Chapter 13: ग्राम श्री

(सुमित्रानंदन पंत)

पाठ का सार

'ग्राम श्री' सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित एक सुंदर प्रकृति चित्रण वाली कविता है। पंत जी को 'प्रकृति के सुकुमार कवि' के रूप में जाना जाता है और वे छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। यह कविता सर्दी के मौसम में ग्रामीण भारत की मनमोहक सुंदरता का सजीव वर्णन करती है। कवि ने गाँव के खेतों, बागों, नदियों और विभिन्न फसलों का मानवीकरण करते हुए एक अनुपम चित्र प्रस्तुत किया है।

कविता में कवि ने विस्तृत हरे-भरे खेतों, गेहूँ और जौ की सुनहरी बालियों, सरसों के पीले फूलों, अलसी के नीले फूलों, और मटर तथा सेम की फलियों का अत्यंत मनोहारी वर्णन किया है। वह खेतों को हरी चादर ओढ़े हुए और फसलों को मुस्कुराते हुए चित्रित करते हैं। गाँव की गलियों में बहती हुई हवा और उन पर लहराती हुई फसलों की छवि मन को मोह लेती है। फूलों पर मंडराते भौंरे और तितलियाँ, अमरुद और बेर के वृक्षों पर फल, आम की डालियों पर मँजरी (बौर), और अनार तथा जामुन के पेड़ भी गाँव की शोभा बढ़ा रहे हैं। कवि ने गाँव के जीवन की सादगी और प्रकृति की समृद्धि को एक साथ पिरोया है। यह कविता ग्रामीण अंचल के नैसर्गिक सौंदर्य और शांति को पाठक के समक्ष जीवंत कर देती है, जिससे ग्रामीण परिवेश के प्रति एक अद्भुत आकर्षण उत्पन्न होता है।

एक हरे-भरे ग्रामीण परिदृश्य में लहलहाते खेत, सरसों के पीले फूल और एक शांत नदी।

कविता: ग्राम श्री

फैली खेतों में दूर तलक

मखमल की कोमल हरियाली।

लिपटी जिससे रवि की किरणें,

चाँदी की-सी उजली जाली।

तिनकों के हरे हरे तन पर,

हिल हर हिम-अतप, सुख से हँसमुख

हरियाली की शोभा न्यारी!

भावार्थ: कवि कहता है कि खेतों में दूर-दूर तक मखमल जैसी कोमल हरियाली फैली हुई है। सूरज की किरणें उस हरियाली से इस प्रकार लिपटी हुई हैं, जैसे चाँदी की कोई उज्ज्वल जाली हो। हरे-हरे तिनकों के शरीर पर धूप और पाला (हिम-अतप) हिल-मिलकर गिर रहे हैं, जिससे हरियाली बहुत ही सुखद और हँसमुख दिखाई दे रही है। इस हरियाली की शोभा अनोखी है।

हरित धरा का, क्षितिज सघन

श्याम नभ का कर रही वंदन।

चाँदी सी सफेद, सुनहरी

फसलें, लहराती पवन पर

करती हैं नृत्य मग्न मन।

भावार्थ: कवि कहते हैं कि हरी-भरी पृथ्वी का सघन क्षितिज (जहां धरती आकाश से मिलती दिखाई देती है) नीले आकाश का वंदन कर रहा है। चाँदी जैसी सफेद और सुनहरी फसलें हवा के चलने पर इस तरह लहरा रही हैं, मानो वे मग्न होकर नृत्य कर रही हों। यह दृश्य धरती और आकाश के मिलन और फसलों के आनंद को दर्शाता है।

नीलम की कलि जैसी नीली,

अलसी तीसी के फूल हँसते।

सरसों पीली, पीली, पीली,

फूली मटर की फलियाँ हैं,

मखमली पेटिकाओं जैसी।

भावार्थ: खेतों में नीलम की कली जैसे नीले अलसी के फूल (तीसी) हँस रहे हैं। सरसों के खेत पीले-पीले फूलों से भर गए हैं, जो दूर-दूर तक फैले हैं। मटर की फलियाँ फूल गई हैं, और वे मखमल की पेटिकाओं (छोटे डिब्बे) जैसी दिखाई दे रही हैं, जिनमें दाने भरे हैं।

