अध्याय 12: वाङ्मनःप्राणस्वरूपम् (वाणी, मन और प्राण का स्वरूप)
परिचय
यह पाठ भारतीय दर्शन के एक महत्त्वपूर्ण विषय, **मानव शरीर में वाणी, मन और प्राण (जीवन-शक्ति) के परस्पर संबंध और उनके स्वरूप** पर प्रकाश डालता है। यह उपनिषदों, विशेषतः **छान्दोग्य उपनिषद** के छठे अध्याय के पाँचवें खण्ड से संकलित है। यह अंश उस आध्यात्मिक संवाद को दर्शाता है जहाँ **आरुणि ऋषि अपने पुत्र श्वेतकेतु को सृष्टि की रचना, अन्न के प्रभाव और मानव शरीर में इन तीनों मूलभूत तत्वों की स्थिति** का गूढ़ ज्ञान प्रदान करते हैं। यह पाठ हमें सिखाता है कि **अन्न का शरीर पर सीधा प्रभाव पड़ता है**, और हमारे मन, वाणी और प्राण की शुद्धता और शक्ति हमारे आहार पर निर्भर करती है। यह हमें आत्मा की अविनाशिता और इन तत्वों के सूक्ष्म स्वरूप का बोध कराता है।
पाठ (The Text)
श्वेतकेतो! सोम्य! विद्धि यत् पिब्यते तदद्भ्यः तेजोमयं वाक्। यत् खादितं तदन्नमयं मनः। यत् प्राणाः तदामयम्।
हे श्वेतकेतु! हे सौम्य! जानो कि जो कुछ पिया जाता है, वह जलमय होकर वाणी (का मूल) है। जो कुछ खाया जाता है, वह अन्नमय होकर मन (का मूल) है। जो (श्वास) ली जाती है, वह प्राणमय (का मूल) है।
* **श्वेतकेतो:** हे श्वेतकेतु! (O Svetaketu!)
* **सोम्य:** हे सौम्य! (O gentle one!)
* **विद्धि:** जानो (know)
* **यत् पिब्यते:** जो कुछ पिया जाता है (whatever is drunk)
* **तदद्भ्यः:** वह जल से (from water)
* **तेजोमयं:** तेज से बना हुआ/ज्योतिर्मय (made of light, luminous) (पाठ में तेजोमयं का प्रयोग वाणी के संदर्भ में हुआ है, यहाँ यह 'शुद्ध/सार' के अर्थ में है)
* **वाक्:** वाणी (speech)
* **यत् खादितं:** जो कुछ खाया जाता है (whatever is eaten)
* **तदन्नमयं:** वह अन्न से बना हुआ (made of food)
* **मनः:** मन (mind)
* **यत् प्राणाः:** जो प्राण हैं (what are the life-breaths)
* **तदामयम्:** वह आमय (रोग/बल) वाला है (यहां 'प्राणमय' का भाव है, 'जीवन-शक्ति' का मूल)
आहारशुद्धौ सत्वशुद्धिः। सत्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः। स्मृतिलाभे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः।
आहार की शुद्धि से सत्व (मन/चित्त) की शुद्धि होती है। सत्व की शुद्धि से अटल स्मृति (दृढ़ ज्ञान) प्राप्त होती है। स्मृति के लाभ से सभी (हृदय) ग्रंथियों से मुक्ति मिलती है।
* **आहारशुद्धौ:** आहार की शुद्धि में/से (on purity of food)
* **सत्वशुद्धिः:** सत्व की शुद्धि (purity of sattva/mind)
* **ध्रुवा:** अटल, स्थिर (firm, constant)
* **स्मृतिः:** स्मृति, ज्ञान (memory, knowledge)
* **स्मृतिलाभे:** स्मृति की प्राप्ति में/से (on gaining memory/knowledge)
* **सर्वग्रन्थीनां:** सभी ग्रंथियों का (of all knots/bondages)
* **विप्रमोक्षः:** विशेष मुक्ति, छुटकारा (complete liberation)
एष सोभ्य! अन्नमयं मनः, आपोमयं प्राणः, तेजोमयं वाक् इति।
हे सौम्य! यह (ही सत्य) है कि मन अन्नमय है, प्राण जलमय है, और वाणी तेजोमय (अग्नितत्व से उत्पन्न) है।
* **एष सोभ्य!:** हे सौम्य! यह (this, O gentle one!)
