अध्याय 10: अठारहवीं शताब्दी में नए राजनीतिक गठन (Eighteenth-Century Political Formations)
परिचय
18वीं शताब्दी भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण बदलाव का दौर था। मुगल साम्राज्य की शक्ति कमजोर हो रही थी, और इसके परिणामस्वरूप कई नए, स्वतंत्र और अर्ध-स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ। यह अध्याय इन राजनीतिक घटनाओं और उन शक्तियों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिन्होंने मुगल सत्ता के अवशेषों पर अपनी शक्ति स्थापित की।
10.1 मुगल साम्राज्य का पतन
1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद, मुगल साम्राज्य का तेजी से पतन हुआ। इसके मुख्य कारण थे:
- औरंगजेब की नीतियाँ: दक्कन में लंबे समय तक चलने वाले युद्धों ने साम्राज्य के वित्तीय और सैन्य संसाधनों को खत्म कर दिया।
- उत्तराधिकारी संघर्ष: औरंगजेब के बाद के सम्राटों के बीच लगातार सत्ता संघर्ष ने केंद्रीय प्रशासन को कमजोर कर दिया।
- जागीरों का संकट: जागीरदारों की संख्या में वृद्धि और राजस्व की कमी ने जागीरदारी व्यवस्था को संकट में डाल दिया।
- साम्राज्य के कुलीन वर्ग का विभाजन: कुलीन वर्ग विभिन्न गुटों (जैसे ईरानी, तुरानी) में बँट गया, जिससे प्रशासन में अस्थिरता आ गई।
10.2 नए राज्यों का उदय
मुगल शक्ति के कमजोर होते ही तीन प्रकार के नए राज्यों का उदय हुआ:
1. पुराने मुगल प्रांत
ये वे राज्य थे जो पहले मुगल साम्राज्य के बड़े और शक्तिशाली प्रांत थे। अब उनके गवर्नरों ने दिल्ली से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।
- अवध: इसका संस्थापक **सआदत खान** था। उसने राजस्व प्रशासन और सैन्य शक्ति पर अपना नियंत्रण स्थापित किया और दिल्ली के प्रभाव को कम कर दिया।
- बंगाल: **मुर्शीद कुली खान** ने बंगाल में अपनी शक्ति स्थापित की। उसने राजस्व प्रशासन को केंद्रीकृत किया और प्रभावशाली बैंकरों के साथ गठजोड़ कर लिया।
- हैदराबाद: **निजाम-उल-मुल्क आसफ जाह** ने दक्कन में इस राज्य की स्थापना की। उसने एक स्वतंत्र राज्य का निर्माण किया, जिसमें उसने अपनी सेना और प्रशासन को नियंत्रित किया।
2. वतन जागीरें
ये राजपूत शासकों के क्षेत्र थे, जिन्हें मुगलों ने स्वायत्तता दे रखी थी। अब इन राजपूतों ने अपनी स्वतंत्रता को और मजबूत किया।
- **राजपूतों का उदय:** **अंबर** और **जोधपुर** जैसे राज्यों ने अपनी ताकत बढ़ाई। **जय सिंह** ने जयपुर शहर की स्थापना की और खगोल विज्ञान में रुचि ली।
3. विद्रोही समूह
ये वे समूह थे जिन्होंने मुगल सत्ता के खिलाफ विद्रोह किया और अपने राज्यों की स्थापना की।
- सिख: गुरु गोबिंद सिंह के नेतृत्व में सिखों ने **खालसा** की स्थापना की। वे छोटे-छोटे समूहों में संगठित थे जिन्हें **मिसल** कहा जाता था। 19वीं शताब्दी में **महाराजा रणजीत सिंह** ने इन मिसलों को एकजुट करके एक शक्तिशाली सिख राज्य की स्थापना की।
- मराठा: **शिवाजी** के नेतृत्व में मराठा एक शक्तिशाली सैन्य शक्ति के रूप में उभरे। उनके उत्तराधिकारियों के अधीन, **पेशवा** (प्रधानमंत्री) वास्तविक शासक बन गए। मराठों ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया और पड़ोसी क्षेत्रों से **चौथ** और **सरदेशमुखी** नामक कर वसूल किए।
- जाट: दिल्ली-आगरा क्षेत्र में **जाटों** ने अपनी शक्ति का विस्तार किया। **चूड़ामन** के नेतृत्व में उन्होंने अपनी एक मजबूत राजनीतिक शक्ति स्थापित की। उन्होंने कई शहरों पर नियंत्रण स्थापित किया और **डीग** जैसे मजबूत किलों का निर्माण किया।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)
I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।
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अठारहवीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के पतन का एक प्रमुख कारण क्या था?
