अध्याय 8: लौहतुला (लोहे का तराजू)

परिचय

यह पाठ विष्णुशर्मा द्वारा रचित विश्वप्रसिद्ध कथाग्रंथ **'पञ्चतन्त्रम्'** के 'मित्रसम्प्राप्तिः' नामक पहले तंत्र से संकलित किया गया है। यह कहानी एक ऐसे व्यापारी पुत्र की है जो परदेश जाने से पहले अपनी धरोहर एक सेठ के पास रखता है, और लौटने पर सेठ उस धरोहर को देने से इनकार कर देता है। चतुराई और बुद्धिमत्ता से, वह अपनी धरोहर वापस प्राप्त करता है। यह कहानी हमें संदेश देती है कि **बुद्धिबल शरीरबल से श्रेष्ठ है**, और **न्याय हमेशा स्थापित होता है**, भले ही उसके लिए कुछ युक्ति का प्रयोग करना पड़े। यह मानव स्वभाव की कपटता और अंत में सत्य की विजय को भी दर्शाती है।

कथा (The Story)

कस्मिंश्चिदधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्रः प्रतिवसति स्म। स च विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुं ऐच्छत्। अथ तस्य गृहे पूर्वपुरुषोपार्जिता लौहघटिता एका तुला आसीत्। तां च कस्यचिच्छ्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः।

किसी स्थान पर जीर्णधन नामक एक व्यापारी का पुत्र रहता था। वह धन की कमी के कारण दूसरे देश जाना चाहता था। तब उसके घर में पूर्वजों द्वारा कमाई गई लोहे की बनी एक तराजू थी। उसे किसी सेठ के घर धरोहर के रूप में रखकर वह दूसरे देश के लिए निकल पड़ा।

ततः सुचिरं कालं देशान्तरं गत्वा, पुनः स्वदेशं आगत्य, तं श्रेष्ठिनम् अवदत् – “भो श्रेष्ठिन्! सा मे लौहतुला दीयताम्।” स आह – “भोः! सा तु त्वदीया तुला मुषकैः भक्षिता।” जीर्णधनः अवदत् – “भोः श्रेष्ठिन्! नास्ति दोषः ते यदि मुषकैः भक्षिता। ईदृश एव अयं संसारः। न किञ्चिदत्र शाश्वतम् अस्ति।”

फिर बहुत समय तक दूसरे देश में रहकर, पुनः अपने देश आकर, उस सेठ से बोला - "अरे सेठ! वह मेरी लोहे की तराजू दे दो।" वह (सेठ) बोला - "अरे! वह तो तुम्हारी तराजू चूहों ने खा ली।" जीर्णधन बोला - "अरे सेठ! तुम्हारा कोई दोष नहीं यदि चूहों ने खा ली। ऐसा ही यह संसार है। यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है।"

“परम्, अहं स्नातुं नदीं गच्छामि। तत् तव शिशुम् एनं धनदेवनामानं मया सह प्रेषय।” सः श्रेष्ठिनः अवदत् – “अयि! पुत्रक! एषः ते स्नानाय गच्छति। अस्माभिः सह गच्छ।” अथ स वणिक्पुत्रः तं शिशुं गृहीत्वा, स्नानाय नदीं गतः। तत्र स्नात्वा, तम् एकस्यां गुहायां प्रक्षिप्य, तद्द्वारं बृहतशिलेया आच्छाद्य, शीघ्रं स्वगृहम् आगतः।

“परंतु, मैं स्नान करने नदी जा रहा हूँ। तो अपने इस शिशु, धनदेव नामक को मेरे साथ भेज दो।” वह सेठ बोला - "अरे! पुत्र! यह तुम्हारे स्नान के लिए जा रहा है। हमारे साथ जाओ।" तब वह व्यापारी का पुत्र उस शिशु को लेकर स्नान के लिए नदी पर गया। वहाँ स्नान करके, उसे एक गुफा में डालकर, उसके द्वार को एक बड़ी चट्टान से ढककर, शीघ्र अपने घर आ गया।

श्रेष्ठिनः पृष्टम् – “भो! किं शिशुरपि त्वया आनीतः?” सः आह – “भोः श्रेष्ठिन्! किं ब्रवीमि! तव शिशुं नदीतीरात् श्येनो अपहृतवान्।” श्रेष्ठिनः अवदत् – “भोः! मिथ्यावादी! कथं श्येनो शिशुम् अपहर्तुम् शक्नोति? तत् दर्शय मे शिशुम्।”

सेठ ने पूछा - "अरे! क्या शिशु भी तुम्हारे द्वारा लाया गया?" (अर्थात्, शिशु कहाँ है?) वह बोला - "अरे सेठ! क्या कहूँ! तुम्हारे शिशु को नदी के किनारे से बाज उठा ले गया।" सेठ बोला - "अरे! झूठे! कैसे बाज शिशु को उठा ले जा सकता है? तो मेरा शिशु दिखाओ।"

