अध्याय 6: भ्रान्तो बालः (पथभ्रष्ट बालक)

परिचय

यह पाठ संस्कृत प्रौढ़ पाठमाला के एक अंश से संकलित किया गया है। इस कहानी में एक ऐसे बालक का वर्णन है जिसका मन पढ़ाई में नहीं लगता। वह खेलने में रुचि रखता है और चाहता है कि अन्य बच्चे भी उसके साथ खेलें। परन्तु, अन्य सभी बालक अपने-अपने काम में लगे रहते हैं, जैसे पढ़ाई में या अन्य कार्यों में। वह पशु-पक्षियों के पास भी जाता है, लेकिन वे भी उसे अपने कार्यों में व्यस्त मिलते हैं। अंत में, उसे यह समझ आता है कि सभी प्राणी अपने-अपने कार्य में व्यस्त रहते हैं और उसे भी अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। वह पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करता है और जीवन में सफल होता है। यह कहानी हमें संदेश देती है कि **समय का सदुपयोग** करना और अपने **कर्तव्यों का पालन** करना कितना महत्वपूर्ण है।

कथा (The Story)

भ्रान्तः कश्चन बालः पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुं निर्जगाम। किन्तु तेन सह केलिकाभिः कालं क्षेप्तुं तदा कोऽपि वयस्येषु न उपलब्धः आसीत्। यतो हि ते सर्वेऽपि पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणाः आसन्। तन्द्रालुः बालः लज्जया तेषां दृष्टिपथमपि परिहरन् एकाकी एव कुत्रचिद् उद्यानं प्रविवेश।

कोई पथभ्रष्ट बालक पाठशाला जाने के समय खेलने के लिए निकल पड़ा। लेकिन उसके साथ खेल द्वारा समय बिताने के लिए तब कोई भी मित्र उपलब्ध नहीं था। क्योंकि वे सभी पिछले दिन के पाठों को याद करके विद्यालय जाने के लिए जल्दी कर रहे थे। आलसी बालक लज्जा से उनकी दृष्टि से बचता हुआ अकेला ही कहीं बगीचे में घुस गया।

सः अचिन्तयत् – “विरमन्तु एते वराकाः पाठ्यपुस्तकानि। अहं तु आत्मानं विनोदयिष्यामि। ननु भूयो द्रक्ष्यामि क्रोधितस्य उपाध्यायस्य मुखम्!” कुरुक्षेप्तुं विविक्तम् अचिन्तयन्, सः प्राचीरं लंघित्वा एकाकी एव उद्याने प्रवेशम्।

उसने सोचा - "ये बेचारे पाठ्यपुस्तकें छोड़ दें। मैं तो अपना मनोरंजन करूँगा। क्या बार-बार क्रोधित अध्यापक का मुँह देखूँगा!" (कुछ पंक्तियाँ पाठ में त्रुटिपूर्ण हैं, यह भाग मूल पाठ से थोड़ा हटकर है, सामान्यतः बालक यह कहता है कि वह स्कूल नहीं जाएगा और क्रोधित अध्यापक का मुँह नहीं देखेगा।) (सही पाठ का अंश: "अहं तु आत्मानं विनोदयिष्यामि। ननु भूयो द्रक्ष्यामि क्रोधितस्य उपाध्यायस्य मुखम्।")

अथ सः एकाकी एव उद्यानम् प्रविवेश। स चिन्तयत् – “एते किं कीटभृताः पश्यन्तः मां क्रीडन्ति? अहम् एतान् मृगपक्ष्यादीन् क्रीडासहायिनः करिष्यामि।” पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरम् दृष्ट्वा तं क्रीडार्थमाह्वयत्। स मधुकरो अस्य आह्वानं न गणयति स्म।

तब वह अकेला ही बगीचे में घुस गया। उसने सोचा - "ये कीड़े-मकोड़े (बच्चे) मुझे खेलते हुए क्या देखते हैं? मैं इन पशु-पक्षियों आदि को खेल का साथी बनाऊँगा।" बगीचे में घूमते हुए एक भौंरे को देखकर उसे खेलने के लिए बुलाया। उस भौंरे ने उसके आह्वान को नहीं माना।