औरंगजेब की दक्कन में लंबी लड़ाईयाँ जिसने साम्राज्य के संसाधनों को खत्म कर दिया।
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हैदराबाद राज्य के संस्थापक कौन थे?
हैदराबाद राज्य के संस्थापक **निजाम-उल-मुल्क आसफ जाह** थे।
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मराठा साम्राज्य में पेशवा कौन थे?
पेशवा शिवाजी के उत्तराधिकारियों के प्रधानमंत्री थे, जो बाद में मराठा साम्राज्य के वास्तविक शासक बन गए।
II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।
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अठारहवीं शताब्दी में किन तीन प्रकार के राज्यों का उदय हुआ?
अठारहवीं शताब्दी में तीन प्रकार के राज्यों का उदय हुआ: पुराने मुगल प्रांत (जैसे अवध और बंगाल), वतन जागीरें (राजपूत राज्य), और विद्रोही समूहों द्वारा बनाए गए राज्य (जैसे मराठा और सिख)।
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सिखों ने खुद को कैसे संगठित किया?
सिखों ने पहले खुद को **खालसा** में संगठित किया, और फिर वे छोटे-छोटे समूहों में बँट गए जिन्हें **मिसल** कहा जाता था। 19वीं शताब्दी में महाराजा रणजीत सिंह ने इन मिसलों को एक शक्तिशाली राज्य में एकजुट किया।
III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।
मराठा साम्राज्य 17वीं शताब्दी के अंत में शिवाजी के नेतृत्व में एक शक्तिशाली शक्ति के रूप में उभरा। शिवाजी ने एक मजबूत सैन्य और प्रशासनिक व्यवस्था की नींव रखी, जिसने मुगल साम्राज्य को चुनौती दी। उनकी मृत्यु के बाद, उनके उत्तराधिकारियों के अधीन उनके प्रधानमंत्रियों, जिन्हें **पेशवा** कहा जाता था, ने वास्तविक शक्ति पर कब्जा कर लिया और मराठा साम्राज्य का विस्तार किया। बाजीराव-I के नेतृत्व में, मराठा शक्ति अपनी चरम सीमा पर थी।
मराठों ने अपनी शक्ति का विस्तार करने के लिए एक कुशल सैन्य रणनीति का उपयोग किया, जिसमें छापामार युद्ध (guerrilla warfare) प्रमुख था। उन्होंने पड़ोसी क्षेत्रों पर हमला किया और उनसे दो मुख्य कर वसूल किए: **चौथ** (कुल राजस्व का एक चौथाई) और **सरदेशमुखी** (10% अतिरिक्त कर)। इन करों ने मराठा साम्राज्य के विस्तार और वित्तीय मजबूती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अठारहवीं शताब्दी में, अवध, बंगाल और हैदराबाद जैसे मुगल प्रांतों के गवर्नरों ने दिल्ली की कमजोर केंद्रीय सत्ता का लाभ उठाया और धीरे-धीरे अपनी स्वतंत्रता स्थापित कर ली। इन गवर्नरों ने मुगल सम्राट द्वारा नियुक्त होने के बावजूद, अपने-अपने क्षेत्रों में अपनी शक्ति को मजबूत किया।
उन्होंने राजस्व प्रशासन पर अपना पूरा नियंत्रण स्थापित किया, जिससे उनकी वित्तीय शक्ति बढ़ गई। उन्होंने अपने लिए सैन्य बल तैयार किए और पुराने जागीरदारों की शक्ति को सीमित किया। इन गवर्नरों ने दिल्ली को राजस्व भेजना कम कर दिया या पूरी तरह बंद कर दिया। इस प्रकार, ये क्षेत्र नाममात्र के लिए ही मुगल साम्राज्य का हिस्सा रहे, जबकि वास्तविकता में वे स्वतंत्र शासकों द्वारा चलाए जा रहे थे। इस प्रक्रिया ने भारत में एक नए राजनीतिक मानचित्र को जन्म दिया, जहाँ छोटे और शक्तिशाली क्षेत्रीय राज्य उभरे।
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