अध्याय 3: स्वावलम्बनम् (आत्मनिर्भरता)
परिचय
यह अध्याय दो मित्रों, श्रीकण्ठः और कृष्णमूर्तिः के बीच हुई बातचीत पर आधारित है। इस पाठ में एक अमीर मित्र और एक गरीब किन्तु आत्मनिर्भर मित्र के बीच तुलना की गई है। यह पाठ हमें बताता है कि आत्मनिर्भरता ही सबसे बड़ा सुख है और दूसरों पर निर्भर रहना हमेशा दुख का कारण होता है।
3.1 पाठ का सार
श्रीकण्ठः एक धनी परिवार का लड़का था, जिसके घर में सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ और नौकर-चाकर थे। उसका मित्र कृष्णमूर्तिः गरीब था, जिसके घर में कोई नौकर नहीं था। एक बार श्रीकण्ठः कृष्णमूर्तिः के घर गया और उसकी सादगी देखकर दुखी हुआ। उसने कहा कि तुम्हारे घर में एक भी सेवक नहीं है, यह देखकर मुझे बहुत दुख हो रहा है। तब कृष्णमूर्तिः ने मुस्कुराते हुए कहा कि मेरे पास भी आठ सेवक हैं- मेरे दो हाथ, दो पैर, दो कान और दो आँखें। ये सभी हर पल मेरे साथ रहते हैं और मेरा काम करते हैं। उसने कहा कि स्वावलम्बनम् (आत्मनिर्भरता) में ही सबसे बड़ा सुख है, क्योंकि इसमें कभी कष्ट नहीं होता, जबकि दूसरों पर निर्भर रहने से हमेशा दुख मिलता है। यह सुनकर श्रीकण्ठः को अपनी गलती का एहसास हुआ।
3.2 पाठ का हिन्दी अनुवाद
श्रीकण्ठः: मित्र, तुम्हारे आतिथ्य से मैं बहुत संतुष्ट हूँ। परन्तु मुझे एक बात का बहुत दुख है कि तुम्हारे घर में एक भी सेवक नहीं है। मेरा आतिथ्य करने के लिए तुम दोनों को बहुत कष्ट हुआ।
कृष्णमूर्तिः: मित्र, मेरे भी आठ सेवक हैं- दो हाथ, दो पैर, दो कान और दो आँखें। ये सभी हर पल मेरे सहायक हैं। परन्तु तुम्हारे सेवक हमेशा उपस्थित नहीं हो सकते। जब तुमको उनकी आवश्यकता होती है, तब वे अनुपस्थित हो जाते हैं।
श्रीकण्ठः: मित्र, तुम्हारी बातें सुनकर मेरे मन में बहुत प्रसन्नता हुई है। आज से मैं भी अपना कार्य स्वयं करूँगा।
3.3 मुख्य शब्दार्थ
- **स्वावलम्बनम्** - आत्मनिर्भरता
- **आतिथ्यम्** - अतिथि सत्कार
- **कर्मकरः** - सेवक/काम करने वाला
- **उपस्थिताः** - उपस्थित
- **सहायकम्** - सहायक
- **भवताम्** - आपका
- **संतुष्टः** - संतुष्ट
- **परावलम्बनम्** - दूसरों पर निर्भरता
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)
सही जोड़ी (Matching)
- 1. श्रीकण्ठस्य आतिथ्यम् अतिथिरूपेण कृष्णमूर्तिः करोति
- 2. कृष्णमूर्तेः गृहे द्वावेव कर्मकरौ
- 3. श्रीकण्ठः अतिथिरूपेण आगच्छत्
- 4. कृष्णमूर्तेः अष्टौ कर्मकराः नासन्
सही विकल्प (Multiple Choice)
- 1. कस्य गृहे सर्वविधानि सुखसाधनानि आसन्? सही उत्तर: ख) श्रीकण्ठस्य
- 2. कृष्णमूर्तेः गृहे कति कर्मकराः आसन्? सही उत्तर: ग) एकोऽपि न
- 3. स्वावलम्बनम् इति कः अर्थः? सही उत्तर: ख) आत्मनिर्भरता
I. एक पद में उत्तर दें (संस्कृत में)
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कः धनी आसीत्?
श्रीकण्ठः।
-
कृष्णमूर्तेः गृहे कति कर्मकराः आसन्?
एकोऽपि न। (कोई भी नहीं)
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श्रीकण्ठस्य कति सेवकाः आसन्?
अष्टौ।
II. एक वाक्य में उत्तर दें (हिन्दी में)
-
श्रीकण्ठः कृष्णमूर्तेः गृहं कदा अगच्छत्?
श्रीकण्ठः कृष्णमूर्तेः गृहं प्रातः नववादने अगच्छत्।
-
कृष्णमूर्तेः कति कर्मकराः आसन्?
कृष्णमूर्तेः आठ कर्मकर (दो हाथ, दो पैर, दो कान और दो आँखें) थे।
-
कृष्णमूर्तेः 'स्वकीयकर्मकरः' कः?
कृष्णमूर्तेः के स्वकीयकर्मकर उसके दो हाथ, दो पैर, दो कान और दो आँखें हैं।
III. विस्तार से उत्तर दें (हिन्दी में)
यह पाठ हमें आत्मनिर्भरता (स्वावलम्बनम्) का महत्व सिखाता है। इसमें बताया गया है कि हमें अपने कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। जो व्यक्ति अपना काम स्वयं करता है, वह हमेशा सुखी और संतुष्ट रहता है, जबकि जो दूसरों पर निर्भर रहता है, उसे हमेशा दूसरों की दया पर रहना पड़ता है और वह कभी भी पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं रह सकता। आत्मनिर्भरता हमें शारीरिक और मानसिक रूप से भी मजबूत बनाती है।
श्रीकण्ठ का घर बहुत ही भव्य और आलीशान था। उसके घर में सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ मौजूद थीं। उसके घर के विशाल कक्षों में 18 खंभे, 50 खिड़कियाँ, 44 दरवाजे और 360 पंखे थे। उसके घर में 10 नौकर हमेशा काम करते रहते थे। ये सभी चीजें दर्शाती हैं कि श्रीकण्ठ एक धनी व्यक्ति था जो अपनी हर जरूरत के लिए दूसरों पर निर्भर था।
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