* **अन्नमयं मनः:** मन अन्नमय है (mind is made of food)
* **आपोमयं प्राणः:** प्राण जलमय है (life-breath is made of water)
* **तेजोमयं वाक्:** वाणी तेजोमय है (speech is made of fire/light)
स होवाच भूय एव मा भगवान् विज्ञापयत्विति। तथा सोम्येति ह उवाच।
उसने (श्वेतकेतु ने) कहा - "भगवान् (आप) मुझे और अधिक समझाइए।" (आरुणि ने) कहा - "ठीक है, हे सौम्य!"
* **स होवाच:** उसने कहा (he said)
* **भूय एव:** और अधिक ही (even more)
* **मा भगवान्:** मुझे भगवान् (may the lord)
* **विज्ञापयतु इति:** समझाएँ (inform, enlighten)
* **तथा सोम्येति:** वैसा ही, हे सौम्य! (so be it, O gentle one!)
* **ह उवाच:** कहा (said)
पुरुषस्य शरीरे वाक्, मनः, प्राणः, एतेषां सर्वेषां मूलं अन्नम्।
पुरुष के शरीर में वाणी, मन, प्राण, इन सबका मूल अन्न है।
* **पुरुषस्य:** पुरुष का (of a person)
* **शरीरे:** शरीर में (in the body)
* **एतेषाम्:** इन सबका (of all these)
* **मूलम्:** मूल, आधार (root, foundation)
यथा हि सोम्य! महतः शोषत् त्र्यादिभिः। त्र्यादिभिः हि शोषत् स जीवति।
जैसे, हे सौम्य! बड़े वृक्ष के सूखने पर (उसका मूल) तीन भागों (जड़, तना, शाखा) से (जल पीकर) जीवित रहता है।
* **यथा हि सोम्य!:** जैसे, हे सौम्य! (just as, O gentle one!)
* **महतः शोषत्:** बड़े के सूखने पर (on drying of a big one)
* **त्र्यादिभिः:** तीन आदि से (from three parts - root, trunk, branches) (संदर्भ के अनुसार 'त्रिधातु' या 'तीनों तत्वों' से भी अर्थ लिया जा सकता है)
* **स जीवति:** वह जीवित रहता है (it lives)
तथैव वाङ्मनःप्राणस्वरूपम्।
उसी प्रकार वाणी, मन और प्राण का स्वरूप है।
* **तथैव:** वैसे ही (in the same way)
* **वाङ्मनःप्राणस्वरूपम्:** वाणी, मन और प्राण का स्वरूप (nature of speech, mind, and life-breath)
श्वेतकेतो! सोम्य! विद्धि यत् वाक् तेजोमयं, प्राणः आपोमयं, मनः अन्नमयम् इति।
हे श्वेतकेतु! हे सौम्य! जानो कि वाणी तेजोमय है, प्राण जलमय है, और मन अन्नमय है।
यत्र कुत्रचित् गमिष्यति, तत्रैव मनः प्राणश्च भविष्यतः।
जहाँ कहीं भी (आत्मा) जाएगी, वहीं मन और प्राण होंगे।
* **यत्र कुत्रचित्:** जहाँ कहीं भी (wherever)
* **गमिष्यति:** जाएगी (will go)
* **तत्रैव:** वहीं ही (there itself)
* **मनः प्राणश्च:** मन और प्राण (mind and life-breath)
* **भविष्यतः:** होंगे (will be)
एवं ते सोम्य! शृङ्गमुद्गमुद्गेण प्रज्ञापयिष्यति।
इस प्रकार, हे सौम्य! (मैं) तुम्हें सींग-मुद्गर से (यानी धैर्यपूर्वक, एक-एक करके) समझाऊंगा।
* **एवम्:** इस प्रकार (thus)
* **शृङ्गमुद्गमुद्गेण:** सींग-मुद्गर से (with horn-mallet, implying gradual, persistent instruction) (यह एक मुहावरा है जिसका अर्थ है 'छोटे-छोटे टुकड़ों में या धीरे-धीरे समझाना')
* **प्रज्ञापयिष्यति:** समझाऊंगा (will make understand, will enlighten)
शब्दार्थ (Word Meanings)
- **श्वेतकेतो:** हे श्वेतकेतु! (O Svetaketu!)
