अध्याय 7: प्रत्यभिज्ञानम् (पहचान)
परिचय
यह पाठ महाकवि भास द्वारा रचित नाटक 'पञ्चरात्रम्' के तीसरे अंक से संकलित किया गया है। महाभारत के युद्ध से पहले, पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास मिला था। इस अज्ञातवास के दौरान वे मत्स्य देश के राजा विराट के यहाँ वेश बदलकर रह रहे थे। दुर्योधन को पांडवों के अज्ञातवास का पता लगाने की चिंता थी। वह गुरु द्रोणाचार्य के साथ विचार-विमर्श करता है। द्रोणाचार्य की सलाह पर, दुर्योधन विराट के राज्य पर आक्रमण करता है और उनकी गायों का हरण करता है।
विराट की ओर से, उनके पुत्र राजकुमार उत्तर, सारथी बनकर आए अर्जुन (बृहन्नला वेश में) के साथ कौरवों से युद्ध करने जाते हैं। युद्ध में सभी कौरवों को अकेले अर्जुन पराजित करते हैं। इसी बीच, राजा विराट भी अपने सैनिकों के साथ युद्ध में आते हैं। इस युद्ध के बाद, जब उत्तर और बृहन्नला (अर्जुन) वापस लौट रहे होते हैं, तो उन्हें भीम (वल्लभ वेश में) और युधिष्ठिर (कंक वेश में) तथा अन्य पांडव मिल जाते हैं। यहीं पर कौरवों के वीर अभिमन्यु, जिन्हें भीम ने पकड़ लिया था, उनको राजा विराट के सामने प्रस्तुत किया जाता है। अभिमन्यु के अहंकार और उसके बाद की घटनाओं के माध्यम से ही पांडवों की पहचान उजागर होती है। यह पाठ इसी रोचक घटना का वर्णन करता है।
कथा (The Story)
प्रवेशः (Entry)
**ततः प्रविशति भटः।**
**भटः** - जयतु महाराजः।
**राजा** - अपूर्वो नु खलु ते हर्षः। ब्रूहि केन विस्मितोऽसि?
**भटः** - अश्रद्धेयं प्रियं प्राप्तम्। सौभद्रो ग्रहणं गतः।
**राजा** - कथमिदानीं सोऽयम्?
**भटः** - रथमासाद्य निरस्तपादातम्।
**तभी सैनिक का प्रवेश होता है।**
**सैनिक** - महाराज की जय हो!
**राजा** - निश्चय ही तुम्हारा हर्ष अपूर्व है। कहो, किससे विस्मित हो?
**सैनिक** - अविश्वसनीय प्रिय (समाचार) प्राप्त हुआ है। सुभद्रा का पुत्र (अभिमन्यु) पकड़ा गया है।
**राजा** - अब वह कैसा है?
**सैनिक** - रथ से कूदकर पैदल ही। (अर्थात्, रथ से उतार दिया गया है, पैदल ही है)
अभिमन्यु की प्रस्तुति (Presentation of Abhimanyu)