रंग-रंग के फूलों पर,

रंग-रंग के फड़फड़ाती।

फूलों पर उड़ती तितलियाँ,

गुंजरित गुंजन गुंजन करती।

भौंरे मंडराते रहते हैं।

भावार्थ: तरह-तरह के फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियाँ फड़फड़ाती हुई उड़ रही हैं। भँवरे फूलों के ऊपर गुंजार करते हुए मंडरा रहे हैं। यह दृश्य फूलों और उन पर उड़ने वाले कीटों से गाँव की जीवंतता और सुंदरता को दर्शाता है।

अमलतास से लटके झुमके,

पीले-पीले अमरुद मीठे।

बेर झर रहे, झड़ चुके हैं।

आम में मंजरियाँ बौर

अधफूले बेर, मीठे-मीठे।

भावार्थ: अमलतास के पेड़ों से पीले फूलों के गुच्छे झुमकों की तरह लटक रहे हैं। अमरूद मीठे होकर पक गए हैं और पीले दिखाई दे रहे हैं। बेर झड़ रहे हैं या झड़ चुके हैं। आम के पेड़ों पर मंजरियाँ (बौर/फूल) आ गई हैं। कुछ बेर अभी आधे पके हुए हैं और मीठे हैं। यह फलों की समृद्धि को दर्शाता है।

हरी-हरी पत्ती की डाल पर,

नन्हीं चिड़ियाँ बोल रही हैं।

मखमली पेटिकाओं जैसे

जमीं पर गिरी हैं पत्तियाँ।

हरियाली की साड़ी पहने

धरती, लगती है सुकुमार सी।

भावार्थ: हरी-भरी पत्तियों की डालियों पर नन्हीं चिड़ियाँ चहचहा रही हैं। ज़मीन पर गिरी हुई पत्तियाँ मखमली पेटिकाओं जैसी दिखाई दे रही हैं (यहाँ संभवतः फूलों की पत्तियाँ या कोमल पत्तियाँ)। धरती ने हरी साड़ी पहनी हुई है और वह बहुत ही सुकुमार (कोमल और सुंदर) लग रही है।

गंगा के रेतीले तट पर,

तरबूज़ों की खेती फैली।

उँगली से गंगा की रेत,

तरबूज़ों के खेत पर है।

तरबूज़ों की फसलें हैं,

नदी के किनारे-किनारे।

भावार्थ: गंगा नदी के रेतीले तटों पर तरबूजों की खेती फैली हुई है। कवि कल्पना करते हैं कि गंगा की उँगली (धारा) अपनी रेत से तरबूजों के खेत पर है। तरबूजों की फसलें नदी के किनारे-किनारे फैली हुई हैं। यह गंगा तट पर होने वाली कृषि गतिविधियों को दर्शाता है।

शांत, स्निग्ध, धूप मद्धम,

हरित भू पर हिम-आतप सुखा।

नील गगन में, शिशु रवि की

सुनहरी किरणें, शोभा बढ़ाती।

गाँव में फैली है मीठी गंध।

भावार्थ: गाँव में चारों ओर शांत और स्निग्ध वातावरण है। धूप हल्की-हल्की है। हरी धरती पर पाला और धूप (हिम-आतप) सुखद लग रहे हैं। नीले आकाश में बाल सूर्य की सुनहरी किरणें शोभा बढ़ा रही हैं। पूरे गाँव में फसलों और फूलों की मीठी सुगंध फैली हुई है, जिससे वातावरण और भी मनमोहक हो गया है।

प्रश्न-अभ्यास

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

  1. कवि ने गाँव को 'मरकत डिब्बे-सा खुला' क्यों कहा है?

