अध्याय 2: बचपन
परिचय
"बचपन" हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध लेखिका **कृष्णा सोबती** द्वारा लिखा गया एक संस्मरणात्मक (यादें) पाठ है। इस पाठ में लेखिका अपने बचपन की यादों को ताज़ा करती हैं और उस समय के पहनावे, खान-पान, और जीवन-शैली में आए बदलावों को बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत करती हैं। यह पाठ हमें बताता है कि कैसे समय के साथ सब कुछ बदलता है और पुरानी पीढ़ियों का बचपन नई पीढ़ियों से कितना अलग था।
महत्वपूर्ण सूचना: यहाँ पर अध्याय की पूरी मूल कहानी उपलब्ध नहीं कराई जा सकती है क्योंकि यह कॉपीराइट सामग्री है। नीचे कहानी का सार और प्रश्नोत्तर दिए गए हैं जो आपको इस अध्याय को समझने में मदद करेंगे।
कहानी का सार (Summary of the Chapter)
"बचपन" पाठ में लेखिका कृष्णा सोबती अपने बचपन को याद करती हैं और उस समय की जीवन-शैली का बहुत ही vivid और मनोरंजक वर्णन करती हैं। वे बताती हैं कि जब वे छोटी थीं, तो उनके कपड़े और जूते अब के बच्चों से कितने अलग होते थे। वे अपने बचपन में पहनने वाले रंग-बिरंगे फ्रॉक, लहंगे और गरारे की बात करती हैं। वे कहती हैं कि रविवार की सुबह को सब बच्चों को अपने जूते पॉलिश करने होते थे और नए जूतों के काटने का दर्द उन्हें आज भी याद है।
लेखिका उस समय के खाने-पीने की चीज़ों के बारे में भी बताती हैं। वे चॉकलेट, पेस्ट्री, और आइसक्रीम की जगह **चन ज़ोर गरम** और **अनारदाने का चूर्ण** खाया करती थीं। उन्हें कुल्फी, शहतूत, और रसभरी जैसे फल बहुत पसंद थे। वे शिमला के मॉल रोड और रिज पर घूमने की यादें भी साझा करती हैं, जहाँ वे चना ज़ोर गरम का ठेला और अपनी पसंदीदा पेस्ट्री की दुकान देखती थीं।
पाठ में यह भी बताया गया है कि उस समय मनोरंजन के साधन भी बहुत अलग थे। अब के टीवी और कंप्यूटर की जगह पहले ग्रामोफोन और रेडियो होते थे। लेखिका को अपने दादा-दादी और नाना-नानी से कहानियाँ सुनने की याद भी आती है। वे अपने परिवार में बड़ों द्वारा दी जाने वाली सलाहों और सीखों का भी ज़िक्र करती हैं।
इस पाठ का मुख्य उद्देश्य यह दिखाना है कि कैसे समय के साथ जीवन-शैली में बड़े बदलाव आए हैं। लेखिका अपने बचपन को वर्तमान के बचपन से तुलना करती हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि दो अलग-अलग पीढ़ियों के बचपन में कितना अंतर आ गया है। यह पाठ हमें nostalgia (पुरानी यादों) से भर देता है और हमें अपनी जड़ों से जुड़ने का एहसास कराता है।
---पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)
I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।
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'बचपन' पाठ की लेखिका का नाम क्या है?
'बचपन' पाठ की लेखिका कृष्णा सोबती हैं।
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लेखिका अपने बचपन में किस प्रकार के कपड़े पहनती थीं?
लेखिका अपने बचपन में रंग-बिरंगे फ्रॉक, लहंगे, गरारे और चूड़ीदार-कुर्ते पहनती थीं।
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रविवार की सुबह बच्चों को कौन सा काम करना होता था?
रविवार की सुबह बच्चों को अपने जूते पॉलिश करने होते थे।
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लेखिका को कौन सी दो खाने की चीजें पसंद थीं, जो अब नहीं मिलतीं?
लेखिका को चन ज़ोर गरम और अनारदाने का चूर्ण पसंद था, जो अब उतनी आसानी से नहीं मिलते।
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उस समय के मनोरंजन के दो साधन क्या थे?
उस समय के मनोरंजन के दो साधन ग्रामोफोन और रेडियो थे।
II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।
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लेखिका को नए जूते पहनने पर क्या महसूस होता था?
लेखिका को नए जूते पहनने पर उनके काटने का दर्द महसूस होता था। वे कहती हैं कि नए जूते हमेशा पैर में कुछ दिनों तक दर्द देते थे, लेकिन पुराने होने पर ही आराम मिलता था।
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आज के बचपन और लेखिका के बचपन में क्या मुख्य अंतर है?
आज के बचपन और लेखिका के बचपन में मुख्य अंतर पहनावे, खान-पान और मनोरंजन के साधनों में है। आज के बच्चे आधुनिक कपड़े पहनते हैं, फास्ट-फूड खाते हैं और टीवी-कंप्यूटर से मनोरंजन करते हैं, जबकि लेखिका का बचपन बहुत अलग था।
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लेखिका ने शिमला के मॉल रोड का ज़िक्र क्यों किया है?
लेखिका ने शिमला के मॉल रोड का ज़िक्र इसलिए किया है क्योंकि यह उनके बचपन की कई यादों से जुड़ा था। वे वहाँ चना ज़ोर गरम का ठेला और अपनी पसंदीदा पेस्ट्री की दुकान पर जाती थीं।
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लेखिका ने अपनी यादों को 'संस्मरण' क्यों कहा है?
