अध्याय 17: साँस साँस में बाँस

एल.एन. टुट्टू द्वारा

परिचय

"साँस साँस में बाँस" एक जानकारीपूर्ण और दिलचस्प पाठ है जो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों, विशेषकर **मेघालय** में बाँस के उपयोग और महत्व को दर्शाता है। यह पाठ बताता है कि कैसे बाँस वहाँ के लोगों के जीवन का एक अभिन्न अंग है, जिसका उपयोग रोज़मर्रा की चीज़ें बनाने से लेकर कला और संस्कृति तक में होता है। यह हमें प्रकृति से जुड़ने और उसके संसाधनों का समझदारी से उपयोग करने की प्रेरणा देता है।

महत्वपूर्ण सूचना: यहाँ पर अध्याय की पूरी मूल कहानी उपलब्ध नहीं कराई जा सकती है क्योंकि यह कॉपीराइट सामग्री है। नीचे कहानी का सार और प्रश्नोत्तर दिए गए हैं जो आपको इस अध्याय को समझने में मदद करेंगे।

कहानी का सार (Summary of the Chapter)

"साँस साँस में बाँस" पाठ हमें पूर्वोत्तर भारत की अद्भुत दुनिया में ले जाता है, जहाँ **बाँस (Bamboo)** सिर्फ एक पौधा नहीं, बल्कि जीवन का आधार है। विशेष रूप से, यह पाठ मेघालय राज्य में बाँस के महत्व पर केंद्रित है, जहाँ बाँस लोगों की "साँस साँस में" बसा हुआ है, जिसका अर्थ है कि यह उनके जीवन के हर पहलू में मौजूद है।

पाठ बताता है कि बाँस का उपयोग सिर्फ निर्माण या फर्नीचर बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह **हस्तशिल्प**, घरेलू उपकरणों और यहाँ तक कि संगीत वाद्ययंत्रों में भी प्रयोग होता है। बाँस से तरह-तरह की चीजें बनाई जाती हैं जैसे कि टोकरियाँ, चटाइयाँ, कुर्सी, मेज, पुल और घर। बच्चों के खिलौनों से लेकर पानी ले जाने वाले पाइप तक, सब कुछ बाँस से बनाया जाता है। मेघालय में **बाँस के पुल** बहुत प्रसिद्ध हैं, जो नदियों और नालों को पार करने के लिए बनाए जाते हैं, और ये बहुत मजबूत और टिकाऊ होते हैं।

लेखक यह भी बताते हैं कि **बाँस का पौधा बहुत तेज़ी से बढ़ता है**, और इसी वजह से यह वहाँ के लोगों के लिए एक सतत और सस्ता संसाधन है। बाँस की खेती करना आसान है और यह पर्यावरण के लिए भी बहुत उपयोगी है। यह मिट्टी के कटाव को रोकता है और ऑक्सीजन का उत्पादन करता है। वहाँ के कारीगर बाँस से कलात्मक और सुंदर वस्तुएँ बनाते हैं, जो उनकी रचनात्मकता और पारंपरिक ज्ञान को दर्शाती हैं।

इस पाठ में एक पौराणिक कथा का भी जिक्र है कि कैसे बाँस धरती पर आया। एक कहानी के अनुसार, एक बूढ़ा आदमी जिसने सपने में देखा था कि जब उसकी मृत्यु होगी तो उसके शरीर से बाँस उगेंगे, और उसी के बाद से बाँस धरती पर आया। यह दर्शाता है कि बाँस वहाँ के लोगों की संस्कृति और लोककथाओं में गहराई से जुड़ा हुआ है।

कुल मिलाकर, "साँस साँस में बाँस" हमें **बाँस की बहुउपयोगिता** और उसके पर्यावरणीय महत्व के बारे में सिखाता है। यह हमें यह भी बताता है कि कैसे स्थानीय समुदायों ने अपनी आवश्यकताओं के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों का सदियों से सदुपयोग किया है और उनके साथ एक गहरा रिश्ता विकसित किया है।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)

I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।

  1. यह पाठ भारत के किस क्षेत्र में बाँस के उपयोग को दर्शाता है?

    यह पाठ भारत के पूर्वोत्तर राज्यों, विशेषकर मेघालय में बाँस के उपयोग को दर्शाता है।

  2. बाँस का पौधा कितनी तेज़ी से बढ़ता है?

    बाँस का पौधा बहुत तेज़ी से बढ़ता है।

  3. मेघालय में बाँस का उपयोग किस प्रकार के पुल बनाने में होता है?

    मेघालय में बाँस का उपयोग नदियों और नालों पर मजबूत पुल बनाने में होता है।

  4. बाँस से बनाई जाने वाली किन्हीं तीन वस्तुओं के नाम लिखें।

    बाँस से बनाई जाने वाली तीन वस्तुएँ हैं: टोकरियाँ, चटाइयाँ और घरेलू सामान जैसे कुर्सी-मेज।

  5. बाँस लोगों की "साँस साँस में" बसा हुआ है, इसका क्या अर्थ है?

    इसका अर्थ है कि बाँस पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों के जीवन के हर पहलू में मौजूद है, यानी वे इसका बहुत अधिक और विभिन्न तरीकों से उपयोग करते हैं।

II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।

  1. बाँस पूर्वोत्तर राज्यों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन क्यों है?

