अध्याय 3: रेशों से वस्त्र तक (Fibre to Fabric)
परिचय
हम अलग-अलग मौसमों में अलग-अलग तरह के कपड़े पहनते हैं। ये कपड़े **रेशों (Fibers)** से बने होते हैं। रेशे दो प्रकार के होते हैं: **प्राणी रेशे (Animal Fibres)** और **पादप रेशे (Plant Fibres)**। इस अध्याय में, हम ऊन और रेशम जैसे प्राणी रेशों के बारे में विस्तार से जानेंगे।
3.1 ऊन (Wool)
ऊन एक **प्राणी रेशा** है जो हमें विभिन्न जानवरों, जैसे भेड़, बकरी, याक और ऊँट के बालों से मिलता है। इन जानवरों के शरीर पर बालों की मोटी परत होती है जो उन्हें ठंड से बचाती है। ये बाल ही ऊन का स्रोत होते हैं।
भेड़ों से ऊन प्राप्त करने की प्रक्रिया
भेड़ों से ऊन प्राप्त करने और उसे धागे में बदलने की एक लंबी प्रक्रिया होती है। इसके मुख्य चरण निम्नलिखित हैं:
- ऊन की कटाई (Shearing): सबसे पहले, भेड़ के शरीर से बालों की परत को मशीन से उतार लिया जाता है। इस प्रक्रिया को ऊन की कटाई कहते हैं। यह अक्सर गर्म मौसम में किया जाता है ताकि भेड़ों को कोई परेशानी न हो।
- अभिमार्जन (Scouring): उतारे गए ऊन को टंकियों में डालकर अच्छी तरह धोया जाता है ताकि उसमें से चिकनाई, धूल और गंदगी हट जाए। इस प्रक्रिया को अभिमार्जन कहते हैं।
- छँटाई (Sorting): अभिमार्जन के बाद, रोएँदार ऊन को अलग-अलग बनावट (texture) वाले हिस्सों में छाँटा जाता है।
- बर को निकालना (Removing of Burrs): छोटे-छोटे कोमल रोएँदार रेशों (जिन्हें बर कहते हैं) को छाँटकर अलग किया जाता है। ये वही बर होते हैं जो कभी-कभी आपके स्वेटर पर आ जाते हैं।
- रंगाई (Dyeing): ऊन के प्राकृतिक रंग (सफेद, भूरा या काला) को विभिन्न रंगों में रंगा जाता है।
- कम्घी करना और कताई (Combing and Spinning): अंत में, रेशों को सीधा करके सुलझाया जाता है और फिर उन्हें लपेटकर धागा बनाया जाता है, जिसे बाद में बुनाई के लिए उपयोग किया जाता है।
3.2 रेशम (Silk)
रेशम भी एक **प्राणी रेशा** है जो **रेशम कीट (Silkworm)** द्वारा बनाया जाता है। रेशम का उपयोग सुंदर और चमकदार कपड़े बनाने के लिए किया जाता है। रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम कीट पालन को **रेशम उत्पादन (Sericulture)** कहते हैं।
रेशम कीट का जीवन चक्र
रेशम कीट का जीवन चक्र चार अवस्थाओं से होकर गुजरता है:
- अंडा (Egg): मादा रेशम कीट शहतूत (mulberry) के पत्तों पर अंडे देती है।
- डिंभक या कैटरपिलर (Larva/Caterpillar): अंडों से डिंभक निकलते हैं जिन्हें कैटरपिलर या रेशम कीट कहते हैं। ये शहतूत के पत्ते खाकर बड़े होते हैं।
- कोकून (Cocoon): जब कैटरपिलर अपने जीवन चक्र की अगली अवस्था, प्यूपा में जाने के लिए तैयार होता है, तो वह अपने चारों ओर एक जाल बुनता है। इस जाल के अंदर वह अपने सिर को अंग्रेजी के आठ (8) के आकार में घुमाकर एक प्रोटीन पदार्थ स्रावित करता है जो हवा के संपर्क में आने पर रेशम का धागा बन जाता है। इस पूरे आवरण को **कोकून** कहते हैं।
- प्यूपा और व्यस्क शलभ (Pupa and Adult Moth): कोकून के अंदर ही कैटरपिलर प्यूपा में बदल जाता है और फिर पूरी तरह से विकसित होने के बाद कोकून को तोड़कर व्यस्क शलभ (मoth) के रूप में बाहर निकलता है।
कोकून से रेशम प्राप्त करना
रेशम प्राप्त करने के लिए कोकूनों को व्यस्क शलभ बनने से पहले ही गर्म पानी में या भाप में रखा जाता है। इससे कोकून के अंदर का रेशम कीट मर जाता है और रेशम के रेशे अलग हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को **रेशम की रीलिंग (Reeling)** कहते हैं। इसके बाद, रेशम के रेशों को धागों में कातकर बुनाई के लिए उपयोग किया जाता है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)
I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।
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ऊन और रेशम किस प्रकार के रेशे हैं?
