अध्याय 1: भारतीवसन्तगीतिः (भारती का वसंत गीत)

परिचय

यह गीत आधुनिक संस्कृत कवियों में श्रेष्ठ **पण्डित जानकी वल्लभ शास्त्री** द्वारा रचित 'काकली' नामक गीत संग्रह से लिया गया है। इस गीत में सरस्वती देवी की वंदना की गई है और उनसे प्रार्थना की गई है कि वे ऐसी वीणा बजाएँ, जिससे मधुर ध्वनि उत्पन्न हो और पूरा वातावरण सुंदर और मधुर हो जाए। कवि चाहते हैं कि वीणा की मधुर ध्वनि से प्रकृति में नए प्राणों का संचार हो और भारत में स्वतंत्रता का नया जोश उत्पन्न हो।

गीतम् (The Song)

1. मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमालाः सन्तसत्युद्भालाः।

निनादय नवीनामये! वाणीं वीणाम् मृदुं गाय गीतम् ललितनीतिलीनाम्॥

अये वाणी! नवीनां वीणां निनादय। ललितनीतिलीनां मृदुं गीतं गाय। मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमालाः सन्तसत्युद्भालाः।

हे सरस्वती! अपनी नई वीणा को बजाओ। सुंदर नीतियों से युक्त मधुर गीत गाओ। मधुर आम्र-मंजरियों से पीली हो गई वृक्षों की पंक्तियाँ सुशोभित हो रही हैं।

2. वहति मन्दमन्दं समीरः समगिरे।

कलिलात्मजानां सवनीरे, नता पङ्क्तिमालोक्य मधुमाधवनाम॥

कलिलात्मजानां सवनीरे समीरः मन्दमन्दं वहति। नता पङ्क्तिमालोक्य मधुमाधवनाम।

यमुना नदी के किनारे बेत की लताओं से घिरी हुई शीतल वायु धीरे-धीरे बह रही है। मधु-माधव वृक्षों की झुकी हुई पंक्तियों को देखकर।

3. ललितपल्लवे पादपे पुष्पपुञ्जे।

मलयमारुतोच्चुम्बिते मञ्जुकुञ्जे, स्वनन्ती तती प्रेक्ष्य मलिनामलीनाम्॥

मलयमारुतोच्चुम्बिते ललितपल्लवे पादपे पुष्पपुञ्जे, मञ्जुकुञ्जे, मलिनामलीनां स्वनन्तीं ततीं प्रेक्ष्य।

सुंदर पत्तों वाले वृक्षों पर और पुष्पों के गुच्छों पर, सुगंधित पवन से युक्त सुंदर कुंजों में, काले भौरों की गुंजार करती हुई पंक्ति को देखकर।

4. ललितपल्लवे पादपे पुष्पपुञ्जे।

लतानां नितान्तं सुमं शान्तशीलं, चलेदुच्छलेत्कान्तसलिलं सलीलम्॥

लतानां नितान्तं शान्तशीलं सुमं चलेत्। कान्तसलिलं सलीलम् उच्छलेत्।

लताओं के बिल्कुल शांत फूल हिल उठें। नदियों का सुंदर जल लीलापूर्वक उछल पड़े।

शब्दार्थ (Word Meanings)

सारांश (Summary)

यह गीत माँ सरस्वती से प्रार्थना करता है कि वे अपनी नई वीणा को बजाएँ और एक ऐसा मधुर गीत गाएँ जो सुंदर नीतियों से ओत-प्रोत हो। कवि वसंत ऋतु के आगमन का वर्णन करते हैं, जब आम के वृक्षों पर मधुर मंजरियाँ खिल जाती हैं और चारों ओर पीलापन छा जाता है। यमुना नदी के किनारे शीतल मंद पवन बहती है और बेत की लताएँ झूमती हैं। सुंदर पत्तों और फूलों से सजे वृक्षों पर भौरों की गुंजार सुनाई देती है। कवि की इच्छा है कि वीणा की ध्वनि से लताओं के शांत फूल भी हिल उठें और नदियों का स्वच्छ जल भी आनंद से उछल पड़े। यह गीत प्रकृति के माध्यम से नवजागरण और स्वतंत्रता की भावना को जगाने का संदेश देता है।

अभ्यास-प्रश्नाः (Exercise Questions)

I. एकपदेन उत्तरत (एक शब्द में उत्तर दें)

  1. कविः कां सम्बोधयति?