लेखिका ने अपनी यादों को 'संस्मरण' इसलिए कहा है क्योंकि यह पाठ उनके व्यक्तिगत अनुभवों, पुरानी यादों और बीते हुए समय की घटनाओं पर आधारित है, जिसे उन्होंने अपनी स्मृति से लिखा है।
III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।
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'बचपन' पाठ के माध्यम से लेखिका ने समय के साथ आए बदलावों को कैसे दर्शाया है? विस्तार से समझाएँ।
कृष्णा सोबती ने अपने संस्मरणात्मक पाठ 'बचपन' में समय के साथ आए व्यापक बदलावों को बहुत ही बारीकी से दर्शाया है। वे अपने बचपन की जीवन-शैली की तुलना वर्तमान से करते हुए इन परिवर्तनों को उजागर करती हैं। सबसे पहले, वे **पहनावे** में आए बदलावों पर ध्यान केंद्रित करती हैं। वे अपने समय के रंग-बिरंगे फ्रॉक, लहंगे, गरारे और चूड़ीदार-कुर्ते का ज़िक्र करती हैं, जो आज के बच्चों के फैशनेबल और आरामदायक कपड़ों से बिलकुल भिन्न थे। जूतों के मामले में भी वे बताती हैं कि पहले लेदर के जूते होते थे जिन्हें हर रविवार पॉलिश करना पड़ता था और नए जूते अक्सर पैरों को काटते थे, जबकि आजकल स्पोर्ट्स शूज़ और अन्य आरामदायक जूते होते हैं।
इसके बाद, लेखिका **खान-पान** की आदतों में आए अंतर को स्पष्ट करती हैं। जहाँ उनके बचपन में कुल्फी, शहतूत, रसभरी, चना ज़ोर गरम और अनारदाने का चूर्ण जैसी पारंपरिक चीज़ें लोकप्रिय थीं, वहीं अब इनकी जगह चॉकलेट, पेस्ट्री, आइसक्रीम और फास्ट फूड ने ले ली है। वे उन दुकानों की भी याद करती हैं जहाँ से वे ये चीज़ें खरीदती थीं, जो अब शायद वैसी नहीं रहीं। **मनोरंजन के साधनों** में भी बड़ा बदलाव आया है। लेखिका के बचपन में मनोरंजन के लिए ग्रामोफोन और रेडियो होते थे, जहाँ लोग गाने और खबरें सुनते थे, जबकि आज टीवी, कंप्यूटर, इंटरनेट और मोबाइल फ़ोन का जमाना है, जिसने मनोरंजन की दुनिया को पूरी तरह बदल दिया है। इस प्रकार, 'बचपन' पाठ हमें यह एहसास कराता है कि समय किस तेज़ी से आगे बढ़ता है और कैसे हर पीढ़ी का अपना एक अलग 'बचपन' होता है, जो पिछली पीढ़ी से काफी भिन्न होता है।
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लेखिका के बचपन की यादें आज की पीढ़ी के बच्चों के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं?
कृष्णा सोबती के 'बचपन' पाठ में वर्णित यादें आज की पीढ़ी के बच्चों के लिए कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण हैं। सबसे पहले, यह पाठ उन्हें **इतिहास और सांस्कृतिक विरासत** से जोड़ता है। आज के बच्चे एक ऐसे युग में पल-बढ़ रहे हैं जहाँ तकनीक और आधुनिकीकरण चरम पर है। उन्हें शायद ही पता हो कि पहले जीवन कितना सरल और भिन्न था। यह पाठ उन्हें यह समझने में मदद करता है कि उनके दादा-दादी या परदादा-परदादी के समय में जीवन-शैली, पहनावा, खान-पान और मनोरंजन के साधन कैसे थे, जिससे उन्हें अपनी जड़ों को समझने का अवसर मिलता है।
दूसरे, यह पाठ **सादगी और आत्मनिर्भरता** का महत्व सिखाता है। लेखिका के बचपन में बच्चे अपने जूते खुद पॉलिश करते थे, जो उन्हें अपनी चीज़ों की देखभाल करना और छोटे-मोटे काम खुद करना सिखाता था। आज, जहाँ हर काम के लिए गैजेट्स और सुविधाएँ उपलब्ध हैं, यह पाठ बच्चों को आत्मनिर्भर बनने और मेहनत का महत्व समझने की प्रेरणा देता है। यह उन्हें यह भी बताता है कि जीवन में खुशी के लिए हमेशा नई और महँगी चीज़ों की ज़रूरत नहीं होती, बल्कि साधारण चीज़ों में भी आनंद ढूँढा जा सकता है। अंततः, यह पाठ बच्चों को **बदलाव को स्वीकार करने** और समय के साथ चीज़ों के बदलने की स्वाभाविक प्रक्रिया को समझने में मदद करता है। यह उन्हें बताता है कि हर पीढ़ी का अपना एक अनूठा अनुभव होता है, और हमें पुरानी बातों को संजोते हुए नई चीज़ों को भी अपनाना चाहिए। इस प्रकार, 'बचपन' सिर्फ एक संस्मरण नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण सीख है जो आज की पीढ़ी को उनके पूर्वजों के जीवन और मूल्यों से अवगत कराती है।
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