बालकः पुनः पुनः हठेन आह्वयति स्म। ततो मधुकरः अगायत – “वयं हि मधुसङ्ग्रहव्यग्राः।” इति श्रुत्वा सः बालकः 'अलम् अनेन व्यर्थेन', इति विचिन्त्य अन्यत्र दत्तदृष्टिः चञ्च्वा तृणशलाकादिकम् आददानम् एकं चटकम् अपश्यत्।

बालक बार-बार हठपूर्वक बुलाता रहा। तब भौंरा गाने लगा - "हम तो मधु इकट्ठा करने में व्यस्त हैं।" यह सुनकर उस बालक ने 'छोड़ो इस बेकार के (बौंरे को)' ऐसा सोचकर, दूसरी ओर दृष्टि डाली और चोंच से घास का तिनका आदि उठाते हुए एक चिड़िया को देखा।

अवोचत् च – “अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि? एहि, क्रीडावः। एतम् शुष्कम् तृणम् त्यज। आस्वाद्यनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि।” सः तु 'नीडो कार्यो बत शाखायाम्', इति उक्त्वा स्वकर्मव्यग्रो बभूव।

और बोला - "अरे चिड़िया के बच्चे! मनुष्य के मेरे मित्र बनोगे? आओ, खेलते हैं। इस सूखे तिनके को छोड़ो। स्वादिष्ट खाने के टुकड़े तुम्हें दूँगा।" लेकिन वह तो 'घोंसला बनाना है शाखा पर', ऐसा कहकर अपने काम में व्यस्त हो गया।

ततो खिन्नो बालः एते पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति, इति विचिन्त्य अन्यतः पर्यटनम्। चम्चलः कपोतः मानुषेषु न क्रीडति, इति विचिन्त्य अयं बालकः गतः। कश्चित् श्वानम् अवलोक्य अवदत् – “अयि मानुषाणाम् मित्र! किम् पर्यटसि अस्मिन् निदाघदिवसे? एहि, क्रीडावः।”

तब दुःखी बालक ने 'ये पक्षी मनुष्यों के पास नहीं आते', ऐसा सोचकर दूसरी ओर घूमना शुरू किया। (पाठ में कुछ त्रुटि प्रतीत होती है, यह पंक्ति अतिरिक्त या गलत संदर्भ में है। सही संदर्भ में 'चंचल कबूतर' की बजाय 'चंचल चिड़िया' होना चाहिए और इस वाक्य का संबंध बालक के घूमने से नहीं, बल्कि चिड़िया के जवाब से है।) कोई कुत्ता देखकर बोला - "अरे मनुष्यों के मित्र! इस गर्मी के दिन में क्यों घूम रहे हो? आओ, खेलते हैं।"

श्वा अपि 'यत् पोषको गृहे कार्यो', इति उक्त्वा स्वकर्मव्यग्रो बभूव। बालकोऽपि स्वकर्म व्यस्तम्, स्वानम्, मधुकरम्, चटकम् च विलोक्य अचिन्तयत् – "कथं नाहं स्वकर्मणि व्यस्तः? सर्वे स्वां स्वां वृत्तिम् कुर्वन्ति।"

कुत्ता भी 'अपने मालिक के घर में कार्य करना है', ऐसा कहकर अपने काम में व्यस्त हो गया। बालक भी अपने काम में व्यस्त कुत्ते को, भौंरे को, और चिड़िया को देखकर सोचने लगा - "मैं अपने काम में व्यस्त क्यों नहीं हूँ? सभी अपनी-अपनी जीविका कर रहे हैं।"

अथ सः बालः 'अहम् अपि स्वकार्यम् करिष्यामि', इति विचिन्त्य विद्यालयम् अगच्छत्। ततः आरभ्य सः बालः विद्याध्ययने संलग्नः भूत्वा महत् विद्यां प्राप्य लब्धकीर्तिः, सम्पदः च संजातः।

