Chapter 6: प्रेमचंद के फटे जूते

(हरिशंकर परसाई)

पाठ का सार

'प्रेमचंद के फटे जूते' हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित एक व्यंग्यात्मक निबंध है। इस निबंध में लेखक ने प्रसिद्ध साहित्यकार प्रेमचंद की एक तस्वीर को देखकर उनके सादे जीवन और उनकी विशेषताओं का वर्णन किया है। लेखक प्रेमचंद के पैरों में फटे हुए जूते और उनके चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान को देखकर आश्चर्यचकित होते हैं और सोचते हैं कि वे फोटोग्राफी के लिए भी जूते ठीक नहीं करवा पाए।

परसाई जी प्रेमचंद के फटे जूते को आज के दिखावे और आडंबरपूर्ण समाज से जोड़ते हैं। वे बताते हैं कि प्रेमचंद जैसे साहित्यकार जिन्होंने जीवन भर सादगी और ईमानदारी को महत्व दिया, वे दिखावे की दुनिया से कोसों दूर थे। उनके फटे जूते यह बताते हैं कि प्रेमचंद ने कभी भी बाहरी दिखावे या भौतिक सुख-सुविधाओं को महत्व नहीं दिया। वे सामाजिक कुरीतियों और अन्याय के विरुद्ध आजीवन संघर्ष करते रहे, और इसी संघर्ष में शायद उनके जूते भी फट गए। लेखक इस व्यंग्य के माध्यम से आज के समाज में व्याप्त पाखंड, अवसरवादिता और दिखावे की प्रवृत्ति पर गहरा कटाक्ष करते हैं। वे कहते हैं कि आज लोग अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए चाहे कुछ भी कर लें, अपने जूते फटे होने पर भी उन्हें छिपाकर रखते हैं, जबकि प्रेमचंद ने अपनी सादगी और यथार्थता को कभी नहीं छिपाया। लेखक प्रेमचंद की सादगी को उनके महान व्यक्तित्व का हिस्सा मानते हैं, और उनके फटे जूतों को उनके सामाजिक संघर्ष का प्रतीक।

एक पुराने, फटे हुए जूते की तस्वीर, एक सादे पृष्ठभूमि पर।

प्रश्न-अभ्यास

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

  1. हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है, उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं?

    हरिशंकर परसाई द्वारा प्रस्तुत शब्द-चित्र से प्रेमचंद के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर आती हैं:

    • सादगी और ईमानदारी: प्रेमचंद अत्यंत सादा जीवन जीते थे और दिखावे में विश्वास नहीं रखते थे। वे जैसे भीतर थे, वैसे ही बाहर भी थे।
    • संघर्षशीलता: वे जीवन भर सामाजिक बुराइयों और अन्याय के खिलाफ संघर्ष करते रहे, और इसी संघर्ष के कारण उन्हें भौतिक अभावों का सामना करना पड़ा।
    • स्वाभिमान: उन्होंने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया और अपने आत्मसम्मान को सर्वोपरि रखा।
    • फक्कड़पन: उन्हें दुनियादारी की परवाह नहीं थी; वे अपनी धुन के पक्के थे और किसी भी हाल में समझौता नहीं करते थे।
    • अमिट मुस्कान: अभावों के बावजूद उनके चेहरे पर संतोष की एक हल्की मुस्कान थी, जो उनकी आंतरिक शक्ति को दर्शाती है।

  2. लेखक को ऐसा क्यों लगता है कि प्रेमचंद फोटो खिंचवाने के लिए तैयार नहीं होते?

    लेखक को ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि प्रेमचंद की तस्वीर में उनके जूते फटे हुए थे और उनके चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान थी, जैसे वे किसी पर व्यंग्य कर रहे हों। लेखक को लगता है कि अगर प्रेमचंद को दिखावा पसंद होता, तो वे फटे जूतों में फोटो खिंचवाने की बजाय या तो जूते ठीक करवा लेते या फोटो ही न खिंचवाते। उनकी यह स्थिति दिखाती है कि वे फोटो खिंचवाने जैसी औपचारिकता को भी खास महत्व नहीं देते थे, या उन्हें इसकी परवाह नहीं थी कि वे कैसे दिखते हैं।

  3. लेखक प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर क्या-क्या सोचता है?

