Chapter 14: चंद्र गहना से लौटती बेर

(केदारनाथ अग्रवाल)

पाठ का सार

'चंद्र गहना से लौटती बेर' प्रगतिशील कवि केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित एक प्रकृति प्रधान कविता है। यह कविता कवि के व्यक्तिगत अनुभव और प्रकृति के प्रति उनके गहरे लगाव को दर्शाती है। कवि 'चंद्र गहना' नामक स्थान से लौटते समय खेत-खलिहानों, ताल-तलैयों और ग्रामीण जीवन की सादगी एवं सुंदरता का अवलोकन करते हैं। वे प्रकृति के विभिन्न तत्वों को मानवीकरण के माध्यम से सजीव और आकर्षक रूप में प्रस्तुत करते हैं।

कविता में कवि ने खेत में उगे चने, अरहर और सरसों के पौधों का बहुत ही सजीव चित्रण किया है। चने के पौधे को एक छोटे, सज-धज कर खड़े दूल्हे के रूप में, और सरसों को अपनी हाथ पीले किए हुए नवयौवना के रूप में चित्रित किया गया है, जो विवाह के लिए तैयार है। यह मानवीकरण प्रकृति को मानवीय भावनाओं से जोड़ता है। कवि एक छोटे तालाब में सारस और बगुले को ध्यानमग्न बैठे हुए देखते हैं, जो अपनी शिकार की तलाश में हैं। वे तालाब के शांत पानी में अपनी परछाईं देखते हैं और काले माथे वाली चिड़िया को सफेद पंखों के साथ पानी में डुबकी लगाते हुए मछली पकड़ते हुए देखते हैं। कवि को गाँव की प्राकृतिक सुंदरता में एक अद्वितीय शांति और अपनापन महसूस होता है। उन्हें यह शहरी चकाचौंध से अधिक प्रिय लगता है। वे ग्रामीण जीवन की सादगी और प्रकृति के सौहार्दपूर्ण वातावरण में ही सच्ची खुशियों की कल्पना करते हैं। कविता ग्रामीण परिवेश के सौंदर्य, विभिन्न ऋतुओं में फसलों के बदलते रूप, और पशु-पक्षियों के क्रियाकलापों का एक रमणीय चित्र प्रस्तुत करती है।

एक ग्रामीण भारतीय परिदृश्य जिसमें हरे खेत, एक शांत तालाब, और दूर एक पेड़ के पास एक आदमी। पृष्ठभूमि में सूर्योदय या सूर्यास्त।

कविता: चंद्र गहना से लौटती बेर

देखा आया चंद्र गहना।

देखता हूँ दृश्य अब मैं,

मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला।

एक बीते के बराबर यह हरा ठिगना चना,

बांधे मुरैठा शीश पर, छोटे गुलाबी फूल का,

सजकर खड़ा है।

भावार्थ: कवि कहते हैं कि वे चंद्र गहना से लौटकर आए हैं। अब वे खेत की मेड़ पर अकेले बैठकर प्रकृति का दृश्य देख रहे हैं। उन्हें एक 'बीते' (एक बित्ता, लगभग 9 इंच) के बराबर का हरा और छोटा चना का पौधा दिखाई देता है। कवि कल्पना करते हैं कि चने का यह पौधा अपने सिर पर गुलाबी फूलों का मुरैठा (पगड़ी) बांधकर एक दूल्हे की तरह सजकर खड़ा है।

पास ही मिलकर उगी है सरसों,

सयानी होकर, हाथ पीले कर लिए हैं।

ब्याह मंडप में पधारीं।

फाग गाता मास फागुन,

आ गया है आज।

भावार्थ: कवि देखते हैं कि चने के पौधे के पास ही सरसों के पौधे उगे हुए हैं। कवि कल्पना करते हैं कि सरसों सयानी (बड़ी) हो गई है और अपने पीले-पीले फूलों से उसने मानो अपने हाथ पीले कर लिए हैं (विवाह का संकेत)। वह ब्याह मंडप में (खेत रूपी मंडप में) पधारी हुई है। फागुन का महीना आ गया है, जो फाग (होली के गीत) गाता हुआ प्रतीत होता है। यह दृश्य प्रकृति में विवाह के उत्सव का चित्रण करता है।

देखता हूँ मैं,

कोई न सुनता।

दूर व्यापारिक नगर से प्रेम की प्रिय भूमि,

उपजाऊ अधिक है।

भावार्थ: कवि कहता है कि वह यह सब देख रहा है, लेकिन उसकी बातों को कोई नहीं सुन रहा (अर्थात् शहरी लोग प्रकृति के इस सौंदर्य को नहीं समझते)। कवि को लगता है कि दूर स्थित व्यापारिक नगरों की तुलना में यह प्रेम की भूमि (गाँव की धरती) कहीं अधिक उपजाऊ है। यहाँ उपजाऊ होने का अर्थ केवल फसलों से नहीं, बल्कि प्रेम, शांति और मानवीय मूल्यों से भी है।

