अध्याय 3: गोदोहनम् (गाय दुहना)

परिचय

यह नाटक चतुर्व्यूहम् नामक पुस्तक से संकलित किया गया है। इस नाटक में ऐसे व्यक्ति का चित्रण किया गया है जो धनवान बनने के लिए एक महीने तक गाय का दूध नहीं दुहता है ताकि अंत में वह एक साथ अधिक दूध बेचकर धनवान बन सके। इस प्रक्रिया में उसे महीने के अंत में न तो दूध मिलता है और न ही दूध से बने उत्पाद। अंत में वह धन कमाने में असफल रहता है और सबक सीखता है कि दैनिक कार्य को समय पर करना चाहिए। यह नाटक हमें सिखाता है कि समय पर कार्य न करने से हानि होती है और लालच का फल बुरा होता है।

कथा (The Story - Scenes)

प्रथमं दृश्यम् (Scene 1)

**मल्लिकार्जुनः:** (प्रसन्नमनः) अहो! स्वादिनि दुग्धे! (हस्तस्पर्शेन आनन्दं विलोकयन्) अद्य दुग्धं मधुरतरम् अस्ति। सा धेनुः बहुक्षीरा वर्तते। (चिन्तयति) अद्य तु उत्सवः अस्ति। अद्य तु सर्वाणि पक्वानि मोदकानि पूजायै अर्पयिष्यामि।

**मल्लिकार्जुनः:** (प्रसन्न मन से) अहो! स्वादिष्ट दूध! (हाथ से छूकर आनंद देखते हुए) आज दूध बहुत मीठा है। वह गाय बहुत दूध देने वाली है। (सोचता है) आज तो उत्सव है। आज तो सभी पके हुए लड्डू पूजा के लिए अर्पित करूँगा।

**चन्दनः:** (प्रसन्नमनः) अहा! चन्दन! त्वं तु कुशली। पश्य। पक्कं मोदकम्। (जिह्वानिर्लोलुपतया भक्षितुम् इच्छति)

**चन्दनः:** (प्रसन्न मन से) अहा! चंदन! तुम तो कुशल हो। देखो। पका हुआ लड्डू। (जीभ लपलपाते हुए खाने की इच्छा करता है)

**मल्लिका:** (सक्रोधम्) अरे! त्वं जानासि किं! एतानि मोदकानि पूजार्थं निर्मितानि सन्ति। एतानि न भक्षय।

**मल्लिका:** (क्रोध सहित) अरे! तुम्हें पता है क्या! ये लड्डू पूजा के लिए बनाए गए हैं। इन्हें मत खाओ।

**चन्दनः:** (सस्मितम्) अहो! पूजा! तर्हि शीघ्रं पूजनं कुरु। प्रसादं च देहि।

**चन्दनः:** (मुस्कुराते हुए) अहो! पूजा! तो शीघ्र पूजा करो। और प्रसाद दो।

**मल्लिका:** सत्यम्। अद्य अस्माकं गृहे उत्सवः अस्ति। शिवपूजायै आवश्यकं मोदकम्। एतत्तहि न भक्षयितव्यम्।

**मल्लिका:** सत्य। आज हमारे घर में उत्सव है। शिवपूजा के लिए आवश्यक लड्डू। इसलिए इसे नहीं खाना चाहिए।

**चन्दनः:** (मोदकानि नित्यं भक्षितुम् इच्छति) भवतु। तर्हि इदानीं पूजनम् आरभ्यताम्। (ततः सा मल्लिका स्नानं करोति, चंदनः पूजनं करोति।)

**चन्दनः:** (लड्डू हमेशा खाने की इच्छा करता है) ठीक है। तो अब पूजा शुरू करो। (तब वह मल्लिका स्नान करती है, चंदन पूजा करता है।)

**मल्लिका:** (सन्तुष्टया) अहो! चन्दन! अद्य तु देव्यै मोदकानि अर्पितानि।

**मल्लिका:** (संतुष्टि से) अहो! चंदन! आज तो देवी को लड्डू अर्पित किए गए।

द्वितीयं दृश्यम् (Scene 2)

**चन्दनः:** (स्वर्णरत्नम् अङ्गुल्या दर्शयन्) मल्लिके! पश्य। अयं तु धनवान् अस्ति। अयं तु प्रतिदिनं क्षीरं न विक्रिणाति। अयं तु मासस्य अन्ते सर्वे क्षीरं विक्रीय धनिकः भवति।

**चन्दनः:** (सोने का आभूषण उंगली से दिखाते हुए) मल्लिका! देखो। यह तो धनवान है। यह तो प्रतिदिन दूध नहीं बेचता। यह तो महीने के अंत में सारा दूध बेचकर धनी होता है।

