अध्याय 10: जटायोः शौर्यम् (जटायु की वीरता)

परिचय

यह पाठ महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित विश्वप्रसिद्ध महाकाव्य **'रामायण'** के 'अरण्यकाण्ड' से संकलित किया गया है। यह अंश उस समय का वर्णन करता है जब राक्षसराज रावण, साधु का वेश धारण कर, बलपूर्वक सीता का हरण करके ले जा रहा होता है। मार्ग में **जटायु**, जो एक वृद्ध गृद्ध (गिद्ध) है, सीता की करुण पुकार सुनकर रावण को रोकने का प्रयास करता है। यह प्रसंग जटायु के **अदम्य साहस, कर्तव्यनिष्ठा और परोपकार** की भावना को दर्शाता है, भले ही वह रावण जैसे बलशाली शत्रु के सामने शारीरिक रूप से कमजोर क्यों न हो। यह पाठ हमें बताता है कि **धर्म की रक्षा के लिए आयु या शक्ति का महत्व नहीं होता, बल्कि साहस और कर्तव्यनिष्ठा ही सर्वोपरि है**।

कथा (The Story)

ततो विलप्यमानां तां वैदेहीं रावणो नृपः।
जगाम चाप्यनार्योऽसौ गृह्य हस्तेन वीर्यवान्॥१॥

तत्पश्चात्, विलाप करती हुई उस वैदेही (सीता) को, वह अनार्य रावण, हाथ से पकड़कर, बलपूर्वक ले गया।

सा ददर्श गिरौ गृध्रं पुरा दृष्टं पितुर्गृहे।
तां गृध्रराजं गच्छन्तं रावणं सा ददर्श ह॥२॥

उसने (सीता ने) पर्वत पर गृद्ध (जटायु) को देखा, जिसे उसने पहले पिता के घर (दशरथ के घर) में देखा था। उस गृद्धराज (जटायु) को जाते हुए रावण को उसने देखा।

तमब्रोषीद् विशालाक्षी सीता वचनमब्रवीत्।
जटायो! पश्य मामार्य! ह्रियमाणां निशामय॥३॥

उस विशालाक्षी सीता ने वचन कहे। बोली - "हे आर्य जटायु! मुझे (रावण द्वारा) हरण की जाती हुई देखो! ध्यान से देखो!"

तं शब्दमथ शुश्राव जटायुरथ धर्मवित्।
निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं चाप्यवेक्ष्य च॥४॥

तब उस शब्द को धर्मज्ञ जटायु ने सुना। रावण को देखकर और वैदेही को भी देखकर।

स तौ प्रहसमानस्तु वाक्यमेतदुवाच ह।
निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात्॥५॥

वह (जटायु) उन दोनों को (रावण को) हँसते हुए यह वचन बोला। "अपनी नीच बुद्धि को पराई स्त्री को छूने से हटा लो!"

न तत् समाचरेद् धीरो यत् परोऽस्य विगर्हयेत्।
सताम् धर्मार्थसंयुक्तं वचः ते प्रतिपाल्यताम्॥६॥

बुद्धिमान वह कार्य न करे जिसकी दूसरे निंदा करें। सज्जनों के धर्म और अर्थ से युक्त वचन तुम्हारे द्वारा पालन किए जाएँ।

वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी।
अथाप्यादाय वैदेहीं कुशली न गमिष्यसि॥७॥

मैं वृद्ध हूँ, तुम युवा हो, धनुषधारी हो, रथ पर हो, कवचधारी हो, बाणधारी हो। फिर भी वैदेही को लेकर कुशलतापूर्वक नहीं जा सकोगे।

ततः स गृध्रराजस्तु तुण्डेन चरणायुधैः।
चकार बहुधा गात्रे वल्मीकमिव सोरगम्॥८॥

तब उस गृद्धराज (जटायु) ने अपनी चोंच से और पँजों से (रावण के) शरीर पर बहुत प्रकार से प्रहार किए, जैसे सर्प के साथ वल्मीक (चींटियों का टीला) को (नष्ट करते हैं)।

ततोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम्।
चरणाभ्यां महातेजा बभञ्ज पतगेवरः॥९॥

तब उस महातेजस्वी पक्षीश्रेष्ठ (जटायु) ने अपने पँजों से उसके (रावण के) बाण सहित धनुष को, जो मोतियों और मणियों से सुशोभित था, तोड़ दिया।

स भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः।
आप्लुत्य गगनं भीमो वैदेहीमभ्यपद्यत॥१०॥

वह (रावण) टूटा हुआ धनुष वाला, रथहीन, मरे हुए घोड़ों वाला, मरे हुए सारथी वाला होकर, भयंकर रूप से आकाश में कूदकर वैदेही की ओर बढ़ा।

ततो जटायुस्तं क्रुद्धः कालयज्ञान्तकोपमः।
जगामाभिमुखं तस्य वेगवान् सुमहाबलः॥११॥

तब जटायु उस पर क्रोधित होकर, काल और यमराज के समान, तीव्र गति से और अत्यधिक बलशाली होकर उसके सामने गया।