    प्रेमचंद के फटे जूते देखकर लेखक कई बातें सोचता है:

    • वे सोचता है कि क्या प्रेमचंद को यह पता नहीं था कि उनका जूता फटा हुआ है?
    • क्या वे इतने अभावग्रस्त थे कि जूता नहीं सिलवा सके?
    • उन्हें लगता है कि प्रेमचंद दिखावे की दुनिया से बहुत दूर थे, क्योंकि अगर उन्हें दिखावा पसंद होता, तो वे किसी भी तरह अपने फटे जूते छिपा लेते।
    • लेखक सोचता है कि प्रेमचंद ने शायद दुनिया के उन ठोकरों से बचने के लिए भी अपने पैर को नहीं बचाया, जो उन्हें अन्याय के खिलाफ लड़ने पर लगी होंगी।
    • अंत में लेखक यह निष्कर्ष निकालता है कि प्रेमचंद के फटे जूते उनकी ईमानदारी, सादगी और सामाजिक संघर्ष के प्रतीक हैं।

  4. प्रेमचंद के फटे जूते से समाज के किस पाखंड और आडंबर पर व्यंग्य किया गया है?

    प्रेमचंद के फटे जूते से हरिशंकर परसाई ने समाज में व्याप्त दिखावे, पाखंड और आडंबर पर गहरा व्यंग्य किया है। आज के समाज में लोग अपनी झूठी शान और इज़्ज़त बनाए रखने के लिए हर तरह का दिखावा करते हैं, भले ही उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी न हो। वे अपने फटे जूते छिपाते हैं, उधार लेकर कपड़े खरीदते हैं, और बाहरी चमक-दमक को ही सब कुछ मानते हैं। प्रेमचंद इसके विपरीत, अपनी सादगी और वास्तविकता में जीते थे, बिना किसी दिखावे के। लेखक इस विरोधाभास के माध्यम से आधुनिक समाज की खोखली मानसिकता पर चोट करते हैं।

  5. प्रेमचंद की सादगी और उनके विचारों का आज के समय में क्या महत्व है?

    प्रेमचंद की सादगी और उनके विचारों का आज के समय में बहुत महत्व है। आज का समाज उपभोक्तावाद और दिखावे की संस्कृति से घिरा हुआ है, जहाँ लोग बाहरी चमक-दमक और भौतिक वस्तुओं को ही सुख का साधन मानते हैं। ऐसे में प्रेमचंद की सादगीपूर्ण जीवनशैली और ईमानदारी के मूल्य हमें यह सिखाते हैं कि सच्चा सुख भौतिकता में नहीं, बल्कि आंतरिक संतोष, मानवीय मूल्यों और सामाजिक सरोकारों में है। उनके विचार हमें पाखंड से दूर रहकर यथार्थ को स्वीकार करने और संघर्षों से न डरने की प्रेरणा देते हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि महानता बाहरी दिखावे से नहीं, बल्कि विचारों की पवित्रता और कर्म की निष्ठा से आती है।

II. आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. "जनता की तरफ़ अपना पाँव कैसे करूँ, जिनकी ठोकरों से तुम्हारा जूता फट गया?"

    इस पंक्ति का आशय यह है कि लेखक प्रेमचंद को संबोधित करते हुए कहते हैं कि प्रेमचंद ने जीवन भर समाज की बुराइयों, अन्याय और शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाई और संघर्ष किया। इस संघर्ष में उन्हें कई ठोकरें खानी पड़ी होंगी, कई मुश्किलें झेलनी पड़ी होंगी, जिसके कारण उनके जूते भी फट गए। लेखक कहता है कि जब प्रेमचंद ने जनता के सामने अपनी कमजोरियों को नहीं छिपाया और उन समस्याओं से जूझे, तो वह (लेखक) कैसे दिखावा करे और अपने फटे जूते छिपाए। यह पंक्ति प्रेमचंद की निडरता, सादगी और उनके संघर्षशील व्यक्तित्व को दर्शाती है।

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