अध्याय 6: सदाचारः (सदाचार)
परिचय
‘सदाचारः’ शब्द ‘सत्’ और ‘आचार’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है ‘अच्छा आचरण’ या ‘अच्छे व्यवहार’। यह अध्याय हमें जीवन में अच्छे व्यवहार और नैतिक मूल्यों का पालन करने की प्रेरणा देता है। इसमें श्लोकों के माध्यम से समय का सदुपयोग, बड़ों का सम्मान, सत्य बोलना और दूसरों के प्रति दयालुता जैसे गुणों का महत्व समझाया गया है।
6.1 पाठ का सार
इस अध्याय में बताया गया है कि समय पर काम करना बहुत आवश्यक है। हमें कल का काम आज और दोपहर का काम सुबह कर लेना चाहिए। हमें कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए, बल्कि सत्य और प्रिय बोलना चाहिए। हमें अपने गुरुओं, माता-पिता और बड़े-बुजुर्गों की मन, वचन और कर्म से हमेशा सेवा करनी चाहिए। इसके साथ ही, हमें मित्रों के साथ झगड़ा नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे कभी सुख नहीं मिलता। इस प्रकार, सदाचार हमें एक अनुशासित और सुखी जीवन जीने का मार्ग दिखाता है।
6.2 श्लोकों का हिन्दी अनुवाद
पहला श्लोक
श्लोक: श्वः कार्यमद्य कुर्वीत पूर्वाह्णे चापराह्णिकम्। न हि प्रतीक्षते मृत्युः कृतमस्य न वा कृतम्॥
हिन्दी अनुवाद: कल का काम आज करना चाहिए और दोपहर के बाद का काम दोपहर से पहले कर लेना चाहिए। क्योंकि मृत्यु किसी की प्रतीक्षा नहीं करती कि इसका काम हुआ है या नहीं।
दूसरा श्लोक
श्लोक: सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्। प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः॥
हिन्दी अनुवाद: सच बोलना चाहिए और मधुर बोलना चाहिए। ऐसा सच नहीं बोलना चाहिए जो अप्रिय हो। और झूठी बात भी प्रिय नहीं बोलनी चाहिए। यही सनातन धर्म है।
तीसरा श्लोक
श्लोक: सर्वदा व्यवहारे स्यात् औदार्यं सत्यता तथा। ऋजुता मृदुता चापि कौटिल्यं न कदाचन॥
हिन्दी अनुवाद: व्यवहार में हमेशा उदारता, सच्चाई, सरलता और कोमलता होनी चाहिए, परन्तु कभी भी कुटिलता नहीं होनी चाहिए।
चौथा श्लोक
श्लोक: गुरुन् मातापितरौ च मनसा कर्मणा वाचा सदा सेवेत॥
हिन्दी अनुवाद: गुरुओं और माता-पिता की मन, कर्म और वचन से हमेशा सेवा करनी चाहिए।
6.3 मुख्य शब्दार्थ
- **सदाचारः** - अच्छा आचरण
- **श्वः** - कल (आने वाला)
- **अद्य** - आज
- **पूर्वाह्णे** - सुबह में
- **अपराह्णिकम्** - दोपहर के बाद का काम
- **सत्यम्** - सच
- **प्रियम्** - मीठा/मधुर
- **अनृतम्** - झूठ
- **व्यवहारे** - व्यवहार में
- **औदार्यम्** - उदारता
- **ऋजुता** - सरलता
- **मृदुता** - कोमलता
- **कौटिल्यम्** - कुटिलता/टेढ़ापन
- **सेवेत** - सेवा करनी चाहिए
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)
सही जोड़ी (Matching)
- 1. श्वः कार्यम् अद्य कुर्वीत
- 2. सत्यं ब्रूयात् प्रियं च न अनृतम्
- 3. प्रियं च सत्यं ब्रूयात्
- 4. मनसा कर्मणा वाचा सदा सेवेत
- 5. सर्वदा व्यवहारे स्यात् औदार्यम् ऋजुता च
सही विकल्प (Multiple Choice)
- 1. श्वः कार्यम् कदा कुर्वीत? सही उत्तर: ग) अद्य
- 2. किं ब्रूयात्? सही उत्तर: ग) सत्यं प्रियं च
- 3. केन सह कलहं कृत्वा जनः सुखी न भवति? सही उत्तर: क) मित्रेण
I. एक पद में उत्तर दें (संस्कृत में)
-
कदा सत्यं ब्रूयात्?
सर्वदा।
-
कस्य कलहं कृत्वा जनः सुखी न भवति?
मित्रेण।
-
कौ नित्यं सेवेत?
गुरुन् मातापितरौ च।
II. एक वाक्य में उत्तर दें (हिन्दी में)
-
सदाचार का क्या अर्थ है?
सदाचार का अर्थ है अच्छा आचरण या व्यवहार।
-
हमें किनके साथ कलह नहीं करना चाहिए?
हमें अपने मित्र के साथ कलह (झगड़ा) नहीं करना चाहिए।
-
हमें अपने व्यवहार में किन गुणों को अपनाना चाहिए?
हमें अपने व्यवहार में उदारता, सच्चाई, सरलता और कोमलता जैसे गुणों को अपनाना चाहिए।
III. विस्तार से उत्तर दें (हिन्दी में)
श्लोक में कहा गया है कि हमें हमेशा सत्य और मधुर बात ही बोलनी चाहिए। हमें ऐसा सच नहीं बोलना चाहिए जो सामने वाले को अप्रिय लगे और उसे ठेस पहुंचाए। उदाहरण के लिए, अगर कोई मित्र मोटा है, तो उसे सीधे तौर पर 'तुम मोटे हो' कहना अप्रिय सत्य है। इसकी जगह हमें ऐसा कुछ कहना चाहिए जिससे उसे ठेस न पहुँचे। हमें झूठी प्रशंसा भी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह भी गलत है।
मित्रों से झगड़ा करने के कई नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। इस पाठ के अनुसार, जो व्यक्ति मित्र से झगड़ा करता है, वह कभी सुखी नहीं रह पाता। झगड़ा करने से मित्रता समाप्त हो जाती है, मन में दुःख और पश्चाताप की भावना आती है, और व्यक्ति अकेला पड़ जाता है। इस प्रकार, मित्रों से कलह करने से जीवन में सुख और शांति खत्म हो जाती है।
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