अध्याय 4: मुग़ल साम्राज्य (The Mughal Empire)

परिचय

मध्यकाल में भारत पर कई शासकों ने राज किया, लेकिन मुग़ल साम्राज्य ने एक विशाल क्षेत्र पर शासन किया और भारतीय उपमहाद्वीप को एक एकीकृत शासन प्रणाली के तहत लाया। मुग़लों ने न केवल राजनीतिक एकता स्थापित की, बल्कि कला, वास्तुकला और प्रशासन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस अध्याय में, हम मुग़ल साम्राज्य के प्रमुख शासकों, उनके प्रशासन, राजस्व प्रणाली और उनके सांस्कृतिक योगदान के बारे में जानेंगे।

4.1 मुग़ल शासक

मुग़ल दो महान शासकों के वंशज थे: अपनी माता की ओर से वे मंगोल शासक चंगेज खान के वंशज थे और अपने पिता की ओर से वे ईरान, इराक और तुर्की के शासक तैमूर के वंशज थे। भारत में मुग़ल साम्राज्य की नींव **बाबर (1526-1530)** ने रखी।

प्रमुख मुग़ल शासक और उनकी उपलब्धियाँ:

मुग़ल साम्राज्य का मानचित्र और प्रमुख शासक

4.2 मुग़ल प्रशासन: मनसबदारी और जागीर व्यवस्था

मुग़लों ने एक व्यवस्थित प्रशासन प्रणाली विकसित की। **मनसबदारी व्यवस्था** मुग़लों की एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक और सैन्य व्यवस्था थी। मनसबदार का अर्थ था पद या ओहदा। मनसबदारों को उनकी हैसियत के अनुसार वेतन दिया जाता था और उन्हें सैन्य टुकड़ियों का रखरखाव करना पड़ता था।

मनसबदारों को वेतन के रूप में **जागीर** दी जाती थी, जो राजस्व एकत्रित करने का अधिकार होता था। यह जागीरदार अपने क्षेत्र से राजस्व इकट्ठा करके अपना और अपनी सेना का खर्च चलाते थे। अकबर के शासनकाल में जागीरदार अपनी जागीर का राजस्व स्वयं एकत्रित नहीं करते थे, बल्कि यह कार्य मुग़ल अधिकारी करते थे। बाद में औरंगजेब के समय में यह व्यवस्था कमजोर हो गई।

4.3 भू-राजस्व

मुग़लों की आय का मुख्य स्रोत **भू-राजस्व** था। अकबर के वित्त मंत्री **टोडरमल** ने एक नई भू-राजस्व प्रणाली विकसित की। इसमें 10 साल के लिए फसलों की पैदावार और कीमतों का सर्वे किया गया और उसके आधार पर प्रत्येक फसल पर राजस्व निश्चित किया गया। इस व्यवस्था को **'ज़ब्त'** कहते थे।

4.4 अकबर की धार्मिक नीति: सुलह-ए-कुल

अकबर ने सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता की नीति अपनाई, जिसे **सुलह-ए-कुल (सार्वभौम शांति)** कहा जाता था। उन्होंने सभी धर्मों के विद्वानों से बहस और चर्चा करने के लिए फतेहपुर सीकरी में **इबादतखाना** (उपासना गृह) बनवाया। इस चर्चा से उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि सभी धर्मों के मूल सिद्धांतों में सहिष्णुता और शांति का संदेश है।

4.5 मुग़ल साम्राज्य का पतन

औरंगजेब की कट्टर धार्मिक नीतियों, मनसबदारों की बढ़ती संख्या और कमजोर केंद्रीय शासन के कारण 18वीं शताब्दी की शुरुआत में मुग़ल साम्राज्य का पतन शुरू हो गया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद, विभिन्न प्रांतों के गवर्नरों ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी, जिससे छोटे-छोटे राज्यों का उदय हुआ।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)

I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।

  1. मुग़ल साम्राज्य की स्थापना किसने और कब की?

    मुग़ल साम्राज्य की स्थापना बाबर ने 1526 में की।

  2. मुग़ल शासक अपनी माँ और पिता की ओर से किन वंशों से संबंधित थे?

    अपनी माता की ओर से वे चंगेज खान के और पिता की ओर से तैमूर के वंशज थे।

  3. मनसबदार कौन होते थे?

    मनसबदार मुग़ल साम्राज्य में पद या ओहदा रखने वाले लोग थे, जो सैन्य और प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ निभाते थे।

  4. अकबर द्वारा अपनाई गई धार्मिक नीति का नाम क्या था?