**राजा** - केन?
**भटः** - येन किल नरसिंहेन, बाहुभ्यामेव गृहीतः।
**राजा** - तेन हि शीघ्रम् आनयताम्।
**भटः** - इत इत कुमारः।
**ततः प्रविशति अभिमन्युः, वल्लभः, उत्तरः, च।**
**वल्लभः** - (अभिमन्युं प्रति) इत इत कुमार!
**राजा** - किसके द्वारा?
**सैनिक** - जिसे निश्चय ही नरसिंह (जैसे शक्तिशाली भीम) ने अपनी भुजाओं से ही पकड़ लिया।
**राजा** - तो शीघ्र लाओ उसे।
**सैनिक** - इधर से, इधर से, कुमार (अभिमन्यु)!
**तभी अभिमन्यु, वल्लभ (भीम), और उत्तर का प्रवेश होता है।**
**वल्लभ** - (अभिमन्यु की ओर) इधर से, इधर से, कुमार!
अभिमन्यु का अहंकार (Abhimanyu's Arrogance)
**अभिमन्युः** - भोः! को नु खल्व एषः येन भुजाभ्याम् एकः एव पीडितः? न खलु येन कश्चित् पादाभ्याम् अभिभविष्यति।
**वल्लभः** - एष हि महाराजः, उपसर्पतु कुमारः।
**अभिमन्युः** - न एष राजा, अपितु क्षत्रियः! अहम् तु न एतेन सह वक्तुं शक्नोमि।
**उत्तरः** - अभिमन्यो, अभिमन्यो! एष महाराजः, तेन सह उपसर्प।
**अभिमन्यु** - अरे! यह कौन है जिसने अपनी भुजाओं से ही अकेला मुझे (पीड़ित) दबाया? निश्चय ही जिसे कोई पैरों से पराजित नहीं करेगा।
**वल्लभ (भीम)** - यह महाराज हैं, कुमार (अभिमन्यु) उनके पास जाएँ।
**अभिमन्यु** - यह राजा नहीं है, बल्कि क्षत्रिय है! मैं तो इसके साथ बात नहीं कर सकता।
**उत्तर** - अभिमन्यु, अभिमन्यु! यह महाराज हैं, उनके पास जाओ।
राजा विराट और अभिमन्यु का संवाद (Dialogue between King Virat and Abhimanyu)
**अभिमन्युः** - कथम्! नाम्नाऽभिभाषसे मां? अथ भवन्तौ किमत्र राज्ञोऽपि नाम्ना आह्वयतः? अथ किं राज्ञोऽपि नाम्ना आह्वयतः? अथवा अहं तेन गृह्णामि, येन एव मम पितरौ गृह्णीयाताम्।
**राजा** - भोः कुमार! कथं न मां प्रत्यभिजानासि?
**अभिमन्युः** - कः नाम भवान्?
**राजा** - अहं राजा विराटः।
**अभिमन्युः** - कथं राजा विराटः? तेन हि त्वं धृतराष्ट्रस्य पुत्रः। (कुछ भ्रमित होते हुए)
**अभिमन्यु** - क्या! नाम से मुझे बुलाते हो? क्या आप दोनों यहाँ राजा को भी नाम से बुलाते हो? या मैं उसे ग्रहण करता हूँ, जिससे मेरे माता-पिता भी ग्रहण करें।
**राजा** - अरे कुमार! तुम मुझे कैसे नहीं पहचानते?
**अभिमन्यु** - आप कौन हैं?
**राजा** - मैं राजा विराट हूँ।
**अभिमन्यु** - क्या राजा विराट? तो तुम धृतराष्ट्र के पुत्र हो। (कुछ भ्रमित होते हुए, क्योंकि धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव थे, अभिमन्यु को लगता है कि विराट ने उससे युद्ध किया है, इसलिए वह उसे कौरवों से जोड़ता है।)
अभिमन्यु का अहंकार जारी (Abhimanyu's Arrogance Continues)
