अध्याय 4: रासायनिक आबंधन तथा आण्विक संरचना (Chemical Bonding and Molecular Structure)
परिचय
परमाणु प्रकृति में स्थिर नहीं होते हैं (उत्कृष्ट गैसों को छोड़कर), और वे अपने स्थायित्व को प्राप्त करने के लिए रासायनिक रूप से संयोजन करते हैं। **रासायनिक आबंधन** वह आकर्षक बल है जो विभिन्न रासायनिक स्पीशीज़ (जैसे परमाणु, आयन) को एक साथ रखता है ताकि अणु, आयनिक यौगिक और अन्य बड़ी संरचनाएं बन सकें। यह अध्याय रासायनिक आबंधों के बनने के विभिन्न सिद्धांतों, जैसे लुईस अवधारणा, संयोजकता कोश इलेक्ट्रॉन युग्म प्रतिकर्षण (VSEPR) सिद्धांत, संयोजकता बंध सिद्धांत (VBT), और आणविक कक्षक सिद्धांत (MOT) का अध्ययन करेगा, और आणविक संरचना को समझने पर भी ध्यान केंद्रित करेगा।
4.1 कोसेल-लुईस अवधारणा (Kossel-Lewis Approach to Chemical Bonding)
रासायनिक आबंधन की यह प्रारंभिक अवधारणा इस विचार पर आधारित है कि परमाणु अपनी निकटतम उत्कृष्ट गैस विन्यास (अष्टक) प्राप्त करने के लिए संयोजन करते हैं।
- **लुईस प्रतीक (Lewis Symbols):** किसी तत्व के परमाणु के संयोजकता इलेक्ट्रॉनों को दर्शाने के लिए उसके प्रतीक के चारों ओर बिन्दुओं का उपयोग किया जाता है।
- **अष्टक नियम (Octet Rule):** परमाणु रासायनिक आबंध बनाकर अपने संयोजकता कोश में आठ इलेक्ट्रॉन प्राप्त करने की प्रवृत्ति रखते हैं ताकि वे उत्कृष्ट गैस विन्यास प्राप्त कर सकें।
- **सहसंयोजी आबंध (Covalent Bond):** दो परमाणुओं के बीच इलेक्ट्रॉनों के समान साझाकरण से बनता है (जैसे Cl$_2$, H$_2$O)।
- **आयनिक आबंध (Ionic Bond):** एक परमाणु से दूसरे परमाणु में इलेक्ट्रॉनों के पूर्ण स्थानांतरण से बनता है, जिसके परिणामस्वरूप विपरीत आवेश वाले आयन बनते हैं जो स्थिर वैद्युतिकी बलों द्वारा आकर्षित होते हैं (जैसे NaCl)।
4.2 आयनिक आबंध (Ionic or Electrovalent Bond)
आयनिक आबंध तब बनते हैं जब एक परमाणु (आमतौर पर एक धातु) एक या अधिक इलेक्ट्रॉन खोकर धनात्मक आयन (धनायन) बनाता है, और दूसरा परमाणु (आमतौर पर एक अधातु) उन इलेक्ट्रॉनों को प्राप्त करके ऋणात्मक आयन (ऋणायन) बनाता है। ये विपरीत आवेश वाले आयन प्रबल स्थिर वैद्युतिकी आकर्षण बल द्वारा एक साथ बंधे रहते हैं। आयनिक यौगिकों के गुण, जैसे उच्च गलनांक और क्वथनांक, ठोस अवस्था में विद्युत के कुचालक होना लेकिन गलित अवस्था या घोल में सुचालक होना, आयनिक आबंध की प्रबलता के कारण होते हैं।
4.3 सहसंयोजी आबंध (Covalent Bond)
सहसंयोजी आबंध तब बनते हैं जब दो परमाणु इलेक्ट्रॉनों के एक या अधिक युग्मों को साझा करते हैं ताकि दोनों परमाणु अष्टक नियम का पालन कर सकें (या हाइड्रोजन के मामले में द्विक)।
- **एकल आबंध (Single Bond):** एक इलेक्ट्रॉन युग्म साझा किया जाता है (जैसे H-H)।
- **द्वि आबंध (Double Bond):** दो इलेक्ट्रॉन युग्म साझा किए जाते हैं (जैसे O=O)।
- **त्रि आबंध (Triple Bond):** तीन इलेक्ट्रॉन युग्म साझा किए जाते हैं (जैसे N≡N)।
- **ध्रुवीय और अध्रुवीय सहसंयोजी आबंध (Polar and Non-Polar Covalent Bonds):**
- **अध्रुवीय:** समान परमाणुओं के बीच साझाकरण से बनता है (जैसे Cl$_2$, O$_2$), इलेक्ट्रॉन युग्म समान रूप से साझा होता है।
- **ध्रुवीय:** भिन्न-भिन्न विद्युतऋणात्मकता वाले परमाणुओं के बीच बनता है (जैसे HCl, H$_2$O), इलेक्ट्रॉन युग्म अधिक विद्युतऋणात्मक परमाणु की ओर अधिक आकर्षित होता है, जिससे आबंध में आंशिक धनात्मक और ऋणात्मक आवेश उत्पन्न होते हैं।
4.4 संयोजकता कोश इलेक्ट्रॉन युग्म प्रतिकर्षण (VSEPR) सिद्धांत (Valence Shell Electron Pair Repulsion Theory)
VSEPR सिद्धांत अणुओं की ज्यामिति की भविष्यवाणी करने के लिए एक सरल मॉडल है। यह इस विचार पर आधारित है कि एक केंद्रीय परमाणु के संयोजकता कोश में इलेक्ट्रॉन युग्म (आबंध युग्म और एकाकी युग्म दोनों) एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं और इस प्रकार अंतरिक्ष में ऐसे व्यवस्थित होते हैं कि उनके बीच प्रतिकर्षण न्यूनतम हो और स्थिरता अधिकतम हो।
