अध्याय 15: नौकर

अनु बंदोपाध्याय द्वारा

परिचय

"नौकर" एक प्रेरणादायक जीवनीपरक पाठ है जो **महात्मा गांधी** के व्यक्तिगत जीवन से जुड़ा है। यह पाठ हमें बताता है कि कैसे गांधीजी अपनी व्यक्तिगत ज़रूरतों और कामों के लिए कभी किसी पर निर्भर नहीं रहते थे। वे अपने सभी काम खुद करना पसंद करते थे, भले ही वे कितने भी छोटे या बड़े क्यों न हों। यह अध्याय हमें आत्मनिर्भरता, श्रम के महत्व और सादगी का पाठ पढ़ाता है, जो गांधीजी के जीवन के मूलभूत सिद्धांत थे।

महत्वपूर्ण सूचना: यहाँ पर अध्याय की पूरी मूल कहानी उपलब्ध नहीं कराई जा सकती है क्योंकि यह कॉपीराइट सामग्री है। नीचे कहानी का सार और प्रश्नोत्तर दिए गए हैं जो आपको इस अध्याय को समझने में मदद करेंगे।

कहानी का सार (Summary of the Chapter)

"नौकर" पाठ महात्मा गांधी के जीवन के उन पहलुओं पर प्रकाश डालता है जहाँ वे **आत्मनिर्भरता** और **श्रम के प्रति सम्मान** को सबसे ऊपर रखते थे। इस पाठ में बताया गया है कि गांधीजी कभी भी अपने निजी कामों के लिए नौकरों पर निर्भर नहीं रहते थे। वे अपना हर काम, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, खुद ही करते थे।

जब गांधीजी आश्रम में रहते थे, तो वे अपने हाथों से **अनाज पीसते** थे, चक्की चलाते थे। आटा इतना महीन होता था कि चक्की के आटे का स्वाद उन्हें घर के पीसे हुए आटे जैसा लगता था। वे कुएँ से **पानी खींचते** थे और रसोई में जाकर **सब्ज़ियाँ छीलते** थे। वे अपने कपड़े खुद धोते थे और दूसरों के कपड़े धोने में भी मदद करते थे। वे **सफाई** के काम को भी बहुत महत्व देते थे और खुद शौचालय साफ करते थे, जिससे वे दूसरों को भी यह संदेश देते थे कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता।

गांधीजी को किसी के द्वारा अपनी सेवा करना बिल्कुल पसंद नहीं था। एक बार, जब वे बीमार थे, तो उनके एक भक्त ने उन्हें पानी का गिलास दिया। गांधीजी ने पानी पीने के बाद गिलास अपने हाथों से वापस रखने की कोशिश की, ताकि दूसरे को उनके लिए मेहनत न करनी पड़े। इससे पता चलता है कि वे दूसरों को कभी बोझ नहीं डालना चाहते थे।

जब वे दक्षिण अफ्रीका में थे, तब उनके घर में कुछ भारतीय और अंग्रेज़ मेहमान आए। गांधीजी ने अपने हाथों से सबके लिए खाना बनाया। उनके एक साथी ने उनसे कहा कि वे यह सब क्यों कर रहे हैं, तो गांधीजी ने जवाब दिया कि असली सेवा यही है कि हम अपना काम खुद करें और दूसरों पर निर्भर न रहें। वे मानते थे कि शारीरिक श्रम से व्यक्ति स्वस्थ और मजबूत बनता है।

इस पाठ में यह भी बताया गया है कि गांधीजी को बच्चों से बहुत प्रेम था। वे बच्चों को गोद में लेते थे, उनके साथ खेलते थे, और उनकी देखरेख भी करते थे। इससे पता चलता है कि वे केवल एक महान नेता ही नहीं, बल्कि एक स्नेही और व्यावहारिक व्यक्ति भी थे।

कुल मिलाकर, "नौकर" पाठ हमें गांधीजी के जीवन से **सादा जीवन और उच्च विचार** का संदेश देता है। यह हमें सिखाता है कि हमें आत्मनिर्भर होना चाहिए, सभी प्रकार के श्रम का सम्मान करना चाहिए और दूसरों पर अनावश्यक रूप से निर्भर नहीं रहना चाहिए।

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पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)

I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।

  1. यह पाठ किसके जीवन से संबंधित है?

    यह पाठ महात्मा गांधी के जीवन से संबंधित है।

  2. गांधीजी अपने कौन-कौन से काम खुद करते थे?

    गांधीजी अपना अनाज पीसते थे, कुएँ से पानी खींचते थे, सब्ज़ियाँ छीलते थे, कपड़े धोते थे और सफाई का काम भी खुद करते थे।

  3. गांधीजी को किस बात पर आपत्ति थी?

    गांधीजी को इस बात पर आपत्ति थी कि कोई दूसरा व्यक्ति उनके व्यक्तिगत काम करे या उनकी सेवा करे।

  4. गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में मेहमानों के लिए क्या किया था?

    गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में आए मेहमानों के लिए अपने हाथों से खाना बनाया था।

  5. गांधीजी शारीरिक श्रम को क्यों महत्वपूर्ण मानते थे?

    गांधीजी शारीरिक श्रम को इसलिए महत्वपूर्ण मानते थे क्योंकि इससे व्यक्ति स्वस्थ और मजबूत बनता है, और यह आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।

II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।

  1. गांधीजी के जीवन से हमें आत्मनिर्भरता की क्या सीख मिलती है?

