अध्याय 5: सूक्तिमौक्तिकम् (सूक्तियों का मोती)
परिचय
यह पाठ नैतिक शिक्षा प्रदान करने वाले विभिन्न संस्कृत ग्रन्थों से संकलित किया गया है, जैसे मनस्मृति, विदुरनीति, चाणक्यनीति, और अन्य। इन सूक्तियों में हमें जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों, जैसे सत्य, धर्म, कर्तव्य, परोपकार, धैर्य, वाणी की मधुरता, विनम्रता और मित्रता के बारे में सीखने को मिलता है। ये सूक्तियाँ हमें सही मार्ग पर चलने और एक अच्छा जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं।
सूक्तियाँ (The Aphorisms)
1. वृत्तम यत्नेन संरक्षेत, वित्तमेति च याति च। अक्षीणो वित्ततः क्षीणो, वृत्ततस्तु हतो हतः॥
**अर्थ:** आचरण (चरित्र) की यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए, धन तो आता है और चला जाता है। धन के नष्ट होने से व्यक्ति नष्ट नहीं होता, लेकिन चरित्र के नष्ट होने से वह पूर्णतः नष्ट हो जाता है।
* **वृत्तम्:** आचरण, चरित्र (conduct, character) * **यत्नेन:** यत्नपूर्वक, ध्यान से (carefully, diligently) * **संरक्षेत:** रक्षा करनी चाहिए (should protect) * **वित्तम्:** धन (wealth) * **एति:** आता है (comes) * **याति:** जाता है (goes) * **अक्षीणः:** नष्ट न हुआ (not destroyed) * **वित्ततः क्षीणः:** धन से नष्ट हुआ (destroyed by wealth) * **वृत्ततः तु:** चरित्र से तो (but by character) * **हतः हतः:** पूर्णतः नष्ट हो गया (completely destroyed)
2. श्रूयतां धर्मसर्वस्वं, श्रुत्वा चैवावधार्यताम्। आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत्॥
**अर्थ:** धर्म का सार सुनो, और सुनकर उसका पालन करो। जो अपने लिए प्रतिकूल हो, वैसा दूसरों के साथ आचरण न करो।
* **श्रूयताम्:** सुना जाए (let it be heard) * **धर्मसर्वस्वम्:** धर्म का सार (essence of Dharma) * **श्रुत्वा च एव:** और सुनकर ही (and having heard only) * **अवधार्यताम्:** धारण किया जाए, पालन किया जाए (should be adopted/followed) * **आत्मनः:** अपने लिए (for oneself) * **प्रतिकूलानि:** प्रतिकूल, विपरीत (unfavorable, contrary) * **परेषाम्:** दूसरों के लिए (for others) * **न समाचरेत्:** आचरण न करे (should not behave)
3. प्रियवाक्यप्रदानेन, सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः। तस्मात् प्रियं हि वक्तव्यं, वचने किं दरिद्रता॥
**अर्थ:** प्रिय (मीठे) वचन बोलने से सभी प्राणी संतुष्ट होते हैं। इसलिए प्रिय ही बोलना चाहिए, बोलने में क्या दरिद्रता (कंजूसी)?
