अध्याय 2: नए राजा और उनके राज्य (New Kings and Kingdoms)

परिचय

सातवीं शताब्दी के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में कई नए राजवंशों का उदय हुआ। इस दौर में राजाओं और उनके राज्यों में कई महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले। सामंतों का प्रभाव बढ़ा, बड़े-बड़े साम्राज्यों का गठन हुआ, और धन और शक्ति के लिए राजवंशों के बीच लगातार संघर्ष होते रहे। इस अध्याय में हम इसी कालखंड की प्रमुख राजनीतिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक विशेषताओं का अध्ययन करेंगे।

2.1 सातवीं शताब्दी के बाद नए राजवंशों का उदय

सातवीं शताब्दी तक, बड़े भूस्वामियों और योद्धा सरदारों को **सामंत (Samantas)** के रूप में मान्यता मिल चुकी थी। ये सामंत अपने राजा के लिए उपहार लाते थे और सैन्य सहायता प्रदान करते थे। जब कोई सामंत पर्याप्त शक्ति और धन अर्जित कर लेता था, तो वह खुद को **महा-सामंत** या **महा-मंडलेश्वर** (पूरे मंडल का महान स्वामी) घोषित कर देता था और अपने राजा से स्वतंत्र हो जाता था।

उदाहरण के लिए, **राष्ट्रकूट (Rashtrakutas)** दक्कन में चालुक्यों के अधीन सामंत थे। आठवीं शताब्दी के मध्य में, राष्ट्रकूट प्रमुख **दंतिदुर्ग** ने अपने चालुक्य राजा को हराया और एक अनुष्ठान (हिरण्य-गर्भ) करके क्षत्रिय के रूप में खुद को स्थापित किया। इसी तरह, उत्तर भारत में **गुर्जर-प्रतिहार (Gurjara-Pratiharas)** और बंगाल में **पाल (Palas)** जैसे नए राजवंशों का उदय हुआ।

2.2 राज्यों में प्रशासन

नए राजाओं ने कई बड़ी उपाधियाँ धारण कीं, जैसे **महाराजाधिराज** (राजाओं का राजा) और **त्रिभुवन-चक्रवर्तिन** (तीनों लोकों का स्वामी)। इन राज्यों में किसानों, पशुपालकों, कारीगरों और व्यापारियों से **राजस्व (Revenue)** इकट्ठा किया जाता था। इस राजस्व का उपयोग राजा के खर्चों, मंदिरों के निर्माण और युद्धों के लिए होता था।

राजस्व एकत्र करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी, जो अक्सर राजा के करीबी रिश्तेदारों या प्रभावशाली परिवारों से होते थे। सेना के लिए भी इसी प्रकार की व्यवस्था थी।

2.3 प्रशस्तियाँ और भूमि अनुदान

प्रशस्तियाँ (Prashastis) ऐसी रचनाएँ थीं जिनमें राजाओं की प्रशंसा की जाती थी। ये प्रशस्तियाँ ब्राह्मणों द्वारा रची जाती थीं और अक्सर राजा के शौर्य, उपलब्धियों और विजयों का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन करती थीं। ये हमें उन राजाओं के बारे में मूल्यवान ऐतिहासिक जानकारी प्रदान करती हैं।

राजा अक्सर ब्राह्मणों को भूमि के टुकड़ों का दान देते थे, जिसे **भूमि अनुदान (Land Grants)** कहते थे। ये अनुदान तांबे के प्लेटों पर लिखे जाते थे, जिन पर राजा की मुहर लगी होती थी।

2.4 कन्नौज के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष

गंगा घाटी में स्थित **कन्नौज** एक बहुत ही महत्वपूर्ण और समृद्ध शहर था। इस पर नियंत्रण के लिए तीन प्रमुख राजवंशों - **गुर्जर-प्रतिहार**, **राष्ट्रकूट** और **पाल** - के बीच सदियों तक संघर्ष चलता रहा। इतिहासकार इस लंबे संघर्ष को **त्रिपक्षीय संघर्ष (Tripartite Struggle)** कहते हैं।

इसी काल में, **महमूद गजनवी (Mahmud of Ghazni)** ने भारत पर कई बार आक्रमण किया, जिसका मुख्य उद्देश्य यहाँ के मंदिरों में रखे अपार धन को लूटना था। उसने सोमनाथ मंदिर जैसे कई मंदिरों को लूटा।

2.5 चोल साम्राज्य

दक्षिण भारत में, **चोल (Cholas)** एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में उभरे। नौवीं शताब्दी में **विजयालय** ने मुत्तरैयार को हराकर कावेरी डेल्टा में एक छोटा सा राज्य स्थापित किया और तंजावुर (Tanjavur) शहर बसाया। चोल राजाओं में **राजराजा प्रथम** और उसका पुत्र **राजेंद्र प्रथम** सबसे शक्तिशाली थे। राजराजा प्रथम ने कई क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित किया, जबकि राजेंद्र प्रथम ने गंगा घाटी तक सफल अभियान चलाए।

चोल राजाओं ने भव्य मंदिरों का निर्माण कराया, जैसे तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर। इन मंदिरों की दीवारें चित्रकला से और स्तंभ मूर्तियों से सजे होते थे। चोल कांस्य प्रतिमाएँ भी अपने समय की सबसे बेहतरीन मानी जाती हैं।

2.6 चोलों का प्रशासन

चोलों का प्रशासन बहुत सुव्यवस्थित था। गाँवों का समूह जिसे **नाडू (Nadu)** कहा जाता था, प्रशासन की सबसे छोटी इकाई था। किसानों की बस्तियाँ **उर (Ur)** कहलाती थीं, जो सिंचित कृषि के विकास के साथ समृद्ध हुईं। नाडू और उर जैसे संगठनों ने न्याय करने और करों को इकट्ठा करने जैसे महत्वपूर्ण प्रशासनिक कार्य किए।

चोलों ने **स्थानीय स्व-शासन (Local Self-Government)** की एक अनूठी प्रणाली विकसित की थी। गाँवों को विभिन्न सभाओं में बांटा गया था: **उर** (सामान्य गाँव की सभा), और **सभा** या **महासभा** (ब्राह्मणों के गाँव की सभा)। इन सभाओं के सदस्य भूमि के मालिक होते थे और चुनाव के नियमों का पालन करते थे।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)

I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।

  1. सामंत कौन थे?

