Chapter 11: सवैये

(रसखान)

पाठ का सार

'सवैये' रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवि रसखान द्वारा रचित हैं। रसखान एक मुस्लिम कवि थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन भगवान कृष्ण की भक्ति को समर्पित कर दिया। इस अध्याय में रसखान के चार सवैये दिए गए हैं, जिनमें उनका कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम, ब्रजभूमि के प्रति उनका लगाव और कृष्ण से संबंधित हर वस्तु के प्रति उनकी आसक्ति स्पष्ट दिखाई देती है।

पहले सवैये में रसखान ब्रजभूमि और कृष्ण से जुड़ी चीजों के प्रति अपनी आसक्ति व्यक्त करते हैं, वे हर जन्म में ब्रज में ही निवास करना चाहते हैं। दूसरे सवैये में वे कृष्ण के रूप-सौंदर्य और उनकी मुरली की धुन के प्रति गोपियों के भावों का वर्णन करते हैं, जहाँ गोपियाँ कृष्ण की मोहिनी मुस्कान पर मोहित हो जाती हैं। तीसरे सवैये में वे कृष्ण के बाल रूप और उनके माखन-चोरी की लीला का वर्णन करते हैं, जिसमें गोपियाँ उनसे शिकायत करती हैं। चौथे सवैये में वे कृष्ण के विभिन्न रूपों को धारण करने की इच्छा व्यक्त करते हैं, ताकि वे सदैव कृष्ण के सान्निध्य में रह सकें। इन सवैयों में ब्रजभाषा की मधुरता, सहजता और रसखान के भक्ति-भाव की गहराई अनुभव की जा सकती है।

भगवान कृष्ण बांसुरी बजाते हुए, उनके पीछे ब्रजभूमि का दृश्य।

रसखान के सवैये

1. मानुष हौं तो वही रसखान, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।

जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।

पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धरयो कर छत्र पुरंदर धारन।

जो खग हौं तो बसेरो करौं, मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन।।

भावार्थ: रसखान कहते हैं कि यदि मुझे अगले जन्म में मनुष्य का रूप मिले, तो मैं ब्रज के गोकुल गाँव के ग्वालों के बीच ही निवास करूँ। यदि मैं पशु बनूँ, तो इसमें मेरा कोई वश नहीं, फिर भी मैं चाहता हूँ कि मैं रोज़ नंद बाबा की गायों के बीच चरूँ। यदि मैं पत्थर बनूँ, तो उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनूँ जिसे इंद्र के क्रोध से बचाने के लिए कृष्ण ने अपनी अँगुली पर उठाया था। और यदि मैं पक्षी बनूँ, तो यमुना नदी के किनारे स्थित कदंब के वृक्षों की डालियों पर अपना बसेरा बनाऊँ। कवि हर रूप में कृष्ण और ब्रजभूमि से जुड़ा रहना चाहते हैं।

2. या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।

आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख, नंद की गाइ चराइ बिसारौं।।

रसखान कबौं इन आँखिन सों, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।

कोटिन हू कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं।।

भावार्थ: रसखान कहते हैं कि मैं कृष्ण की लाठी (लकुटी) और कंबल (कामरिया) के बदले तीनों लोकों का राज्य भी त्याग सकता हूँ। नंद बाबा की गायों को चराने के बदले मैं आठों सिद्धियों और नौ निधियों (संसार के सभी सुखों) को भी भूल सकता हूँ। रसखान कहते हैं कि कब मुझे अपनी इन आँखों से ब्रज के वन, बाग और तालाब देखने को मिलेंगे। वे कहते हैं कि ब्रज के करील कुंजों (काँटेदार झाड़ियों) पर मैं करोड़ों सोने के महलों (कलधौत के धाम) को भी न्योछावर कर सकता हूँ। यह सवैया ब्रजभूमि के प्रति अगाध प्रेम और कृष्ण से जुड़ी हर वस्तु के प्रति कवि की आसक्ति को दर्शाता है।