**मल्लिका:** सत्यम्। चन्दन! अस्तु, अस्तु। (चिन्तयति) तर्हि किं करणीयम्?

**मल्लिका:** सत्य। चंदन! अच्छा, अच्छा। (सोचती है) तो क्या करना चाहिए?

**चन्दनः:** अहम् एकमासं दुग्धदोहनं न करिष्यामि। दुग्धं न स्थास्यामि। मासस्य अन्ते सकलं दुग्धं विक्रीय धनिकः भविष्यामि।

**चन्दनः:** मैं एक महीने तक दूध नहीं दुहूँगा। दूध नहीं रखूँगा। महीने के अंत में सारा दूध बेचकर धनी हो जाऊँगा।

**मल्लिका:** (विस्मिता) अहो! पतिदेव! अयं तु उत्तमः विचारः। अहम् अपि तव सहायिका भविष्यामि। (चन्दनः धेनुं पूजयति। धेनोः सेवां करोति। मल्लिकामपि सहकारिणीम् करोति।)

**मल्लिका:** (आश्चर्यचकित) अहो! पतिदेव! यह तो उत्तम विचार है। मैं भी आपकी सहायिका बनूँगी। (चंदन गाय की पूजा करता है। गाय की सेवा करता है। मल्लिका को भी सहकर्मी बनाता है।)

तृतीयं दृश्यम् (Scene 3)

**मासान्ते:** (मल्लिका चन्दनश्च धेनुसमीपं गच्छतः।)

**मास के अंत में:** (मल्लिका और चंदन गाय के पास जाते हैं।)

**चन्दनः:** (प्रसन्नमनः) अद्य तु महोत्सवः। अद्य सकलं दुग्धं दोहयिष्यामि। (धेनुं स्पर्शयितुम् इच्छति।)

**चन्दनः:** (प्रसन्न मन से) आज तो महोत्सव है। आज सारा दूध दुहूँगा। (गाय को छूना चाहता है।)

**धेनुः:** (पादेन प्रहरति।)

**गाय:** (पैर से मारती है।)

**चन्दनः:** (सक्रोधम्) अरे! किं करोषि! (पुनः प्रहरति)

**चन्दनः:** (क्रोध सहित) अरे! क्या कर रही हो! (फिर मारती है)

**मल्लिका:** (चिन्तयित्वा) धेनुः दुग्धं न ददाति। किमर्थं न ददाति?

**मल्लिका:** (सोचकर) गाय दूध नहीं देती है। क्यों नहीं देती है?

**चन्दनः:** (दुःखितः) अहो! एषा धेनुः तु अतीव क्रूरा वर्तते। एका मासस्य अन्ते दुग्धं न ददाति।

**चन्दनः:** (दुःखी) अहो! यह गाय तो बहुत क्रूर है। एक महीने के अंत में दूध नहीं देती।

**ग्रामीणाः:** (हसन्ति)

**गाँव वाले:** (हँसते हैं)

**मल्लिका:** (चन्दनम् आदिशति) चन्दन! त्वं धेनोः सेवां न कृतवान्। प्रतिदिनं दुग्धं न दुग्धवान्। अतः धेनुः दुग्धं न ददाति।

**मल्लिका:** (चंदन को आदेश देती है) चंदन! तुमने गाय की सेवा नहीं की। प्रतिदिन दूध नहीं दुहा। इसलिए गाय दूध नहीं देती।

**चन्दनः:** (स्वस्य मूर्खतां ज्ञातवान्) सत्यम्। अहम् एव मूर्खः। प्रतिदिनं कार्यं प्रतिदिनं करणीयम्। यदि कश्चित् कार्यं मासस्य अन्ते एकत्र कर्तुम् इच्छति, सः हानिम् अनुभवति।

**चन्दनः:** (अपनी मूर्खता जान गया) सत्य। मैं ही मूर्ख हूँ। प्रतिदिन का कार्य प्रतिदिन करना चाहिए। यदि कोई कार्य महीने के अंत में एक साथ करना चाहता है, तो वह हानि का अनुभव करता है।

**मल्लिका:** (सस्मितम्) अस्तु, अस्तु। अद्यप्रभृति अहं तुभ्यं प्रतिदिनं क्षीरं दास्यामि।

**मल्लिका:** (मुस्कुराते हुए) अच्छा, अच्छा। आज से मैं तुम्हें प्रतिदिन दूध दूँगी।

**चन्दनः:** (सन्तुष्टः) देहि, देहि। (दुग्धं पिबति)

**चन्दनः:** (संतुष्ट) दो, दो। (दूध पीता है)

शब्दार्थ (Word Meanings)

सारांश (Summary)