जीर्णधनः अवदत् – “भोः श्रेष्ठिन्! यदि तुला मुषकैः भक्षिता, तदा श्येनः शिशुम् अपहर्तुम् शक्नोति। अत्र न कश्चित् सन्देहः।” श्रेष्ठिनः अवदत् – “भोः! यदि त्वं मम शिशुं न ददासि, तदा अहम् राजकुले निवेदयिष्ये।” जीर्णधनः अवदत् – “अस्तु! निवेदय।”

जीर्णधन बोला - "अरे सेठ! यदि तराजू चूहों ने खा ली, तब बाज शिशु को उठा ले जा सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं।" सेठ बोला - "अरे! यदि तुम मेरा शिशु नहीं देते हो, तब मैं राजदरबार में निवेदन करूँगा।" जीर्णधन बोला - "ठीक है! निवेदन करो।"

ततः उभौ राजकुलं गतौ। तत्र श्रेष्ठिनः न्यायपीठम् आरुह्य अवदत् – “भोः! न्यायप्रधानाः! अस्य वणिक्पुत्रस्य मम पुत्रं श्येनः अपहृतवान्।” अधिकारिणः ऊचुः – “भोः! कथम् एतत् सम्भवति? श्येनो शिशुम् अपहर्तुम् न शक्नोति।” जीर्णधनः अवदत् – “भोः! सत्यम् एव! यदि मुषकैः लौहतुला भक्षिता, तदा श्येनः शिशुम् अपहर्तुम् शक्नोति।”

तब दोनों राजदरबार गए। वहाँ सेठ ने न्यायपीठ पर चढ़कर (बैठकर) बोला - "अरे! न्यायाधीशों! इस व्यापारी के पुत्र ने मेरे पुत्र को (और बाज ने मेरे पुत्र को) उठा लिया।" (यहाँ सेठ ने शायद क्रोध में गलत बोल दिया, अर्थ है - इस व्यापारी पुत्र ने मेरे पुत्र को अपहरण कर लिया या बाज ने मेरे पुत्र को उठा लिया।) अधिकारी बोले - "अरे! यह कैसे संभव है? बाज शिशु को उठा ले नहीं जा सकता।" जीर्णधन बोला - "अरे! बिल्कुल सत्य! यदि चूहों ने लोहे की तराजू खा ली, तब बाज शिशु को उठा ले जा सकता है।"

सर्वैः विस्मितैः पृष्टम् – “कथम् एतत्?” तदा जीर्णधनः आदितात् सर्वं वृत्तान्तं निवेदितवान्। तत् श्रुत्वा, अधिकारिणः श्रेष्ठिनः अवदन् – “भोः! दीयतां लौहतुला। नो चेत् दण्डं दास्यामः।” श्रेष्ठिनः लज्जया सतुलां दत्त्वा, स्वशिशुं प्राप्तवान्।

सभी विस्मितों ने पूछा - "यह कैसे?" तब जीर्णधन ने शुरू से सारा वृत्तांत सुनाया। वह सुनकर, अधिकारियों ने सेठ से कहा - "अरे! लोहे की तराजू दे दो। अन्यथा हम दंड देंगे।" सेठ ने लज्जा से तराजू देकर, अपना शिशु प्राप्त किया।

इस प्रकार, जीर्णधन ने अपनी बुद्धिमत्ता से अपनी खोई हुई धरोहर और न्याय दोनों प्राप्त किए।

शब्दार्थ (Word Meanings)

सारांश (Summary)

यह कहानी **'पञ्चतन्त्रम्'** से ली गई है और **ईमानदारी तथा बुद्धिमत्ता** के महत्व को उजागर करती है।

एक स्थान पर **जीर्णधन** नामक एक व्यापारी पुत्र रहता था। जब उसकी आर्थिक स्थिति खराब हुई, तो उसने परदेश जाने का निश्चय किया। परदेश जाने से पहले, उसके पास अपने पूर्वजों की कमाई हुई **एक लोहे की तराजू** थी। उसने उस तराजू को **किसी सेठ के पास धरोहर के रूप में रख दिया** और परदेश चला गया।

बहुत समय बाद जब जीर्णधन वापस लौटा, तो उसने सेठ से अपनी तराजू वापस माँगी। लेकिन **सेठ बेईमान निकला**। उसने बहाना बनाया कि "तुम्हारी तराजू को तो चूहों ने खा लिया।" जीर्णधन यह सुनकर समझ गया कि सेठ उसे धोखा दे रहा है, पर वह शांत रहा और मुस्कुराते हुए कहा कि इसमें सेठ का कोई दोष नहीं, क्योंकि संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है।

