अध्याय 5: वृक्षाह् (Trees) - प्रश्नोत्तर
अभ्यास के प्रश्न और उत्तर (Exercise Questions & Answers)
I. एक पद में उत्तर दें। (उत्तर एक शब्द या एक-दो वाक्यों में दें)
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वृक्षाह् किं रचयन्ति?
वृक्षाह् **वनम्** रचयन्ति। (पेड़ वन बनाते हैं।)
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वृक्षाः कैः पातालम् स्पृशन्ति?
वृक्षाः **पादैः** पातालम् स्पृशन्ति। (पेड़ अपने पैरों (जड़ों) से पाताल को छूते हैं।)
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वृक्षाः किं पश्यन्ति?
वृक्षाः **स्व-प्रतिबिम्बम्** पश्यन्ति। (पेड़ अपना प्रतिबिंब देखते हैं।)
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वृक्षाः किं ददति?
वृक्षाः **फलानि, छायाम्, काष्ठम्** च ददति। (पेड़ फल, छाया और लकड़ी देते हैं।)
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खगाः कुत्र आसते?
खगाः **वृक्षेषु** आसते। (पक्षी पेड़ों पर बैठते हैं।)
II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।
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वृक्षों को 'वनवासी' क्यों कहा गया है?
वृक्षों को 'वनवासी' इसलिए कहा गया है क्योंकि वे वनों में निवास करते हैं और स्वयं ही वन का निर्माण करते हैं। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं जाते, बल्कि स्थिर रहकर पूरे वन का परिवेश बनाते हैं।
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वृक्ष बिना जल पिए कैसे जीवित रहते हैं, जैसा कि पाठ में कहा गया है?
पाठ के अनुसार, वृक्ष स्वयं बिना जल पिए भी जीवित रहते हैं और दूसरों को जल (यानी वर्षा लाने में सहायक) और फल देते हैं। इसका सांकेतिक अर्थ है कि वे प्रकृति से प्राप्त संसाधनों से संतुष्ट रहते हुए भी दूसरों के लिए उपयोगी होते हैं।
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वृक्षों को ‘पयोदर्पणम्’ में अपना प्रतिबिंब देखने वाला क्यों कहा गया है?
वृक्षों को 'पयोदर्पणम्' (जल रूपी दर्पण) में अपना प्रतिबिंब देखने वाला इसलिए कहा गया है क्योंकि जब वे तालाब या नदी के किनारे खड़े होते हैं, तो जल की शांत सतह पर उनका स्पष्ट प्रतिबिंब दिखाई देता है, जैसे वे स्वयं को दर्पण में देख रहे हों।
III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।
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अध्याय 'वृक्षाह्' में वृक्षों के क्या-क्या गुण बताए गए हैं और समाज के लिए उनका क्या महत्व है?
अध्याय 'वृक्षाह्' में वृक्षों के अनेक उदात्त गुणों का वर्णन किया गया है जो उन्हें प्रकृति और समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बनाते हैं। सर्वप्रथम, वृक्षों को **वन निर्माता** (वनम् रचयन्ति) कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वे अकेले ही पूरे वन का निर्माण करते हैं और उसे हरा-भरा रखते हैं। वे अपने **पादैः (जड़ों) से पाताल को स्पर्श करते** हैं, जो उनकी गहराई और स्थिरता को दर्शाता है। वे स्वयं बिना जल पिए भी दूसरों को **फल और छाया** प्रदान करते हैं (फलम् छायाम् च ददति), जो उनके निस्वार्थ भाव और परोपकारिता का प्रतीक है। वृक्ष अत्यधिक गर्मी या सर्दी को सहन करते हुए भी दूसरों को आश्रय देते हैं।
समाज के लिए वृक्षों का महत्व अकथनीय है। वे हमें **ऑक्सीजन** प्रदान कर जीवन देते हैं, और कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर पर्यावरण को शुद्ध करते हैं। वे **वर्षा लाने में सहायक** होते हैं और **मिट्टी के कटाव (भू-क्षरण)** को रोकते हैं। उनके फल, पत्तियां, जड़ें और छाल औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। वृक्ष पशु-पक्षियों के लिए **आश्रय स्थल** होते हैं (खगाः वृक्षेषु आसते)। इसके अतिरिक्त, वे हमें **लकड़ी** देते हैं जिसका उपयोग फर्नीचर, भवन निर्माण और ईंधन के लिए होता है। वृक्षों की सुंदरता और हरियाली मानसिक शांति प्रदान करती है और सौंदर्यबोध बढ़ाती है। इस प्रकार, वृक्ष केवल पेड़ नहीं, बल्कि जीवन के आधार और प्रकृति के अमूल्य उपहार हैं, जिनके संरक्षण से ही मानव और समस्त जीव जगत का कल्याण संभव है।
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'परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः' - इस सूक्ति के संदर्भ में वृक्षों के योगदान का वर्णन करें।
संस्कृत की प्रसिद्ध सूक्ति **'परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः'** का अर्थ है कि **"वृक्ष परोपकार के लिए फलते हैं"**। यह सूक्ति वृक्षों के निःस्वार्थ स्वभाव और मानव तथा प्रकृति के प्रति उनके अथाह योगदान को अत्यंत सुंदर ढंग से व्यक्त करती है। वृक्ष स्वयं फल नहीं खाते, बल्कि अपने फल दूसरों के लिए प्रदान करते हैं। यह एक गहरा नैतिक संदेश देता है कि हमें भी वृक्षों के समान निःस्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई के लिए कार्य करना चाहिए। वृक्ष केवल फल ही नहीं देते, बल्कि जीवनदायिनी ऑक्सीजन, शीतल छाया, और शुद्ध वायु भी प्रदान करते हैं, ये सभी परोपकार के ही कार्य हैं।
वृक्षों का योगदान बहुआयामी है। वे पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं; **कार्बन डाइऑक्साइड** को अवशोषित कर **ऑक्सीजन** छोड़ते हैं, जिससे वायुमंडल शुद्ध होता है। उनकी जड़ें मिट्टी को बांधकर **भू-क्षरण** को रोकती हैं और **भूजल स्तर** को बनाए रखने में मदद करती हैं। वे पक्षियों और अनेक वन्यजीवों के लिए **प्राकृतिक आवास** प्रदान करते हैं। इसके अलावा, वृक्षों से हमें लकड़ी, औषधि, गोंद और अनेक उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। भीषण गर्मी में उनकी घनी छाया पथिकों और जीवों को आश्रय देती है। इस प्रकार, वृक्ष अपने पूरे जीवनकाल में बिना किसी अपेक्षा के दूसरों को देते रहते हैं, जो 'परोपकार' की सर्वोच्च भावना का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह सूक्ति हमें वृक्षों से प्रेरणा लेकर परोपकारी बनने और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए प्रेरित करती है।
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