- **सोम्य:** हे सौम्य! (O gentle one!)
- **विद्धि:** जानो (know)
- **पिब्यते:** पिया जाता है (is drunk)
- **तदद्भ्यः:** वह जल से (from water)
- **तेजोमयं:** तेज से बना हुआ, ज्योतिर्मय (made of light/fire, luminous); यहाँ संदर्भानुसार 'सार' या 'श्रेष्ठ अंश' का भाव है।
- **वाक्:** वाणी (speech)
- **खादितं:** खाया जाता है (is eaten)
- **तदन्नमयं:** वह अन्न से बना हुआ (made of food)
- **मनः:** मन (mind)
- **प्राणाः:** प्राण (life-breaths, vital airs)
- **तदामयम्:** वह प्राणमय है (is made of life-force/energy); पाठ में 'आयम' का अर्थ 'मूल' या 'आधार' हो सकता है। 'आमय' का एक अर्थ 'रोग' भी होता है, लेकिन यहाँ उस संदर्भ में नहीं है।
- **आहारशुद्धौ:** आहार की शुद्धि में/से (on purity of food)
- **सत्वशुद्धिः:** सत्व (मन/चित्त) की शुद्धि (purity of sattva/mind)
- **ध्रुवा:** अटल, स्थिर (firm, constant)
- **स्मृतिः:** स्मृति, ज्ञान (memory, knowledge, firm understanding)
- **स्मृतिलाभे:** स्मृति (ज्ञान) की प्राप्ति में/से (on gaining knowledge)
- **सर्वग्रन्थीनां:** सभी ग्रंथियों का (of all knots/bondages of the heart)
- **विप्रमोक्षः:** विशेष मुक्ति, छुटकारा (complete liberation)
- **एषः:** यह (this)
- **आपोमयं:** जलमय (made of water)
- **इति:** ऐसा (thus, so)
- **स होवाच:** उसने कहा (he said)
- **भूय एव:** और अधिक ही (even more)
- **मा भगवान्:** मुझे भगवान् (may the revered one)
- **विज्ञापयतु:** समझाएँ (enlighten, make known)
- **तथा सोम्य! इति ह उवाच:** "ठीक है, हे सौम्य!" ऐसा उसने कहा (so be it, O gentle one! thus he said)
- **पुरुषस्य:** पुरुष का/मनुष्य का (of a person)
- **शरीरे:** शरीर में (in the body)
- **एतेषाम्:** इन सबका (of all these)
- **मूलम्:** मूल, आधार (root, foundation)
- **यथा हि:** जैसे ही (just as)
- **महतः शोषत्:** बड़े के सूखने पर (on drying of a great one, e.g., a tree)
- **त्र्यादिभिः:** तीन भागों से (from the three parts); यहाँ छान्दोग्य उपनिषद के मूल संदर्भ में 'मूल', 'मध्य', 'अग्र' भाग से है, जिनसे वृक्ष जल पीता है।
- **स जीवति:** वह जीवित रहता है (it lives)
- **तथैव:** वैसे ही (in the same way)
- **वाङ्मनःप्राणस्वरूपम्:** वाणी, मन और प्राण का स्वरूप (nature of speech, mind, and life-breath)
- **यत्र कुत्रचित्:** जहाँ कहीं भी (wherever)
- **गमिष्यति:** जाएगी (will go - referring to the subtle body/soul)
- **तत्रैव:** वहीं ही (there itself)
- **भविष्यतः:** होंगे (will be)
- **एवम्:** इस प्रकार (thus)
- **शृङ्गमुद्गमुद्गेण:** शृंग और मुद्गर द्वारा; लाक्षणिक अर्थ - धैर्यपूर्वक, एक-एक करके समझाना (by horn and mallet, metaphorically meaning - patiently, step-by-step)
- **प्रज्ञापयिष्यति:** समझाऊंगा (will make understand, will enlighten)
सारांश (Summary)
