Chapter 4: साँवले सपनों की याद

(जाबिर हुसैन)

पाठ का सार

'साँवले सपनों की याद' जाबिर हुसैन द्वारा प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली की याद में लिखा गया एक संस्मरण है। यह संस्मरण सालिम अली की मृत्यु के तुरंत बाद लिखा गया था, जब लेखक उनके निधन से बहुत दुखी और स्तब्ध थे। लेखक ने सालिम अली को एक ऐसे 'वर्ड वॉचर' (पक्षी-प्रेमी) के रूप में याद किया है जो प्रकृति और पक्षियों की दुनिया में पूरी तरह लीन रहते थे।

लेखक बताते हैं कि सालिम अली एक सामान्य पक्षी विज्ञानी नहीं थे, बल्कि वे पक्षियों के प्रति एक गहरा प्रेम और जिज्ञासा रखते थे। वे दूरबीन लगाकर घंटों पक्षियों को निहारते रहते थे और उनकी हर हरकत को महसूस करते थे। उनका जीवन प्रकृति को समर्पित था। लेखक ने सालिम अली की तुलना एक ऐसे सैलानी से की है जो कभी वापस नहीं लौटेगा। वे वृंदावन का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि भले ही वहाँ कृष्ण की बंसी की आवाज सुनाई न देती हो, पर आज भी यमुना के साँवले पानी में कृष्ण का जादू महसूस किया जा सकता है, ठीक वैसे ही सालिम अली की उपस्थिति को प्रकृति में महसूस किया जा सकता है। यह संस्मरण सालिम अली के व्यक्तित्व, उनके प्रकृति प्रेम और पर्यावरण के प्रति उनकी चिंता को उजागर करता है। इसमें मानवीय संवेदनाओं और प्रकृति के साथ जुड़ाव का भी सुंदर चित्रण किया गया है।

एक व्यक्ति दूरबीन से पक्षियों को देखते हुए, हरियाली से भरे जंगल में।

प्रश्न-अभ्यास

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

  1. साँवले सपनों की याद' शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए।

    'साँवले सपनों की याद' शीर्षक सालिम अली के जीवन, उनके प्रकृति प्रेम और पक्षियों के प्रति उनके गहरे समर्पण को दर्शाता है। 'साँवले' शब्द जीवन के अनमोल, गहरे और रहस्यमय अनुभवों की ओर इशारा करता है, जो पक्षियों के संसार से जुड़े थे। 'सपनों' का अर्थ उनके जीवन के लक्ष्यों और इच्छाओं से है, जो उन्होंने पक्षी-विज्ञान और प्रकृति संरक्षण में लगाए। 'याद' यह बताती है कि यह संस्मरण उनके निधन के बाद लिखा गया है और उनकी स्मृति को समर्पित है। यह शीर्षक सालिम अली के जीवन की अनुपम विरासत और उनकी मृत्यु के बाद भी प्रकृति में उनकी उपस्थिति को दर्शाते हुए अत्यंत सार्थक है।

  2. लेखक ने सालिम अली को 'सैलानी' क्यों कहा है?

    लेखक ने सालिम अली को 'सैलानी' इसलिए कहा है क्योंकि वे जीवन भर एक खोजी यात्री की तरह प्रकृति और पक्षियों की दुनिया में घूमते रहे। वे एक स्थान पर स्थिर नहीं रहे, बल्कि दूर-दूर तक यात्राएँ करते थे ताकि वे विभिन्न प्रकार के पक्षियों और उनके व्यवहार का अध्ययन कर सकें। यहाँ 'सैलानी' का प्रयोग उनके अंतिम सफर के संदर्भ में भी किया गया है, जहाँ वे ऐसे सफर पर चले गए हैं जहाँ से कोई लौटकर नहीं आता, यानी उनकी मृत्यु हो गई है।

  3. सालिम अली प्रकृति में किस प्रकार लीन रहते थे?

    सालिम अली प्रकृति में पूरी तरह लीन रहते थे। वे पक्षियों की आवाज़ों को सुनकर और उनकी गतिविधियों को देखकर घंटों बिता देते थे। वे किसी निश्चित नियम या सीमा में बंधकर प्रकृति को नहीं देखते थे, बल्कि एक गहरे आत्मिक जुड़ाव के साथ उसे महसूस करते थे। उनका मानना था कि पक्षियों को उनकी अपनी नज़र से देखना चाहिए, न कि मनुष्य की नज़र से। वे प्रकृति को एक जीवित इकाई मानते थे, जिसका वे स्वयं एक हिस्सा थे।

  4. इस पाठ में लेखक ने वृंदावन का उल्लेख किस संदर्भ में किया है?

    लेखक ने वृंदावन का उल्लेख कृष्ण की बंसी के जादू के संदर्भ में किया है। वे कहते हैं कि भले ही अब वृंदावन में कृष्ण की बंसी की मधुर धुन न सुनाई देती हो, लेकिन वहाँ की यमुना के साँवले पानी में आज भी कृष्ण का जादू महसूस किया जा सकता है। ठीक इसी प्रकार, सालिम अली की अनुपस्थिति के बावजूद, प्रकृति और पक्षियों में उनकी उपस्थिति को महसूस किया जा सकता है। यह उदाहरण सालिम अली के प्रकृति के साथ अटूट संबंध और उनके चिरस्थायी प्रभाव को दर्शाता है।

  5. सालिम अली के व्यक्तित्व की कोई तीन विशेषताएँ बताइए।

    सालिम अली के व्यक्तित्व की तीन प्रमुख विशेषताएँ:

    • अद्वितीय पक्षी-प्रेमी: वे पक्षियों के प्रति अगाध प्रेम और गहरी समझ रखते थे, जो उन्हें सामान्य पक्षी वैज्ञानिकों से अलग बनाती थी।
    • प्रकृति के संरक्षक: वे पर्यावरण और प्रकृति के प्रति अत्यंत संवेदनशील थे और उसके संरक्षण के लिए हमेशा प्रयासरत रहे।
    • खोजी प्रवृत्ति के व्यक्ति: वे एक घुमक्कड़ स्वभाव के व्यक्ति थे, जो नई-नई जगहों पर जाकर पक्षियों और प्रकृति के रहस्यों को जानने के लिए हमेशा उत्सुक रहते थे।

II. आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. "पता नहीं, इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था।"

    इस पंक्ति का आशय यह है कि कृष्ण की रासलीला और उनकी शरारतों का समय तो इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया है, किसी को ठीक-ठीक पता नहीं कि यह कब हुआ था। लेकिन आज भी वृंदावन में जाने पर, यमुना के साँवले पानी और वहाँ के माहौल में कृष्ण की मौजूदगी को महसूस किया जा सकता है। यह भाव सालिम अली की याद से जुड़ता है कि भले ही वे अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन प्रकृति में उनकी उपस्थिति और उनका योगदान हमेशा महसूस किया जा सकेगा।

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