    कवि ने गाँव को 'मरकत डिब्बे-सा खुला' इसलिए कहा है क्योंकि मरकत (पन्ना) एक हरे रंग का रत्न होता है और गाँव में चारों ओर दूर-दूर तक फैली हरियाली पन्ने की तरह हरी और सुंदर दिखाई देती है। 'खुला' शब्द दर्शाता है कि गाँव में कोई सीमा या बंधन नहीं है, प्रकृति का सौंदर्य खुले रूप में फैला हुआ है। यह उपमा गाँव की प्राकृतिक सुंदरता और खुलेपन को उजागर करती है।

  2. खेतों में फैली हरियाली पर सूर्य की किरणें किस प्रकार दिखाई देती हैं?

    खेतों में फैली हरियाली पर सूर्य की किरणें 'चाँदी की-सी उजली जाली' जैसी दिखाई देती हैं। इसका अर्थ है कि जब सूरज की किरणें हरी-भरी फसलों पर पड़ती हैं, तो वे चमक उठती हैं और ऐसा लगता है जैसे चाँदी की कोई चमकदार, सुंदर जाली हरियाली पर बिछी हुई हो। यह दृश्य अत्यंत मनोहारी और आकर्षक होता है।

  3. सरसों, अलसी और मटर के फूलों का वर्णन कवि ने किस प्रकार किया है?

    कवि ने सरसों के फूलों को 'पीली-पीली' कहा है, जो पूरे खेतों में फैली उनकी उज्ज्वल पीली आभा को दर्शाता है। अलसी के फूलों को 'नीलम की कलि जैसी नीली' बताया है, जो उनकी गहरे नीले रंग की सुंदरता को उजागर करता है, जैसे नीलम का रत्न चमक रहा हो। मटर की फलियों को 'मखमली पेटिकाओं जैसी' कहा है, जो उनके नरम स्पर्श और अंदर भरे दानों की कल्पना कराता है।

  4. कविता में वर्णित फलों और वृक्षों के नाम बताइए।

    कविता में वर्णित फल और वृक्ष निम्नलिखित हैं:

    • अमरूद
    • बेर
    • आम (की मंजरियाँ/बौर)
    • अमलतास (फूलों के लिए)
    • तरबूज़

  5. 'हिम-आतप' का क्या अर्थ है और यह कैसा प्रभाव डालता है?

    'हिम-आतप' का अर्थ है 'पाला और धूप' (हिम = पाला/बर्फ, आतप = धूप)। कविता में यह सुखद और हँसमुख प्रभाव डालता है। इसका मतलब है कि सर्दी के मौसम में जब हल्की धूप निकलती है और पाला भी होता है, तो वह वातावरण को एक शांत और मनमोहक सुंदरता प्रदान करता है, जिससे प्रकृति और भी अधिक आकर्षक लगती है।

II. आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. "हरी-हरी पत्ती की डाल पर, नन्हीं चिड़ियाँ बोल रही हैं।"

    इस पंक्ति का आशय यह है कि गाँव के हरे-भरे पेड़ों की डालियों पर छोटी-छोटी चिड़ियाँ मधुर आवाज़ में चहचहा रही हैं। यह दृश्य ग्रामीण जीवन की जीवंतता, शांति और प्रकृति के साथ उसके सहजीवन को दर्शाता है। चिड़ियों का चहचहाना गाँव के वातावरण को और भी अधिक मधुर और संगीतमय बना देता है, जो ग्रामीण सौंदर्य का एक अभिन्न अंग है।

  2. "हरी साड़ी पहने धरती, लगती है सुकुमार सी।"

    इस पंक्ति में कवि ने धरती का मानवीकरण किया है। इसका आशय यह है कि खेतों में फैली हुई दूर-दूर तक की हरी-भरी फसलें और हरियाली ऐसी प्रतीत होती है, मानो धरती ने हरे रंग की एक सुंदर और कोमल साड़ी पहन रखी हो। इस हरे रंग की साड़ी में धरती एक नववधू की तरह या एक सुकुमार (बहुत कोमल और सुंदर) स्त्री की तरह मनमोहक और आकर्षक लग रही है। यह उपमा धरती के प्राकृतिक सौंदर्य और उसकी उर्वरता को स्त्री रूप में प्रस्तुत कर रही है।

(यह आपके ब्राउज़र के प्रिंट-टू-PDF फ़ंक्शन का उपयोग करता है। दिखावट भिन्न हो सकती है।)