    बाँस पूर्वोत्तर राज्यों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है क्योंकि यह बहुत तेज़ी से बढ़ता है, आसानी से उपलब्ध है, और इसका उपयोग घरों के निर्माण से लेकर दैनिक उपयोग की वस्तुओं और कलाकृतियों तक, हर चीज़ में होता है।

  2. बाँस का उपयोग पर्यावरण के लिए किस प्रकार लाभदायक है?

    बाँस का उपयोग पर्यावरण के लिए लाभदायक है क्योंकि यह मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करता है और बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन का उत्पादन करता है। यह एक नवीकरणीय संसाधन भी है।

  3. पाठ में वर्णित बाँस से जुड़ी पौराणिक कथा क्या बताती है?

    पाठ में वर्णित पौराणिक कथा बताती है कि एक बूढ़े आदमी के शरीर से बाँस उगने के बाद यह धरती पर आया। यह कथा दर्शाता है कि बाँस वहाँ के लोगों की संस्कृति और लोककथाओं में गहराई से जुड़ा हुआ है।

  4. बाँस से बनी चीज़ें कैसे टिकाऊ होती हैं?

    बाँस से बनी चीज़ें विशेष तकनीकों और कारीगरी के कारण बहुत टिकाऊ होती हैं। वहाँ के लोग बाँस को मज़बूती और लचीलेपन के लिए सही तरीके से तैयार करना जानते हैं, जिससे बनी वस्तुएँ लंबे समय तक चलती हैं।

III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।

  1. पूर्वोत्तर भारत में बाँस की बहुउपयोगिता को विस्तार से समझाएँ।

    पूर्वोत्तर भारत में, विशेषकर मेघालय में, बाँस सिर्फ एक पौधा नहीं है, बल्कि यह वहाँ के लोगों के जीवन का एक अविभाज्य अंग है, जिसकी बहुउपयोगिता सचमुच हैरान करने वाली है। बाँस का उपयोग घरों के निर्माण में किया जाता है, जहाँ यह दीवारों, छतों और फर्शों के लिए एक मज़बूत और सस्ता विकल्प प्रदान करता है। नदियों और नालों को पार करने के लिए बाँस के पुल बनाए जाते हैं, जो अपनी मजबूती और लचीलेपन के लिए जाने जाते हैं और भारी भार भी सहन कर सकते हैं।

    इसके अतिरिक्त, बाँस से अनगिनत घरेलू वस्तुएँ बनाई जाती हैं। टोकरियाँ, चटाइयाँ, कुर्सी, मेज, पलंग और अन्य फर्नीचर बाँस से ही बनते हैं। खेती के उपकरण, मछली पकड़ने के जाल, और यहाँ तक कि पानी के पाइप भी बाँस के बने होते हैं। कला और संस्कृति में भी बाँस का महत्वपूर्ण स्थान है; इससे सुंदर हस्तशिल्प वस्तुएँ, सजावटी सामान और विभिन्न प्रकार के संगीत वाद्ययंत्र जैसे बांसुरी, वीणा आदि बनाए जाते हैं। भोजन में भी बाँस के कोपलों (Bamboo shoots) का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार, बाँस पूर्वोत्तर भारत की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और रोज़मर्रा के जीवन में इतनी गहराई से समाया हुआ है कि यह कहा जा सकता है कि यह सचमुच उनकी "साँस साँस में" बसा है।

  2. बाँस जैसे प्राकृतिक संसाधनों का सतत और समझदारी से उपयोग क्यों महत्वपूर्ण है?

    बाँस जैसे प्राकृतिक संसाधनों का सतत और समझदारी से उपयोग आज की दुनिया में अत्यंत महत्वपूर्ण है। सतत उपयोग का अर्थ है कि हम संसाधनों का इस तरह से उपयोग करें कि वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी उपलब्ध रहें और पर्यावरण को कोई नुकसान न पहुँचे। बाँस एक अद्भुत उदाहरण है क्योंकि यह बहुत तेज़ी से बढ़ता है, जिससे यह एक **नवीकरणीय संसाधन** बन जाता है। इसका मतलब है कि हम इसका उपयोग कर सकते हैं और यह फिर से पैदा हो जाएगा, बशर्ते हम इसे अत्यधिक न काटें।

    समझदारी से उपयोग करने से **पर्यावरणीय संतुलन** बना रहता है। बाँस मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करता है, खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में, और यह बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करके ऑक्सीजन छोड़ता है, जो जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सहायक है। यह पेड़ों के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प भी है, जिससे वनों की कटाई कम होती है। इसके अलावा, बाँस का उपयोग स्थानीय समुदायों को **आर्थिक लाभ** भी पहुँचाता है। पूर्वोत्तर भारत में लोग बाँस से हस्तशिल्प बनाकर अपनी आजीविका कमाते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है। यदि हम बाँस जैसे संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग करेंगे तो यह खत्म हो जाएगा और इससे पर्यावरण को नुकसान होगा। इसलिए, बाँस के सतत और समझदारी से उपयोग का सिद्धांत हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर जीने और उसके उपहारों को संरक्षित करने की प्रेरणा देता है।

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