फिर जीर्णधन ने सेठ से कहा कि वह स्नान करने नदी जा रहा है, और वह सेठ के **पुत्र धनदेव को अपने साथ भेज दे**। सेठ को लगा कि जीर्णधन ने उसकी बात मान ली है और उसे कोई आपत्ति नहीं है, इसलिए उसने सहर्ष अपने पुत्र को जीर्णधन के साथ भेज दिया।

जीर्णधन उस बालक को लेकर नदी पर गया। स्नान करने के बाद उसने **बालक को एक गुफा में छुपा दिया** और गुफा के द्वार को एक बड़ी चट्टान से ढककर अपने घर लौट आया। जब सेठ ने अपने पुत्र के बारे में पूछा, तो जीर्णधन ने जवाब दिया कि "तुम्हारे पुत्र को तो **बाज उठा ले गया**!"

यह सुनकर सेठ क्रोधित हो गया और बोला कि "कैसे एक बाज शिशु को उठा ले जा सकता है? तुम झूठे हो! मेरा पुत्र दिखाओ!" तब जीर्णधन ने शांत होकर जवाब दिया, "अरे सेठ! यदि चूहें लोहे की तराजू को खा सकते हैं, तो एक बाज भी शिशु को उठा ले जा सकता है। इसमें कोई संदेह नहीं है।"

दोनों के बीच विवाद बढ़ गया और वे **राजदरबार** पहुँचे। सेठ ने न्यायाधीशों के सामने शिकायत की कि जीर्णधन ने उसके पुत्र का अपहरण कर लिया है। न्यायाधीशों ने पूछा कि कैसे एक बाज शिशु को उठा ले जा सकता है। तब जीर्णधन ने विस्तार से अपनी सारी कहानी सुनाई, कि कैसे सेठ ने उसकी लोहे की तराजू को चूहों द्वारा खाए जाने का बहाना बनाया था।

सारी बात सुनकर, न्यायाधीशों ने सेठ को उसकी **लोहे की तराजू वापस करने का आदेश** दिया और उसे चेतावनी दी कि अन्यथा उसे दंड मिलेगा। लज्जित होकर सेठ ने अपनी गलती स्वीकार की और जीर्णधन को उसकी तराजू वापस कर दी। बदले में, जीर्णधन ने भी सेठ को उसका पुत्र धनदेव लौटा दिया।

यह कहानी हमें सिखाती है कि **बुद्धि और विवेक का प्रयोग करके किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है**, और **बेईमानी का परिणाम हमेशा बुरा होता है**। सत्य और न्याय की हमेशा विजय होती है।

अभ्यास-प्रश्नाः (Exercise Questions)

I. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दें)

  1. जीर्णधनो नाम कः प्रतिवसति स्म?

    वणिक्पुत्रः (व्यापारी का पुत्र)

  2. जीर्णधनः काम् निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः?

    लौहतुलाम् (लोहे की तराजू को)

  3. सेठिनः किं भक्षिताम्?

    मुषकैः (चूहों द्वारा)

  4. जीर्णधनः शिशुं कुत्र प्रक्षिप्य आच्छाद्य?

    गुहायाम् (गुफा में)

  5. श्येनः कं अपहृतवान्?

    शिशुम् (शिशु को)

  6. कस्य गृहे लौहघटिता एका तुला आसीत्?

    जीर्णधनस्य (जीर्णधन के)

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दें)

  1. जीर्णधनः कस्मात् देशान्तरं गन्तुम् ऐच्छत्?

    जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुम् ऐच्छत्। (जीर्णधन धन की कमी के कारण दूसरे देश जाना चाहता था।)

  2. श्रेष्ठिनः अवदत् - "भोः! सा तु त्वदीया तुला मुषकैः भक्षिता" - इत्युक्तेः कः आशयः?

    श्रेष्ठिनः इत्युक्तेः आशयः अस्ति यत् सः जीर्णधनस्य लौहतुलां न दातुं इच्छति स्म, अतः सः असत्यं अवदत् यत् तुला मुषकैः भक्षिता। (सेठ के इस कथन का आशय है कि वह जीर्णधन को लोहे का तराजू नहीं देना चाहता था, अतः उसने असत्य कहा कि तराजू चूहों ने खा ली।)

  3. जीर्णधनः शिशुं गुहायां किमर्थं प्रक्षिप्य आच्छाद्य?

    जीर्णधनः शिशुं गुहायां प्रक्षिप्य आच्छाद्य यतो हि श्रेष्ठिना तस्य लौहतुला मुषकैः भक्षिता इति असत्यम् उक्तम् आसीत्, अतः सः न्यायप्राप्त्यर्थम् शिशुम् अपहृतवान्। (जीर्णधन ने शिशु को गुफा में डालकर ढक दिया क्योंकि सेठ ने उसकी लोहे की तराजू चूहों द्वारा खाए जाने का असत्य कहा था, अतः वह न्याय प्राप्त करने के लिए शिशु का अपहरण किया।)

  4. राजकुले श्रेष्ठिना किं निवेदितम्?