तब उस बालक ने 'मैं भी अपना काम करूँगा', ऐसा सोचकर विद्यालय गया। तब से लेकर वह बालक विद्याध्ययन में लगकर महान विद्या प्राप्त करके, प्रसिद्ध और धनवान हो गया।

शब्दार्थ (Word Meanings)

सारांश (Summary)

इस कहानी में एक ऐसे **भटके हुए बालक** की कथा है जिसका मन **पढ़ाई में बिल्कुल नहीं लगता**। पाठशाला जाने के समय भी वह खेलने के लिए निकल पड़ता है। उसे लगता है कि उसके दोस्त तो स्कूल जा रहे हैं, लेकिन वह अकेला ही बगीचे में जाकर मौज-मस्ती करेगा।

बगीचे में वह एक **भौंरे** को खेलने के लिए बुलाता है। लेकिन भौंरा कहता है कि वह तो मधु एकत्र करने में व्यस्त है। इसके बाद बालक एक **चिड़िया** को देखता है जो अपनी चोंच से घास के तिनके एकत्र कर रही होती है। बालक उसे भी खेलने का निमंत्रण देता है और स्वादिष्ट भोजन का लालच देता है, लेकिन चिड़िया जवाब देती है कि उसे घोंसला बनाना है और वह अपने काम में व्यस्त है।

हताश होकर बालक एक **कुत्ते** के पास जाता है और उसे भी गर्मी के दिन में खेलने के लिए बुलाता है। कुत्ता भी यह कहकर मना कर देता है कि उसे अपने मालिक के घर की रक्षा करनी है, इसलिए वह अपने काम में व्यस्त है।

जब बालक देखता है कि सभी प्राणी - भौंरा, चिड़िया और कुत्ता - अपने-अपने **कर्तव्यों में व्यस्त** हैं और कोई भी खाली नहीं है, तब उसे अपनी गलती का एहसास होता है। उसे समझ आता है कि सभी अपनी-अपनी जीविका में लगे हैं और वह अकेला ही समय बर्बाद कर रहा है।

इस अनुभव से प्रेरित होकर, बालक अंततः **पढ़ाई के महत्व** को समझता है। वह तुरंत विद्यालय लौट आता है और मन लगाकर विद्याध्ययन में जुट जाता है। परिणाम यह होता है कि वह महान **विद्या प्राप्त करके** जीवन में **प्रसिद्ध और समृद्ध** हो जाता है। यह कहानी हमें सिखाती है कि **प्रत्येक प्राणी का एक निश्चित कार्य होता है** और हमें भी **अपने समय का सदुपयोग करते हुए अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करना चाहिए।**

अभ्यास-प्रश्नाः (Exercise Questions)

I. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दें)

  1. भ्रान्तः बालकः कदा क्रीडितुं निर्जगाम?

    पाठशालागमनवेलायाम् (पाठशाला जाने के समय)

  2. बालकः कुत्र प्रविवेश?

    उद्यानम् (बगीचे में)

  3. मधुकरः किं सङ्ग्रहव्यग्रः आसीत्?

    मधु (शहद)

  4. चटकः केन नीडं कार्यं बभूव?

    स्वशाखायाम् (अपनी शाखा पर)

  5. कुक्कुरः कीदृशं दिवसं पर्यटति स्म?

    निदाघदिवसे (गर्मी के दिन में)

  6. बालकः अन्ततः किं प्राप्तवान्?

    महत् विद्याम्, लब्धकीर्तिः, सम्पदः च (महान विद्या, प्रसिद्धि और धन)

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दें)

  1. बालकस्य वयस्याः किमर्थं त्वरमाणाः आसन्?

    बालकस्य वयस्याः पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणाः आसन्। (बालक के मित्र पिछले दिन के पाठों को याद करके विद्यालय जाने के लिए जल्दी कर रहे थे।)

  2. के मधुसङ्ग्रहव्यग्राः आसन्?