**राजा** - कथं धृतराष्ट्रस्य पुत्रः?
**अभिमन्युः** - अतः भवान् न राजा, अपितु क्षत्रियः! तस्य च अङ्गम् कुरुप्रतापम्। येन हि युष्माभिः सह युद्धं कृतम्।
**राजा** - कुतोऽसि?
**अभिमन्युः** - अहम् अर्जुनस्य पुत्रः, अभिमन्युः नाम।
**राजा** - (हर्षेण) भोः! अर्जुनस्य पुत्रः? तर्हि कथं युद्धे गृहीतः?
**अभिमन्युः** - अलमत्र प्रलापेन। विस्मरतु भवान्।
**राजा** - क्या धृतराष्ट्र का पुत्र?
**अभिमन्यु** - इसलिए आप राजा नहीं, बल्कि क्षत्रिय हैं! और उनका (कौरवों का) अंग कुरुप्रताप (कौरवों का पराक्रम) है। जिसके द्वारा आप सब के साथ युद्ध किया गया।
**राजा** - कहाँ से हो?
**अभिमन्यु** - मैं अर्जुन का पुत्र, अभिमन्यु नाम का हूँ।
**राजा** - (खुशी से) अरे! अर्जुन का पुत्र? तो फिर युद्ध में कैसे पकड़े गए?
**अभिमन्यु** - यहाँ प्रलाप (बकवास) करने की कोई आवश्यकता नहीं। आप भूल जाएँ।
बृहन्नला (अर्जुन) का प्रवेश और अभिमन्यु से वार्ता (Entry of Brihannala (Arjuna) and conversation with Abhimanyu)
**बृहन्नला** - (उत्तराभिमुखम्) एष ते तातः! उपसर्प।
**अभिमन्युः** - कथं! क्षत्रियो न गच्छति?
**बृहन्नला** - (आत्मगतम्) कथम् अयम् अद्यापि माम् अर्जुनम् न जानाति? अहम् तु अस्य पितरम्! (प्रकाशम्) भोः! न एष ते तातः। तेन हि भवान् अस्य मातुलः।
**अभिमन्युः** - अहो! कथम् अयं माम् मातुलशब्देन अभिभाषते? किम् अहं नृपेषु एव मातुलः? अथ किं, मया क्षत्रियैः सह युद्धं न कृतम्?
**बृहन्नला (अर्जुन)** - (उत्तर की ओर देखकर) ये तुम्हारे ताऊजी हैं! जाओ इनके पास।
**अभिमन्यु** - क्या! क्षत्रिय नहीं जाता?
**बृहन्नला** - (मन में) यह अभी भी मुझे अर्जुन क्यों नहीं पहचानता? मैं तो इसका पिता हूँ! (प्रकट रूप से) अरे! ये तुम्हारे ताऊजी नहीं हैं। तो फिर आप इनके मामा हैं।
**अभिमन्यु** - अरे! यह मुझे मामा शब्द से क्यों बुलाता है? क्या मैं राजाओं में ही मामा हूँ? या क्या, मैंने क्षत्रियों के साथ युद्ध नहीं किया?
अभिमन्यु की वीरता और उसके परिवार का जिक्र (Abhimanyu's Valor and Mention of his Family)
**बृहन्नला** - (हसन्) एषः हि बलवान्, भीमसेनः। एषः च धर्मराजः। तेन हि युष्मत्पिता अर्जुनः अस्माकम् गुरुः।
**अभिमन्युः** - अलमत्र प्रलापेन। न ते युष्माकं नामग्रहणम्। अहम् न एतम् अङ्गीकरिष्यामि। अहो! कुरुवंशस्य कीदृशं दुष्करं!
**राजा** - अलम्, अलम्, अभिमन्यु! यत् प्रियं ते, तत् कथय।
**अभिमन्युः** - यदि न धर्मस्य हानिः, न च अस्त्रस्य। तेन हि सञ्जयस्य पुत्रः कुरुवंशस्य प्रतापः, एष एव योधेषु प्रधानः।
**बृहन्नला** - (हँसते हुए) यह बलवान भीमसेन है। और यह धर्मराज (युधिष्ठिर) है। तो फिर तुम्हारे पिता अर्जुन हमारे गुरु हैं।
**अभिमन्यु** - यहाँ प्रलाप (बकवास) करने की कोई आवश्यकता नहीं। मैं आप लोगों का नामकरण नहीं करूँगा। मैं इसे स्वीकार नहीं करूँगा। अरे! कुरुवंश का यह कैसा दुष्कर कार्य है!
