछ हिस्सों और पश्चिम बंगाल में फैला हुआ है।
- **ब्रह्मपुत्र का मैदान:** विशेष रूप से असम में स्थित है।
- उत्तरी मैदानों को उनके राहत के आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है:
- **भाबर (Bhabar):** शिवालिक ढलानों के समानांतर, कंकड़ जमाव के साथ। नदियाँ इस क्षेत्र में गायब हो जाती हैं।
- **तराई (Terai):** भाबर के दक्षिण में, नम और दलदली क्षेत्र जहाँ नदियाँ फिर से उभरती हैं।
- **भांगर (Bhangar):** पुराने जलोढ़ से बने मैदान, नदियों के बाढ़ क्षेत्रों से ऊपर स्थित होते हैं। इनमें कंकड़ के जमाव होते हैं जिन्हें 'कंकड़' कहते हैं।
- **खादर (Khaddar):** नए, छोटे जलोढ़ जमाव से बने मैदान जो नदियों के बाढ़ क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ये बहुत उपजाऊ होते हैं।
3. प्रायद्वीपीय पठार (The Peninsular Plateau)
- यह एक मेज के आकार का भूभाग है जो प्राचीन क्रिस्टलीय, आग्नेय और मेटामॉर्फिक चट्टानों से बना है।
- यह गोंडवाना भूमि के टूटने और बहने के कारण बना है, जो इसे सबसे पुराने भूभागों में से एक बनाता है।
- यह व्यापक और छिछली घाटियों और गोल पहाड़ियों की विशेषता है।
- पठार को दो मुख्य प्रभागों में विभाजित किया गया है:
- **मध्य उच्चभूमि (The Central Highlands):**
- नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित प्रायद्वीपीय पठार का हिस्सा।
- विंध्य श्रृंखला दक्षिण में मध्य उच्चभूमि को सीमित करती है, और अरावली श्रृंखला उत्तर-पश्चिम में।
- यह पश्चिम में चौड़ा लेकिन पूर्व में संकरा है।
- इसके पूर्वी विस्तार को स्थानीय रूप से बुंदेलखंड और बघेलखंड के नाम से जाना जाता है।
- चोटानागपुर पठार इसके आगे पूर्व में है।
- **दक्कन का पठार (The Deccan Plateau):**
- यह एक त्रिकोणीय भूभाग है जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है।
- उत्तर में सतपुड़ा श्रृंखला इसकी चौड़ी आधार बनाती है, जबकि महादेव, कैमूर पहाड़ियाँ और मैकाल श्रृंखला इसके पूर्वी विस्तार हैं।
- पठार पश्चिम में ऊँचा और पूर्व में धीरे-धीरे ढलान वाला है।
- एक विस्तार उत्तर-पूर्व में भी दिखाई देता है जिसे स्थानीय रूप से मेघालय, कार्बी-एंगलोंग पठार और उत्तर कचार पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है।
- यह पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट से घिरा है।
- **मध्य उच्चभूमि (The Central Highlands):**
पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट (Western Ghats and Eastern Ghats):
- **पश्चिमी घाट:**
- प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिमी किनारे के समानांतर स्थित हैं।
- ये सतत हैं और केवल दर्रों के माध्यम से ही पार किए जा सकते हैं।
- इनकी ऊँचाई पूर्वी घाटों की तुलना में अधिक है (900-1600 मीटर)।
- ये ओरोग्राफिक वर्षा का कारण बनते हैं।
- महेंद्रगिरी पश्चिमी घाट की सबसे ऊँची चोटी है। (ध्यान दें: महेंद्रगिरी पूर्वी घाट की सबसे ऊँची चोटी है, पश्चिमी घाट की अनाईमुड़ी)। NCERT टेक्स्टबुक के अनुसार यहाँ गलत जानकारी है।
- प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊँची चोटी अनाईमुड़ी (2,695 मीटर) है, इसके बाद डोडाबेटा (2,637 मीटर) है।
- **पूर्वी घाट:**
- प्रायद्वीपीय पठार के पूर्वी किनारे के समानांतर स्थित हैं।
- ये असतत हैं और नदियाँ इन्हें काटती हैं जो बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।