    अकबर द्वारा अपनाई गई धार्मिक नीति का नाम 'सुलह-ए-कुल' (सार्वभौम शांति) था।

II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।

  1. जागीर क्या होती थी?

    जागीर मनसबदारों को दी गई भूमि होती थी। मनसबदार इस भूमि से राजस्व इकट्ठा करते थे, जिसका उपयोग वे अपने और अपनी सैन्य टुकड़ी के खर्च के लिए करते थे।

  2. टोडरमल की भू-राजस्व व्यवस्था की मुख्य विशेषता क्या थी?

    टोडरमल ने 10 साल के लिए फसलों की पैदावार और कीमतों का सर्वे करके भू-राजस्व निश्चित किया था। इस व्यवस्था को 'ज़ब्त' कहते थे।

  3. मुग़ल साम्राज्य के पतन के दो कारण बताइए।

    मुग़ल साम्राज्य के पतन के मुख्य कारणों में औरंगजेब की कट्टर धार्मिक नीतियाँ और केंद्रीय शासन का कमजोर होना शामिल है।

III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।

  • मुग़ल मनसबदारी व्यवस्था और प्रशासन का वर्णन कीजिए।

    मुग़लों का प्रशासन मनसबदारी व्यवस्था पर आधारित था, जिसे अकबर ने शुरू किया था। मनसबदार शब्द का अर्थ 'पद' या 'ओहदा' होता था। मनसबदारों को उनकी हैसियत के अनुसार एक पद दिया जाता था, जो उनके वेतन और जिम्मेदारियों को निर्धारित करता था। इस पद को 'जात' और 'सवार' में विभाजित किया गया था। 'जात' से व्यक्ति के पद और वेतन का पता चलता था, जबकि 'सवार' से यह पता चलता था कि उसे कितने घोड़े और सैनिक रखने हैं। मनसबदारों को मुग़ल प्रशासन में महत्वपूर्ण सैन्य और नागरिक जिम्मेदारियाँ सौंपी जाती थीं।

    मनसबदारों को उनका वेतन नकद या राजस्व एकत्रित करने के अधिकार वाली भूमि (जागीर) के रूप में दिया जाता था। जागीरदार अपनी जागीर से राजस्व इकट्ठा करके अपना और अपनी सैन्य टुकड़ी का खर्च चलाते थे। अकबर के शासनकाल में यह सुनिश्चित किया गया था कि जागीर का राजस्व मनसबदार के वेतन से अधिक न हो, लेकिन बाद में औरंगजेब के समय में इस व्यवस्था में अनियमितताएं आ गईं। मनसबदारी व्यवस्था मुग़ल साम्राज्य की स्थिरता का एक प्रमुख स्तंभ थी, जिसने एक कुशल और शक्तिशाली प्रशासन बनाए रखने में मदद की।

  • अकबर की सुलह-ए-कुल की नीति का वर्णन कीजिए और इसके महत्व को स्पष्ट कीजिए।

    अकबर की धार्मिक नीति को **सुलह-ए-कुल** (सार्वभौम शांति) कहा जाता था, जो सहिष्णुता और सभी धर्मों के प्रति सम्मान पर आधारित थी। अकबर ने महसूस किया कि धार्मिक कट्टरता समाज में विभाजन और संघर्ष का कारण बनती है। इस नीति को समझने के लिए, उन्होंने विभिन्न धर्मों के विद्वानों - जैसे उलेमा, ब्राह्मण, जेसुइट पादरी और पारसी पुजारियों - के साथ फतेहपुर सीकरी में अपने **इबादतखाना** (उपासना गृह) में चर्चाएँ कीं। इन चर्चाओं के दौरान, उन्होंने पाया कि सभी धर्मों के मूल में एक ही सार्वभौम सत्य और शांति का संदेश है।

    सुलह-ए-कुल की नीति का महत्व यह था कि इसने मुग़ल साम्राज्य में धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा दिया। अकबर ने इस नीति के आधार पर एक एकीकृत समाज का निर्माण करने की कोशिश की, जहाँ सभी धर्मों और समुदायों के लोगों को समान अधिकार और सम्मान मिले। उन्होंने गैर-मुस्लिमों पर लगने वाले जजिया कर को समाप्त कर दिया और सभी नागरिकों को समान माना। यह नीति मुग़ल साम्राज्य की स्थिरता और एकता के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी, जिसने अकबर को भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे महान शासकों में से एक बना दिया।

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