**राजा** - बस, बस, अभिमन्यु! जो तुम्हें प्रिय है, वह कहो।
**अभिमन्यु** - यदि धर्म की हानि न हो, और न ही अस्त्र की। तो फिर संजय का पुत्र (बृहन्नला के रूप में अर्जुन) कुरुवंश का प्रताप है, यही योद्धाओं में प्रधान है।
अभिमन्यु की पहचान (Abhimanyu's Recognition)
**राजा** - कथं! संजयस्य पुत्रः?
**अभिमन्युः** - अथ किम्! युष्माभिः कृतम् कर्म। येन हि पितामहम् उपेक्ष्य, तेन हि तेन एव धनुषा युद्धं कृतम्।
**भीमः** - (हसन्) अहो! कुमारस्य वीर्यम्! अलम् अतिभाषणेन। एहि, अस्त्रं शिक्षस्व।
**अभिमन्युः** - को भवान्?
**भीमः** - अहम् वल्लभः।
**अभिमन्युः** - भीमोऽसि! तेन हि पादौ प्रहारम् करोमि।
**भीमः** - (हसन्) अलम्, अलम्, साहसेन। युधिष्ठिरः एषः।
**अभिमन्युः** - धर्मराजः! अत्र उपसर्पामि। (युधिष्ठिरस्य पादौ पतति)
**राजा** - क्या! संजय का पुत्र?
**अभिमन्यु** - और क्या! आप लोगों ने ही यह कार्य किया है। जिसके द्वारा दादाजी (द्रोणाचार्य या भीष्म) को छोड़कर, उसी धनुष से युद्ध किया।
**भीम** - (हँसते हुए) अरे! कुमार की वीरता! बहुत हो गया, अत्यधिक बोलना। आओ, अस्त्र सीखो।
**अभिमन्यु** - आप कौन हैं?
**भीम** - मैं वल्लभ हूँ।
**अभिमन्यु** - भीम हो! तो मैं पैरों से प्रहार करता हूँ।
**भीम** - (हँसते हुए) बस, बस, साहस रहने दो। यह युधिष्ठिर है।
**अभिमन्यु** - धर्मराज! यहाँ पास आता हूँ। (युधिष्ठिर के पैरों में गिरता है)
पांडवों की पहचान का रहस्योद्घाटन (Revelation of Pandavas' Identity)
**युधिष्ठिरः** - उत्तिष्ठ, वत्स!
**अभिमन्युः** - न, अत्र उत्तिष्ठामि। यदि भवान् मम पितामहः!
**युधिष्ठिरः** - (हसन्) अहो! अस्य बालस्य गर्वः! (प्रकाशम्) एषः ते पिता, अर्जुनः।
**अभिमन्युः** - (आश्चर्येण) कथं पिता! कथम् अत्र गूढरूपेण अस्ति!
**अर्जुनः** - वत्स! प्रतिज्ञातम् आसीत् अज्ञातवासे यत् यः मां युद्धे पराजयिष्यति, सः मम पुत्रः भवति। अहं तु भवान् एव अस्ति।