* **प्रियवाक्यप्रदानेन:** प्रिय वचन देने से (by speaking pleasant words) * **सर्वे:** सभी (all) * **तुष्यन्ति:** संतुष्ट होते हैं (are pleased) * **जन्तवः:** प्राणी (beings) * **तस्मात्:** इसलिए (therefore) * **प्रियम् हि:** प्रिय ही (indeed pleasant) * **वक्तव्यम्:** बोलना चाहिए (should be spoken) * **वचने:** बोलने में (in speaking) * **किम् दरिद्रता:** क्या कंजूसी (what poverty/miserliness)
4. पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः, स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः। नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः, परोपकाराय सतां विभूतयः॥
**अर्थ:** नदियाँ स्वयं अपना जल नहीं पीतीं, वृक्ष स्वयं अपने फल नहीं खाते। बादल निश्चय ही अपने द्वारा उगाए गए अन्न को नहीं खाते (अर्थात् अपने द्वारा बरसाए गए जल से उत्पन्न अन्न को स्वयं नहीं खाते)। सज्जनों की सम्पत्ति परोपकार के लिए होती है।
* **पिबन्ति:** पीते हैं (drink) * **नद्यः:** नदियाँ (rivers) * **स्वयमेव:** स्वयं ही (by themselves) * **न अम्भाः:** पानी नहीं (not water) * **स्वयम्:** स्वयं (themselves) * **न खादन्ति:** नहीं खाते (do not eat) * **फलानि:** फल (fruits) * **वृक्षाः:** वृक्ष (trees) * **न आदन्ति:** नहीं खाते (do not eat) * **सस्यम्:** अन्न, फसल (grain, crop) * **खलु:** निश्चय ही (indeed) * **वारिवाहाः:** बादल (clouds) * **परोपकाराय:** परोपकार के लिए (for the benefit of others) * **सताम्:** सज्जनों की (of good people) * **विभूतयः:** सम्पत्तियाँ (wealth, prosperity)
5. गुणेष्वेव हि कर्तव्यः, प्रयत्नः पुरुषैः सदा। गुणयुक्तो दरिद्रोऽपि, नैश्वर्यैर्गुणैः समः॥
**अर्थ:** पुरुषों को हमेशा गुणों को प्राप्त करने का ही प्रयत्न करना चाहिए। गुणवान दरिद्र व्यक्ति भी निर्गुण धनी व्यक्ति के समान नहीं होता (अर्थात् गुणवान दरिद्र व्यक्ति निर्गुण धनी व्यक्ति से श्रेष्ठ होता है)।
* **गुणेषु एव हि:** गुणों में ही तो (indeed in qualities only) * **कर्तव्यः:** करना चाहिए (should be done) * **प्रयत्नः:** प्रयत्न (effort) * **पुरुषैः:** पुरुषों द्वारा (by men) * **सदा:** हमेशा (always) * **गुणयुक्तः:** गुणों से युक्त (endowed with qualities) * **दरिद्रः अपि:** गरीब भी (even poor) * **न ऐश्वर्यैः:** धनवानों के समान नहीं (not equal to wealthy) * **निर्गुणैः समः:** गुणों से रहित के समान (equal to one without qualities)
6. आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण, लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्। दिनस्य पूर्वार्धपरार्धभिन्ना, छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्॥
**अर्थ:** दुष्टों की मित्रता दिन के पूर्वाह्न की छाया के समान पहले बड़ी होती है और धीरे-धीरे घटती जाती है। सज्जनों की मित्रता दिन के अपराह्न की छाया के समान पहले छोटी होती है और बाद में बढ़ती जाती है।
* **आरम्भगुर्वी:** आरम्भ में बड़ी (large in the beginning) * **क्षयिणी:** क्षय होने वाली, घटने वाली (decreasing) * **क्रमेण:** धीरे-धीरे, क्रम से (gradually, in sequence) * **लघ्वी:** छोटी (small) * **पुरा:** पहले (earlier) * **वृद्धिमती:** बढ़ने वाली (increasing) * **च पश्चात्:** और बाद में (and later) * **दिनस्य:** दिन की (of the day) * **पूर्वार्धपरार्धभिन्ना:** पूर्वार्ध और परार्ध से भिन्न (different in the first half and second half) * **छाया इव:** छाया के समान (like a shadow) * **मैत्री:** मित्रता (friendship) * **खलसज्जनानाम्:** दुष्टों और सज्जनों की (of wicked and good people)
7. यत्रापि कुत्रापि गता भवेयुः, हंसा महीमण्डलभूषणाय। तेषां हि सरोवराणां हानिः, येषां मरालैः सह विप्रयोगः॥