और पैरों के तले है एक पोखर,

उठ रहीं उसमें लहरियाँ।

नील-तले पानी पर,

चुपचाप खड़ा बगुला,

टाँगें डुबोए।

डुबोकर मछलियाँ निगलते।

भावार्थ: कवि देखते हैं कि उनके पैरों के नीचे (पास में) एक छोटा तालाब (पोखर) है, जिसमें हल्की लहरें उठ रही हैं। नीले पानी के तले (ऊपरी सतह पर) एक बगुला चुपचाप अपनी टाँगें डुबोए खड़ा है। वह जैसे ही कोई मछली पकड़ता है, उसे तुरंत निगल जाता है। यह बगुले की एकाग्रता और शिकार करने की प्रवृत्ति को दर्शाता है।

एक काले माथे वाली चतुर चिड़िया,

श्वेत पंखों के झपट्टे मार,

फौरन टूट पड़ती है।

भरी मुँह चोंच में दबाकर,

दूर उड़ जाती है।

भावार्थ: कवि देखते हैं कि एक काले माथे वाली चालाक चिड़िया (जल-पक्षी) अपने सफेद पंखों को झपटती हुई तुरंत पानी में कूद पड़ती है। वह अपनी चोंच में मछली भरकर, तुरंत दूर उड़ जाती है। यह चिड़िया के शिकार करने की फुर्ती और चालाकी को दर्शाता है।

और यहीं से भूमि उँची है,

जहाँ से रेल की पटरी गयी है।

ट्रेन का सीटी बजना दूर से।

पेड़ों के झुंड से निकलकर,

उड़ जाती है कोई चिड़िया।

भावार्थ: कवि बताते हैं कि यहीं से थोड़ी ऊँची भूमि है, जहाँ से रेल की पटरी गुज़रती है। उन्हें दूर से ट्रेन की सीटी की आवाज़ सुनाई देती है। जब ट्रेन आती है, तो पेड़ों के झुंड से निकलकर कोई चिड़िया उड़ जाती है। यह दृश्य प्रकृति और आधुनिकता के थोड़े से मेल को दर्शाता है, जहाँ आधुनिकता प्रकृति की शांति को भंग करती है।

सोनहले हरे खेत,

गाँव का दृश्य,

आँखों को भाता है।

खुशबू उड़ती।

देखता हूँ मैं,

मन को लुभाता है।

भावार्थ: कवि कहते हैं कि सुनहरे हरे खेत और गाँव का यह पूरा दृश्य उनकी आँखों को बहुत अच्छा लगता है। खेतों और प्रकृति से उठने वाली ताज़ी खुशबू हवा में उड़ती है। कवि यह सब देख रहे हैं और यह दृश्य उनके मन को बहुत लुभाता है। यह ग्रामीण सौंदर्य के प्रति कवि के गहरे लगाव को दर्शाता है।

चितकबरा बगुला,

हरे खेत में घूमता।

मन की तृप्ति पाता।

मुझे मालूम हुआ,

जीवन यहाँ सरल है।

और शांति भी यहाँ है।

भावार्थ: कवि देखते हैं कि एक चितकबरा बगुला हरे खेत में घूम रहा है और ऐसा प्रतीत होता है मानो उसे यहाँ मन की संतुष्टि मिल रही हो। कवि को यह महसूस होता है कि ग्रामीण जीवन बहुत सरल है और यहाँ सच्ची शांति भी है। उन्हें शहरी जीवन की जटिलता और अशांति के मुकाबले यह ग्रामीण परिवेश अधिक सुकून देने वाला लगता है।

प्रश्न-अभ्यास

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

  1. कवि ने चने के पौधे का मानवीकरण किस रूप में किया है?

    कवि ने चने के पौधे का मानवीकरण एक छोटे, ठिगने दूल्हे के रूप में किया है। उन्होंने चने के पौधे को अपने सिर पर गुलाबी फूलों का मुरैठा (पगड़ी) बांधे हुए, सजकर खड़ा हुआ चित्रित किया है। यह मानवीकरण ग्रामीण परिवेश में प्रकृति को मानवीय संबंधों और उत्सवों से जोड़ता है।

  2. सरसों को 'सयानी' कहकर कवि क्या बताना चाहते हैं?