ऊन और रेशम प्राणी रेशे (Animal Fibres) हैं।
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रेशम कीट का भोजन क्या है?
रेशम कीट का भोजन शहतूत (Mulberry) के पत्ते हैं।
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भेड़ों से ऊन प्राप्त करने की प्रक्रिया का पहला चरण क्या है?
पहला चरण ऊन की कटाई (Shearing) है।
II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।
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रेशम कीट के जीवन चक्र में कोकून का क्या महत्व है?
कोकून रेशम कीट के जीवन चक्र की एक महत्वपूर्ण अवस्था है। यह एक सुरक्षात्मक आवरण है जिसके अंदर कैटरपिलर प्यूपा में बदलता है। इसी कोकून से रेशम का धागा प्राप्त होता है।
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ऊन की कटाई गर्म मौसम में ही क्यों की जाती है?
ऊन की कटाई गर्म मौसम में इसलिए की जाती है ताकि भेड़ों को उनके सुरक्षात्मक बालों के बिना ठंड न लगे। ऊन की यह मोटी परत उन्हें सर्दियों में ठंड से बचाती है।
III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।
भेड़ों से ऊन प्राप्त करने के लिए कई चरणों से गुजरना पड़ता है। सबसे पहले, **ऊन की कटाई (Shearing)** होती है, जिसमें भेड़ के शरीर से बालों की मोटी परत को मशीनों की मदद से हटाया जाता है। यह प्रक्रिया आमतौर पर गर्मियों में की जाती है। इसके बाद, इस उतारे गए ऊन को टंकियों में डालकर अच्छी तरह से धोया जाता है, जिसे **अभिमार्जन (Scouring)** कहते हैं। इस चरण में ऊन से चिकनाई, धूल और गंदगी दूर हो जाती है।
अभिमार्जन के बाद, **छँटाई (Sorting)** का चरण आता है, जिसमें ऊन को उसकी बनावट के आधार पर अलग-अलग समूहों में बाँटा जाता है। इसमें से छोटे और मुलायम रोएँदार रेशे, जिन्हें **बर (Burrs)** कहते हैं, हटा दिए जाते हैं। फिर, साफ किए गए ऊन को इच्छित रंगों में **रंगा (Dyeing)** जाता है। अंतिम चरण में, रेशों को सीधा करके, सुलझाकर और लपेटकर धागे बनाए जाते हैं। इन धागों का उपयोग बुनाई करके ऊनी वस्त्र बनाने में किया जाता है।
रेशम प्राप्त करने के लिए रेशम कीटों के पालन को **रेशम उत्पादन (Sericulture)** कहते हैं। इस प्रक्रिया की शुरुआत तब होती है जब मादा रेशम कीट सैकड़ों अंडे देती है। इन अंडों को सावधानी से उचित तापमान और नमी में रखा जाता है। जब अंडों से डिंभक (larvae) निकलते हैं, जिन्हें कैटरपिलर या रेशम कीट कहते हैं, तो उन्हें शहतूत की ताजी पत्तियों पर रखा जाता है। ये कैटरपिलर दिन-रात पत्तियाँ खाकर बड़े होते हैं।
लगभग 25-30 दिनों के बाद, कैटरपिलर खाना बंद कर देते हैं और कोकून बनाने के लिए तैयार हो जाते हैं। वे अपने चारों ओर रेशम का धागा लपेटकर एक गोलाकार आवरण बनाते हैं। रेशम प्राप्त करने के लिए, इन कोकूनों को व्यस्क शलभ के बाहर निकलने से पहले ही गर्म पानी में या भाप में डाल दिया जाता है। इस प्रक्रिया से रेशम के रेशे ढीले हो जाते हैं, और उन्हें रीलिंग मशीनों द्वारा सावधानीपूर्वक खोलकर रेशम का धागा प्राप्त कर लिया जाता है। यह धागा ही रेशमी कपड़े बनाने के काम आता है।
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