Chapter 2: ल्हासा की ओर

(राहुल सांकृत्यायन)

पाठ का सार

'ल्हासा की ओर' राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखित एक यात्रा-वृत्तांत है, जो लेखक की पहली तिब्बत यात्रा का वर्णन करता है। यह यात्रा उन्होंने 1929-30 में नेपाल के रास्ते से की थी, क्योंकि उस समय भारतीयों को तिब्बत यात्रा की अनुमति नहीं थी। लेखक ने यह यात्रा एक भिखारी के वेश में की थी। इस यात्रा-वृत्तांत में लेखक ने तिब्बत की सामाजिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक स्थिति का सजीव चित्रण किया है।

लेखक हमें तिब्बत के दुर्गम रास्तों, वहाँ के लोगों के स्वभाव, उनकी मेहमाननवाजी (विशेषकर निचली श्रेणियों के भिखमंगों के प्रति), और डाकुओं के डर के बारे में बताते हैं। वहाँ जाति-पाँति का भेदभाव और छुआछूत नहीं थी, और औरतें पर्दा नहीं करती थीं। यात्रा के दौरान, लेखक को सुमति नामक एक मंगोल भिक्षु मिलता है, जो उनके यात्रा साथी और मार्गदर्शक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सुमति अपने यजमानों के बीच काफी लोकप्रिय था और यात्रा में लेखक की मदद करता है। लेखक ने तिब्बत में बौद्ध धर्म के महत्व, वहाँ के विहारों (मठों) और उनमें रखी अनमोल पांडुलिपियों का भी वर्णन किया है। यह पाठ तिब्बत के उस समय के समाज और जीवनशैली की एक अनूठी झलक प्रस्तुत करता है।

तिब्बत का पर्वतीय दृश्य, बौद्ध मठों और यात्रियों के साथ।

प्रश्न-अभ्यास

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

  1. थ्याङ्ग्ला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला, जबकि दूसरी यात्रा में भद्र वेश में भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका। ऐसा क्यों हुआ?

    इसका मुख्य कारण यह था कि पहली बार लेखक सुमति के साथ थे, जो वहाँ के स्थानीय लोगों और भिक्षुओं में काफी लोकप्रिय थे। सुमति के जान-पहचान वालों ने लेखक को आसानी से ठहरने की जगह दे दी। दूसरी बार, वे भद्र वेश में थे, लेकिन किसी परिचय के बिना यात्रा कर रहे थे, और शाम का समय होने के कारण (जब तिब्बत के लोग छंड़ पीकर मस्त रहते थे), उन्हें ठहरने की उचित जगह नहीं मिल पाई। यह तिब्बत में संबंधों के महत्व को दर्शाता है।

  2. उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था?

    उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को डाकुओं और खूनियों का भय बना रहता था। लोग आसानी से पिस्तौल और बंदूक लिए घूमते थे, और सुनसान जगहों पर डाकू किसी को भी मार डालते थे। डाकुओं को पकड़ने का कोई विशेष प्रबंध नहीं था, जिससे यात्रियों की सुरक्षा हमेशा खतरे में रहती थी।

  3. लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गए?

    लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से दो मुख्य कारणों से पिछड़ गए:

    1. उनका घोड़ा बहुत धीरे चल रहा था, जिसके कारण वे रास्ता भटक गए।
    2. वे रास्ते में दाहिने के बजाय गलत बाईं ओर चले गए और लगभग एक-दो मील गलत रास्ते पर चलने के बाद उन्हें वापस लौटना पड़ा।

  4. लेखक ने शेखर विहार में सुमति को यजमानों के पास जाने से क्यों रोका, लेकिन दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया?

    लेखक ने पहली बार सुमति को यजमानों के पास जाने से इसलिए रोका ताकि उन्हें तिब्बत के बारे में अधिक जानकारी मिल सके और वे मुख्य ल्हासा पहुँचने में देरी न करें। दूसरी बार, लेखक ने उसे रोकने का प्रयास नहीं किया क्योंकि उन्हें लगा कि वहाँ रहकर वे किताबें पढ़ सकते हैं और अपना समय व्यतीत कर सकते हैं। साथ ही, सुमति के जाने से उन्हें अपनी यात्रा जारी रखने में भी मदद मिलनी थी।

  5. अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?

    अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान लेखक को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा:

    • भिखारी के वेश में यात्रा करनी पड़ी।
    • डाकुओं और खूनियों का भय बना रहता था।
    • ऊँचे-नीचे और दुर्गम पहाड़ी रास्ते थे।
    • घोड़ा धीमा चलने के कारण रास्ता भटक गए और अपने साथियों से पिछड़ गए।
    • मौसम की कठिनाइयाँ भी थीं, जैसे धूप में चलना।
    • कुछ स्थानों पर उन्हें ठहरने की उचित जगह नहीं मिली।

II. आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. मैं अब पुस्तकों के भीतर था।

    इस पंक्ति का आशय यह है कि लेखक को शेखर विहार में बहुत सारी बौद्ध धर्म की हस्तलिखित पुस्तकें (पांडुलिपियाँ) मिलीं। वे उन पुस्तकों को पढ़ने में इतने तल्लीन (लीन) हो गए कि उन्हें अपने आस-पास की दुनिया का कोई भान नहीं रहा। यहाँ "पुस्तकों के भीतर" होने का मतलब है कि वे पूरी तरह से पढ़ने में डूब गए, मानो वे उन पुस्तकों के ज्ञान और विचारों में समा गए हों।

III. पाठ के आधार पर तिब्बत की यात्रा में महिलाओं की स्थिति का वर्णन कीजिए।

'ल्हासा की ओर' पाठ के अनुसार, उस समय तिब्बत में महिलाओं की स्थिति भारत से काफी भिन्न और अपेक्षाकृत बेहतर थी। वहाँ महिलाओं में जाति-पाँति या छुआछूत जैसी कुरीतियाँ नहीं थीं। औरतें पर्दा नहीं करती थीं और अजनबियों से भी बिना किसी संकोच के बात करती थीं। वे यात्रियों के लिए चाय बनाने और दूध देने में भी मदद करती थीं, जैसा कि लेखक के अनुभव से पता चलता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि तिब्बत में महिलाओं को समाज में अधिक स्वतंत्रता और सम्मान प्राप्त था, और वे सामाजिक बंधनों से काफी हद तक मुक्त थीं, जो उस समय के भारत की स्थिति से विपरीत थी।

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