यह नाटक चंदन और उसकी पत्नी मल्लिका की कहानी है, जो धन कमाने के लालच में एक गलत निर्णय लेते हैं। कहानी के आरंभ में चंदन और मल्लिका मोदक बनाते हुए खुश दिखते हैं। चंदन मोदक खाने को उत्सुक है, लेकिन मल्लिका उसे पूजा के लिए होने के कारण रोकती है।

दूसरे दृश्य में, चंदन को एक विचार आता है कि क्यों न वह गाय को एक महीने तक न दुहे, ताकि महीने के अंत में सारा दूध एक साथ बेचकर वह अधिक धन कमा सके। मल्लिका भी इस विचार से सहमत हो जाती है और दोनों एक महीने तक गाय की सेवा करने का निश्चय करते हैं, लेकिन दूध नहीं दुहते।

मास के अंत में, जब चंदन और मल्लिका गाय से दूध दुहने जाते हैं, तो गाय उन्हें दूध नहीं देती और पैर से मारती है। वे आश्चर्यचकित होते हैं। गाँव वाले यह देखकर हँसते हैं। मल्लिका तब चंदन को समझाती है कि उसने प्रतिदिन गाय की सेवा तो की, लेकिन प्रतिदिन दूध नहीं दुहा, इसलिए गाय दूध नहीं दे रही है। चंदन को अपनी मूर्खता का एहसास होता है और वह समझता है कि **प्रतिदिन का कार्य प्रतिदिन ही करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति किसी कार्य को एक साथ अंत में करने की सोचता है, तो उसे हानि ही होती है।** अंत में, वे प्रतिदिन दूध दुहने का निर्णय लेते हैं और चंदन को संतोष मिलता है। यह नाटक हमें **समय पर कार्य करने और लालच से बचने** का महत्वपूर्ण संदेश देता है।

अभ्यास-प्रश्नाः (Exercise Questions)

I. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दें)

  1. चन्दनस्य पत्नी का अस्ति?

    मल्लिका

  2. चन्दनः कस्य उत्सवस्य चर्चां करोति?

    शिवपूजनस्य (शिवपूजा का)

  3. चन्दनः मासस्य अन्ते किं कर्तुम् इच्छति?

    सकलं दुग्धं विक्रीय धनिकः भवितुम् (सारा दूध बेचकर धनी होने के लिए)

  4. धेनुः कथं प्रहरति?

    पादेन (पैर से)

  5. चन्दनः स्वस्य किं ज्ञातवान्?

    मूर्खताम् (अपनी मूर्खता)

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दें)

  1. चन्दनः मोदकानि कुत्र अर्पयितुम् इच्छति?

    चन्दनः मोदकानि देव्यै पूजायै अर्पयितुम् इच्छति।

  2. मल्लिका चन्दनं किं क्रोधानुभावं करोति?

    मल्लिका चन्दनं मोदकानि न भक्षितुम् आदिशति यतः तानि पूजार्थं निर्मितानि सन्ति।

  3. चन्दनः किम् चिन्तयित्वा दुग्धदोहनं न करोति?

    चन्दनः चिन्तयति यत् सः एकमासं दुग्धदोहनं न करिष्यति, मासस्य अन्ते सकलं दुग्धं विक्रीय धनिकः भविष्यति।

  4. मासान्ते किं घटति?

    मासान्ते चन्दनः दुग्धदोहनार्थं धेनुसमीपं गच्छति, परं धेनुः पादेन प्रहरति, दुग्धं च न ददाति।

  5. चन्दनः अन्ते किं पाठं शिक्षते?

    चन्दनः अन्ते पाठं शिक्षते यत् प्रतिदिनं कार्यं प्रतिदिनं करणीयम्, यदि कश्चित् कार्यं मासस्य अन्ते एकत्र कर्तुम् इच्छति, सः हानिम् अनुभवति।

III. निर्देशानुसारं परिवर्तनं कुरुत (निर्देशानुसार परिवर्तन करें)

  1. **'चन्दनः मोदकं भक्षयति।' - (बहुवचने परिवर्तयत)**

    चन्दनाः मोदकानि भक्षयन्ति।

  2. **'मल्लिका स्नाति।' - (भविष्यत्काले परिवर्तयत)**

    मल्लिका स्नास्यति।

  3. **'त्वं दुग्धं ददासि।' - (लट्लकारे परिवर्तयत)**

    त्वं दुग्धं ददासि। (यह पहले से ही लट्लकार में है)

  4. **'एतानि मोदकानि निर्मितानि सन्ति।' - (एकवचने परिवर्तयत)**

    इदं मोदकं निर्मितमस्ति।

  5. **'ते धनिकाः भवन्ति।' - (एकवचने परिवर्तयत)**

    सः धनिकः भवति।

(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। दिखावट भिन्न हो सकती है।)