Chapter 17: बच्चे काम पर जा रहे हैं
(राजेश जोशी)
पाठ का सार
'बच्चे काम पर जा रहे हैं' कवि राजेश जोशी द्वारा रचित एक मार्मिक और प्रभावशाली कविता है जो बाल श्रम (Child Labor) की गंभीर सामाजिक समस्या पर प्रकाश डालती है। कविता का आरंभ इस हृदयविदारक दृश्य से होता है कि सुबह-सुबह कड़ाके की ठंड में छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं। कवि इस दृश्य को देखकर अत्यधिक आहत और चिंतित होते हैं।
कवि यह सवाल उठाते हैं कि आखिर इन बच्चों के खेलने-कूदने, पढ़ने-लिखने और जीवन का आनंद लेने के दिन कहाँ चले गए? क्या खिलौने, किताबें, खेल के मैदान और घर का आँगन सब खत्म हो गए हैं? क्या दुनिया में कुछ भी बचा नहीं है कि इन मासूमों को सुबह-सुबह काम पर जाना पड़ रहा है? कवि को इस बात पर आश्चर्य होता है कि इतनी बड़ी और भयावह समस्या को दुनिया में कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है। यह बात उनके लिए एक सामान्य खबर की तरह लिखी जा रही है, जबकि इसे एक 'भयंकर प्रश्न' के रूप में देखा जाना चाहिए।
कवि इस बात पर आक्रोश व्यक्त करते हैं कि जब बच्चों को उनका बचपन जीने का अधिकार है, तब उन्हें पेट भरने के लिए काम पर क्यों जाना पड़ रहा है। वे अपनी कविता के माध्यम से समाज, सरकारों और जिम्मेदार लोगों से प्रश्न करते हैं कि इस स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है और इसे बदलने के लिए क्या किया जाना चाहिए। कविता का मूल उद्देश्य बाल श्रम के प्रति समाज की संवेदनहीनता को उजागर करना और लोगों को इस गंभीर समस्या पर विचार करने तथा इसके उन्मूलन के लिए प्रेरित करना है। यह बच्चों के अधिकार और उनके सुरक्षित भविष्य की वकालत करती है।
कविता: बच्चे काम पर जा रहे हैं
कोहरे से ढकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं।
सुबह-सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं।
भावार्थ: कवि कविता की शुरुआत एक मार्मिक दृश्य से करते हैं - सुबह का समय है और चारों ओर घना कोहरा छाया हुआ है। इस कड़ाके की ठंड और धुंधली सड़क पर छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं। यह दृश्य कवि को बहुत व्यथित करता है, क्योंकि बच्चों को इस समय स्कूल जाना चाहिए या खेलना चाहिए, न कि काम पर जाना।
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?
भावार्थ: कवि इस बात पर गहरा दुख और क्रोध व्यक्त करते हैं कि छोटे बच्चों का काम पर जाना उनके समय की सबसे भयानक और पीड़ादायक घटना है। कवि कहते हैं कि यह बात इतनी भयावह है कि इसे केवल एक सामान्य 'विवरण' (खबर) की तरह नहीं लिखा जाना चाहिए, बल्कि इसे एक ज्वलंत 'सवाल' की तरह पूछा जाना चाहिए - "बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं?" कवि समाज और व्यवस्था से इस समस्या पर गंभीरता से विचार करने का आह्वान करते हैं।
क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें?
क्या दीमकों ने खा लिया है सारी रंग-बिरंगी किताबों को?
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने?
क्या किसी भूकंप में ढह गई हैं सारे मदरसों की इमारतें?
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक?
भावार्थ: कवि अपनी पीड़ा और आक्रोश को प्रश्नों के माध्यम से व्यक्त करते हैं। वे पूछते हैं कि क्या बच्चों के खेलने के लिए सारी गेंदें अंतरिक्ष में चली गई हैं? क्या उनकी रंग-बिरंगी किताबें दीमकों ने चाट ली हैं? क्या उनके सारे खिलौने किसी काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं? क्या सारे स्कूल (मदरसे) भूकंप में ढह गए हैं? और क्या बच्चों के खेलने के सारे मैदान, बगीचे और घरों के आँगन अचानक खत्म हो गए हैं? इन प्रश्नों के माध्यम से कवि समाज से जवाब मांगते हैं कि बच्चों के बचपन और उनके खेलने-पढ़ने के साधनों का क्या हुआ, जो वे काम पर जाने को मजबूर हैं।
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज़्यादा
कि सारी चीज़ें हस्बमामूल हैं
पर दुनिया की हजारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं।
भावार्थ: कवि कहते हैं कि अगर वास्तव में ऐसा कुछ (खिलौनों, किताबों, मैदानों का खत्म होना) हो जाता, तो यह कितना भयानक होता। लेकिन इससे भी ज़्यादा भयानक यह है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है; 'सारी चीज़ें हस्बमामूल हैं' (सब कुछ यथावत है)। यानी, खिलौने, किताबें, मैदान सब कुछ मौजूद हैं, फिर भी दुनिया की हजारों सड़कों से छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं। कवि इस बात पर गहरा दुख व्यक्त करते हैं कि इतनी बड़ी समस्या होने के बावजूद दुनिया में सब कुछ सामान्य है और किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।
प्रश्न-अभ्यास
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
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कवि को बच्चों का काम पर जाना क्यों भयानक लगता है?
