अध्याय 14: लोकगीत
परिचय
**"लोकगीत"** नामक यह निबंध **भगवत शरण उपाध्याय** द्वारा लिखा गया है। यह अध्याय भारतीय संस्कृति में लोकगीतों के महत्व और उनकी विशेषताओं पर प्रकाश डालता है। लोकगीत वे गीत होते हैं जो लोक (जनता) द्वारा, बिना किसी औपचारिक शिक्षा या प्रशिक्षण के, अपनी सहज भावनाओं को व्यक्त करने के लिए गाए जाते हैं। ये गीत किसी विशेष व्यक्ति द्वारा नहीं रचे जाते, बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचते हैं। यह अध्याय हमें लोकगीतों की विविधता, उनके सरल और स्वाभाविक स्वरूप, और भारतीय समाज में उनके स्थान से परिचित कराता है।
महत्वपूर्ण सूचना: यहाँ पर अध्याय का पूरा मूल पाठ उपलब्ध नहीं कराया जा सकता है क्योंकि यह कॉपीराइट सामग्री है। नीचे अध्याय का सार और प्रश्नोत्तर दिए गए हैं जो आपको इस अध्याय को समझने में मदद करेंगे।
निबंध का सार (Summary of the Essay)
"लोकगीत" निबंध में लेखक भगवत शरण उपाध्याय ने लोकगीतों के विभिन्न पहलुओं को समझाया है। वे बताते हैं कि लोकगीत **ग्राम्य जीवन (ग्रामीण जीवन)** का अभिन्न अंग हैं और उनमें वहीं की आत्मा बसती है। ये गीत गाँवों और जंगलों में रहने वाले लोगों द्वारा अपनी सहज भावनाओं को व्यक्त करने के लिए गाए जाते हैं। इन्हें गाने के लिए किसी विशेष ताल या वाद्य यंत्रों की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि ये अक्सर रोजमर्रा के कामों जैसे फसल काटते समय, चक्की पीसते समय, या नाव चलाते समय गाए जाते हैं।
लेखक लोकगीतों की **सरलता और स्वाभाविकता** पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि ये गीत सीधे दिल से निकलते हैं और श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। शास्त्रीय संगीत के विपरीत, लोकगीतों को सीखने के लिए जटिल नियमों और अभ्यास की जरूरत नहीं होती। ये जीवन के हर पहलू से जुड़े होते हैं - जन्म, विवाह, पर्व-त्योहार, ऋतुएँ, फसलें और रोज़मर्रा के काम।
निबंध में विभिन्न प्रकार के लोकगीतों का भी उल्लेख है:
- **कजरी, सोहर, विवाह गीत:** ये गीत विशेष अवसरों पर गाए जाते हैं।
- **बिरहा, चैती, फाग:** ये गीत ऋतुओं और त्योहारों से संबंधित होते हैं।
- **भोजपुरी, अवधी, ब्रजभाषा, बुंदेली, राजस्थानी:** विभिन्न क्षेत्रों के अपने-अपने लोकगीत होते हैं, जिनकी अपनी विशिष्टताएँ होती हैं।
- **स्त्रियों के लोकगीत:** लेखक विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा गाए जाने वाले लोकगीतों का उल्लेख करते हैं, जो उनके जीवन की खुशियों, दुखों, आशाओं और आकांक्षाओं को दर्शाते हैं। ये गीत अक्सर सामूहिक रूप से गाए जाते हैं और त्योहारों, रीति-रिवाजों और दैनिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं।
उपाध्याय जी यह भी बताते हैं कि लोकगीत केवल मनोरंजन के साधन नहीं हैं, बल्कि वे **संस्कृति और परंपरा** के वाहक भी हैं। वे हमें अपने समाज, रीति-रिवाजों और लोक-जीवन की जानकारी देते हैं। आधुनिक समय में भले ही शास्त्रीय संगीत और फिल्मों के गाने लोकप्रिय हो गए हों, लेकिन लोकगीतों का अपना महत्व आज भी बना हुआ है। वे हमारी जड़ों से हमें जोड़े रखते हैं और हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक अमूल्य हिस्सा हैं।
---पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)
I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।
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'लोकगीत' निबंध के लेखक कौन हैं?
'लोकगीत' निबंध के लेखक भगवत शरण उपाध्याय हैं।
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लोकगीत कहाँ से उत्पन्न होते हैं?
लोकगीत लोक (जनता) के हृदय से, ग्रामीण क्षेत्रों और जनजीवन से उत्पन्न होते हैं।
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शास्त्रीय संगीत और लोकगीतों में मुख्य अंतर क्या है?
शास्त्रीय संगीत नियमों और प्रशिक्षण पर आधारित होता है, जबकि लोकगीत सहज, स्वाभाविक और बिना किसी विशेष नियम के गाए जाते हैं।
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लोकगीत किस प्रकार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचते हैं?
लोकगीत मौखिक परंपरा के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचते हैं।
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महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले कुछ लोकगीतों के नाम बताएं।
महिलाएँ कजरी, सोहर, विवाह गीत, और विभिन्न त्योहारों से संबंधित गीत गाती हैं।
II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।
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लोकगीतों को ग्राम्य जीवन की आत्मा क्यों कहा गया है?
