अध्याय 11: पर्यावरणम् (पर्यावरण)

परिचय

यह पाठ हमें पर्यावरण की **अत्यधिक महत्ता** से परिचित कराता है। यह बताता है कि **पर्यावरण (जगत के लिए आवरण)** प्रकृति के सभी घटकों का समुच्चय है, जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। प्रकृति हमें अनेक रूपों में शुद्ध वायु, शुद्ध जल, फल, फूल, लकड़ी आदि प्रदान करती है। वह हमारे पालन-पोषण के लिए आवश्यक है, लेकिन हम मानव स्वार्थवश उसका **विनाश** कर रहे हैं। वृक्षों का काटना, जल को प्रदूषित करना, वायु को दूषित करना—ये सब पर्यावरण के लिए घातक हैं। इस पाठ में वेदों, पुराणों, तथा अन्य भारतीय धर्मग्रंथों में पर्यावरण के प्रति बताई गई **मान्यताएँ और जागरूकता** का वर्णन है। यह हमें सिखाता है कि पर्यावरण की रक्षा ही हमारा परम धर्म है और यह हमारी सुरक्षा के लिए अनिवार्य है।

पाठ (The Text)

पर्यावरणं प्राणिनां जीवनस्य मूलम्। प्रकृतिः सर्वेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते। इयं विविधाभिः रीतिभिः सुखसाधनानि वितरति। शीतलपवनं, शुद्धजलम्, अन्नं, फलानि, काष्ठानि च अस्याः एव प्रसादाः।

पर्यावरण प्राणियों के जीवन का मूल है। प्रकृति सभी प्राणियों के संरक्षण के लिए प्रयत्न करती है। यह विविध विधियों से सुख के साधन वितरित करती है। ठंडी हवा, शुद्ध जल, अन्न, फल और लकड़ियाँ — इसके ही प्रसाद हैं।

वयं प्रकृतिं मातामिव मन्यामहे। यतः सा अस्मान् पोषयति, रक्षति च। किन्तु, अधुना मानवाः स्वार्थान्धाः भूत्वा, प्रकृतिं विनाशयन्ति। वृक्षाः निर्दयतापूर्वकं छिद्यन्ते, नद्यः दूषितजलेन पूर्यन्ते, वायुः धूमेन प्रदूष्यते।

हम प्रकृति को माता के समान मानते हैं। क्योंकि वह हमें पोषित करती है और रक्षा करती है। किंतु, अब मनुष्य स्वार्थ में अंधे होकर प्रकृति को नष्ट कर रहे हैं। वृक्ष निर्दयतापूर्वक काटे जा रहे हैं, नदियाँ दूषित जल से भर रही हैं, वायु धुएँ से प्रदूषित हो रही है।

एतेन पर्यावरणस्य सन्तुलनं नश्यति। परिणामतः अनेकाः रोगाः उद्भवन्ति, दैवीविपदाः च आगच्छन्ति। यथा - भूकम्पः, अतिवृष्टिः, अनावृष्टिः, चक्रवातः इत्यादि।

इससे पर्यावरण का संतुलन नष्ट होता है। परिणामस्वरूप अनेक रोग उत्पन्न होते हैं, और प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं। जैसे - भूकंप, अत्यधिक वर्षा, अकाल, चक्रवात इत्यादि।

प्राचीनकाले ऋषयः वनेषु निवसन्तः आसन्। यतः वनानि शुद्धं पर्यावरणं प्रयच्छन्ति स्म। तत्र नद्यः, पर्वताः, वृक्षाः, पशवः च सहजीविनः आसन्।

प्राचीन काल में ऋषि वन में रहते थे। क्योंकि वन शुद्ध पर्यावरण प्रदान करते थे। वहाँ नदियाँ, पर्वत, वृक्ष और पशु सहजीवी थे।

धार्मिकग्रन्थेषु अपि पर्यावरणस्य रक्षणाय उपदेशाः सन्ति। वेदेषु भूमिं मातरं मन्यन्ते। वृक्षारोपणं पुण्यकार्यं कथ्यते। जलस्य पवित्रतायाः वर्णनं करोति।

धार्मिक ग्रंथों में भी पर्यावरण की रक्षा के लिए उपदेश हैं। वेदों में भूमि को माता मानते हैं। वृक्षारोपण को पुण्य कार्य कहा जाता है। जल की पवित्रता का वर्णन करते हैं।

सर्वेषां प्राणिनां रक्षणं पर्यावरणस्य रक्षणम् एव। यतः ते अन्योन्याश्रिताः सन्ति। व्याघ्रः मृगान् रक्षति, वृक्षाः प्राणवायूं ददति।