कवि को बच्चों का काम पर जाना भयानक इसलिए लगता है क्योंकि बच्चों की उम्र खेलने-कूदने, पढ़ने-लिखने और जीवन का आनंद लेने की होती है। उन्हें सुबह-सुबह, कड़ाके की ठंड में काम पर जाते देखना कवि को मानवीयता और बचपन के अधिकारों का हनन लगता है। कवि मानते हैं कि यह एक सामान्य घटना नहीं, बल्कि एक गंभीर सामाजिक त्रासदी है, जिसे समाज को गंभीरता से लेना चाहिए।
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'भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना' - इस पंक्ति का क्या आशय है?
इस पंक्ति का आशय यह है कि बच्चों के काम पर जाने की घटना इतनी बड़ी समस्या है कि इसे केवल एक सामान्य समाचार या घटना के रूप में वर्णित करना (विवरण की तरह लिखना) अत्यंत निंदनीय और भयानक है। कवि का मानना है कि इसे केवल एक तथ्य के रूप में नहीं स्वीकार करना चाहिए, बल्कि इसे एक ज्वलंत प्रश्न के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए, जिस पर समाज और व्यवस्था को विचार करना पड़े और जिसके कारणों को खोजा जाए।
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कवि ने बच्चों के काम पर जाने के संबंध में कौन-कौन से प्रश्न उठाए हैं?
कवि ने बच्चों के काम पर जाने के संबंध में निम्नलिखित प्रश्न उठाए हैं:
- क्या सारी गेंदें (खिलौने) अंतरिक्ष में खो गई हैं?
- क्या सारी रंग-बिरंगी किताबों को दीमकों ने खा लिया है?
- क्या सारे खिलौने किसी काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं?
- क्या सारे स्कूलों (मदरसों) की इमारतें भूकंप में ढह गई हैं?
- क्या सारे खेल के मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन अचानक खत्म हो गए हैं?
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'हस्बमामूल' शब्द का क्या अर्थ है और कवि इसका प्रयोग क्यों करते हैं?
'हस्बमामूल' एक उर्दू शब्द है जिसका अर्थ है 'यथावत', 'सामान्य के अनुसार' या 'जैसा हमेशा होता है'। कवि इस शब्द का प्रयोग इसलिए करते हैं ताकि वे इस बात पर अपना गहरा दुख और आक्रोश व्यक्त कर सकें कि इतनी गंभीर समस्या (बच्चों का काम पर जाना) होने के बावजूद भी दुनिया में सब कुछ सामान्य और बिना किसी बदलाव के चल रहा है। समाज इस भयावह स्थिति पर कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है, जिससे कवि को यह स्थिति और भी ज़्यादा भयानक लगती है।
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यह कविता समाज में किस समस्या के प्रति हमारी संवेदनशीलता जगाती है?
यह कविता समाज में बाल श्रम (Child Labor) की गंभीर समस्या के प्रति हमारी संवेदनशीलता जगाती है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे बचपन को काम की बेड़ियों में जकड़कर बच्चों से उनके खेलने, पढ़ने और सामान्य जीवन जीने का अधिकार छीना जा रहा है। कविता समाज को इस अन्याय के प्रति जागरूक करती है और प्रश्न करती है कि इस स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है और हम इसे रोकने के लिए क्या कर सकते हैं।
II. आशय स्पष्ट कीजिए:
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"सुबह-सुबह, बच्चे काम पर जा रहे हैं।"
इस पंक्ति का आशय यह है कि ठंड भरी सुबह में, जब बच्चों को घर में आराम करना चाहिए, स्कूल जाना चाहिए या खेलना चाहिए, तब वे अपनी जीविका कमाने के लिए काम पर जा रहे हैं। यह पंक्ति बाल श्रम की उस कड़वी सच्चाई को प्रस्तुत करती है जो हमारे समाज में बड़े पैमाने पर व्याप्त है। 'सुबह-सुबह' शब्द बच्चों की मासूमियत और उनके साथ हो रहे अन्याय को और भी मार्मिक बना देता है।
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"कितना भयानक होता अगर ऐसा होता, भयानक है लेकिन इससे भी ज़्यादा, कि सारी चीज़ें हस्बमामूल हैं।"
इस पंक्ति का आशय यह है कि कवि कल्पना करता है कि यदि सचमुच बच्चों के खेलने-पढ़ने की सारी चीज़ें (गेंदें, किताबें, खिलौने, मैदान) नष्ट हो गई होतीं, तो यह बहुत भयानक होता। लेकिन कवि को इससे भी ज़्यादा भयानक यह लगता है कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। यानी, दुनिया में बच्चों के लिए खेलने-पढ़ने की सारी वस्तुएँ और स्थान 'हस्बमामूल' (यथावत) मौजूद हैं, फिर भी छोटे-छोटे बच्चे काम पर जाने के लिए मजबूर हैं। यह समाज की उस संवेदनहीनता को दर्शाता है जहाँ सब कुछ होते हुए भी बच्चे अपने बचपन से वंचित हैं और कोई इस पर ध्यान नहीं दे रहा है।
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