Chapter 16: यमराज की दिशा
(चंद्रकांत देवताले)
पाठ का सार
'यमराज की दिशा' चंद्रकांत देवताले द्वारा रचित एक विचारोत्तेजक कविता है, जो मृत्यु, भय और आधुनिक समाज में व्याप्त क्रूरता व शोषण की सर्वव्यापकता को दर्शाती है। कविता का आरंभ कवि की माँ द्वारा बचपन में दी गई एक सीख से होता है, जिसमें वे दक्षिण दिशा को यमराज (मृत्यु के देवता) की दिशा मानकर वहाँ पैर करके सोने से मना करती हैं। कवि माँ की इस सीख को स्वीकार कर लेता है और जीवन भर दक्षिण दिशा में पैर करके नहीं सोता।
हालांकि, बड़े होने पर कवि को यह एहसास होता है कि 'यमराज की दिशा' केवल दक्षिण तक सीमित नहीं है। अब वह किसी एक भौगोलिक दिशा में नहीं है, बल्कि हर दिशा में व्याप्त हो गई है। कवि को अब हर दिशा में मृत्यु और विनाश की ही झलक मिलती है। यह आधुनिक समाज में फैलती हिंसा, शोषण, स्वार्थ, और विनाशकारी प्रवृत्तियों की ओर इशारा करता है। कवि कहता है कि जब वह दक्षिण में जाता है, तब भी उसे माँ की सीख याद आती है, लेकिन अब उसे लगता है कि मृत्यु की दिशा और उसके कारण (शोषण, अन्याय, हिंसा) कहीं भी, किसी भी रूप में हो सकते हैं। बड़े-बड़े भवन, उद्योगों की चिमनियाँ, युद्ध, और पर्यावरणीय विनाश, ये सभी कवि को 'यमराज की दिशा' ही प्रतीत होते हैं। यह कविता इस बात पर बल देती है कि आज के दौर में मौत का भय और शोषण का जाल किसी एक निश्चित दिशा या स्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि वह चारों ओर फैला हुआ है। यह कविता मानवीय मूल्यों के ह्रास और एक संवेदनशील व्यक्ति की चिंता को अभिव्यक्त करती है।
कविता: यमराज की दिशा
माँ ने कहा था
दक्षिण दिशा की ओर पैर करके मत सोना
वह मृत्यु की दिशा है।
और यमराज को क्रुद्ध करना
बुद्धिमानी की बात नहीं है।
भावार्थ: कवि अपनी बचपन की एक घटना याद करते हैं। उनकी माँ ने उनसे कहा था कि कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके मत सोना, क्योंकि वह मृत्यु के देवता यमराज की दिशा होती है। माँ ने यह भी समझाया था कि यमराज को गुस्सा दिलाना (नाराज़ करना) समझदारी की बात नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से अहित हो सकता है। यह भारतीय परंपरा में दक्षिण दिशा को अशुभ मानने की लोकमान्यता को दर्शाता है।
तब मैं छोटा था
और मैंने यमराज के घर का पता पूछा था
माँ ने बताया था
तुम जहाँ भी हो वहाँ से हमेशा
दक्षिण में।
भावार्थ: जब कवि छोटे थे, तो उन्होंने अपनी माँ से यमराज के घर का पता पूछा था। माँ ने उन्हें बताया था कि तुम जहाँ कहीं भी हो, वहाँ से हमेशा दक्षिण दिशा में ही यमराज का घर होता है। इस बात को सुनकर कवि ने अपनी माँ की बात मान ली थी और यमराज के प्रकोप से बचने के लिए दक्षिण दिशा में पैर करके नहीं सोया।
माँ की समझाइश के बाद
दक्षिण दिशा में पैर करके मैं कभी नहीं सोया
और इससे इतना फ़ायदा ज़रूर हुआ कि
दक्षिण दिशा पहचानने में
मुझे कभी मुश्किल नहीं हुई।
भावार्थ: माँ की इस सीख के बाद कवि ने कभी भी दक्षिण दिशा में पैर करके नहीं सोया। इसका एक लाभ कवि को यह हुआ कि वे दक्षिण दिशा को आसानी से पहचानने लगे। यह एक सरल-सा अनुभव था, जिसने उन्हें एक दिशा की पहचान करा दी थी।