    सरसों को 'सयानी' कहकर कवि यह बताना चाहते हैं कि सरसों का पौधा अब पूरी तरह से पक गया है और उसमें पीले-पीले फूल आ गए हैं। इन पीले फूलों को कवि ने नवविवाहिता के पीले हाथों का प्रतीक माना है। 'सयानी' शब्द यह भी दर्शाता है कि सरसों अब कटाई के लिए तैयार है, जैसे एक सयानी लड़की विवाह के योग्य हो जाती है। यह भी विवाह के उत्सव का ही एक हिस्सा है।

  3. पोखर में बगुले और चिड़िया के क्रियाकलापों का वर्णन कीजिए।

    पोखर (तालाब) में बगुला चुपचाप अपनी टाँगें डुबोए खड़ा है, पूरी एकाग्रता से मछलियों का शिकार कर रहा है। जैसे ही उसे मछली मिलती है, वह उसे तुरंत निगल जाता है। वहीं, एक काले माथे वाली चालाक चिड़िया अपने सफेद पंखों को झपटते हुए तुरंत पानी में टूट पड़ती है, चोंच में मछली दबाकर फौरन उड़ जाती है। ये दृश्य प्रकृति में जीवन-संघर्ष और पशु-पक्षियों के सहज क्रियाकलापों को दर्शाते हैं।

  4. कवि को शहरी जीवन की तुलना में ग्रामीण जीवन क्यों अधिक प्रिय लगता है?

    कवि को शहरी जीवन की तुलना में ग्रामीण जीवन अधिक प्रिय लगता है क्योंकि ग्रामीण जीवन में उन्हें सच्ची शांति, सरलता और प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव होता है। शहरी जीवन की आपाधापी, शोरगुल और स्वार्थ से दूर, गाँव में उन्हें प्रकृति के विभिन्न रूपों में प्रेम, सामंजस्य और संतोष दिखाई देता है। खेतों की हरियाली, फसलों का मानवीकरण, पशु-पक्षियों का सहज जीवन और वातावरण की शांति उन्हें बहुत लुभाती है और मन को तृप्ति प्रदान करती है।

  5. कविता में वर्णित किस दृश्य को देखकर आपको प्रकृति में मानवीय भावनाओं की झलक मिलती है?

    कविता में चने और सरसों के मानवीकरण को देखकर प्रकृति में मानवीय भावनाओं की झलक मिलती है। चने को छोटे दूल्हे के रूप में गुलाबी पगड़ी पहने खड़ा दिखाना और सरसों को सयानी नवयौवना के रूप में हाथ पीले किए हुए ब्याह मंडप में पधारी हुई दिखाना, ये दृश्य प्रकृति को मानवीय संबंधों और उत्सवों से जोड़ते हैं। इससे प्रकृति केवल जड़ वस्तु न रहकर जीवंत और भावनापूर्ण प्रतीत होती है।

II. आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. "दूर व्यापारिक नगर से प्रेम की प्रिय भूमि, उपजाऊ अधिक है।"

    इस पंक्ति का आशय यह है कि कवि को ग्रामीण अंचल (गाँव) की भूमि दूर स्थित शहरी, व्यापारिक नगरों की तुलना में कहीं अधिक श्रेष्ठ लगती है। यहाँ 'उपजाऊ' शब्द का प्रयोग केवल फसलों के उत्पादन के संदर्भ में नहीं किया गया है, बल्कि इसका अर्थ यह भी है कि गाँव की धरती प्रेम, शांति, मानवीय मूल्यों और प्राकृतिक सौंदर्य के मामले में शहरी जीवन से कहीं अधिक समृद्ध और उर्वर है। शहरी जीवन में जहाँ स्वार्थ और भौतिकता का बोलबाला है, वहीं गाँव में सहजता, अपनापन और प्रकृति का असीम प्रेम मिलता है।

  2. "और यहीं से भूमि उँची है, जहाँ से रेल की पटरी गयी है।"

    इस पंक्ति का आशय यह है कि ग्रामीण सौंदर्य के बीच भी आधुनिकता का प्रतीक, रेलगाड़ी और उसकी पटरी, मौजूद है। कवि यह दर्शाते हैं कि गाँव भी विकास की मुख्यधारा से अछूता नहीं है, परंतु यह आधुनिकता गाँव की मूलभूत शांति और सुंदरता को पूरी तरह से नष्ट नहीं कर पाई है। रेल की सीटी की आवाज़ और चिड़िया का उड़ जाना यह संकेत देता है कि शहरीकरण और विकास की हलचल प्रकृति की सहज लय को थोड़ा विचलित तो करती है, पर उसे पूरी तरह खत्म नहीं कर पाती। यह प्रकृति और मानव निर्मित विकास के सहअस्तित्व को दिखाता है।

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