अध्याय 9: क्षेत्रीय संस्कृतिओं का निर्माण (The Making of Regional Cultures)

परिचय

मध्यकालीन भारत में, बड़े साम्राज्यों के उदय के साथ-साथ, विभिन्न क्षेत्रों में अपनी-अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा और कला का भी विकास हुआ। इन क्षेत्रीय संस्कृतियों पर कभी-कभी बड़े साम्राज्यों, जैसे मुग़लों, का प्रभाव पड़ा, लेकिन वे अपनी स्थानीय परंपराओं को भी बनाए रखते हुए विकसित हुईं। इस अध्याय में, हम कुछ ऐसी ही क्षेत्रीय संस्कृतियों के निर्माण की कहानी जानेंगे।

9.1 चेर और मलयालम भाषा

नौवीं शताब्दी में, दक्षिण भारत के **चेर** साम्राज्य ने अपने राज्य के लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा **मलयालम** को बढ़ावा दिया। चेर शासकों ने अपने अभिलेखों में मलयालम लिपि का उपयोग किया। यह पहला उदाहरण है जहाँ किसी क्षेत्रीय भाषा का उपयोग सरकारी अभिलेखों में किया गया। इसी अवधि में, मलयालम भाषा पर संस्कृत का गहरा प्रभाव पड़ा, जिससे एक नई लेखन शैली 'मणिप्रवालम' का विकास हुआ।

9.2 पुरी में जगन्नाथ की परंपरा

उड़ीसा में, **जगन्नाथ (Jagannath)** का शाब्दिक अर्थ 'दुनिया के भगवान' है। यह एक स्थानीय देवता थे, जिन्हें बाद में विष्णु का एक रूप माना जाने लगा। 12वीं शताब्दी में, गंगा राजवंश के राजा अनंतवर्मन ने पुरी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया। उन्होंने अपने आप को जगन्नाथ का प्रतिनिधि घोषित किया, जिससे इस मंदिर ने राजनीतिक और धार्मिक दोनों महत्व प्राप्त कर लिया।

जगन्नाथ मंदिर और राजपूत चित्र

9.3 राजपूतों की परंपराएं

मध्यकाल में **राजपूतों** ने वीरता और शौर्य की परंपराओं का विकास किया। उनकी कहानियों में योद्धाओं को युद्धभूमि में बहादुरी दिखाने, अपने स्वामी के प्रति वफादार रहने और दुश्मनों का डटकर मुकाबला करने के लिए चित्रित किया गया है। ये कहानियाँ अक्सर महिलाओं के बलिदान और उनकी वीरता का भी वर्णन करती हैं। इन कहानियों ने राजपूतों के बीच एक विशिष्ट पहचान का निर्माण किया।

9.4 कथक नृत्य

**कथक** का शाब्दिक अर्थ 'कथा कहने वाला' है। यह नृत्य शैली मूल रूप से मंदिरों में कथाकारों द्वारा अपनी कहानियों को प्रस्तुत करने के लिए शुरू हुई थी। मुग़ल काल में यह नृत्य दरबारों में लोकप्रिय हुआ। मुग़ल शासकों के संरक्षण में कथक ने एक नया रूप लिया, जिसमें भाव-भंगिमाओं, पद-संचालन और तेज गति पर जोर दिया गया। 19वीं शताब्दी में, लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में यह नृत्य अपने चरम पर पहुँचा।

9.5 लघुचित्रण की परंपरा

**लघुचित्र (Miniatures)** छोटे आकार के चित्र होते हैं, जिन्हें आमतौर पर पानी के रंगों से कपड़े या कागज पर बनाया जाता है। मुग़ल दरबार में, कलाकारों ने पांडुलिपियों को चित्रित करने के लिए लघुचित्रों का उपयोग किया। मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद, इन कलाकारों ने क्षेत्रीय राज्यों, जैसे राजस्थान और हिमालय की तलहटी में, आश्रय लिया। वहाँ उन्होंने राजपूत राजाओं और अन्य शासकों के लिए स्थानीय विषयों पर चित्र बनाए।

9.6 बंगाल में क्षेत्रीय संस्कृति का विकास

बंगाल में क्षेत्रीय संस्कृति के विकास में भाषा, धर्म और भोजन का महत्वपूर्ण योगदान रहा। बंगाली भाषा का विकास संस्कृत से हुआ। यहाँ के लोगों के लिए मछली और चावल मुख्य भोजन रहे, जो आज भी एक महत्वपूर्ण पहचान है। बंगाल में **पीरों** (पीर) का भी काफी प्रभाव रहा। पीर संत और शिक्षक होते थे, जिनकी कब्रों की पूजा स्थानीय लोग करते थे।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)

I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।

  1. मलयालम भाषा का विकास किस राज्य में हुआ?

    मलयालम भाषा का विकास केरल में हुआ।

  2. जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ क्या है?

    जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ 'दुनिया का भगवान' है।

  3. कथक नृत्य किन दो दरबारों में फला-फूला?