मैं दक्षिण में दूर-दूर तक गया
और मुझे हमेशा माँ याद आई
दक्षिण को लाँघ लेना संभव नहीं था।
छोर तक पहुँच पाना
कभी संभव नहीं था।
भावार्थ: कवि बड़े होने पर दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक यात्रा करते हैं। इस दौरान उन्हें हमेशा अपनी माँ की वह सीख याद आती थी। उन्हें लगा कि दक्षिण दिशा को पार कर पाना या उसके अंतिम छोर तक पहुँच पाना संभव नहीं था। यहाँ 'दक्षिण' केवल एक भौगोलिक दिशा नहीं, बल्कि मृत्यु, खतरा, या जीवन की चुनौतियों का प्रतीक बन जाती है, जिनका कोई अंत नहीं है।
अब जब मैं दक्षिण में होता हूँ
तो मेरी नजर उठ जाती है
और मुझे याद आ जाती है माँ
और मुझे पता चल जाता है कि
यमराज की दिशा अब हर जगह है।
भावार्थ: अब जब कवि दक्षिण दिशा में होते हैं, तो उनकी आँखें अनायास ही ऊपर उठ जाती हैं और उन्हें अपनी माँ की सीख याद आ जाती है। लेकिन अब उन्हें यह समझ आता है कि यमराज की दिशा (अर्थात् मृत्यु या विनाश का खतरा) अब केवल दक्षिण तक सीमित नहीं है, बल्कि वह हर दिशा में व्याप्त हो गई है। यह आधुनिक समाज में फैलती हिंसा, शोषण और विनाशकारी प्रवृत्तियों की सर्वव्यापकता को दर्शाता है।
आजकल सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं
और वे सभी दिशाओं में एक साथ
अपनी दहकती आँखों सहित विराजते हैं।
और माँ अब नहीं है
और यमराज की दिशा अब हर जगह है।
भावार्थ: कवि कहते हैं कि आज के समय में हर दिशा में यमराज के भव्य महल बने हुए हैं। अर्थात्, मृत्यु और विनाश के कारण (शोषण, अन्याय, हिंसा) अब किसी एक दिशा में नहीं, बल्कि हर तरफ फैले हुए हैं। यमराज अपनी दहकती (क्रोधित) आँखों के साथ हर दिशा में एक साथ विराजमान हैं। कवि दुख के साथ स्वीकार करते हैं कि अब उनकी माँ भी नहीं हैं, जो उन्हें सही दिशा दिखा सकें, और इसलिए यमराज की दिशा (खतरा और विनाश) अब वास्तव में हर जगह है।
प्रश्न-अभ्यास
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
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कवि की माँ ने दक्षिण दिशा के संबंध में कवि को क्या सीख दी थी?
कवि की माँ ने कवि को सीख दी थी कि कभी भी दक्षिण दिशा की ओर पैर करके मत सोना। उन्होंने बताया था कि दक्षिण दिशा मृत्यु के देवता यमराज की दिशा है, और यमराज को क्रोधित करना बुद्धिमानी नहीं है। इस प्रकार, माँ ने कवि को अनिष्ट से बचने का उपाय बताया था।
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कवि के लिए दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल क्यों नहीं हुई?
कवि के लिए दक्षिण दिशा पहचानने में कभी मुश्किल नहीं हुई क्योंकि उनकी माँ ने उन्हें बचपन में ही यह सीख दी थी कि दक्षिण दिशा यमराज की दिशा है। इस सीख के कारण कवि हमेशा सतर्क रहते थे और दक्षिण दिशा में पैर करके नहीं सोते थे, जिससे उन्हें हमेशा उस दिशा का स्मरण रहता था और वे उसे आसानी से पहचान लेते थे।
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कवि को दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक जाने पर माँ की याद क्यों आती थी?
