अध्याय 8: ईश्वर से अनुराग (Devotional Paths to the Divine)
परिचय
मध्यकाल में भारत में एक बड़ा धार्मिक परिवर्तन हुआ। यह वह समय था जब लोग जटिल धार्मिक अनुष्ठानों और सामाजिक भेदभाव से हटकर, ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत और भावनात्मक संबंध स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे। इस अध्याय में, हम दो प्रमुख आंदोलनों, **भक्ति** और **सूफी** आंदोलन, और उनके संतों की शिक्षाओं के बारे में जानेंगे जिन्होंने समाज में प्रेम, समानता और भाईचारे का संदेश फैलाया।
8.1 भक्ति आंदोलन का उदय (The Rise of the Bhakti Movement)
भक्ति आंदोलन की शुरुआत 7वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में हुई। इस आंदोलन के संतों ने जाति, धर्म और कर्मकांडों से ऊपर उठकर व्यक्तिगत भक्ति को महत्व दिया।
- आलवार और नयनार संत: ये तमिलनाडु के प्रमुख संत थे। आलवार संत विष्णु के भक्त थे, जबकि नयनार संत शिव के भक्त थे। उन्होंने अपने गीतों में ईश्वर के प्रति गहरी भक्ति व्यक्त की और जाति-व्यवस्था का विरोध किया।
- मुख्य विशेषताएँ:
- जाति-व्यवस्था और कर्मकांडों का खंडन।
- ईश्वर के साथ व्यक्तिगत और भावनात्मक संबंध पर जोर।
- स्थानीय भाषाओं में भजन और कविताओं की रचना।
- प्रेम, करुणा और समानता का संदेश।
8.2 शंकर और रामानुज (Shankara and Ramanuja)
ये दो प्रमुख दार्शनिक थे जिन्होंने भक्ति आंदोलन को सैद्धांतिक आधार दिया।
- शंकर (8वीं शताब्दी): इन्होंने **अद्वैत** (Advaita) का सिद्धांत दिया, जिसका अर्थ है कि जीवात्मा और परमात्मा एक ही हैं। उन्होंने दुनिया को **माया** या भ्रम माना और मोक्ष के लिए ज्ञान मार्ग पर जोर दिया।
- रामानुज (11वीं शताब्दी): इन्होंने **विशिष्टाद्वैत** (Vishishtadvaita) का सिद्धांत दिया। इनके अनुसार जीवात्मा और परमात्मा एक होते हुए भी अलग हैं। मोक्ष के लिए उन्होंने विष्णु के प्रति सच्ची भक्ति को सबसे महत्वपूर्ण माना।
8.3 वीरशैव आंदोलन (Virashaiva Movement)
12वीं शताब्दी में कर्नाटक में **बसवेश्वर** और उनके साथियों ने वीरशैव आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन ने सभी मनुष्यों की समानता के लिए मजबूत तर्क दिए। उन्होंने जाति-भेदभाव, महिलाओं के प्रति असमान व्यवहार और ब्राह्मणवादी कर्मकांडों का कड़ा विरोध किया।
8.4 महाराष्ट्र के संत (Saints of Maharashtra)
महाराष्ट्र में 13वीं से 17वीं शताब्दी के बीच कई प्रसिद्ध संत हुए, जैसे **ज्ञानेश्वर, नामदेव, एकनाथ, तुकाराम**, और **सखूबाई, चोखामेला**। उन्होंने विष्णु के स्वरूप **विठ्ठल** की भक्ति पर जोर दिया। इन संतों ने सभी प्रकार के कर्मकांडों, तीर्थयात्राओं और सामाजिक असमानताओं को खारिज कर दिया।
8.5 इस्लाम और सूफीवाद (Islam and Sufism)
मध्यकाल में भारत में इस्लाम का भी आगमन हुआ, और उसके साथ **सूफीवाद** (Sufism) भी आया। सूफी संत इस्लाम के रहस्यवादी थे। उन्होंने बाहरी आडंबरों को त्यागकर ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत प्रेम और भक्ति पर जोर दिया।
- सूफियों की विशेषताएँ:
- ईश्वर के साथ मिलन के लिए प्रेम और भक्ति को सबसे महत्वपूर्ण माना।
- उन्होंने अपने गुरु या **पीर** के मार्गदर्शन में **खानकाह** (Khanqah) नामक आश्रमों में निवास किया।
- वे समानता और भाईचारे में विश्वास रखते थे और सभी धर्मों के लोगों के बीच लोकप्रिय थे।
- उनके विचारों को फैलाने के लिए उन्होंने स्थानीय भाषाओं में गीत और कविताएँ लिखीं।
8.6 कबीर (Kabir)
कबीर 15वीं शताब्दी के एक प्रमुख संत थे। उनकी शिक्षाएँ हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के बाहरी कर्मकांडों को पूरी तरह से नकारती थीं।
- उन्होंने एक निराकार, सर्वशक्तिमान ईश्वर में विश्वास किया।
- उन्होंने सरल भाषा में कविताएँ लिखीं, जिन्हें **साखी** और **सबद** कहा जाता है। इन कविताओं में उन्होंने अंधविश्वासों और सामाजिक भेदभाव पर तीखा प्रहार किया।
8.7 गुरु नानक (Guru Nanak)
सिख धर्म के संस्थापक **गुरु नानक** (1469-1539) ने भी ईश्वर के प्रति भक्ति का एक नया मार्ग दिखाया।
- उन्होंने एक निराकार, सर्वशक्तिमान और अविनाशी ईश्वर में विश्वास किया।
- उन्होंने मूर्ति पूजा, जाति-व्यवस्था और कर्मकांडों का विरोध किया।
- उन्होंने तीन मुख्य सिद्धांतों पर जोर दिया: **नाम जपना** (ईश्वर का नाम स्मरण करना), **किरत करना** (ईमानदारी से कमाना), और **वंड छकना** (बाँटकर खाना)।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)
I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।
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भक्ति आंदोलन के दो प्रमुख संतों के नाम लिखिए।
कबीर और गुरु नानक।
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सूफी संत कहाँ रहते थे?