3. मोर पखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी।

ओढ़ि पीतांबर लै लकुटी बन, गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।।

भाव तो वोही मेरो रसखानि, सो तेरे कहे सब स्वाँग भरौंगी।

या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।

भावार्थ: एक गोपी अपनी सखी से कहती है कि मैं कृष्ण के प्रेम में उनके जैसा ही रूप धारण करूँगी। मैं अपने सिर पर मोरपंख रखूँगी, गले में गुंजों की माला पहनूँगी। पीतांबर ओढ़कर और हाथ में लाठी लेकर जंगल में गायों और ग्वालों के साथ फिरूँगी। रसखान कहते हैं कि जो कुछ भी मेरे प्रभु को पसंद है, वह सब मैं तुम्हारे कहने पर (कृष्ण को रिझाने के लिए) करूँगी। परंतु, मुरलीधर कृष्ण की वह मुरली जिसे उन्होंने अपने होठों पर रखा है, उसे मैं अपने होठों पर कभी नहीं रखूँगी। यहाँ गोपी का मुरली से ईर्ष्या का भाव प्रकट होता है, क्योंकि वह मुरली ही कृष्ण के होठों पर रहती है, जिसके कारण गोपियाँ उनसे दूर हो जाती हैं।

4. काननि दै अँगुरी रहिबो, जबही मुरली धुन मंद बजैहै।

मोहनी तानन सों रसखानि, अटा चढ़ि गोधन गैहै तो गैहै।।

टेरि कहौ सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोऊ कितनो समझेहै।

माइ री वा मुख की मुसकानि, सम्हारी न जैहै न जैहै न जैहै।।

भावार्थ: एक गोपी कहती है कि जब कृष्ण धीरे-धीरे मुरली बजाएँगे, तो मैं अपने कानों पर अँगुली रख लूँगी (ताकि उस मोहिनी धुन का मुझ पर कोई प्रभाव न पड़े)। रसखान कहते हैं कि भले ही कृष्ण अपनी मोहिनी तानों से अटारी पर चढ़कर गोधन (गीत) गाएँ, तो गाएँ। मैं ब्रज के सभी लोगों को पुकार कर कह रही हूँ कि कल मुझे कोई कितना भी समझाए, लेकिन (प्रभु कृष्ण की) उस मुख की मुस्कान को मैं संभाल नहीं पाऊँगी, नहीं संभाल पाऊँगी, नहीं संभाल पाऊँगी। यहाँ गोपी कृष्ण की मुरली और उनकी मुस्कान के अप्रतिरोध्य प्रभाव का वर्णन करती है, विशेषकर उनकी मुस्कान का, जिस पर वह पूरी तरह मोहित हो जाती है।

प्रश्न-अभ्यास

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

  1. रसखान अगले जन्म में ब्रजभूमि में ही क्यों जन्म लेना चाहते हैं?

    रसखान अगले जन्म में ब्रजभूमि में ही जन्म लेना चाहते हैं क्योंकि ब्रजभूमि भगवान कृष्ण की लीलाभूमि है। वे कृष्ण के अनन्य भक्त हैं और हर रूप में (मनुष्य, पशु, पत्थर, पक्षी) कृष्ण से, उनकी गतिविधियों से, और उनके निवास स्थान से जुड़ा रहना चाहते हैं। उनका मानना है कि ब्रज में जन्म लेकर वे कृष्ण के सान्निध्य का अनुभव कर पाएँगे, भले ही किसी भी योनि में हों।

  2. कवि ने कृष्ण की कौन-कौन सी वस्तुओं के प्रति अपनी आसक्ति व्यक्त की है?