    मधुकरः मधुसङ्ग्रहव्यग्रः आसीत्। (भौंरा मधु इकट्ठा करने में व्यस्त था।)

  3. बालकः चटकं किम् अवदत्?

    बालकः चटकम् अवदत् – “अयि चटकपोत! मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि? एहि, क्रीडावः। एतम् शुष्कम् तृणम् त्यज। आस्वाद्यनि भक्ष्यकवलानि ते दास्यामि।” (बालक चिड़िया से बोला - "अरे चिड़िया के बच्चे! मनुष्य के मेरे मित्र बनोगे? आओ, खेलते हैं। इस सूखे तिनके को छोड़ो। स्वादिष्ट खाने के टुकड़े तुम्हें दूँगा।")

  4. श्वा किं उक्त्वा स्वकर्मव्यग्रो बभूव?

    श्वा 'यत् पोषको गृहे कार्यो', इति उक्त्वा स्वकर्मव्यग्रो बभूव। (कुत्ता 'अपने मालिक के घर में काम करना है', ऐसा कहकर अपने काम में व्यस्त हो गया।)

  5. अन्ते बालकः किं प्रतिज्ञां कृतवान्?

    अन्ते बालकः 'अहम् अपि स्वकार्यम् करिष्यामि', इति प्रतिज्ञां कृतवान्। (अंत में बालक ने 'मैं भी अपना काम करूँगा', ऐसी प्रतिज्ञा की।)

III. स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (मोटे अक्षरों के आधार पर प्रश्न निर्माण करें)

  1. बालकः लज्जया **तेषां दृष्टिपथमपि** परिहरन् एकाकी एव उद्यानं प्रविवेश।

    बालकः लज्जया **केषाम् दृष्टिपथमपि** परिहरन् एकाकी एव उद्यानं प्रविवेश?

  2. सः **मधुकरः** अस्य आह्वानं न गणयति स्म।

    सः **कः** अस्य आह्वानं न गणयति स्म?

  3. चटकः **स्वकर्मव्यग्रो** बभूव।

    चटकः **कीदृशः** बभूव?

  4. **कुक्कुरम्** अवलोक्य बालकः अवदत्।

    **कम्** अवलोक्य बालकः अवदत्?

  5. अहं **महत् विद्यां** प्राप्य लब्धकीर्तिः संजातः।

    अहं **काम्** प्राप्य लब्धकीर्तिः संजातः?

IV. संधिं/सन्धिविच्छेदं कुरुत (संधि/संधि विच्छेद करें)

  1. पाठशालागमनवेलायाम् + अपि = **पाठशालागमनवेलायामपि**
  2. यतो + हि = **यतो हि**
  3. क्रीडितुम् + निर्जगाम = **क्रीडितुं निर्जगाम**
  4. को + अपि = **कोऽपि**
  5. ते + अपि = **तेऽपि**
  6. न + उपलब्धः = **नोपलब्धः**
  7. एककी + एव = **एकाकीव** (या एकाकी एव भी मान्य)
  8. पुनः + पुनः = **पुनःपुनः**
  9. अनेन + व्यर्थेन = **अनेन व्यर्थेन** (कोई संधि नहीं)
  10. इति + उक्त्वा = **इत्युक्त्वा**
  11. स्व + कर्म = **स्वकर्म**
  12. बालकः + अपि = **बालकोऽपि**

V. अलिखितेषु पदेषु विशेषणं विशेष्यं च पृथक् कृत्वा लिखत (नीचे लिखे पदों में विशेषण और विशेष्य अलग करके लिखें)

पदम् विशेषणम् (Adjective) विशेष्यम् (Noun/Substantive)
भ्रान्तः बालःभ्रान्तःबालः
त्वरमाणाः वयस्याःत्वरमाणाःवयस्याः
आस्वाद्यनि भक्ष्यकवलानिआस्वाद्यनिभक्ष्यकवलानि
त्वरमाणाः बालाःत्वरमाणाःबालाः
खिन्नः बालकःखिन्नःबालकः



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