**अर्थ:** हंस पृथ्वी-मंडल को सुशोभित करने के लिए जहाँ कहीं भी चले जाएँ, उन सरोवरों की हानि होती है, जिनका हंसों के साथ वियोग होता है। (अर्थात् गुणी व्यक्ति जहाँ भी जाते हैं, उस स्थान को सुशोभित करते हैं, लेकिन जिन स्थानों को वे छोड़ देते हैं, उनकी ही हानि होती है।)
* **यत्र अपि:** जहाँ भी (wherever) * **कुत्र अपि:** कहीं भी (anywhere) * **गता भवेयुः:** चले जाएँ (may go) * **हंसाः:** हंस (swans) * **महीमण्डलभूषणाय:** पृथ्वी मंडल को सुशोभित करने के लिए (for adorning the earth's surface) * **तेषाम् हि:** उनकी ही (indeed of them) * **सरोवराणाम्:** सरोवरों की (of lakes/ponds) * **हानिः:** हानि (loss) * **येषाम्:** जिनका (whose) * **मरालैः सह:** हंसों के साथ (with swans) * **विप्रयोगः:** वियोग (separation)
8. गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति, ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः। आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति नद्यः, समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः॥
**अर्थ:** गुण गुणवानों में रहने पर ही गुण रहते हैं। वे निर्गुण व्यक्ति को प्राप्त करके दोष बन जाते हैं। स्वादिष्ट जल वाली नदियाँ बहती हैं, परन्तु समुद्र में पहुँचकर वे (खारी होने के कारण) पीने योग्य नहीं रहतीं।
* **गुणाः:** गुण (qualities) * **गुणज्ञेषु:** गुणों को जानने वालों में (among those who appreciate qualities) * **गुणाः भवन्ति:** गुण होते हैं (remain qualities) * **ते:** वे (they) * **निर्गुणम्:** गुणहीन को (one without qualities) * **प्राप्य:** प्राप्त करके (having obtained) * **भवन्ति दोषाः:** दोष बन जाते हैं (become flaws) * **आस्वाद्यतोयाः:** स्वादिष्ट जल वाली (having palatable water) * **प्रवहन्ति:** बहती हैं (flow) * **नद्यः:** नदियाँ (rivers) * **समुद्रम् आसाद्य:** समुद्र को प्राप्त करके (having reached the ocean) * **भवन्ति अपेयाः:** पीने योग्य नहीं रहतीं (become undrinkable)
सारांश (Summary)
यह पाठ हमें जीवन के **महत्वपूर्ण नैतिक मूल्यों** से परिचित कराता है। यहाँ कुछ प्रमुख बिंदु दिए गए हैं:
- **चरित्र की महत्ता:** पहला श्लोक सिखाता है कि धन तो आता-जाता रहता है, लेकिन **चरित्र (वृत्त)** ही सबसे महत्वपूर्ण है। चरित्र नष्ट होने पर व्यक्ति का सब कुछ नष्ट हो जाता है।
- **परोपकार:** चौथे श्लोक में बताया गया है कि नदियाँ, वृक्ष और बादल जैसे प्राकृतिक तत्व स्वयं के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लाभ के लिए होते हैं। इसी प्रकार, **सज्जनों की सम्पत्ति परोपकार के लिए होती है।**
- **वाणी की मधुरता:** तीसरे श्लोक में कहा गया है कि **प्रिय वचन बोलने से सभी प्राणी प्रसन्न होते हैं।** इसलिए हमें हमेशा मीठे बोल बोलने चाहिए, क्योंकि बोलने में कोई कंजूसी नहीं होनी चाहिए।
- **गुणों का महत्व:** पाँचवाँ श्लोक इस बात पर जोर देता है कि **पुरुषों को हमेशा गुणों को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।** गुणवान दरिद्र व्यक्ति भी निर्गुण धनी व्यक्ति से श्रेष्ठ होता है।
- **मित्रता का स्वरूप:** छठा श्लोक दुष्टों और सज्जनों की मित्रता की तुलना दिन की छाया से करता है। **दुष्टों की मित्रता** पूर्वाह्न की छाया की तरह पहले बड़ी दिखती है, फिर घटती जाती है; जबकि **सज्जनों की मित्रता** अपराह्न की छाया की तरह पहले छोटी होती है, फिर बढ़ती जाती है।
- **गुणों का प्रभाव:** अंतिम श्लोक बताता है कि **गुण तभी गुण रहते हैं जब वे गुणवानों में होते हैं।** निर्गुण व्यक्ति को प्राप्त करके वे दोष बन जाते हैं, जैसे नदियों का मीठा जल समुद्र में मिलकर खारा हो जाता है।
- **सर्वभूत दया (गोल्डन रूल):** दूसरा श्लोक धर्म का सार बताता है: **जो अपने लिए प्रतिकूल हो, वैसा आचरण दूसरों के साथ कभी न करें।** यह सार्वभौमिक नियम सभी धर्मों का मूल है।
कुल मिलाकर, यह पाठ हमें **सद्गुणों को अपनाने, दूसरों के प्रति दयालु और परोपकारी होने, और अपने चरित्र को सर्वोच्च महत्व देने** के लिए प्रेरित करता है।
अभ्यास-प्रश्नाः (Exercise Questions)
I. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दें)
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कस्य यत्नेन संरक्षणं कर्तव्यम्?
वृत्तस्य (चरित्र का)
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धनं कदा याति?