सभी प्राणियों की रक्षा पर्यावरण की रक्षा ही है। क्योंकि वे एक-दूसरे पर आश्रित हैं। बाघ हिरणों की रक्षा करता है (संख्या नियंत्रण से), वृक्ष प्राणवायु देते हैं।

अधुना अस्माकं परमं कर्तव्यम् अस्ति यत् वयं पर्यावरणं रक्षामः। वृक्षाणां रोपणं, जलस्य संरक्षणं, वायौ प्रदूषणस्य निवारणं च कुर्याम।

अब हमारा परम कर्तव्य है कि हम पर्यावरण की रक्षा करें। वृक्षों का रोपण करें, जल का संरक्षण करें, और वायु में प्रदूषण का निवारण करें।

येन जनाः स्वस्थजीवनं यापयितुं शक्नुयुः। पर्यावरणस्य रक्षणम् एव अस्माकं भविष्यस्य आधारः।

जिससे लोग स्वस्थ जीवन बिता सकें। पर्यावरण की रक्षा ही हमारे भविष्य का आधार है।

शब्दार्थ (Word Meanings)

सारांश (Summary)

यह पाठ **पर्यावरण के महत्व** और उसकी रक्षा की आवश्यकता पर केंद्रित है। पाठ बताता है कि **पर्यावरण ही प्राणियों के जीवन का आधार** है। प्रकृति सभी जीवों की रक्षा करती है और हमें विविध प्रकार के सुख के साधन, जैसे ठंडी हवा, शुद्ध जल, अन्न, फल और लकड़ियाँ, प्रदान करती है। हम भारतीय संस्कृति में प्रकृति को **माता के समान** मानते हैं, क्योंकि वह हमें पोषण देती है और हमारी रक्षा करती है।

किंतु, आज के मनुष्य **स्वार्थ में अंधे** होकर प्रकृति का विनाश कर रहे हैं। वृक्षों को निर्दयतापूर्वक काटा जा रहा है, नदियाँ दूषित जल से भरी जा रही हैं, और वायु धुएँ से प्रदूषित हो रही है। इस प्रकार के कृत्यों से **पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है**, जिसके परिणामस्वरूप अनेक रोग उत्पन्न हो रहे हैं और **प्राकृतिक आपदाएँ**, जैसे भूकंप, अत्यधिक वर्षा, अकाल और चक्रवात, बढ़ रही हैं।

पाठ में प्राचीन काल का उल्लेख है, जब **ऋषि-मुनि वनों में रहते थे**, क्योंकि वहाँ शुद्ध पर्यावरण उपलब्ध था। उस समय नदियाँ, पर्वत, वृक्ष और पशु सब सहजीवी के रूप में रहते थे, जो प्राकृतिक संतुलन का प्रतीक था।

भारतीय **धार्मिक ग्रंथों में भी पर्यावरण की रक्षा** के लिए अनेक उपदेश दिए गए हैं। वेदों में भूमि को माता के रूप में पूजा जाता है, वृक्षारोपण को पुण्य कार्य माना जाता है, और जल की पवित्रता बनाए रखने पर जोर दिया गया है।

यह पाठ इस बात पर भी बल देता है कि **सभी प्राणियों की रक्षा करना ही पर्यावरण की रक्षा है**, क्योंकि सभी जीव एक-दूसरे पर आश्रित हैं। उदाहरण के लिए, बाघ हिरणों की संख्या को नियंत्रित करके वनस्पति और पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं, और वृक्ष हमें जीवन के लिए आवश्यक प्राणवायु प्रदान करते हैं।

अंत में, पाठ यह संदेश देता है कि **पर्यावरण की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य** है। हमें वृक्षारोपण करना चाहिए, जल का संरक्षण करना चाहिए, और वायु प्रदूषण को रोकना चाहिए। ऐसा करके ही लोग स्वस्थ जीवन जी सकेंगे। वास्तव में, **पर्यावरण की रक्षा ही हमारे उज्ज्वल भविष्य का आधार** है।

अभ्यास-प्रश्नाः (Exercise Questions)

I. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दें)

  1. प्राणिनां जीवनस्य मूलं किम्?

    पर्यावरणम् (पर्यावरण)

  2. प्रकृतिः किं वितरति?

    सुखसाधनानि (सुख के साधन)

  3. मानवाः स्वार्थान्धाः भूत्वा किं विनाशयन्ति?