    सामंत बड़े भूस्वामी या योद्धा सरदार होते थे जो राजा के अधीन काम करते थे।

  2. त्रिपक्षीय संघर्ष किन तीन शक्तियों के बीच हुआ?

    यह गुर्जर-प्रतिहार, राष्ट्रकूट और पाल राजवंशों के बीच हुआ।

  3. महमूद गजनवी का मुख्य उद्देश्य क्या था?

    उसका मुख्य उद्देश्य भारत के धनवान मंदिरों से धन लूटना था।

  4. प्रशस्तियाँ क्या होती हैं?

    प्रशस्तियाँ वे रचनाएँ होती हैं जिनमें राजाओं की उपलब्धियों और प्रशंसा का वर्णन होता है।

II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।

  1. नए राजवंशों का उदय कैसे हुआ?

    नए राजवंशों का उदय सामंतों के सशक्त होने से हुआ। जब सामंतों को पर्याप्त धन और सैन्य शक्ति मिल जाती थी, तो वे खुद को स्वतंत्र घोषित करके नए राजवंशों की स्थापना करते थे।

  2. चोल साम्राज्य की स्थानीय स्व-शासन प्रणाली का वर्णन करें।

    चोल साम्राज्य अपनी स्थानीय स्व-शासन प्रणाली के लिए प्रसिद्ध था। गाँवों में सभाएँ होती थीं (जैसे उर और सभा) जिनमें भूमि के मालिक शामिल होते थे। ये सभाएँ गाँवों के प्रशासन और न्याय जैसे महत्वपूर्ण कार्य करती थीं।

  3. राज्यों में राजस्व संग्रह किस प्रकार किया जाता था?

    राजस्व संग्रह किसानों, पशुपालकों और कारीगरों से किया जाता था। राजा के खर्चों, मंदिरों के निर्माण और युद्धों के लिए इस राजस्व का उपयोग किया जाता था।

III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।

  • चोल मंदिरों की वास्तुकला और मूर्तिकला की विशेषताओं का वर्णन करें।

    चोल राजाओं ने भव्य और विशाल मंदिरों का निर्माण कराया, जैसे तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर और गंगईकोंडचोलपुरम का मंदिर। ये मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों के शिखर बहुत ऊँचे होते थे और दीवारों पर सुंदर नक्काशी और चित्रकला होती थी। ये मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं थे, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र भी थे। ये कारीगरों और कलाकारों के लिए एक प्रमुख केंद्र बन गए थे।

    चोलों की मूर्तिकला भी अत्यंत उत्कृष्ट थी, विशेषकर उनकी कांस्य प्रतिमाएँ। ये प्रतिमाएँ, जिनमें देवी-देवताओं और भक्तों को दर्शाया जाता था, विश्व प्रसिद्ध हैं। ये प्रतिमाएँ 'लॉस्ट वैक्स' (lost-wax) तकनीक का उपयोग करके बनाई जाती थीं। चोल काल की नटराज की कांस्य प्रतिमा, जिसमें शिव को नृत्य करते हुए दर्शाया गया है, इसका एक बेहतरीन उदाहरण है। ये प्रतिमाएँ उस समय की कलात्मक और धार्मिक उत्कृष्टता को दर्शाती हैं।

  • सातवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच के भारत में प्रशासनिक व्यवस्था किस प्रकार की थी? विस्तार से समझाइए।

    सातवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच, भारतीय उपमहाद्वीप में एक जटिल और विकेन्द्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था मौजूद थी। राजा अक्सर महाराजाधिराज जैसी बड़ी उपाधियाँ धारण करते थे। राज्यों में राजा सर्वोच्च था, लेकिन उसकी शक्ति सामंतों के समर्थन पर निर्भर करती थी। सामंत राजा को सैन्य सहायता प्रदान करते थे और बदले में अपने क्षेत्रों में शासन करते थे। जब कोई सामंत शक्तिशाली हो जाता था, तो वह राजा से स्वतंत्र होकर खुद का राज्य स्थापित कर लेता था। इस प्रकार, शक्ति का वितरण कई स्तरों पर था।

    राज्यों की आय का मुख्य स्रोत किसानों, पशुपालकों और व्यापारियों से लिया जाने वाला राजस्व था। इस राजस्व को इकट्ठा करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी। यह राजस्व राजा के खर्चों, मंदिरों और किलों के निर्माण और युद्धों के लिए इस्तेमाल होता था। चोल साम्राज्य में, प्रशासन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता स्थानीय स्व-शासन प्रणाली थी। गाँव की सभाएँ, जैसे उर और सभा, अपने गाँवों के मामलों को स्वयं प्रबंधित करती थीं। इससे शासन में विकेन्द्रीकरण और लोगों की भागीदारी सुनिश्चित होती थी, जो इस काल की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी।

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