अध्याय 4: लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना (Growing up as Boys and Girls)
परिचय
समाज में लड़के और लड़कियों के बड़ा होने के तरीके में बहुत अंतर होता है। यह अंतर उनके बचपन में ही शुरू हो जाता है, जब उन्हें अलग-अलग खिलौने दिए जाते हैं, अलग-अलग काम करने के लिए कहा जाता है और अलग-अलग व्यवहार की उम्मीद की जाती है। इस अध्याय में, हम समझेंगे कि समाज कैसे लैंगिक पहचान (gender identity) बनाता है और यह हमारे जीवन के अनुभवों को कैसे प्रभावित करता है।
4.1 समाज में लड़कों और लड़कियों की भूमिका
समाज में, लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग **भूमिकाएँ** और अपेक्षाएँ निर्धारित हैं।
- अपेक्षाएँ: लड़कों से अपेक्षा की जाती है कि वे मजबूत, साहसी और स्वतंत्र हों। वहीं, लड़कियों से विनम्र, आज्ञाकारी और घरेलू कामों में निपुण होने की उम्मीद की जाती है।
- भेदभाव: यह भेदभाव अक्सर बचपन से ही शुरू हो जाता है। लड़कों को खेलने के लिए कार और बंदूकें दी जाती हैं, जबकि लड़कियों को गुड़िया और रसोई का सामान। यह उन्हें उनके भविष्य की भूमिकाओं के लिए तैयार करने का एक तरीका माना जाता है।
- कार्य का विभाजन: घर के काम, जैसे खाना बनाना, सफाई करना और बच्चों की देखभाल करना, आमतौर पर महिलाओं की जिम्मेदारी मानी जाती है। पुरुषों को बाहर के काम करने वाला माना जाता है।
4.2 घर और काम का मूल्य
समाज अक्सर घर के कामों को कम महत्व देता है।
- अदृश्य काम: महिलाओं द्वारा किए जाने वाले घर के काम को अक्सर 'काम' नहीं माना जाता क्योंकि इसके लिए उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता। यह काम श्रम के रूप में नहीं देखा जाता, जबकि यह बहुत मेहनत और समय लेता है।
- अमान्यता: घर के काम को महत्वहीन मानने से महिलाओं के योगदान को कम करके आंका जाता है। यह सोच महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर बनाती है।
4.3 लैंगिक असमानता को चुनौती
कई महिलाओं और पुरुषों ने सदियों से इस लैंगिक असमानता को चुनौती दी है।
- समानता के लिए संघर्ष: महिलाएं अपने अधिकारों के लिए लगातार संघर्ष कर रही हैं, जैसे शिक्षा का अधिकार, समान वेतन का अधिकार, और राजनीतिक भागीदारी का अधिकार।
- सरकार की भूमिका: सरकार ने इस असमानता को कम करने के लिए कई कानून और योजनाएँ बनाई हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए सभी के लिए मुफ्त शिक्षा का प्रावधान, और समान काम के लिए समान वेतन का कानून।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)
I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।
-
'लैंगिक पहचान' (Gender Identity) क्या है?
यह समाज द्वारा निर्धारित उन भूमिकाओं, व्यवहारों और अपेक्षाओं को संदर्भित करता है जो पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग होती हैं।
-
लड़कों और लड़कियों के बड़ा होने में अंतर कैसे किया जाता है?
उन्हें बचपन से ही अलग-अलग खिलौने, कपड़े और काम दिए जाते हैं, जिससे उनकी भूमिकाएँ तय हो जाती हैं।
-
घर के कामों को अक्सर 'काम' क्यों नहीं माना जाता?
क्योंकि यह काम अवैतनिक होता है और इसे अक्सर स्वाभाविक पारिवारिक जिम्मेदारी माना जाता है।
II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।
-
आपके अनुसार, घर के कामों का क्या महत्व है?