- इनकी औसत ऊँचाई 600 मीटर है।
- पूर्वी घाट की सबसे ऊँची चोटी जवड़ी (Javadi Hills) और शेवरॉय पहाड़ियाँ (Shevaroy Hills) हैं। (ध्यान दें: महेंद्रगिरी पहले पूर्वी घाट की सबसे ऊँची चोटी मानी जाती थी, अब जींदगढ़ (Jindhagada) या अराया कोंडा (Araya Konda) को माना जाता है, हालांकि NCERT में महेंद्रगिरी है।)
- **दक्कन ट्रैप (Deccan Trap):** प्रायद्वीपीय पठार का एक विशिष्ट गुण क्षेत्र का काला मिट्टी क्षेत्र है जिसे दक्कन ट्रैप के नाम से जाना जाता है। ये ज्वालामुखी उत्पत्ति के हैं, इसलिए चट्टानें आग्नेय हैं।
- **अरावली पहाड़ियाँ (The Aravalli Hills):** ये प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी किनारों पर स्थित हैं। ये अत्यधिक कटाव वाली और खंडित पहाड़ियाँ हैं।
4. भारतीय रेगिस्तान (The Indian Desert)
- भारतीय रेगिस्तान **अरावली पहाड़ियों के पश्चिमी किनारे** पर स्थित है।
- यह एक लहरदार रेतीला मैदान है जो रेत के टीलों से ढका हुआ है।
- इस क्षेत्र में प्रति वर्ष 150 मिमी से कम वर्षा होती है।
- यहाँ वनस्पति आवरण बहुत कम है।
- **लूनी (Luni)** इस क्षेत्र की एकमात्र बड़ी नदी है।
- **बरकान (Barchans)** (अर्धचंद्राकार रेत के टीले) इस क्षेत्र में व्यापक रूप से पाए जाते हैं।
5. तटीय मैदान (The Coastal Plains)
- प्रायद्वीपीय पठार संकरी तटीय पट्टियों से घिरा है जो पश्चिम में अरब सागर के समानांतर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी के समानांतर फैली हुई हैं।
- ये मुख्य रूप से दो भागों में हैं:
- **पश्चिमी तटीय मैदान (The Western Coastal Plain):**
- यह एक संकरा मैदान है जो अरब सागर और पश्चिमी घाट के बीच स्थित है।
- इसे तीन भागों में बांटा गया है:
- उत्तरी भाग को **कोंकण (मुंबई-गोवा)** कहते हैं।
- मध्य भाग को **कन्नड़ मैदान** कहते हैं।
- दक्षिणी भाग को **मालाबार तट** कहते हैं।
- **पूर्वी तटीय मैदान (The Eastern Coastal Plain):**
- यह बंगाल की खाड़ी के समानांतर फैला हुआ एक चौड़ा और समतल मैदान है।
- इसे दो भागों में बांटा गया है:
- उत्तरी भाग को **उत्तरी सरकार (Northern Circar)** कहते हैं।
- दक्षिणी भाग को **कोरोमंडल तट** कहते हैं।
- महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी बड़ी नदियाँ इस तट पर विशाल डेल्टा बनाती हैं।
- **चिल्का झील** पूर्वी तट पर एक महत्वपूर्ण विशेषता है।
- **पश्चिमी तटीय मैदान (The Western Coastal Plain):**
6. द्वीप समूह (The Islands)
भारत में दो प्रमुख द्वीप समूह हैं:
- **लक्षद्वीप द्वीप समूह (The Lakshadweep Islands):**
- ये केरल के मालाबार तट के पश्चिम में अरब सागर में स्थित हैं।
- ये छोटे प्रवाल (coral) द्वीपों से बने हैं।
- पहले इन्हें लक्कादीव, मिनिकॉय और अमीनीदीव के नाम से जाना जाता था। 1973 में इनका नाम लक्षद्वीप रखा गया।
- यह 32 वर्ग किलोमीटर के छोटे क्षेत्र में फैला है।
- कवरत्ती द्वीप लक्षद्वीप की प्रशासनिक राजधानी है।
- पिट्टी द्वीप, जहाँ मनुष्य नहीं रहते, एक पक्षी अभयारण्य है।
- **अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (The Andaman and Nicobar Islands):**
- ये बंगाल की खाड़ी में उत्तर से दक्षिण तक फैली हुई द्वीपों की एक श्रृंखला है।
- ये आकार में बड़े हैं और अधिक संख्या में और बिखरे हुए हैं।
- कुछ द्वीप ज्वालामुखीय उत्पत्ति के हैं।
- भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी, बैरन द्वीप (Barren Island), अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्थित है।