    राजकुले श्रेष्ठिना निवेदितम् यत् अस्य वणिक्पुत्रस्य मम पुत्रं श्येनः अपहृतवान्। (राजदरबार में सेठ ने निवेदन किया कि इस व्यापारी के पुत्र ने मेरे पुत्र को बाज द्वारा अपहरण करवा दिया।)

  5. न्यायाधिकारिणः जीर्णधनं किं पृष्टवन्तः?

    न्यायाधिकारिणः जीर्णधनं पृष्टवन्तः – “कथम् एतत्? श्येनो शिशुम् अपहर्तुम् न शक्नोति।” (न्यायाधिकारियों ने जीर्णधन से पूछा - "यह कैसे? बाज शिशु को उठा ले नहीं जा सकता।")

III. स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (मोटे अक्षरों के आधार पर प्रश्न निर्माण करें)

  1. कस्मिंश्चिदधिष्ठाने **जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्रः** प्रतिवसति स्म।

    कस्मिंश्चिदधिष्ठाने **कः** प्रतिवसति स्म?

  2. सः च विभवक्षयात् **देशान्तरं** गन्तुं ऐच्छत्।

    सः च विभवक्षयात् **कुत्र** गन्तुं ऐच्छत्?

  3. तां च **कस्यचिच्छ्रेष्ठिनो गृहे** निक्षेपभूतां कृत्वा प्रस्थितः।

    तां च **कस्य गृहे** निक्षेपभूतां कृत्वा प्रस्थितः?

  4. **मुषकैः** तुला भक्षिता।

    **कैः** तुला भक्षिता?

  5. **जीर्णधनः** राजकुले निवेदितवान्।

    **कः** राजकुले निवेदितवान्?

IV. सन्धिं/सन्धिविच्छेदं कुरुत (संधि/संधि विच्छेद करें)

  1. कस्मिंश्चिदधिष्ठाने = **कस्मिन् + चित् + अधिष्ठाने**
  2. वणिक्पुत्रः = **वणिक् + पुत्रः** (विसर्ग संधि के बाद जश्त्व संधि)
  3. गन्तुम् ऐच्छत् = **गन्तुम् + ऐच्छत्**
  4. पूर्वपुरुषोपार्जिता = **पूर्वपुरुष + उपार्जिता**
  5. कस्यचिच्छ्रेष्ठिनो = **कस्यचित् + श्रेष्ठिनो**
  6. मुषकैः भक्षिता = **मुषकैर्भक्षिता**
  7. नास्ति = **न + अस्ति**
  8. किञ्चिदत्र = **किञ्चित् + अत्र**
  9. पुत्रकोऽहम् = **पुत्रकः + अहम्**
  10. इत्युक्त्वा = **इति + उक्त्वा**
  11. श्येनोऽपहृतवान् = **श्येनः + अपहृतवान्**
  12. अहोरात्रं = **अहः + रात्रम्** (अहर्निशम् भी)
  13. अधिकारिणोऽब्रुवन् = **अधिकारिणः + अब्रुवन्**
  14. श्रेष्ठिनोऽवदत् = **श्रेष्ठिनः + अवदत्**
  15. उभौ + अपि = **उभावपि**

V. निम्नलिखितानां वाक्यानां वाच्यपरिवर्तनं कुरुत (निम्नलिखित वाक्यों का वाच्य परिवर्तन करें)

(कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य या कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य में बदलें)

  1. श्रेष्ठिना तुला मुषकैः भक्षिता। (कर्मवाच्य)

    मुषकैः श्रेष्ठिनः तुलाम् अभक्षयत्। (कर्तृवाच्य)

  2. जीर्णधनः शिशुं गुहायां प्रक्षिप्य आच्छाद्य। (कर्तृवाच्य)

    जीर्णधनेन शिशुः गुहायां प्रक्षिप्य आच्छादितः। (कर्मवाच्य)

  3. श्रेष्ठिना सह राजकुलं गतम्। (कर्मवाच्य)

    श्रेष्ठिना सह सः राजकुलं गतवान्। (कर्तृवाच्य)

  4. अधिकारिणः अवदन्। (कर्तृवाच्य)

    अधिकारिभिः उक्तम्। (कर्मवाच्य)

  5. जीर्णधनः राजकुले निवेदितवान्। (कर्तृवाच्य)

    जीर्णधनेन राजकुले निवेदितम्। (कर्मवाच्य)

(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ़ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। दिखावट भिन्न हो सकती है।)