**अभिमन्युः** - (शिरो नत्वा) अहो! पितुः प्रतिज्ञा। अहं कृतकार्यः।
**युधिष्ठिरः** - एहि, वत्स! आलिङ्गस्व। (अभिमन्युम् आलिङ्गति)
**युधिष्ठिर** - उठो, वत्स!
**अभिमन्यु** - नहीं, यहाँ नहीं उठता। यदि आप मेरे दादाजी (युधिष्ठिर) हैं!
**युधिष्ठिर** - (हँसते हुए) अरे! इस बालक का गर्व! (प्रकट रूप से) यह तुम्हारे पिता, अर्जुन हैं।
**अभिमन्यु** - (आश्चर्य से) क्या पिता! यहाँ गुप्त रूप में कैसे हैं!
**अर्जुन** - वत्स! अज्ञातवास में प्रतिज्ञा की गई थी कि जो मुझे युद्ध में पराजित करेगा, वह मेरा पुत्र होगा। मैं तो आप ही हैं। (अर्थात् तुमने मुझे युद्ध में पराजित कर दिया है।)
**अभिमन्यु** - (सिर झुकाकर) अरे! पिता की प्रतिज्ञा। मैं कृतकार्य (सफल) हुआ।
**युधिष्ठिर** - आओ, वत्स! गले लगाओ। (अभिमन्यु को गले लगाते हैं)
पांडवों का अज्ञातवास समाप्त (End of Pandavas' Incognito Period)
**सर्वे** - जयतु महाराजः। जयतु पांडवाः।
**सभी** - महाराज की जय हो! पांडवों की जय हो!
यह घटना अज्ञातवास के अंतिम दिन घटित होती है, जब पांडवों का अज्ञातवास समाप्त होता है और वे अपनी वास्तविक पहचान प्रकट कर सकते हैं। इस प्रकार, अभिमन्यु की 'पहचान' के कारण ही पांडवों की भी 'पहचान' होती है।
शब्दार्थ (Word Meanings)
- **प्रत्यभिज्ञानम्:** पहचान (recognition)
- **भटः:** सैनिक (soldier)
- **जयतु महाराजः:** महाराज की जय हो (Victory to the King)
- **अपूर्वो नु खलु:** निश्चय ही अपूर्व है (certainly unprecedented)
- **हर्षः:** खुशी (joy)
- **विस्मितोऽसि:** तुम विस्मित हो (you are surprised)
- **अश्रद्धेयं प्रियम्:** अविश्वसनीय प्रिय (unbelievable good news)
- **सौभद्रः:** सुभद्रा का पुत्र (Abhimanyu)
- **ग्रहणम् गतः:** पकड़ा गया (was captured)
- **कथमिदानीं सोऽयम्:** अब वह कैसा है (How is he now?)
- **रथम् आसाद्य:** रथ से उतरकर (having descended from the chariot)
- **निरस्तपादातम्:** पैदल ही (on foot)
- **येन किल नरसिंहेन:** जिसे निश्चय ही नरसिंह जैसे (by whom, indeed, like a lion-man)
- **बाहुभ्याम् एव:** भुजाओं से ही (by arms alone)
- **गृहीतः:** पकड़ा गया (caught)
- **आनयताम्:** लाया जाए (let him be brought)
- **इत इत कुमारः:** इधर से, इधर से, कुमार (this way, this way, prince!)
- **वल्लभः:** (यहाँ भीम का गुप्त नाम) (secret name of Bhima)
- **उत्तरः:** (विराट का पुत्र) (son of Virat)
- **पीडितः:** दबाया गया, पीड़ित किया गया (oppressed, tormented)
- **अभिभविष्यति:** पराजित करेगा (will defeat)
- **उपसर्पतु:** पास जाएँ (let him approach)
- **क्षत्रियः:** क्षत्रिय (warrior caste)
- **वक्तुम् शक्नोमि:** बोल सकता हूँ (am able to speak)
- **नाम्नाऽभिभाषसे माम्:** नाम से मुझे बुलाते हो (you address me by name)
- **आह्वयतः:** बुलाते हो (you call)
- **तेन गृह्णामि:** उसे ग्रहण करता हूँ (I accept him)
- **पितरौ:** माता-पिता (parents)
- **गृह्णीयाताम्:** ग्रहण करें (may accept)
- **प्रत्यभिजानासि:** पहचानते हो (do you recognize)