तस्य चोभौ भुजौ पक्षैः पाश्वे चास्याहनद् दृढम्।
जटायुस्तस्य नखैर्बाहुन् व्यपाहरत्॥१२॥

उसके (रावण के) दोनों भुजाओं को पंखों से और बगल में भी उसने (जटायु ने) दृढ़ता से प्रहार किया। जटायु ने उसके नाखूनों से भुजाओं को उखाड़ दिया।

स भग्नबाहुरथशो विरथो हतसारथिः।
आकाशे गच्छन् विषण्णो वैदेहीमभ्यपद्यत॥१३॥

वह (रावण) टूटी हुई भुजाओं वाला, रथहीन, मरे हुए सारथी वाला होकर, आकाश में जाता हुआ, उदास होकर वैदेही की ओर बढ़ा।

रावणस्तस्य तीक्ष्णेन खड्गेन पक्षौ चिच्छेद ह।
स छिन्नपक्षो धरणीं निपपात महाखगः॥१४॥

रावण ने अपनी तीखी तलवार से उसके (जटायु के) दोनों पंखों को काट दिया। वह महान पक्षी, पंख कटे हुए, पृथ्वी पर गिर पड़ा।

शब्दार्थ (Word Meanings)

सारांश (Summary)

यह पाठ महर्षि वाल्मीकि रचित **रामायण के अरण्यकाण्ड** से लिया गया है। यह उस समय का वर्णन करता है जब **रावण** छलपूर्वक साधु का वेश धारण करके, **सीता का हरण** करके ले जा रहा था। सीता अत्यंत विलाप कर रही थीं और मदद के लिए पुकार रही थीं।

मार्ग में सीता ने **पर्वत पर जटायु नामक वृद्ध गृद्धराज (गिद्धों के राजा)** को देखा, जिसे उन्होंने पहले अपने पिता दशरथ के घर में भी देखा था। सीता ने जटायु को पहचान कर करुण स्वर में पुकारा, "हे आर्य जटायु! मुझे (रावण द्वारा) हरण की जाती हुई देखो! मुझ पर ध्यान दो!"

धर्मज्ञ जटायु ने सीता की पुकार सुनी। उसने रावण को और हरण की जाती हुई सीता को देखकर, उस पर (रावण पर) क्रोधित होकर, उसे रोका। जटायु ने रावण को अपनी **नीच बुद्धि को त्यागने** और पराई स्त्री को स्पर्श न करने की सलाह दी। उसने रावण को समझाया कि बुद्धिमान व्यक्ति वह काम नहीं करते जिनकी दूसरे निंदा करें, और उसे सज्जनों के धर्म और अर्थ से युक्त वचनों का पालन करना चाहिए।

जटायु ने रावण को अपनी स्थिति भी बताई कि वह स्वयं **वृद्ध** है, जबकि रावण **युवा, धनुषधारी, रथ पर सवार, कवचधारी और बाणधारी** है। इसके बावजूद, जटायु ने रावण को चुनौती देते हुए कहा कि वह सीता को लेकर कुशलतापूर्वक नहीं जा सकेगा।

इसके बाद, **जटायु और रावण के बीच भयंकर युद्ध** हुआ। जटायु ने अपनी **चोंच और पँजों** से रावण के शरीर पर अनेक वार किए, जैसे कोई सर्प से भरे वल्मीक (चींटियों का टीला) को नष्ट कर रहा हो। उस महातेजस्वी पक्षीश्रेष्ठ जटायु ने अपने पँजों से रावण के बाण सहित, मोतियों और मणियों से सजे **धनुष को भी तोड़ दिया**।

रावण का धनुष टूट गया, उसका रथ नष्ट हो गया, घोड़े मर गए और सारथी भी मारा गया। वह भयंकर रूप से आकाश में कूदकर सीता की ओर बढ़ा। तब जटायु, जो क्रोधित होकर काल और यमराज के समान लग रहा था, तीव्र गति और अत्यधिक बल के साथ रावण के सामने गया। उसने अपने **पंखों से रावण की दोनों भुजाओं पर और बगल में दृढ़ता से प्रहार** किया, और अपने **नाखूनों से उसकी भुजाओं को भी उखाड़ दिया**।

रावण, जिसकी भुजाएँ टूट चुकी थीं, रथ और सारथी नहीं थे, आकाश में उदास होकर सीता की ओर बढ़ा। अंत में, रावण ने अपनी **तीखी तलवार से जटायु के दोनों पंखों को काट दिया**। पंख कटे हुए वह महान पक्षी (जटायु) पृथ्वी पर गिर पड़ा।

यह प्रसंग **जटायु के अद्भुत शौर्य, निस्वार्थ सेवा और धर्मपरायणता** का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। उसने अपनी वृद्धावस्था और रावण की शक्ति की परवाह न करते हुए, धर्म की रक्षा और सीता को बचाने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा दी।

अभ्यास-प्रश्नाः (Exercise Questions)

I. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दें)

  1. कः विलप्यमानां वैदेहीम् अपहृतवान्?

