अध्याय 5: पण्डिता रमाबाई (पंडिता रमाबाई)
परिचय
यह अध्याय महान समाज सुधारिका और महिला शिक्षा की अग्रदूत **पंडिता रमाबाई** के जीवन और कार्यों पर आधारित है। यह पाठ हमें बताता है कि कैसे उन्होंने अपने समय की सामाजिक बाधाओं को पार करते हुए न केवल स्वयं शिक्षा प्राप्त की, बल्कि अपना पूरा जीवन दूसरी महिलाओं के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया।
5.1 पाठ का सार
1858 ईसवी में जन्मी रमाबाई के पिता अनंत शास्त्री डोंगरे एक महान विद्वान थे, जिन्होंने अपनी पत्नी और बेटी को संस्कृत पढ़ाने जैसी साहसी परंपरा को तोड़ा। माता-पिता के निधन के बाद रमाबाई ने अपने बड़े भाई के साथ पूरे भारत का भ्रमण किया। उन्होंने संस्कृत का गहन अध्ययन किया और कोलकाता में उन्हें 'पंडिता' और 'सरस्वती' की उपाधि से सम्मानित किया गया। 1880 में विपिन बिहारी दास से विवाह के बाद उनके पति का निधन हो गया, जिसके बाद वह अपनी पुत्री के साथ इंग्लैंड चली गईं। वहाँ उन्होंने ईसाई धर्म के सिद्धांतों का अध्ययन किया और बाद में अमेरिका भी गईं। भारत लौटकर उन्होंने विधवाओं और निराश्रित महिलाओं के लिए पूना में 'शारदा सदन' और बाद में 'मुक्ति मिशन' की स्थापना की। 1922 में उनका निधन हुआ, लेकिन महिला शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान अविस्मरणीय है।
5.2 पाठ का हिन्दी अनुवाद
सन् 1858 ईसवी में पंडिता रमाबाई का जन्म हुआ। उनके पिता अनंत शास्त्री डोंगरे और माता लक्ष्मीबाई थीं। उस समय, महिलाओं की शिक्षा की स्थिति बहुत चिंतनीय थी। रमाबाई की माताजी ने उन्हें संस्कृत की शिक्षा दी। माता-पिता के निधन के बाद, उन्होंने अपने भाई के साथ पूरे भारत का भ्रमण किया। समय के साथ, रमाबाई ने संस्कृत की विद्वत्ता हासिल की।
कोलकाता पहुँचकर, उन्हें 'पंडिता' और 'सरस्वती' की उपाधि से सम्मानित किया गया। वहीं, उन्होंने ब्राह्म समाज से प्रभावित होकर वेदों का अध्ययन किया। 1880 में उन्होंने विपिन बिहारी दास से विवाह किया। दुर्भाग्यवश, विवाह के डेढ़ साल बाद उनके पति का निधन हो गया। इसके बाद, वह अपनी पुत्री मनोरमा के साथ मातृभूमि महाराष्ट्र लौट आईं।
महिलाओं के सम्मान और शिक्षा के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड और बाद में अमेरिका भी गई। वहाँ से भारत लौटकर, उन्होंने पूना शहर में निराश्रित महिलाओं के लिए 'शारदा सदन' की स्थापना की। इसके बाद, उन्होंने 'मुक्ति मिशन' नामक एक संस्था स्थापित की, जिसमें निराश्रित और विधवा महिलाओं को जीवन जीने का अवसर मिला। 1922 में उनका निधन हो गया।
5.3 मुख्य शब्दार्थ
- **पण्डिता** - विद्वान महिला
- **पितुः** - पिता के
- **चिंताम्** - चिंता
- **मातुः** - माता से
- **परित्यज्य** - छोड़कर
- **भ्रमणम्** - घूमना
- **विपिनबिहारीदासेन** - विपिन बिहारी दास से
- **पुत्र्या** - पुत्री के साथ
- **निराश्रित** - बेसहारा
- **सदनम्** - घर
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)
सही जोड़ी (Matching)
- 1. रमाबाई का जन्म 1858 ईसवी में
- 2. संस्कृत शिक्षा माता से प्राप्त हुई
- 3. पंडिता-सरस्वती की उपाधि कोलकाता में
- 4. विपिन बिहारी दास के साथ विवाह 1880 ईसवी में
- 5. मुक्ति मिशन की स्थापना महाराष्ट्र में
सही विकल्प (Multiple Choice)
- 1. रमाबाई का जन्म किस वर्ष हुआ था? सही उत्तर: क) 1858
- 2. रमाबाई ने किससे संस्कृत सीखी? सही उत्तर: ख) अपनी माता से
- 3. रमाबाई को 'पंडिता' और 'सरस्वती' की उपाधि कहाँ मिली? सही उत्तर: घ) कलकत्ता
I. एक पद में उत्तर दें (संस्कृत में)
-
रमाबाई के पिता का क्या नाम था?
अनन्तशास्त्री डोंगरे।
-
रमाबाई ने किस वर्ष विवाह किया?
1880 (अष्टादश-अशीति-तमे) ईसवीये।
-
रमाबाई को किस भाषा की विद्वत्ता के कारण 'पंडिता' की उपाधि मिली?
संस्कृतभाषायाः।
II. एक वाक्य में उत्तर दें (हिन्दी में)
-
रमाबाई ने किसके साथ विवाह किया?
रमाबाई ने विपिन बिहारी दास के साथ विवाह किया।
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रमाबाई ने अपना जीवन किस कार्य के लिए समर्पित किया?
रमाबाई ने अपना जीवन महिलाओं के सम्मान और शिक्षा के लिए समर्पित किया।
-
रमाबाई का निधन कब हुआ?
रमाबाई का निधन 1922 (द्वाविंशति-तमे) ईसवी में हुआ।
III. विस्तार से उत्तर दें (हिन्दी में)
पंडिता रमाबाई के जीवन से हमें कई महत्वपूर्ण प्रेरणाएं मिलती हैं। सबसे पहले, उनकी अदम्य इच्छाशक्ति और साहस हमें सिखाता है कि सामाजिक बंधनों को तोड़कर भी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने एक ऐसे समय में संस्कृत का अध्ययन किया जब महिलाओं के लिए यह लगभग वर्जित था। दूसरा, उनके जीवन का उद्देश्य केवल स्वयं का उत्थान नहीं था, बल्कि उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज की उन महिलाओं (विधवाओं और निराश्रितों) के लिए समर्पित कर दिया, जिन्हें सबसे अधिक सहायता की आवश्यकता थी। उनका जीवन हमें सिखाता है कि शिक्षा और सेवा के माध्यम से ही समाज में वास्तविक परिवर्तन लाया जा सकता है।
महिलाओं की शिक्षा और सम्मान के लिए रमाबाई ने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए:
- उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा पूरी करने के लिए इंग्लैंड और अमेरिका तक की यात्रा की, जो उस समय एक बहुत बड़ा कदम था।
- भारत लौटकर उन्होंने पूना में 'शारदा सदन' की स्थापना की। यह संस्था निराश्रित और विधवा महिलाओं को आश्रय और शिक्षा प्रदान करती थी।
- बाद में उन्होंने महाराष्ट्र में 'मुक्ति मिशन' की स्थापना की, जहाँ हजारों महिलाओं को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर मिला। इस संस्था में महिलाओं को न केवल शिक्षा दी जाती थी, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्प और व्यवसाय भी सिखाए जाते थे।
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