- **धृतराष्ट्रस्य पुत्रः:** धृतराष्ट्र का पुत्र (son of Dhritarashtra, i.e., Kaurava)
- **अङ्गम्:** अंग (part, limb)
- **कुरुप्रतापम्:** कौरवों का पराक्रम (valor of Kauravas)
- **युष्माभिः सह:** आप सब के साथ (with all of you)
- **कृतम्:** किया गया (done)
- **कुतोऽसि:** कहाँ से हो (from where are you)
- **अलमत्र प्रलापेन:** यहाँ बकवास करने की आवश्यकता नहीं (enough of this babbling)
- **विस्मरतु भवान्:** आप भूल जाएँ (you forget)
- **उत्तराभिमुखम्:** उत्तर की ओर देखकर (facing Uttara)
- **तातः:** ताऊजी/पिता (uncle/father)
- **आत्मगतम्:** मन में (to oneself)
- **अद्यापि:** आज भी (even today)
- **प्रकाशम्:** प्रकट रूप से (aloud)
- **मातुलः:** मामा (maternal uncle)
- **मातुलशब्देन:** मामा शब्द से (by the word 'maternal uncle')
- **नृपेषु:** राजाओं में (among kings)
- **बलवान्:** बलवान (strong)
- **धर्मराजः:** (युधिष्ठिर का गुप्त नाम) (secret name of Yudhishthira)
- **युष्मत्पिता:** तुम्हारे पिता (your father)
- **अङ्गीकरिष्यामि:** स्वीकार करूँगा (I will accept)
- **दुष्करम्:** कठिन कार्य (difficult task)
- **यत् प्रियं ते:** जो तुम्हें प्रिय है (what is dear to you)
- **धर्मस्य हानिः:** धर्म की हानि (loss of dharma)
- **अस्त्रस्य:** अस्त्र की (of weapon)
- **सञ्जयस्य पुत्रः:** संजय का पुत्र (son of Sanjaya, here referring to Arjuna as Brihannala)
- **प्रधानः:** प्रधान (chief, most important)
- **पितामहम् उपेक्ष्य:** दादाजी को छोड़कर (disregarding grandfather - Bhishma/Dronacharya)
- **धनुषा:** धनुष से (by the bow)
- **वीर्यम्:** वीरता (valor)
- **अतिभाषणेन:** अत्यधिक बोलने से (by excessive talking)
- **शिक्षस्व:** सीखो (learn)
- **पादौ प्रहारम् करोमि:** पैरों से प्रहार करता हूँ (I strike with my feet)
- **साहसेन:** साहस से (with courage/daring)
- **शिरो नत्वा:** सिर झुकाकर (bowing head)
- **कृतकार्यः:** सफल हुआ (succeeded, achieved purpose)
- **आलिङ्गस्व:** गले लगाओ (embrace)
- **आलिङ्गति:** गले लगाते हैं (embraces)
सारांश (Summary)
यह पाठ महाकवि भास के नाटक **'पञ्चरात्रम्'** से लिया गया है। यह महाभारत के अज्ञातवास काल की घटना है। कौरवों ने मत्स्यराज विराट की गायों का हरण कर लिया है, और उन्हें पांडवों के अज्ञातवास का पता लगाने की उम्मीद है।
महाराज विराट के पुत्र **उत्तर**, अपने सारथी **बृहन्नला (अर्जुन)** के साथ कौरवों से युद्ध करने जाते हैं। अर्जुन अकेले ही सभी कौरवों को पराजित करते हैं। युद्ध के बाद, सैनिक खुशी-खुशी राजा विराट को सूचना देते हैं कि उन्होंने **अभिमन्यु (सुभद्रा का पुत्र)** को पकड़ लिया है।
जब अभिमन्यु को राजा विराट के सामने लाया जाता है, तो वह बहुत **अहंकारी** और **घमंडी** व्यवहार करता है। वह राजा विराट को राजा मानने से इनकार करता है और उन्हें 'क्षत्रिय' कहकर संबोधित करता है। उसे लगता है कि वे उसके परिवार के बराबर नहीं हैं और वह किसी भी 'गैर-राजसी' व्यक्ति से बात नहीं करेगा।