आगच्छति च गच्छति च (आता है और जाता है)
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सर्वे जन्तवः केन तुष्यन्ति?
प्रियवाक्यप्रदानेन (प्रिय वचन बोलने से)
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के स्वयं फलानि न खादन्ति?
वृक्षाः (वृक्ष)
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सताम् विभूतयः किमर्थं भवन्ति?
परोपकाराय (परोपकार के लिए)
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कस्य मित्रता दिनस्य पूर्वार्धच्छाया इव भवति?
खलस्य (दुष्ट की)
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नद्यः समुद्रम् आसाद्य कीदृशीः भवन्ति?
अपेयाः (पीने योग्य नहीं)
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दें)
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वित्ततः क्षीणः कीदृशः न भवति?
वित्ततः क्षीणः अक्षीणः भवति, सः हतः न भवति। (धन से क्षीण हुआ व्यक्ति नष्ट नहीं होता, वह मरा हुआ नहीं होता।)
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धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा किम् अवधार्यताम्?
धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् इति अवधार्यताम्। (धर्म का सार सुनकर यह धारण किया जाए कि जो अपने लिए प्रतिकूल हो, वैसा दूसरों के साथ आचरण न करें।)
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गुणेषु प्रयत्नः किमर्थं कर्तव्यः?
गुणेषु प्रयत्नः कर्तव्यः यतः गुणयुक्तो दरिद्रोऽपि निर्गुणैः ऐश्वर्यैः न समः। (गुणों में प्रयत्न करना चाहिए क्योंकि गुणवान दरिद्र व्यक्ति भी निर्गुण धनवानों के समान नहीं होता।)
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खलसज्जनानां मैत्री कीदृशी भवति?
खलसज्जनानां मैत्री दिनस्य पूर्वार्धपरार्धभिन्ना छायेव भवति। खलस्य मैत्री आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण, सज्जनस्य मैत्री लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात् भवति। (दुष्टों और सज्जनों की मित्रता दिन के पूर्वार्ध और परार्ध की छाया के समान होती है। दुष्ट की मित्रता आरम्भ में बड़ी होती है और धीरे-धीरे घटती जाती है, सज्जन की मित्रता पहले छोटी होती है और बाद में बढ़ती जाती है।)
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गुणाः कदा दोषाः भवन्ति?
गुणाः निर्गुणं प्राप्य दोषाः भवन्ति। (गुण निर्गुण व्यक्ति को प्राप्त करके दोष बन जाते हैं।)
III. रिक्तस्थानानि पूरयत (रिक्त स्थान भरें)
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वृत्तं यत्नेन ______, वित्तमेति च याति च।
संरक्षेत
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_______ धर्मसर्वस्वं, श्रुत्वा चैवावधार्यताम्।
श्रूयताम्
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परोपकाराय सतां ______.
विभूतयः
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तेषां हि सरोवराणां ______, येषां मरालैः सह विप्रयोगः।
हानिः
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समुद्रमासाद्य भवन्ति ______.
अपेयाः
IV. भाषिककार्यम् (Linguistic Tasks)
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**'अक्षीणो वित्ततः क्षीणो' अत्र 'क्षीणो' पदस्य कः विशेषणः?**
वित्ततः
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**'आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्' अत्र 'प्रतिकूलानि' इति पदस्य विलोमपदं लिखत।**
अनुकूलानि
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**'ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः' अत्र 'ते' इति सर्वनामपदं केभ्यः प्रयुक्तम्?**
गुणेभ्यः (गुणों के लिए)
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**'परोपकाराय सतां विभूतयः' अत्र क्रियापदं किम्?**
भवन्ति (अध्याहृतम्)
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**'पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः' अत्र 'नद्यः' पदस्य विशेषणपदं किम्?**
आस्वाद्यतोयाः (यह अगले श्लोक से है, इस श्लोक में कोई विशेषण नहीं है। यदि 'प्रवहन्ति नद्यः' वाला श्लोक होता तो 'आस्वाद्यतोयाः' होता)
**(सही उत्तर इस श्लोक के संदर्भ में 'नद्यः' का कोई विशेषण नहीं है। यदि प्रश्न श्लोक 8 के 'आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति नद्यः' से होता, तो उत्तर 'आस्वाद्यतोयाः' होता। दिए गए श्लोक में कोई विशेषण नहीं है।)**
(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। दिखावट भिन्न हो सकती है।)