- ये द्वीप भूमध्य रेखा के करीब स्थित हैं और मोटी वनस्पति आवरण के साथ एक विषुवतीय जलवायु का अनुभव करते हैं।
भारत के विभिन्न भौतिक विभाग देश को विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों और विकास के अवसरों के साथ प्रदान करते हैं। पहाड़ जल और वन संसाधनों का स्रोत हैं, उत्तरी मैदान कृषि के लिए उपजाऊ भूमि हैं, पठार खनिजों का भंडार हैं, तटीय क्षेत्र और द्वीप समूह मछली पकड़ने और बंदरगाह गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)
I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।
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भारत के दो प्रमुख भू-आकृतिक विभाग कौन से हैं?
हिमालय पर्वत और उत्तरी मैदान (या कोई भी दो प्रमुख विभाग)।
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हिमालय की सबसे उत्तरी और सबसे सतत श्रृंखला का क्या नाम है?
महान या आंतरिक हिमालय (Himadri)।
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शिवालिक में पाई जाने वाली अनुदैर्ध्य घाटियों को क्या कहा जाता है?
दून (जैसे देहरादून)।
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उत्तरी मैदान किन तीन प्रमुख नदी प्रणालियों द्वारा बने हैं?
सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र।
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प्रायद्वीपीय पठार की आकृति कैसी है?
मेज के आकार का भूभाग।
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प्रायद्वीपीय पठार के दो मुख्य प्रभाग कौन से हैं?
मध्य उच्चभूमि और दक्कन का पठार।
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भारत में एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी कहाँ स्थित है?
बैरन द्वीप (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में)।
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लक्षद्वीप द्वीप समूह किस प्रकार के द्वीपों से बने हैं?
प्रवाल (coral) द्वीपों से।
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भारतीय रेगिस्तान में बहने वाली एकमात्र बड़ी नदी का नाम क्या है?
लूनी (Luni)।
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पूर्वी तटीय मैदान के दक्षिणी भाग को क्या कहते हैं?
कोरोमंडल तट।
II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30-50 शब्द) में उत्तर दें।
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भाबर और तराई के बीच अंतर स्पष्ट करें।
**भाबर** शिवालिक ढलानों के समानांतर, 8-16 किमी चौड़ी एक संकरी पट्टी है, जिसमें नदियाँ कंकड़ जमा करती हैं और गायब हो जाती हैं। **तराई** भाबर के दक्षिण में एक नम, दलदली और घने जंगल वाला क्षेत्र है, जहाँ नदियाँ फिर से सतह पर उभरती हैं। तराई क्षेत्र वन्यजीवों से समृद्ध है।
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पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के बीच दो अंतर बताएँ।
**पश्चिमी घाट** सतत हैं और पूर्वी घाट की तुलना में ऊँचे (900-1600 मीटर) हैं। वे ओरोग्राफिक वर्षा का कारण बनते हैं। **पूर्वी घाट** असतत हैं, नदियों द्वारा कटे हुए हैं, और पश्चिमी घाट की तुलना में कम ऊँचे (लगभग 600 मीटर) हैं।
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भारत के लिए द्वीप समूह का क्या महत्व है?
