Chapter 15: मेघ आए
(सर्वेश्वर दयाल सक्सेना)
पाठ का सार
'मेघ आए' सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा रचित एक सुंदर मानवीकृत कविता है। इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु में आने वाले बादलों का बहुत ही मनोहारी और सजीव चित्रण किया है। कवि बादलों को शहर से आने वाले मेहमान (दामाद या पाहुन) के रूप में चित्रित करते हैं। जिस तरह गाँव में दामाद के आने पर पूरे गाँव में उत्साह और हलचल मच जाती है, उसी तरह बादलों के आने पर प्रकृति के विभिन्न तत्व - हवा, धूल, पेड़, नदी, ताल, लता और बूढ़ा पीपल - भी हर्षित और उत्सुक हो उठते हैं।
कविता में बादलों के आने की सूचना सबसे पहले हवा देती है, जिससे धूल उड़ने लगती है और पेड़ अपनी गर्दनें ऊँची कर उन्हें देखने लगते हैं। नदी, जिसे 'ठिठकी' हुई नायिका के रूप में चित्रित किया गया है, घूँघट सरकाकर बादलों को देखने लगती है। पुराने पीपल का पेड़, गाँव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति की तरह, झुककर बादलों का स्वागत करता है। लता, जो नायिका की बहन के रूप में चित्रित है, दरवाजे की ओट में खड़ी, मेहमान से उलाहना देती है कि वह इतने दिनों बाद क्यों आए हैं। तालाब (ताल), जो घर के बर्तन के रूप में है, पानी से भरकर मेहमान के पैर धोने के लिए तैयार हो जाता है। अंत में, बिजली चमकती है और वर्षा होती है, जिसे कवि ने मेहमान के आगमन पर अश्रु बहाने और क्षमा याचना के रूप रूप में दर्शाया है, जिससे सभी भ्रम और शिकायतें दूर हो जाती हैं। यह कविता प्रकृति के सूक्ष्म दृश्यों को मानवीय भावनाओं, रिश्तों और ग्रामीण सामाजिक परंपराओं के साथ अद्भुत रूप से जोड़ती है।
कविता: मेघ आए
मेघ आए बड़े बन-ठन के, सँवर के।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाजे खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के, सँवर के।
भावार्थ: कवि कहते हैं कि बादल (मेघ) बहुत सज-धज कर, सँवर कर आए हैं। उनके आगे-आगे हवा नाचती-गाती हुई चल रही है। उनके आने की खबर से गाँव की गलियों में सभी घरों के दरवाज़े-खिड़कियाँ खुलने लगी हैं, जैसे शहर से कोई मेहमान (पाहुन/दामाद) गाँव में आया हो और सब उसे देखने के लिए उत्सुक हों। बादल उसी मेहमान की तरह बहुत सज-धज कर आए हैं।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के, सँवर के।
भावार्थ: बादलों के आने पर पेड़ अपनी गर्दनें ऊँची करके झुक-झुक कर उन्हें झाँकने लगे हैं (जैसे गाँव के लोग मेहमान को देखने के लिए उत्सुक हों)। हवा के तेज़ी से चलने पर धूल ऐसे भागी, जैसे कोई ग्रामीण स्त्री अपना घाघरा उठाए हुए भाग रही हो। नदी, जिसे एक नायिका के रूप में चित्रित किया गया है, अपनी तिरछी नज़र (बाँकी चितवन) उठाकर ठिठक गई है और उसका घूँघट सरक गया है, जिससे वह बादलों को देख सके। बादल उसी मेहमान की तरह बहुत सज-धज कर आए हैं।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
बरस बाद सुधि लीन्हीं - बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के, सँवर के।