    रावणः (रावण)

  2. सीता कं ददर्श?

    गृध्रम् (गृद्ध/गिद्ध को)

  3. धर्मवित् कः आसीत्?

    जटायुः (जटायु)

  4. जटायुः कथं रावणं प्रति ब्रवीति स्म?

    प्रहसमानः (हँसते हुए)

  5. जटायुः केन रावणस्य पक्षौ चिच्छेद?

    खड्गेन (तलवार से)

    (टिप्पणी: यह प्रश्न और उत्तर भ्रमित करने वाला है। वास्तव में रावण ने जटायु के पंख तलवार से काटे थे। जटायु ने चोंच और पँजों से प्रहार किए थे। सही उत्तर 'रावणः' होना चाहिए यदि प्रश्न 'कः जटायोः पक्षौ चिच्छेद' हो। पाठ के अनुसार, जटायु ने रावण के बाहुओं को नाखूनों से उखाड़ा था और धनुष तोड़ा था, रावण ने जटायु के पंख काटे थे।)

    [सही उत्तर: रावणः (रावण)]

  6. पतगेवरः कः?

    जटायुः (जटायु)

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दें)

  1. रावणः कं हस्तेन गृह्य जगाम?

    रावणः विलप्यमानां वैदेहीं हस्तेन गृह्य जगाम। (रावण विलाप करती हुई वैदेही को हाथ से पकड़कर ले गया।)

  2. सीता जटायुं किम् अब्रवीत्?

    सीता जटायुम् अब्रवीत् – "जटायो! पश्य मामार्य! ह्रियमाणां निशामय।" (सीता जटायु से बोली - "हे जटायु! हे आर्य! मुझे हरण की जाती हुई देखो! ध्यान से देखो!")

  3. जटायुः रावणं किं वक्तुम् इच्छति स्म?

    जटायुः रावणं वक्तुम् इच्छति स्म यत् सः परदाराभिमर्शनात् स्वमतिं नीचां निवर्तयतु, धीरः तत् न समाचरेत् यत् परोऽस्य विगर्हयेत्, सताम् धर्मार्थसंयुक्तं वचः ते प्रतिपाल्यताम्। (जटायु रावण से कहना चाहता था कि वह पराई स्त्री को छूने से अपनी नीच बुद्धि को हटा ले, बुद्धिमान वह कार्य न करे जिसकी दूसरे निंदा करें, सज्जनों के धर्म और अर्थ से युक्त वचन तुम्हारे द्वारा पालन किए जाएँ।)

  4. जटायुः रावणस्य किमकिरोत्?

    जटायुः रावणस्य सशरं चापं बभञ्ज, चोभौ भुजौ पक्षैः पाश्वे चास्याहनद् दृढम्, नखैर्बाहुन् व्यपाहरत्। (जटायु ने रावण के बाण सहित धनुष को तोड़ दिया, दोनों भुजाओं और बगल में पंखों से दृढ़ता से प्रहार किया, और नाखूनों से भुजाओं को उखाड़ दिया।)

  5. युद्धे रावणः कथम् अभवत्?

    युद्धे रावणः भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथिः अभवत्। (युद्ध में रावण टूटा हुआ धनुष वाला, रथहीन, मरे हुए घोड़ों वाला, मरे हुए सारथी वाला हो गया।)

III. स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (मोटे अक्षरों के आधार पर प्रश्न निर्माण करें)

  1. ततो विलप्यमानां तां **वैदेहीम्** रावणः जगाम।

    ततो विलप्यमानां तां **काम्** रावणः जगाम?

  2. सा ददर्श गिरौ **गृध्रम्**।

    सा ददर्श गिरौ **कम्**?

  3. जटायुः **धर्मवित्** आसीत्।

    जटायुः **कीदृशः** आसीत्?

  4. जटायुः **तुण्डेन चरणायुधैः** चकार बहुधा गात्रे।

    जटायुः **कैः** चकार बहुधा गात्रे?

  5. रावणः **तीक्ष्णेन खड्गेन** पक्षौ चिच्छेद।

    रावणः **केन** पक्षौ चिच्छेद?

IV. निम्नलिखितानां वाक्यानां वाच्यपरिवर्तनं कुरुत (निम्नलिखित वाक्यों का वाच्य परिवर्तन करें)

(कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य या कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य में बदलें)

  1. सीता जटायुम् अब्रवीत्। (कर्मवाच्ये)

    सीतया जटायुः उक्तः।

  2. ते वचः प्रतिपाल्यताम्। (कर्तृवाच्ये)

    ते वचः प्रतिपालय।

  3. जटायुः रावणस्य सशरं चापं बभञ्ज। (कर्मवाच्ये)

    जटायुना रावणस्य सशरं चापं बभञ्जे।

  4. रावणः जटायोः पक्षौ चिच्छेद। (कर्मवाच्ये)

    रावणेन जटायोः पक्षौ चिच्छिदे।

  5. महाखगः धरणीं निपपात। (कर्मवाच्ये)

    महाखगेन धरणी निपत्यते।

(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ़ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। दिखावट भिन्न हो सकती है।)