लोकगीतों को ग्राम्य जीवन की आत्मा इसलिए कहा गया है क्योंकि वे सीधे-सीधे ग्रामीण जीवन के सुख-दुख, आशाओं, उमंगों और रोजमर्रा के अनुभवों को अभिव्यक्त करते हैं। वे गाँव की मिट्टी और जनजीवन से जुड़े होते हैं।
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लोकगीत किन अवसरों पर गाए जाते हैं?
लोकगीत जन्म, विवाह, फसल कटाई, बुवाई, त्योहारों (जैसे होली, दिवाली), विभिन्न ऋतुओं और दैनिक कार्यों जैसे चक्की पीसते समय या नाव चलाते समय गाए जाते हैं।
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लोकगीतों में कौन-कौन सी भाषाएँ प्रमुख रूप से प्रयोग होती हैं?
लोकगीतों में प्रमुख रूप से विभिन्न क्षेत्रीय बोलियाँ और भाषाएँ जैसे भोजपुरी, अवधी, ब्रजभाषा, बुंदेली, राजस्थानी, पंजाबी, बंगाली आदि का प्रयोग होता है।
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लेखक ने लोकगीतों को क्यों महत्वपूर्ण माना है?
लेखक ने लोकगीतों को महत्वपूर्ण माना है क्योंकि वे हमारी संस्कृति और परंपरा के वाहक हैं। वे हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखते हैं और समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करते हैं।
III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।
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लोकगीतों की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? विस्तार से वर्णन करें।
लोकगीतों की सबसे प्रमुख विशेषता उनकी **स्वाभाविकता और सरलता** है। ये गीत किसी औपचारिक प्रशिक्षण या साहित्यिक नियमों से बंधे नहीं होते, बल्कि लोगों के सहज उद्गार होते हैं। ये सीधे जनमानस के हृदय से निकलते हैं और इसलिए आम लोगों के लिए आसानी से समझ में आने वाले और दिल को छू लेने वाले होते हैं। इनकी भाषा सरल और स्थानीय बोली पर आधारित होती है, जिससे वे अपने क्षेत्र के लोगों से तुरंत जुड़ जाते हैं।
दूसरी विशेषता इनका **जीवन से जुड़ाव** है। लोकगीत जन्म से लेकर मृत्यु तक, जीवन के हर अवसर और पड़ाव को दर्शाते हैं - चाहे वह जन्म के सोहर हों, विवाह के गीत हों, खेती-किसानी के गीत हों, या त्योहारों और ऋतुओं से संबंधित गीत। ये गीत दैनिक जीवन की गतिविधियों जैसे चक्की पीसना, पानी भरना, या फसल काटना आदि के दौरान भी गाए जाते हैं। इनमें ग्रामीण जीवन का सजीव चित्रण होता है। तीसरी विशेषता इनकी **सामूहिकता** है। लोकगीत अक्सर अकेले नहीं, बल्कि समूह में गाए जाते हैं, विशेषकर महिलाओं द्वारा। यह सामूहिक गायन उत्सवों और समारोहों में एक विशेष ऊर्जा भर देता है और लोगों को आपस में जोड़ता है। ये गीत हमारी सांस्कृतिक विरासत का अमूल्य हिस्सा हैं और हमें अपनी लोक-परंपराओं से जोड़े रखते हैं।
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लेखक ने पुरुषों और स्त्रियों द्वारा गाए जाने वाले लोकगीतों में क्या अंतर बताया है?
लेखक भगवत शरण उपाध्याय ने पुरुषों और स्त्रियों द्वारा गाए जाने वाले लोकगीतों में कुछ अंतर बताए हैं। पुरुषों के लोकगीत अक्सर **मेहनत, काम-धंधे और साहस** से जुड़े होते हैं। वे खुले मैदानों, खेतों, या नदियों पर काम करते समय गाए जाते हैं। इनमें अक्सर वीरता, शिकार, या संघर्ष की भावनाएँ होती हैं। उदाहरण के लिए, चरवाहों के गीत, नाव चलाने वालों के गीत, या फसल काटते समय के गीत पुरुषों द्वारा गाए जाने वाले लोकगीतों के उदाहरण हो सकते हैं, जिनमें शारीरिक श्रम की ताल और शक्ति का प्रदर्शन होता है।
इसके विपरीत, स्त्रियों द्वारा गाए जाने वाले लोकगीत उनके **दैनिक जीवन, घरेलू जिम्मेदारियों, भावनाओं और त्योहारों** से अधिक संबंधित होते हैं। ये गीत अक्सर घर के भीतर या गाँव के किसी विशेष स्थान पर समूहों में गाए जाते हैं। इनमें प्रेम, वियोग, वात्सल्य, खुशियाँ, दुख, और पारिवारिक संबंधों की गहराई अभिव्यक्त होती है। कजरी, सोहर (जन्म के गीत), विवाह गीत, सावन के गीत, और होली के गीत प्रमुख रूप से स्त्रियों द्वारा गाए जाते हैं। स्त्रियाँ इन गीतों के माध्यम से अपनी भावनाओं को साझा करती हैं, रीति-रिवाजों को निभाती हैं, और सामाजिक बंधन को मजबूत करती हैं। इस प्रकार, लेखक ने दोनों के गीतों में उनके जीवनशैली और अनुभवों के आधार पर सूक्ष्म अंतर प्रस्तुत किया है।
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