वल्लभ (भीम) और बृहन्नला (अर्जुन) अभिमन्यु के इस अहंकार से थोड़ा चकित होते हैं, लेकिन उसकी वीरता की प्रशंसा भी करते हैं। अभिमन्यु अपनी **वीरोचित परंपरा** पर गर्व करता है, कि वह अर्जुन का पुत्र है। वह उन्हें बताता है कि उसने किसी सामान्य व्यक्ति से पराजय स्वीकार नहीं की, बल्कि उसी धनुषधारी से युद्ध किया जिसने भीष्म जैसे वीरों को भी मात दी।
जब भीम (वल्लभ) उसे पकड़कर युधिष्ठिर (कंक) के सामने लाते हैं, तो अभिमन्यु शुरू में उन्हें भी पहचान नहीं पाता। वह भीम को 'वल्लभ' नाम से पुकारता है और उनसे **असमान व्यवहार** करता है। अंत में, युधिष्ठिर और अर्जुन उसे अपनी वास्तविक पहचान बताते हैं। अर्जुन बताता है कि अज्ञातवास की प्रतिज्ञा के अनुसार, जो उसे युद्ध में हराएगा वह उसका पुत्र होगा, और अभिमन्यु ने ऐसा करके उस प्रतिज्ञा को पूरा कर दिया है।
यह सुनकर अभिमन्यु का अहंकार दूर हो जाता है और वह अपने बड़ों के पैरों में गिरकर सम्मान प्रकट करता है। इस प्रकार, **अभिमन्यु की 'पहचान' (प्रत्यभिज्ञानम्)** ही पांडवों के अज्ञातवास की समाप्ति और उनकी वास्तविक पहचान के **रहस्योद्घाटन** का कारण बनती है। यह पाठ वीरता, अहंकार, और अंततः विनम्रता तथा सत्य की विजय को दर्शाता है।
अभ्यास-प्रश्नाः (Exercise Questions)
I. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दें)
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सौभद्रः कस्य पुत्रः?
सुभद्रायाः (सुभद्रा का)
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भटः कं दृष्ट्वा हर्षेण अवदत्?
महाराजम् (महाराज को)
-
अभिमन्युः कं नाम्ना आह्वयत्?
वल्लभम् / बृहन्नलाम् (वल्लभ/बृहन्नला को)
-
युधिष्ठिरः कः?
धर्मराजः (धर्मराज)
-
अभिमन्युः कस्य पादौ पतति?
युधिष्ठिरस्य (युधिष्ठिर के)
-
अभिमन्युः कस्य पुत्रः?
अर्जुनस्य (अर्जुन का)
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दें)
-
विराटः भटं किम् अपृच्छत्?
विराटः भटम् अपृच्छत् - "अपूर्वो नु खलु ते हर्षः। ब्रूहि केन विस्मितोऽसि?" (विराट ने सैनिक से पूछा - "निश्चय ही तुम्हारा हर्ष अपूर्व है। कहो, किससे विस्मित हो?")
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कः नरसिंहेन बाहुभ्यामेव गृहीतः?
सौभद्रः (अभिमन्युः) नरसिंहेन बाहुभ्यामेव गृहीतः। (सुभद्रा का पुत्र (अभिमन्यु) नरसिंह जैसे (भीम) द्वारा अपनी भुजाओं से ही पकड़ा गया।)
-
अभिमन्युः कं नाम्ना अभिभाषते?
अभिमन्युः बृहन्नलाम् नाम्ना अभिभाषते यतो हि सः तम् पितरम् न मन्यते। (अभिमन्यु बृहन्नला को नाम से बुलाता है क्योंकि वह उसे पिता नहीं मानता।)
-
किं विचिन्त्य अर्जुनः अभिमन्युं नाम्ना आह्वयति स्म?
अर्जुनः (बृहन्नला) आत्मगतम् विचिन्त्य यत् अयम् अद्यापि माम् अर्जुनम् न जानाति, अतः प्रकाशम् अभिमन्युं नाम्ना आह्वयति स्म। (अर्जुन (बृहन्नला) मन में यह सोचकर कि यह अभी भी मुझे अर्जुन नहीं जानता, इसलिए प्रकट रूप से अभिमन्यु को नाम से बुलाता था।)
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कथं अर्जुनस्य प्रतिज्ञा पूर्णा अभवत्?