    गांधीजी के जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने सभी काम खुद करने चाहिए और दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। वे खुद अनाज पीसने से लेकर सफाई तक सब कुछ करते थे, जिससे हमें अपनी ज़रूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर न रहने की प्रेरणा मिलती है।

  2. गांधीजी को बीमार होने पर भी दूसरों से सेवा लेना क्यों पसंद नहीं था?

    गांधीजी को बीमार होने पर भी दूसरों से सेवा लेना इसलिए पसंद नहीं था क्योंकि वे मानते थे कि इससे दूसरों पर बोझ पड़ता है। वे दूसरों को कभी परेशान नहीं करना चाहते थे और हमेशा अपना काम खुद करने में विश्वास रखते थे।

  3. गांधीजी बच्चों के प्रति कैसा व्यवहार रखते थे?

    गांधीजी बच्चों से बहुत प्रेम करते थे। वे बच्चों को गोद में लेते थे, उनके साथ खेलते थे, और उनकी देखभाल भी करते थे। इससे पता चलता है कि वे एक स्नेही और संवेदनशील व्यक्ति थे।

  4. "कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता" - यह बात गांधीजी के जीवन से कैसे स्पष्ट होती है?

    यह बात गांधीजी के जीवन से पूरी तरह स्पष्ट होती है क्योंकि वे अनाज पीसने, कुएँ से पानी निकालने, और यहाँ तक कि शौचालयों की सफाई जैसे कामों को भी पूरी लगन से करते थे। वे किसी भी काम को छोटा या नीचा नहीं समझते थे और स्वयं सभी प्रकार के श्रम का सम्मान करते थे।

III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।

  1. महात्मा गांधी के 'सादा जीवन और उच्च विचार' के सिद्धांत को इस पाठ के आधार पर स्पष्ट करें।

    महात्मा गांधी का जीवन 'सादा जीवन और उच्च विचार' के सिद्धांत का प्रत्यक्ष उदाहरण था, और "नौकर" पाठ इसी को खूबसूरती से दर्शाता है। गांधीजी आडंबरहीन जीवन जीते थे और विलासिता से दूर रहते थे। वे अपने हर निजी काम, जैसे अनाज पीसना, कुएँ से पानी निकालना, सब्ज़ियाँ छीलना, और कपड़े धोना, स्वयं करते थे। वे मानते थे कि शारीरिक श्रम से व्यक्ति विनम्र बनता है और आत्मनिर्भरता की भावना विकसित होती है। वे कभी भी किसी नौकर पर निर्भर नहीं रहते थे, और अगर कोई उनकी सेवा करने की कोशिश करता तो उन्हें आपत्ति होती थी, क्योंकि वे दूसरों को कष्ट नहीं देना चाहते थे।

    उनके उच्च विचार उनके कार्यों में परिलक्षित होते थे। वे मानते थे कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, और हर तरह के श्रम का सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने समाज में फैली जातिगत भेदभाव और छुआछूत की भावना को खत्म करने के लिए खुद सफाई जैसे काम किए, जिन्हें तब निम्न माना जाता था। वे नैतिकता, सत्य और अहिंसा के प्रतीक थे। उनका सरल जीवन बाहरी दिखावे से दूर था, लेकिन उनके विचार और सिद्धांत दुनिया के लिए बहुत गहरे और प्रभावशाली थे। इस प्रकार, "नौकर" पाठ हमें गांधीजी के उस महान व्यक्तित्व से परिचित कराता है जो अपनी सादगी, श्रम के प्रति निष्ठा और उच्च नैतिक मूल्यों से दुनिया को प्रेरित करते रहे।

  2. गांधीजी के आत्मनिर्भरता के सिद्धांत का आज के समय में क्या महत्व है? विस्तार से समझाएँ।

    गांधीजी का आत्मनिर्भरता का सिद्धांत, जैसा कि "नौकर" पाठ में दर्शाया गया है, आज के आधुनिक और तेजी से बदल रहे समय में भी अत्यधिक प्रासंगिक है। आज की उपभोक्तावादी संस्कृति में जहाँ लोग हर छोटे से छोटे काम के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं या मशीनरी का उपयोग करते हैं, गांधीजी का यह विचार हमें अपनी क्षमताओं पर विश्वास करने और स्वयं के लिए काम करने के लिए प्रेरित करता है। आत्मनिर्भरता का अर्थ केवल आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना नहीं है, बल्कि शारीरिक और मानसिक रूप से भी सक्षम होना है।

    आज के समय में, जब युवा पीढ़ी अक्सर शारीरिक श्रम से कतराती है, गांधीजी का उदाहरण हमें अपने दैनिक कार्यों को स्वयं करने, घरेलू जिम्मेदारियों में हाथ बटाने और छोटे-मोटे कामों के लिए दूसरों पर निर्भर न रहने की प्रेरणा देता है। यह हमें आलस्य से दूर रखता है और हमारे अंदर स्वाभिमान पैदा करता है। आत्मनिर्भरता हमें चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करती है और हमें अधिक लचीला बनाती है। यह हमें अनावश्यक खर्चों से बचाता है और संसाधनों का सदुपयोग करना सिखाता है। व्यक्तिगत स्तर पर आत्मनिर्भरता जहाँ हमें सशक्त बनाती है, वहीं सामूहिक स्तर पर यह समाज और राष्ट्र को भी मजबूत बनाती है, जैसा कि गांधीजी ने **स्वदेशी** और **ग्राम स्वराज** के माध्यम से कल्पना की थी। इसलिए, गांधीजी के आत्मनिर्भरता के सिद्धांत का महत्व आज भी उतना ही है, जितना उनके समय में था, और यह हमें एक अधिक सक्षम, जिम्मेदार और संतुष्ट जीवन जीने की दिशा दिखाता है।

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