यह पाठ भारतीय दर्शन के एक महत्त्वपूर्ण उपनिषद, **छान्दोग्य उपनिषद** के छठे अध्याय के पाँचवें खण्ड से उद्धृत है। इसमें ऋषि आरुणि अपने पुत्र श्वेतकेतु को **वाणी (वाक्), मन और प्राण (जीवन-शक्ति) के स्वरूप और उनके अन्न से संबंध** का गूढ़ ज्ञान देते हैं।
आरुणि ऋषि समझाते हैं कि:
- जो कुछ हम **पीते हैं**, उसका सार **वाणी** का मूल बनता है, और वह जलमय होता है।
- जो कुछ हम **खाते हैं**, उसका सार **मन** का मूल बनता है, और वह अन्नमय होता है।
- और जो **प्राण (श्वास)** है, वह भी अपने मूल में अन्न और जल के सूक्ष्म रूप से संबंधित है।
इस प्रकार, ऋषि यह सिद्ध करते हैं कि **मन अन्नमय है, प्राण जलमय है, और वाणी तेजोमय (अग्नि का सार)** है। इसका अर्थ है कि हमारे शारीरिक और मानसिक क्रियाकलाप हमारे द्वारा ग्रहण किए गए आहार पर निर्भर करते हैं।
पाठ का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है: **"आहारशुद्धौ सत्वशुद्धिः। सत्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः। स्मृतिलाभे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः।"** इसका अर्थ है कि **आहार की शुद्धि से मन (सत्व) की शुद्धि होती है**, मन की शुद्धि से **अटल स्मृति (दृढ़ ज्ञान या आत्मज्ञान)** प्राप्त होता है, और इस दृढ़ ज्ञान की प्राप्ति से **हृदय की सभी ग्रंथियों (अज्ञान, बंधन) से पूर्ण मुक्ति** मिलती है। यह हमें बताता है कि शुद्ध और सात्विक भोजन केवल शरीर ही नहीं, बल्कि मन और बुद्धि को भी शुद्ध करता है, जिससे आध्यात्मिक उन्नति संभव होती है।
श्वेतकेतु इस ज्ञान को और अधिक गहराई से समझने की इच्छा व्यक्त करता है। आरुणि ऋषि एक **दृष्टांत** देते हैं: जैसे एक विशाल वृक्ष जब सूखने लगता है, तो भी उसकी जड़ें (तीन भाग - मूल, मध्य, अग्र) जल पीकर उसे जीवित रखती हैं। उसी प्रकार, शरीर में वाणी, मन और प्राण का स्वरूप भी सूक्ष्म रूप से एक-दूसरे से जुड़ा है और अन्न पर आधारित है।
ऋषि यह भी बताते हैं कि जब आत्मा (सूक्ष्म शरीर सहित) एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाती है (जैसे मृत्यु के बाद), तो **मन और प्राण भी उसके साथ ही जाते हैं**, क्योंकि वे अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं।
अंत में, आरुणि कहते हैं कि वे श्वेतकेतु को यह गूढ़ ज्ञान **"शृङ्गमुद्गमुद्गेण"** यानी धैर्यपूर्वक, एक-एक करके समझाते रहेंगे। यह पाठ हमें बताता है कि हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए **शुद्ध आहार का कितना महत्व** है, और यह भी कि आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए मन की शुद्धि और एकाग्रता आवश्यक है, जिसका आधार शुद्ध भोजन है। यह भारतीय दर्शन में शरीर, मन और आत्मा के परस्पर संबंध को सरल और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करता है।
अभ्यास-प्रश्नाः (Exercise Questions)
I. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दें)
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कः श्वेतकेतुं उपदिशति?