    कथक नृत्य मुग़ल दरबारों और लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के दरबार में फला-फूला।

  4. लघुचित्रण क्या है?

    लघुचित्रण छोटे आकार के चित्र होते हैं, जो पानी के रंगों से बनाए जाते हैं।

II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।

  1. राजपूतों की वीरता की परंपराओं का वर्णन कीजिए।

    राजपूतों की परंपराएँ वीरता और शौर्य पर आधारित थीं। इन कहानियों में योद्धाओं को अपने स्वामी के प्रति वफादार रहने, युद्ध में बहादुरी दिखाने और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए मर-मिटने के लिए चित्रित किया गया है।

  2. पुरी में जगन्नाथ संप्रदाय क्यों महत्वपूर्ण है?

    जगन्नाथ संप्रदाय का महत्व इसलिए है क्योंकि यह एक स्थानीय देवता (जगन्नाथ) को विष्णु के रूप में मान्यता देता है, जो स्थानीय और राष्ट्रीय धार्मिक परंपराओं का मिश्रण दिखाता है। राजा द्वारा स्वयं को जगन्नाथ का प्रतिनिधि घोषित करने से इसका राजनीतिक महत्व भी बढ़ गया।

  3. बंगाल में क्षेत्रीय संस्कृति के विकास में पीरों की भूमिका क्या थी?

    बंगाल में पीर (इस्लामी संत) धार्मिक शिक्षक और मार्गदर्शक थे। उन्होंने इस्लाम और स्थानीय परंपराओं का मिश्रण करके एक नई धार्मिक पहचान बनाई। लोग उनकी कब्रों पर जाकर आशीर्वाद मांगते थे, जिससे वहाँ की संस्कृति में एक नया तत्व जुड़ गया।

III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।

  • कथक नृत्य के विकास की कहानी को विस्तार से समझाइए।

    कथक नृत्य की कहानी का प्रारंभ उत्तर भारत के मंदिरों में हुआ था। 'कथक' शब्द 'कथा' से बना है, जिसका अर्थ है कहानी। कथक कहानियों को भाव-भंगिमाओं और मुद्राओं के माध्यम से प्रस्तुत करने वाले कथाकार थे। यह नृत्य धीरे-धीरे मंदिरों से निकालकर मुग़ल दरबारों में पहुंचा। मुग़ल काल में, इस नृत्य को राजसी संरक्षण मिला और इसमें नए तत्व जुड़ गए। दरबार के मनोरंजन के लिए, कथक में तीव्र पद-संचालन (फुटवर्क), जटिल लय और सुंदर भाव-भंगिमाओं पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा।

    19वीं शताब्दी में, लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के संरक्षण में कथक नृत्य का एक नया अध्याय शुरू हुआ। उनके दरबार में कथक ने एक परिष्कृत और शास्त्रीय रूप लिया। इस दौरान, कथक को नृत्यकला और संगीत के रूप में पहचान मिली और यह अपनी वर्तमान शैली के करीब पहुंचा। इस तरह, कथक ने धार्मिक कहानियों से शुरू होकर दरबारी मनोरंजन और फिर एक शास्त्रीय नृत्य के रूप में एक लंबी यात्रा तय की।

  • क्षेत्रीय संस्कृति के निर्माण में भाषा, धर्म और कला ने क्या भूमिका निभाई? बंगाल के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

    किसी भी क्षेत्र की संस्कृति के निर्माण में भाषा, धर्म और कला का महत्वपूर्ण योगदान होता है। बंगाल के संदर्भ में, ये तीनों तत्व वहाँ की विशिष्ट संस्कृति को आकार देने में सहायक रहे। **भाषा** के रूप में, बंगाली भाषा का विकास संस्कृत से हुआ, लेकिन इस पर स्थानीय बोलियों और अन्य भाषाओं का भी प्रभाव पड़ा। बंगाली में लिखे गए धार्मिक और साहित्यिक ग्रंथ इस संस्कृति की पहचान बन गए।

    **धर्म** के क्षेत्र में, बंगाल में भक्ति आंदोलन और सूफी मत का गहरा प्रभाव रहा। पीर (सूफी संत) और वैष्णव संतों ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर एक ऐसी धार्मिक व्यवस्था बनाई जो कर्मकांडों से परे थी। इस संप्रदाय में दोनों धर्मों के तत्व मिलते थे, जिससे एक सहिष्णु और मिश्रित संस्कृति का विकास हुआ। **कला** और भोजन भी इसमें महत्वपूर्ण थे। लघुचित्रण की तरह, यहाँ के कला रूपों में भी क्षेत्रीय प्रभाव दिखता है। साथ ही, बंगाल में मछली और चावल का भोजन वहाँ की संस्कृति और भूगोल का एक अभिन्न अंग बन गया। इस प्रकार, भाषा, धर्म और कला के आपसी मेलजोल ने बंगाल की एक विशिष्ट और समृद्ध क्षेत्रीय संस्कृति का निर्माण किया।

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