    प्रकृतिम् (प्रकृति को)

  4. प्राचीनकाले ऋषयः कुत्र निवसन्तः आसन्?

    वनेषु (वनों में)

  5. वेदेषु भूमिं किं मन्यन्ते?

    मातरम् (माता को)

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दें)

  1. प्रकृतिः अस्मान् किम् किम् ददाति?

    प्रकृतिः अस्मान् शीतलपवनं, शुद्धजलम्, अन्नं, फलानि, काष्ठानि च ददाति। (प्रकृति हमें ठंडी हवा, शुद्ध जल, अन्न, फल और लकड़ियाँ देती है।)

  2. मानवाः कथं प्रकृतिं विनाशयन्ति?

    मानवाः स्वार्थान्धाः भूत्वा, वृक्षाः निर्दयतापूर्वकं छिद्यन्ते, नद्यः दूषितजलेन पूर्यन्ते, वायुः धूमेन प्रदूष्यते इति प्रकृतिं विनाशयन्ति। (मनुष्य स्वार्थ में अंधे होकर, वृक्षों को निर्दयतापूर्वक काटते हैं, नदियाँ दूषित जल से भरते हैं, वायु को धुएँ से प्रदूषित करते हैं — इस प्रकार प्रकृति का विनाश करते हैं।)

  3. पर्यावरणस्य सन्तुलनेन किं नश्यति?

    पर्यावरणस्य सन्तुलनेन अनेकाः रोगाः उद्भवन्ति, दैवीविपदाः च आगच्छन्ति। (पर्यावरण के संतुलन बिगड़ने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं और प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं।)

  4. प्राचीनकाले वनानि किमर्थं शुद्धं पर्यावरणं प्रयच्छन्ति स्म?

    प्राचीनकाले वनानि शुद्धं पर्यावरणं प्रयच्छन्ति स्म यतः तत्र नद्यः, पर्वताः, वृक्षाः, पशवः च सहजीविनः आसन्। (प्राचीन काल में वन शुद्ध पर्यावरण प्रदान करते थे क्योंकि वहाँ नदियाँ, पर्वत, वृक्ष और पशु सहजीवी थे।)

  5. अस्माकं परमं कर्तव्यं किम् अस्ति?

    अस्माकं परमं कर्तव्यम् अस्ति यत् वयं पर्यावरणं रक्षामः, वृक्षाणां रोपणं, जलस्य संरक्षणं, वायौ प्रदूषणस्य निवारणं च कुर्याम। (हमारा परम कर्तव्य है कि हम पर्यावरण की रक्षा करें, वृक्षों का रोपण करें, जल का संरक्षण करें, और वायु में प्रदूषण का निवारण करें।)

III. स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (मोटे अक्षरों के आधार पर प्रश्न निर्माण करें)

  1. **प्रकृतिः** सर्वेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते।

    **का** सर्वेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते?

  2. वृक्षाः **निर्दयतापूर्वकम्** छिद्यन्ते।

    वृक्षाः **कथम्** छिद्यन्ते?

  3. नद्यः **दूषितजलेन** पूर्यन्ते।

    नद्यः **केन** पूर्यन्ते?

  4. प्राचीनकाले **ऋषयः** वनेषु निवसन्तः आसन्।

    प्राचीनकाले **के** वनेषु निवसन्तः आसन्?

  5. पर्यावरणस्य रक्षणम् एव अस्माकं **भविष्यस्य** आधारः।

    पर्यावरणस्य रक्षणम् एव अस्माकं **कस्य** आधारः?

IV. निम्नलिखितानां वाक्यानां वाच्यपरिवर्तनं कुरुत (निम्नलिखित वाक्यों का वाच्य परिवर्तन करें)

(कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य या कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य में बदलें)

  1. प्रकृतिः सुखसाधनानि वितरति। (कर्मवाच्ये)

    प्रकृत्या सुखसाधनानि वितीर्यन्ते।

  2. मानवाः प्रकृतिं विनाशयन्ति। (कर्मवाच्ये)

    मानवैः प्रकृतिः विनाशयते।

  3. अस्मान् मातामिव मन्यामहे। (कर्तृवाच्ये)

    वयं अस्मान् मातामिव मन्यामः।

  4. वृक्षारोपणं पुण्यकार्यं कथ्यते। (कर्तृवाच्ये)

    जनाः वृक्षारोपणं पुण्यकार्यं कथयन्ति।

  5. अस्माभिः पर्यावरणं रक्ष्यते। (कर्तृवाच्ये)

    वयं पर्यावरणं रक्षामः।

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