घर के काम परिवार के सदस्यों के जीवन को व्यवस्थित और आरामदायक बनाते हैं। ये काम परिवार की भलाई के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, भले ही उन्हें पैसे न मिलते हों।
-
समाज में लैंगिक समानता लाने के लिए सरकार क्या कर रही है?
सरकार ने शिक्षा के अधिकार, समान वेतन कानून और महिलाओं के लिए आरक्षण जैसे कानून और योजनाएँ बनाई हैं ताकि लैंगिक असमानता को कम किया जा सके।
-
लड़कों से अलग व्यवहार करने पर लड़कियों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
यह लड़कियों में आत्मविश्वास की कमी पैदा कर सकता है और उन्हें यह महसूस करा सकता है कि वे लड़कों से कमतर हैं, जिससे उनके अवसरों और विकल्पों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।
समाज में महिलाओं द्वारा किए जाने वाले काम, विशेष रूप से घरेलू कामों को अक्सर कम महत्व दिया जाता है क्योंकि इन कामों के लिए उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता। यह एक ऐतिहासिक धारणा पर आधारित है कि पुरुष 'बाहर' काम करके पैसा कमाते हैं, जबकि महिलाएँ 'घर' का प्रबंधन करती हैं। चूंकि घरेलू काम से कोई आर्थिक लाभ नहीं होता, इसलिए इसे श्रम या वास्तविक काम नहीं माना जाता। यह सोच समाज में गहराई से बैठी हुई है कि केवल वही काम मूल्यवान है जिसके लिए पैसा मिलता है।
मैं इस धारणा से सहमत नहीं हूँ। घरेलू काम जैसे खाना बनाना, घर की सफाई, बच्चों की देखभाल और बुजुर्गों की सेवा करना, बहुत समय और ऊर्जा लेता है। ये काम परिवार के सदस्यों को स्वस्थ और खुश रखने के लिए आवश्यक हैं। यदि ये काम नहीं किए जाएँ तो परिवार का जीवन अव्यवस्थित हो जाएगा। अगर इन कामों के लिए किसी बाहरी व्यक्ति को रखा जाए तो इसके लिए बहुत पैसा खर्च करना पड़ेगा। इसलिए, महिलाओं द्वारा निःशुल्क किए जाने वाले इन कामों का आर्थिक और सामाजिक मूल्य बहुत अधिक है। इन कामों को कम महत्व देना एक अन्यायपूर्ण सामाजिक प्रथा है।
लैंगिक समानता लाने के लिए हमें व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर प्रयास करने होंगे। सबसे पहले, हमें बचपन से ही लड़कों और लड़कियों को समान अवसर देने चाहिए। उन्हें एक ही तरह के खिलौने, कपड़े और शैक्षिक अवसर प्रदान करने चाहिए। घर के कामों को केवल लड़कियों की जिम्मेदारी नहीं मानना चाहिए, बल्कि लड़कों को भी इसमें शामिल करना चाहिए। इससे वे घरेलू श्रम का सम्मान करना सीखेंगे और यह धारणा बदलेगी कि कुछ काम केवल महिलाओं के लिए हैं।
सामाजिक स्तर पर, हमें महिलाओं के योगदान को स्वीकार और महत्व देना चाहिए, चाहे वह घर पर हो या बाहर। सरकार को महिलाओं के लिए रोजगार और शिक्षा के अवसर बढ़ाने के लिए नीतियाँ बनानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कार्यस्थल पर लैंगिक भेदभाव न हो। समान काम के लिए समान वेतन के सिद्धांत को सख्ती से लागू करना चाहिए। मीडिया को भी लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ने वाली सामग्री दिखानी चाहिए। जब समाज में हर व्यक्ति लैंगिक समानता का महत्व समझेगा, तभी एक न्यायपूर्ण और संतुलित समाज का निर्माण हो पाएगा।
(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ़ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। दिखावट भिन्न हो सकती है।)