सूफी संत अपने गुरु या पीर के साथ खानकाह नामक आश्रमों में रहते थे।
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अद्वैत का सिद्धांत किसने दिया?
अद्वैत का सिद्धांत **शंकर** ने दिया था।
II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।
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आलवार और नयनार कौन थे?
आलवार और नयनार दक्षिण भारत के 7वीं से 9वीं शताब्दी के संत थे। आलवार संत विष्णु के भक्त थे, जबकि नयनार संत शिव के भक्त थे। उन्होंने अपने गीतों और कविताओं के माध्यम से भक्ति का संदेश फैलाया।
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सूफीवाद की दो मुख्य विशेषताएँ बताइए।
सूफीवाद की दो मुख्य विशेषताएँ हैं: ईश्वर के साथ व्यक्तिगत प्रेम और भक्ति पर जोर देना, और धार्मिक कर्मकांडों तथा बाहरी आडंबरों को त्यागना। सूफी संत मानवता और भाईचारे में विश्वास रखते थे।
III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।
भक्ति आंदोलन ने मध्यकाल में समाज में एक क्रांतिकारी बदलाव लाया। इसकी प्रमुख विशेषताओं में सबसे महत्वपूर्ण यह थी कि इसने जाति-व्यवस्था और सामाजिक भेदभाव को अस्वीकार कर दिया। भक्ति संतों ने यह संदेश दिया कि ईश्वर को पाने के लिए किसी विशेष जाति या अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं है; केवल सच्ची भक्ति और व्यक्तिगत प्रेम ही पर्याप्त है। उन्होंने सभी लोगों को एक समान माना और महिलाओं के साथ-साथ निम्न जातियों के लोगों को भी अपने आंदोलन में शामिल किया।
इस आंदोलन की एक और महत्वपूर्ण विशेषता स्थानीय भाषाओं का उपयोग था। संतों ने संस्कृत के बजाय आम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं में अपनी कविताएँ और भजन लिखे। इससे उनके विचार दूर-दूर तक फैल सके और आम जनता उन्हें आसानी से समझ सकी। भक्ति संतों ने बाहरी कर्मकांडों, मूर्ति पूजा और तीर्थयात्राओं के बजाय ईश्वर के प्रति आंतरिक प्रेम और समर्पण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ईश्वर मंदिरों या मस्जिदों में नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के हृदय में निवास करता है।
कबीर और गुरु नानक दोनों ही मध्यकाल के ऐसे महान संत थे जिनकी शिक्षाओं में कई समानताएँ थीं। दोनों ने ही एक **निराकार और सर्वशक्तिमान ईश्वर** में विश्वास किया और मूर्ति पूजा तथा धार्मिक कर्मकांडों का खंडन किया। उन्होंने जाति-व्यवस्था और सामाजिक भेदभाव का कड़ा विरोध किया और कहा कि ईश्वर की नजर में सभी मनुष्य समान हैं। दोनों ने ही अपने विचारों को आम लोगों की भाषा में कविताओं और भजनों के माध्यम से व्यक्त किया, जिससे उनके संदेश दूर-दूर तक पहुँच सके।
हालांकि, उनकी शिक्षाओं में कुछ अंतर भी थे। कबीर की शिक्षाएँ एक अधिक वैयक्तिक और रहस्यवादी मार्ग पर आधारित थीं। उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के आडंबरों पर तीखा प्रहार किया, लेकिन कोई संगठित धर्म नहीं बनाया। इसके विपरीत, गुरु नानक की शिक्षाओं ने एक संगठित धर्म, **सिख धर्म** की नींव रखी। उन्होंने तीन सिद्धांतों - नाम जपना, किरत करना और वंड छकना - पर जोर दिया, जो उनके अनुयायियों के लिए एक जीवनशैली बन गए। उनकी शिक्षाओं ने एक समुदाय को जन्म दिया, जिसने बाद में एक मजबूत पहचान और संगठन विकसित किया।
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