अध्याय 11: पुष्पोत्सवः (Festival of Flowers) - प्रश्नोत्तर

यह अध्याय दिल्ली के प्रसिद्ध 'फूलवालों की सैर' (पुष्पोत्सव) नामक उत्सव का वर्णन करता है। यह उत्सव विभिन्न फूलों, पंखों और संगीत के साथ मनाया जाता है, और भारतीय संस्कृति की विविधता तथा एकता का प्रतीक है। इसमें ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डाला गया है।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)

I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।

  1. पुष्पोत्सवः केन नाम्ना प्रसिद्धः अस्ति?

    पुष्पोत्सवः **'फूलवालों की सैर'** इति नाम्ना प्रसिद्धः अस्ति। (फूलों का उत्सव 'फूलवालों की सैर' नाम से प्रसिद्ध है।)

  2. पुष्पोत्सवः कदा आयोज्यते?

    पुष्पोत्सवः **अक्तूबरमासे** आयोज्यते। (फूलों का उत्सव अक्टूबर महीने में आयोजित किया जाता है।)

  3. अस्मिन् उत्सवे मुख्यं आकर्षणं किम् अस्ति?

    अस्मिन् उत्सवे मुख्यं आकर्षणं **पुष्पनिर्मितानि व्यजनानि** अस्ति। (इस उत्सव में मुख्य आकर्षण फूलों से बने पंखे हैं।)

  4. कस्मिन् क्षेत्रे अयम् उत्सवः भवति?

    अयम् उत्सवः **मेहरौलीक्षेत्रे** भवति। (यह उत्सव मेहरौली क्षेत्र में होता है।)

  5. योगमायामन्दिरं कुत्र अस्ति?

    योगमायामन्दिरं **मेहरौलीक्षेत्रे** अस्ति। (योगमाया मंदिर मेहरौली क्षेत्र में है।)

II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।

  1. 'फूलवालों की सैर' उत्सव का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

    'फूलवालों की सैर' दिल्ली में मनाया जाने वाला एक अनूठा और प्राचीन उत्सव है। यह उत्सव फूलों के पंखों, नृत्य-गायन, कुश्ती और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ मनाया जाता है। यह विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोगों को एक साथ लाता है और भारत की धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक है।

  2. लोग फूलों के पंखे कहाँ अर्पित करते हैं?

    लोग फूलों के पंखे योगमाया मंदिर और बख्तियार काकी की दरगाह पर अर्पित करते हैं। यह क्रिया हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों की एकता और सद्भाव को दर्शाती है, जहाँ बिना किसी धार्मिक भेद के सभी मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं।

  3. यह उत्सव भारतीय संस्कृति की एकता को कैसे दर्शाता है?

    यह उत्सव भारतीय संस्कृति की एकता को दर्शाता है क्योंकि इसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग समान उत्साह से भाग लेते हैं। वे एक साथ देवी योगमाया के मंदिर और संत बख्तियार काकी की दरगाह पर फूलों के पंखे अर्पित करते हैं, जो सामाजिक सद्भाव और धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है।

III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।

  1. 'पुष्पोत्सवः' अध्याय के आधार पर 'फूलवालों की सैर' उत्सव का विस्तृत वर्णन करें।

    'पुष्पोत्सवः' अध्याय दिल्ली में मनाए जाने वाले एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उत्सव 'फूलवालों की सैर' का विस्तृत वर्णन करता है। यह उत्सव प्रतिवर्ष अक्टूबर महीने में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व फूलों की छटा, विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों और लोगों के उत्साह से भरपूर होता है। उत्सव की मुख्य विशेषता फूलों से बने बड़े-बड़े पंखे हैं, जिन्हें लोग अपने कंधों पर रखकर शोभा यात्रा निकालते हैं। ये पंखे गेंदा, गुलाब, चमेली और अन्य रंग-बिरंगे फूलों से बनाए जाते हैं, जो देखने में अत्यंत आकर्षक होते हैं।

    शोभा यात्रा मेहरौली क्षेत्र में स्थित योगमाया देवी के मंदिर से शुरू होकर प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह तक जाती है। लोग इन दोनों पवित्र स्थलों पर फूलों के पंखे और चादरें चढ़ाते हैं। इस उत्सव में केवल फूलों का ही प्रदर्शन नहीं होता, बल्कि अनेक कलाबाजियाँ, नृत्य, गायन और कुश्ती जैसे मनोरंजक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। यह उत्सव दिल्ली के पर्यटन और संस्कृति को बढ़ावा देता है। यह भारतीय समाज में धार्मिक सद्भाव, एकता और सहिष्णुता का एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है, जहाँ विभिन्न धर्मों और पृष्ठभूमियों के लोग एक साथ आकर खुशी और भाईचारे के साथ उत्सव मनाते हैं।

  2. पुष्पोत्सवः उत्सव का ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व क्या है?

    'पुष्पोत्सवः' जिसे 'फूलवालों की सैर' के नाम से भी जाना जाता है, केवल एक फूलों का उत्सव नहीं है, बल्कि इसका गहरा ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व है। ऐतिहासिक रूप से, यह उत्सव मुगल बादशाह अकबर द्वितीय के समय से मनाया जा रहा है। कहा जाता है कि जब बादशाह ने अपनी रानी की मन्नत पूरी होने पर योगमाया मंदिर और बख्तियार काकी की दरगाह पर फूलों के पंखे चढ़ाने की परंपरा शुरू की, तो यह उत्सव शुरू हुआ। यह परंपरा तब से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है और दिल्ली की पुरानी गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक बन गई है। यह उत्सव ब्रिटिश शासन के दौरान एक बार बंद कर दिया गया था, लेकिन आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रयासों से इसे पुनर्जीवित किया गया, जिससे इसकी ऐतिहासिक निरंतरता बनी रही।

    सामाजिक रूप से, यह उत्सव **राष्ट्रीय एकता और धर्मनिरपेक्षता** का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग बिना किसी भेदभाव के उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं। एक ही समय में फूलों के पंखों को देवी के मंदिर और सूफी संत की दरगाह पर चढ़ाना यह दर्शाता है कि भारतीय समाज में धार्मिक सहिष्णुता और सद्भाव कितना महत्वपूर्ण है। यह उत्सव विभिन्न संस्कृतियों, परंपराओं और विश्वासों के लोगों को एक साथ लाता है, जिससे उनमें भाईचारे और सामुदायिक भावना मजबूत होती है। 'पुष्पोत्सवः' सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि दिल्ली की विरासत, एकता और आपसी प्रेम का एक जीवंत प्रमाण है, जो हमें याद दिलाता है कि विविधता में ही भारत की असली सुंदरता है।

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