    वाणीम् (सरस्वती को)

  2. कविः वाणीं किं वादयितुं प्रार्थयति?

    वीणाम् (वीणा बजाने के लिए)

  3. कीदृशीं वीणां निनादयितुं प्रार्थयति?

    नवीनाम् (नई)

  4. गीतं कीदृशं गातुम् इच्छति?

    मृदुं ललितनीतिलीनाम् (मधुर और सुंदर नीतियों से युक्त)

  5. सरसाः रसालाः कदा लसन्ति?

    वसन्तलसन्तिह (वसंत में)

II. पूर्णवाक्येन उत्तरत (पूरे वाक्य में उत्तर दें)

  1. कविः वाणीं किं कथयति?

    कविः वाणीं कथयति यत् सा नवीनां वीणां निनादयेत्, ललितनीतिलीनां च मृदुं गीतं गायेत्। (कवि सरस्वती से कहते हैं कि वह नई वीणा बजाएँ और सुंदर नीतियों से युक्त मधुर गीत गाएँ।)

  2. वसन्ते किं किं भवति?

    वसन्ते मधुरमञ्जरीपिञ्जरीभूतमालाः सरसाः रसालाः लसन्ति। (वसंत में मधुर आम्र-मंजरियों से पीली हो गई पंक्तियाँ सुशोभित होती हैं।)

  3. समीरणः कीदृशं वहति?

    समीरणः मन्दमन्दं कलिलात्मजानां सवनीरे वहति। (हवा यमुना नदी के जल से युक्त तट पर धीरे-धीरे बहती है।)

  4. कविः किम् प्रेक्ष्य वीणां निनादयितुं कथयति?

    कविः मलयमारुतोच्चुम्बिते ललितपल्लवे पादपे पुष्पपुञ्जे, मञ्जुकुञ्जे स्वनन्तीं मलिनामलीनां ततीं प्रेक्ष्य वीणां निनादयितुं कथयति। (कवि चंदन पवन से स्पर्श किए गए सुंदर पत्तों वाले वृक्षों पर और पुष्पों के गुच्छों पर, सुंदर कुंजों में गुंजार करती हुई काले भौरों की पंक्ति को देखकर वीणा बजाने के लिए कहते हैं।)

  5. वीणायाः श्रवणेन नद्याः जलं कथं चलेत्?

    वीणायाः श्रवणेन नद्याः कान्तसलिलं सलीलम् उच्छलेत्। (वीणा के सुनने से नदी का सुंदर जल लीलापूर्वक उछल पड़े।)

III. निर्देशानुसारं परिवर्तनं कुरुत (निर्देशानुसार परिवर्तन करें)

  1. **'अये! वाणी! वीणां निनादय।' - (बहुवचने परिवर्तयत)**

    अये! वाण्यः! वीणाः निनादयत।

  2. **'कविः एकपदेन उत्तरति।' - (कर्मवाच्ये परिवर्तयत)**

    कविना एकपदेन उत्तरते।

  3. **'सः मन्दं मन्दं वहति।' - (स्त्रीलिङ्गे परिवर्तयत)**

    सा मन्दं मन्दं वहति।

  4. **'ताः पङ्क्तिम् आलोक्य।' - (एकवचने परिवर्तयत)**

    सा पङ्क्तिम् आलोक्य।

  5. **'अधुना त्वं गाय।' - (लट्-लकारं लृट्-लकारे परिवर्तयत)**

    अधुना त्वं गास्यसि।

(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। दिखावट भिन्न हो सकती है।)