कवि को दक्षिण दिशा में दूर-दूर तक जाने पर माँ की याद इसलिए आती थी क्योंकि माँ ने उन्हें दक्षिण दिशा को यमराज की दिशा बताकर वहाँ पैर करके सोने से मना किया था। बड़े होने पर जब कवि ने जीवन के कटु अनुभवों का सामना किया, तो उन्हें महसूस हुआ कि मृत्यु या विनाश का खतरा केवल एक दिशा तक सीमित नहीं है, बल्कि वह हर जगह मौजूद है। माँ की सीख उन्हें जीवन के व्यापक खतरों के प्रति सचेत करती थी, इसलिए उन्हें माँ की याद आती थी।
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'यमराज की दिशा अब हर जगह है' - इस पंक्ति का क्या आशय है?
'यमराज की दिशा अब हर जगह है' पंक्ति का आशय यह है कि आधुनिक युग में मृत्यु, विनाश, शोषण और अन्याय का खतरा किसी एक निश्चित दिशा या स्थान तक सीमित नहीं है। स्वार्थ, हिंसा, भ्रष्टाचार और प्रकृति के विनाश जैसी प्रवृत्तियाँ हर ओर व्याप्त हो गई हैं। कवि यह कहना चाहते हैं कि अब हर जगह खतरा है, और मनुष्य अपने ही बनाए गए विनाश के साधनों से घिर गया है। यह पंक्ति आधुनिक समाज की क्रूरता और मानवीय मूल्यों के पतन की ओर इशारा करती है।
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कविता में कवि ने आधुनिक समाज की किस समस्या की ओर संकेत किया है?
कविता में कवि ने आधुनिक समाज में व्याप्त हिंसा, शोषण, स्वार्थ, अन्याय, और प्रकृति के विनाश जैसी समस्याओं की ओर संकेत किया है। कवि मानते हैं कि औद्योगिक विकास, युद्ध और मानवीय लालच ने यमराज की दिशा को हर जगह फैला दिया है, जिससे हर दिशा में खतरा और मृत्यु का भय मंडरा रहा है। यह कविता मानवीय संवेदनशीलता के ह्रास और विनाशकारी शक्तियों की सर्वव्यापकता को दर्शाती है।
II. आशय स्पष्ट कीजिए:
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"और यमराज को क्रुद्ध करना बुद्धिमानी की बात नहीं है।"
इस पंक्ति का आशय यह है कि यमराज मृत्यु के देवता हैं, और उन्हें नाराज़ करना या उनकी अवहेलना करना मूर्खतापूर्ण होगा, क्योंकि ऐसा करने से व्यक्ति को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं, जैसे मृत्यु या कोई बड़ा अनिष्ट। यह पंक्ति भारतीय लोकमान्यता में मृत्यु के प्रति भय और सम्मान की भावना को दर्शाती है, जहाँ लोग मृत्यु के देवता को अप्रसन्न करने से बचते हैं। कवि की माँ इसी मान्यता के आधार पर उन्हें सावधान करती हैं।
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"आजकल सभी दिशाओं में यमराज के आलीशान महल हैं।"
इस पंक्ति का आशय यह है कि आधुनिक युग में मृत्यु और विनाश का खतरा किसी एक निश्चित दिशा (जैसे दक्षिण) तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह हर जगह फैल गया है। यहाँ 'आलीशान महल' उन भव्य इमारतों, औद्योगिक चिमनियों, हथियारों के जखीरों या शोषणकारी व्यवस्थाओं का प्रतीक हैं, जो देखने में तो बड़ी और शक्तिशाली लगती हैं, लेकिन वास्तव में वे मृत्यु और विनाश का कारण बन रही हैं। यह पंक्ति आधुनिक सभ्यता के उन पहलुओं पर व्यंग्य करती है जो मनुष्य के लिए स्वयं खतरा पैदा कर रहे हैं, जैसे प्रदूषण, युद्ध, पूंजीवाद का शोषणकारी रूप, आदि।
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