भावार्थ: बादलों के आने पर गाँव के सबसे पुराने और बूढ़े पीपल के पेड़ ने आगे बढ़कर उनका अभिवादन किया (जैसे कोई बुजुर्ग व्यक्ति मेहमान का स्वागत करे)। दरवाज़े की ओट में खड़ी एक बेताब लता (नायिका की बहन या स्वयं नायिका), उलाहना देते हुए बोली कि मेहमान ने एक साल बाद उनकी सुध ली है (इतने समय बाद आए हैं)। उधर तालाब (ताल) भी प्रसन्न होकर एक परात भरकर पानी ले आया है, जैसे मेहमान के पैर धोने के लिए पानी लाया गया हो। बादल उसी मेहमान की तरह बहुत सज-धज कर आए हैं।
क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,
क्षमा करो अब टूट गई गाँठ संदेह की।
मेघ क्षमा करो अब बरसने लगे, जल भरे।
मेघ आए बड़े बन-ठन के, सँवर के।
भावार्थ: आकाश में क्षितिज रूपी अटारी (छत) पर बादल घने हो गए हैं और बिजली चमकने लगी है (जैसे मेहमान के आने पर नायिका का चेहरा चमक उठा हो)। बिजली चमकने के साथ ही नायिका (प्रतीकात्मक रूप से प्रकृति या लता) कहती है कि 'क्षमा करो, अब सारे संदेह की गाँठ टूट गई है' (क्योंकि मेहमान अब सामने आ गए हैं और बरसने वाले हैं)। बादल अब क्षमा माँगते हुए, जल से भरे हुए बरसने लगे हैं। बादल उसी मेहमान की तरह बहुत सज-धज कर आए हैं।
प्रश्न-अभ्यास
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
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कवि ने गाँव में 'शहर के पाहुन' किसे कहा है और क्यों?
कवि ने गाँव में 'शहर के पाहुन' (मेहमान या दामाद) बादलों को कहा है। उन्होंने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि जिस प्रकार शहर से आने वाले मेहमान या दामाद के आगमन पर गाँव में विशेष उत्साह, हलचल और प्रतीक्षा का माहौल बन जाता है, उसी प्रकार वर्षा ऋतु में बादलों के आने पर प्रकृति में भी हलचल, उत्साह और खुशी का माहौल बन जाता है। बादलों का सज-धज कर आना, उनके आगे हवा का चलना, धूल का उड़ना, पेड़ों का झुकना आदि क्रियाएँ मेहमान के आगमन जैसी ही लगती हैं।
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कविता में बादलों के आगमन पर प्रकृति के विभिन्न तत्व किस प्रकार प्रतिक्रिया करते हैं?
बादलों के आगमन पर प्रकृति के विभिन्न तत्व मानवीकृत रूप में इस प्रकार प्रतिक्रिया करते हैं:
- हवा (बयार): बादलों के आगे-आगे नाचती-गाती हुई चलती है, जैसे मेहमान के आगे खुशी से कोई चल रहा हो।
- धूल: आँधी के साथ धूल ऐसे भागती है जैसे कोई स्त्री घाघरा उठाए भाग रही हो।
- पेड़: अपनी गर्दनें उचकाकर झुक-झुक कर बादलों को झाँकने लगते हैं, जैसे उत्सुक लोग मेहमान को देख रहे हों।
- नदी: ठिठक जाती है और अपना घूँघट सरकाकर तिरछी नज़र से बादलों को देखती है, जैसे कोई नायिका संकोचवश मेहमान को देख रही हो।
- बूढ़ा पीपल: आगे बढ़कर झुककर बादलों का स्वागत करता है, जैसे गाँव का बुजुर्ग मेहमान का सम्मान करता है।
- लता: दरवाज़े की ओट में खड़ी होकर उलाहना देती है कि मेहमान इतने दिनों बाद क्यों आए हैं।
- ताल (तालाब): प्रसन्न होकर पानी से भरकर आता है, जैसे मेहमान के पैर धोने के लिए परात में पानी लाया गया हो।
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'गाँठ संदेह की टूट गई' पंक्ति का क्या अर्थ है?