    कवि ने कृष्ण की कई वस्तुओं के प्रति अपनी आसक्ति व्यक्त की है:

    • कृष्ण की लाठी (लकुटी)
    • कृष्ण का कंबल (कामरिया)
    • नंद बाबा की गायें
    • गोवर्धन पर्वत (जिसे कृष्ण ने उठाया था)
    • यमुना नदी का किनारा
    • कदंब के वृक्ष की डालियाँ
    • ब्रज के वन, बाग और तालाब
    • कृष्ण का मोरपंख, गुंज की माला, पीतांबर और मुरली (गोपियों के संदर्भ में)

  3. तीसरे सवैये में गोपी क्या-क्या स्वाँग करने को तैयार है और क्या नहीं? क्यों?

    तीसरे सवैये में गोपी कृष्ण को रिझाने के लिए मोरपंख सिर पर रखने, गुंज की माला गले में पहनने, पीतांबर ओढ़ने, लाठी लेकर ग्वालों और गायों के साथ जंगल में घूमने आदि सभी स्वाँग करने को तैयार है। वह वह सब कुछ करने को तैयार है जो कृष्ण को प्रिय है। हालांकि, वह कृष्ण की मुरली को अपने होठों पर रखने को तैयार नहीं है। इसका कारण यह है कि गोपियाँ मुरली को अपनी सौत मानती हैं, क्योंकि मुरली के कारण ही कृष्ण गोपियों से दूर होकर केवल मुरली बजाते रहते हैं। मुरली गोपियों और कृष्ण के बीच व्यवधान पैदा करती है।

  4. चौथे सवैये में कृष्ण की मुरली और उनकी मुस्कान का गोपियों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

    चौथे सवैये में कृष्ण की मुरली और उनकी मुस्कान का गोपियों पर गहरा और अप्रतिरोध्य प्रभाव पड़ता है। गोपी कहती है कि वह मुरली की धुन से बचने के लिए अपने कानों पर अँगुली रख लेगी, लेकिन कृष्ण की मोहिनी मुस्कान पर उसका कोई वश नहीं चलेगा। कृष्ण की मुस्कान इतनी मनमोहक है कि गोपी उसे देखकर अपनी सुध-बुध खो बैठती है और उसे संभाल पाना उसके लिए असंभव हो जाता है। मुरली की धुन से बचा जा सकता है, लेकिन कृष्ण की मोहक मुस्कान के प्रभाव से बचना असंभव है।

  5. 'कोटिन हू कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं' का भाव स्पष्ट कीजिए।

    इस पंक्ति का भाव यह है कि कवि रसखान को ब्रजभूमि के करील (काँटेदार) कुंज इतने प्रिय हैं कि उनके लिए वे करोड़ों सोने के महलों (संपत्ति और वैभव) को भी न्योछावर करने को तैयार हैं। यह पंक्ति ब्रजभूमि और कृष्ण से जुड़ी साधारण से साधारण वस्तु के प्रति रसखान के अगाध प्रेम और भक्ति को दर्शाती है। उनके लिए भौतिक सुख-संपत्ति से कहीं अधिक महत्व कृष्ण और ब्रज के सान्निध्य का है।

II. आशय स्पष्ट कीजिए:

  1. "माइ री वा मुख की मुसकानि, सम्हारी न जैहै न जैहै न जैहै।।"

    इस पंक्ति का आशय यह है कि कृष्ण की मुख की मुस्कान इतनी अधिक मोहक और आकर्षक है कि उसे देखकर कोई भी गोपी अपने आप को संभाल नहीं पाएगी। गोपी अपनी माता (या सखी) से कहती है कि कृष्ण की उस मोहिनी मुस्कान का इतना गहरा प्रभाव है कि उस पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं रहता। यह मुस्कान ऐसी है कि इसके सामने सारी लोक-लाज, मर्यादा और विवेक स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। यह पंक्ति कृष्ण की अतुलनीय सुंदरता और उनके भक्तों पर पड़ने वाले उनके मनमोहक प्रभाव को दर्शाती है।

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