भारत के द्वीप समूह (लक्षद्वीप और अंडमान-निकोबार) रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। लक्षद्वीप अपनी प्रवाल उत्पत्ति और जैव विविधता के लिए जाना जाता है, जबकि अंडमान-निकोबार अपने भूमध्यरेखीय जलवायु, घने जंगलों और अद्वितीय सक्रिय ज्वालामुखी के लिए। वे पर्यटन, मछली पकड़ने और देश की समुद्री सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।
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उत्तरी मैदानों की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तरी मैदान भारत की एक महत्वपूर्ण भौतिक विशेषता है, जो तीन प्रमुख हिमालयी नदी प्रणालियों—सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र—और उनकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़ निक्षेपों से बने हैं। यह मैदान लाखों वर्षों में हिमालय के तल में स्थित एक बड़े बेसिन में जलोढ़ के निक्षेपण से बना है, जो इसे अत्यंत उपजाऊ बनाता है। यह लगभग 7 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है, जिसकी लंबाई लगभग 2,400 किलोमीटर और चौड़ाई 240 से 320 किलोमीटर तक है।
उत्तरी मैदान सघन जनसंख्या वाला क्षेत्र है क्योंकि यहाँ की उपजाऊ मिट्टी, पर्याप्त जल आपूर्ति और अनुकूल जलवायु कृषि के लिए आदर्श स्थिति प्रदान करती है। इस मैदान को मोटे तौर पर तीन मुख्य भागों में बांटा गया है: पश्चिमी भाग को पंजाब का मैदान (सिंधु और उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित), मध्य भाग को गंगा का मैदान (घग्गर से तीस्ता नदियों के बीच), और पूर्वी भाग को ब्रह्मपुत्र का मैदान (विशेषकर असम में) कहते हैं। इसके अलावा, मैदानों को उनकी राहत विशेषताओं के आधार पर भाबर, तराई, भांगर (पुराने जलोढ़) और खादर (नए जलोढ़) में भी वर्गीकृत किया जाता है, जो इसकी भू-आकृतिक विविधता को दर्शाता है। यह क्षेत्र भारत की खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
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प्रायद्वीपीय पठार की विशेषताओं का विस्तृत विवरण दें।
प्रायद्वीपीय पठार भारत का सबसे पुराना और सबसे स्थिर भूभाग है, जो एक मेज के आकार का भूभाग है और प्राचीन क्रिस्टलीय, आग्नेय और मेटामॉर्फिक चट्टानों से बना है। इसका निर्माण गोंडवाना भूमि के टूटने और बहने के परिणामस्वरूप हुआ था, जिससे यह भूगर्भीय रूप से बहुत प्राचीन है। यह पठार व्यापक और छिछली घाटियों तथा गोल पहाड़ियों से चिह्नित है, जो लाखों वर्षों के अपरदन को दर्शाते हैं।
पठार को दो मुख्य प्रभागों में बांटा गया है: **मध्य उच्चभूमि** (नर्मदा नदी के उत्तर में, विंध्य और अरावली श्रृंखलाओं से घिरा) और **दक्कन का पठार** (नर्मदा के दक्षिण में, एक त्रिकोणीय भूभाग जो सतपुड़ा, महादेव, कैमूर और मैकाल श्रृंखलाओं से घिरा है)। दक्कन का पठार पश्चिम में ऊँचा और पूर्व में धीरे-धीरे ढलान वाला है, तथा इसकी विशेषता पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट हैं। पश्चिमी घाट सतत और ऊँचे हैं, जबकि पूर्वी घाट असतत और कम ऊँचे हैं। प्रायद्वीपीय पठार का एक विशिष्ट गुण **दक्कन ट्रैप** का काला मिट्टी क्षेत्र है, जो ज्वालामुखी उत्पत्ति का है और काली मिट्टी से ढका है। यह पठार खनिजों, जैसे लोहा, कोयला और बॉक्साइट का एक समृद्ध भंडार है, जो भारत के औद्योगिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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