इस पंक्ति का अर्थ है कि जो प्रतीक्षा और संदेह था कि बादल आएँगे या नहीं, या मेहमान (दामाद) आएँगे या नहीं, वह अब खत्म हो गया है। जैसे दामाद के देर से आने पर पत्नी या परिवार को संदेह होता है, वैसे ही बादलों के देर से आने पर वर्षा की उम्मीद कम हो जाती है। बिजली का चमकना (दामिनी दमकी) और बादलों का बरसना इस बात की पुष्टि करता है कि अब सारी प्रतीक्षा समाप्त हो गई है और वर्षा निश्चित रूप से होगी, जिससे सभी भ्रम और शिकायतें दूर हो गई हैं।
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कविता में कौन-कौन से मानवीकरण के उदाहरण हैं? स्पष्ट कीजिए।
कविता में कई मानवीकरण के उदाहरण हैं:
- मेघ (बादल): उन्हें 'पाहुन' (दामाद) के रूप में 'बन-ठन के, सँवर के' आते हुए दिखाया गया है।
- बयार (हवा): 'नाचती-गाती' हुई बादलों के आगे चलती है।
- धूल: 'घाघरा उठाए' भागती हुई चित्रित की गई है।
- पेड़: 'गरदन उचकाए' बादलों को झाँकते हैं।
- नदी: 'बाँकी चितवन उठा' और 'घूँघट सरकाए' 'ठिठकी' हुई दिखाई गई है।
- बूढ़ा पीपल: 'आगे बढ़कर जुहार की' (अभिवादन किया) करते हुए दिखाया गया है।
- लता: 'अकुलाई' हुई 'ओट हो किवार की' (दरवाज़े की ओट में) खड़ी होकर उलाहना देती है।
- ताल (तालाब): 'हरसाया' हुआ 'पानी परात भर के' लाया है।
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'क्षमा करो अब टूट गई गाँठ संदेह की' - यह पंक्ति बिजली के चमकने के संदर्भ में क्या बताती है?
यह पंक्ति बिजली के चमकने के संदर्भ में बताती है कि बिजली का चमकना (जो दामाद के आने पर पत्नी के चेहरे की खुशी या आँखों में चमक जैसा है) इस बात का अंतिम प्रमाण है कि अब बादल सचमुच आ गए हैं और बरसने वाले हैं। जो लंबे समय से चली आ रही प्रतीक्षा और वर्षा न होने के संदेह की 'गाँठ' थी, वह अब पूरी तरह से खुल गई है। बिजली की चमक इस बात का आश्वासन है कि अब वर्षा होकर ही रहेगी, और इसके साथ ही सारी शिकवा-शिकायतें खत्म हो जाती हैं।
II. आशय स्पष्ट कीजिए:
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"बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की, बरस बाद सुधि लीन्हीं - बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की।"
इस पंक्ति का आशय यह है कि बादलों के आगमन पर प्रकृति के विभिन्न तत्वों में मानवीय व्यवहार की झलक दिखती है। 'बूढ़ा पीपल' गाँव के सबसे वृद्ध व्यक्ति के समान बादलों (मेहमान) का आदरपूर्वक आगे बढ़कर अभिवादन करता है। वहीं, 'लता' (जो नायिका या उसकी बहन जैसी है), दरवाज़े की ओट में खड़ी होकर थोड़ी शिकायत भरे लहजे में कहती है कि मेहमान ने इतने लंबे समय (बरस बाद) के बाद उनकी याद की है या खबर ली है। यह ग्रामीण परंपरा में मेहमान के देर से आने पर परिवारजनों द्वारा किया जाने वाला सहज प्रेमपूर्ण उलाहना है, जो उनके बीच के गहरे संबंध को दर्शाता है।
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"हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।"
इस पंक्ति का आशय यह है कि बादलों (मेहमान) के आगमन से तालाब (ताल) भी अत्यंत प्रसन्न हो उठा है। तालाब को मानवीकृत करते हुए दिखाया गया है कि वह खुशी-खुशी अपने भीतर पानी भरकर ले आया है, जैसे मेहमान के आने पर घर का कोई सदस्य उनके पैर धोने के लिए परात में पानी लाता है। यह दृश्य बादलों के आने पर प्रकृति में छाई खुशी और उत्साह को दर्शाता है, जहाँ निर्जीव तालाब भी मेहमानवाजी के लिए तैयार है। यह एक सुंदर बिंब है जो ग्रामीण आतिथ्य और प्रकृति के उल्लास को जोड़ता है।
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