आरुणिः (आरुणि)
-
यत् पिब्यते तदद्भ्यः किं भवति?
वाक् (वाणी)
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यत् खादितं तदन्नमयं किम्?
मनः (मन)
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आहारशुद्धौ का शुद्धिः भवति?
सत्वशुद्धिः (सत्व/मन की शुद्धि)
-
सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः कदा भवति?
स्मृतिलाभे (स्मृति/ज्ञान की प्राप्ति पर)
II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दें)
-
आरुणिः श्वेतकेतुं किम् उपदिशति?
आरुणिः श्वेतकेतुं उपदिशति यत् यत् पिब्यते तदद्भ्यः तेजोमयं वाक्, यत् खादितं तदन्नमयं मनः, यत् प्राणाः तदामयम्। (आरुणि श्वेतकेतु को उपदेश देते हैं कि जो पिया जाता है वह जलमय होकर वाणी का मूल है, जो खाया जाता है वह अन्नमय होकर मन का मूल है, और जो प्राण हैं वह प्राणमय हैं।)
-
सत्वशुद्धौ किं भवति?
सत्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः भवति। (सत्व की शुद्धि से अटल स्मृति/ज्ञान होता है।)
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स्मृतिलाभे किं भवति?
स्मृतिलाभे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः भवति। (स्मृति/ज्ञान की प्राप्ति से सभी ग्रंथियों से मुक्ति होती है।)
-
मनः, प्राणः, वाक् च केन स्वरूपेण सन्ति?
मनः अन्नमयं, प्राणः आपोमयं, वाक् च तेजोमयं स्वरूपेण सन्ति। (मन अन्नमय, प्राण जलमय और वाणी तेजोमय स्वरूप में हैं।)
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आत्मा यत्र कुत्रचित् गमिष्यति, तत्र किं भविष्यतः?
आत्मा यत्र कुत्रचित् गमिष्यति, तत्रैव मनः प्राणश्च भविष्यतः। (आत्मा जहाँ कहीं भी जाएगी, वहीं मन और प्राण होंगे।)
III. स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (मोटे अक्षरों के आधार पर प्रश्न निर्माण करें)
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**आरुणिः** श्वेतकेतुं उपदिशति।
**कः** श्वेतकेतुं उपदिशति?
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यत् पिब्यते **तदद्भ्यः** तेजोमयं वाक्।
यत् पिब्यते **तत् केभ्यः** तेजोमयं वाक्?
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आहारशुद्धौ **सत्वशुद्धिः**।
आहारशुद्धौ **का**?
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स्मृतिलाभे **सर्वग्रन्थीनां** विप्रमोक्षः।
स्मृतिलाभे **केषाम्** विप्रमोक्षः?
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पुरुषस्य **शरीरे** वाक्, मनः, प्राणः, एतेषां सर्वेषां मूलं अन्नम्।
पुरुषस्य **कुत्र** वाक्, मनः, प्राणः, एतेषां सर्वेषां मूलं अन्नम्?
IV. निम्नलिखितानां वाक्यानां वाच्यपरिवर्तनं कुरुत (निम्नलिखित वाक्यों का वाच्य परिवर्तन करें)
(कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य या कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य में बदलें)
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स होवाच भूय एव मा भगवान् विज्ञापयतु। (कर्मवाच्ये)
तेन भूय एव अहं भगवता विज्ञाप्येय।
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तथा सोम्येति ह उवाच। (कर्मवाच्ये)
तथा सोम्येति तेन उक्तम्।
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स्मृतिलाभे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः। (कर्तृवाच्ये)
स्मृतिलाभे सर्वे ग्रन्थाः विप्रमुच्यन्ते।
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स जीवति। (कर्मवाच्ये)
तेन जीव्यते।
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गुरुः शिष्यं प्रज्ञापयति। (कर्मवाच्ये)
गुरुणा शिष्यः प्रज्ञाप्यते।
(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ़ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। दिखावट भिन्न हो सकती है।)