अर्जुनस्य प्रतिज्ञा पूर्णा अभवत् यत् अज्ञातवासे यः मां युद्धे पराजयिष्यति, सः मम पुत्रः भवति, इति अभिमन्युना अर्जुनं युद्धे पराजितं कृतम्। (अर्जुन की प्रतिज्ञा पूर्ण हुई कि अज्ञातवास में जो मुझे युद्ध में पराजित करेगा, वह मेरा पुत्र होगा, क्योंकि अभिमन्यु ने अर्जुन को युद्ध में पराजित कर दिया।)
III. स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (मोटे अक्षरों के आधार पर प्रश्न निर्माण करें)
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**अभिमन्युः** रथमासाद्य निरस्तपादातम्।
**कः** रथमासाद्य निरस्तपादातम्?
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**सौभद्रः** ग्रहणं गतः।
**कः** ग्रहणं गतः?
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**अभिमन्युः** नाम्नाऽभिभाषसे मां?
**कम्** नाम्नाऽभिभाषसे मां?
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**बृहन्नला** हसन् अवदत्।
**कः** हसन् अवदत्?
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अहं **अर्जुनस्य** पुत्रः।
अहं **कस्य** पुत्रः?
IV. निम्नलिखितानां वाक्यानां घटनाक्रमानुसारं लिखत (निम्नलिखित वाक्यों को घटनाक्रम के अनुसार लिखें)
- अभिमन्युः युधिष्ठिरस्य पादौ पतति।
- भटः महाराजाय प्रियं निवेदयति।
- अभिमन्युः अर्जुनं पिता इति स्वीकरोति।
- वल्लभः अभिमन्युम् गृह्णाति।
- अभिमन्युः स्वस्य गर्वं प्रकटयति।
- बृहन्नला अभिमन्युं प्रति ‘तात!’ इति कथयति।
**सही क्रम:**
- भटः महाराजाय प्रियं निवेदयति।
- वल्लभः अभिमन्युम् गृह्णाति।
- अभिमन्युः स्वस्य गर्वं प्रकटयति।
- बृहन्नला अभिमन्युं प्रति ‘तात!’ इति कथयति।
- अभिमन्युः युधिष्ठिरस्य पादौ पतति।
- अभिमन्युः अर्जुनं पिता इति स्वीकरोति।
V. अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदानि शुद्धं कृत्वा लिखत (नीचे लिखे वाक्यों में रेखांकित पदों को शुद्ध करके लिखें)
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राजा **तेन** हतः।
राजा **तेन** हत:। (यहाँ वाक्य संरचना के अनुसार 'राजा तेन हतः' शुद्ध है, जिसका अर्थ है 'राजा उसके द्वारा मारा गया'। यदि अर्थ 'राजा ने उसे मारा' हो तो 'राजा तम् हतवान्' होगा। पाठ के संदर्भ में, सैनिक कहता है 'येन किल नरसिंहेन...' तो 'तेन' सही है। यह प्रश्न शायद 'केनापि' से संबंधित होगा)
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अहम् **भवतां** नामग्रहणम् न करिष्यामि।
अहम् **युष्माकम्** नामग्रहणम् न करिष्यामि।
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यत् त्वं ब्रवीषि, तत् सर्वं **अहम्** शृणोमि।
यत् त्वं ब्रवीषि, तत् सर्वं **मया** श्रूयते। (या 'अहं शृणोमि' भी व्याकरणतः सही है, लेकिन यदि भाव कर्मवाच्य का हो तो 'मया श्रूयते' होगा।)
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अभिमन्युः **स्वस्य** नाम्ना अभिभाषसे।
अभिमन्युः **माम्** नाम्ना अभिभाषसे। (अभिमन्यु राजा को कहता है कि तुम मुझे नाम से बुलाते हो)
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गुरुः **अहम्** अपि भवता।
गुरुः **अस्माकम्** अपि भवता।
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