प्रमुख अवधारणाएँ:
- इलेक्ट्रॉन युग्म (आबंध युग्म और एकाकी युग्म) एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
- प्रतिकर्षण का क्रम: एकाकी युग्म-एकाकी युग्म > एकाकी युग्म-आबंध युग्म > आबंध युग्म-आबंध युग्म।
- अणुओं की विभिन्न ज्यामितियाँ (जैसे रैखिक, त्रिकोणीय समतलीय, चतुष्फलकीय, त्रिकोणीय द्विपिरामिडी, अष्टफलकीय) इस सिद्धांत द्वारा समझाई जा सकती हैं।
4.5 संयोजकता बंध सिद्धांत (Valence Bond Theory - VBT)
VBT परमाणु कक्षकों के अतिव्यापन के आधार पर आबंध निर्माण को समझाता है।
- **संकरण (Hybridisation):** परमाणु कक्षकों का मिश्रण होकर नए, समान ऊर्जा और आकार के संकर कक्षक बनाना। यह आबंध बनाने में अधिक स्थिरता और बेहतर अतिव्यापन की अनुमति देता है। सामान्य संकरण प्रकार: sp, sp$^2$, sp$^3$, sp$^3$d, sp$^3$d$^2$।
- **सिग्मा ($\sigma$) आबंध:** दो परमाणु कक्षकों के अक्षीय (end-to-end) अतिव्यापन से बनता है। यह एक मजबूत आबंध होता है।
- **पाई ($\pi$) आबंध:** दो परमाणु कक्षकों के पाशर्विक (sideways) अतिव्यापन से बनता है (आमतौर पर p-कक्षकों का)। यह सिग्मा आबंध से कमजोर होता है और हमेशा सिग्मा आबंध के साथ मौजूद होता है।
4.6 आणविक कक्षक सिद्धांत (Molecular Orbital Theory - MOT)
MOT के अनुसार, परमाणु कक्षक संयोजन करके आणविक कक्षक बनाते हैं, जिनमें परमाणु कक्षक के समान ही इलेक्ट्रॉन भरे जाते हैं।
- **बंधी आणविक कक्षक (Bonding Molecular Orbitals - BMO):** परमाणु कक्षकों के योग से बनते हैं, जिनकी ऊर्जा मूल परमाणु कक्षकों से कम होती है और जो स्थिरता बढ़ाते हैं।
- **प्रतिबंधी आणविक कक्षक (Antibonding Molecular Orbitals - ABMO):** परमाणु कक्षकों के घटाव से बनते हैं, जिनकी ऊर्जा मूल परमाणु कक्षकों से अधिक होती है और जो अस्थिरता बढ़ाते हैं।
- MOT आबंध क्रम (bond order), चुंबकीय गुण (magnetic properties), और विषम-नाभिकीय अणुओं (heteronuclear molecules) के व्यवहार को समझाने में सक्षम है, जो VBT द्वारा नहीं समझाए जा सकते थे।
4.7 आबंध प्राचल (Bond Parameters)
- **आबंध लंबाई (Bond Length):** दो आबंधित परमाणुओं के नाभिकों के बीच की साम्यावस्था दूरी।
- **आबंध कोण (Bond Angle):** एक ही परमाणु के केंद्रीय परमाणु के चारों ओर दो आबंधित परमाणुओं के कक्षकों के बीच का कोण।
- **आबंध एन्थैल्पी (Bond Enthalpy) / आबंध ऊर्जा:** एक मोल आबंधित गैसीय परमाणुओं को अलग करने के लिए आवश्यक ऊर्जा।
- **आबंध क्रम (Bond Order):** दो परमाणुओं के बीच आबंधों की संख्या (जैसे H$_2$ में 1, O$_2$ में 2, N$_2$ में 3)।
4.8 अनुनाद संरचनाएँ (Resonance Structures)
कुछ अणुओं के लिए, एक एकल लुईस संरचना उनके सभी गुणों को पर्याप्त रूप से नहीं समझा सकती। ऐसे मामलों में, एक से अधिक लुईस संरचनाएँ खींची जा सकती हैं (जिन्हें अनुनाद संरचनाएँ या विहित रूप कहा जाता है), जो केवल इलेक्ट्रॉनों की स्थिति में भिन्न होती हैं। अणु इन सभी अनुनाद संरचनाओं का एक **अनुनाद संकर (Resonance Hybrid)** होता है, जो किसी भी एक अनुनाद संरचना से अधिक स्थिर होता है। उदाहरण: O$_3$, बेंजीन (C$_6$H$_6$)।
4.9 ध्रुवीयता और द्विध्रुव आघूर्ण (Polarity and Dipole Moment)
**आबंध ध्रुवीयता (Bond Polarity):** जब दो भिन्न विद्युतऋणात्मकता वाले परमाणु सहसंयोजी आबंध बनाते हैं, तो साझा इलेक्ट्रॉन युग्म अधिक विद्युतऋणात्मक परमाणु की ओर आकर्षित होता है, जिससे आबंध में आंशिक आवेश उत्पन्न होते हैं और आबंध ध्रुवीय हो जाता है।
**द्विध्रुव आघूर्ण ($\mu$):** एक सदिश राशि है जो आबंध ध्रुवीयता या आणविक ध्रुवीयता का माप है। यह आवेश और आवेशों के बीच की दूरी का गुणनफल होता है। $$ \mu = Q \times r $$ जहाँ $Q$ आवेश और $r$ दूरी है। द्विध्रुव आघूर्ण की इकाई डीबाय (Debye - D) है। यदि अणु में आबंध ध्रुवीय होते हैं, लेकिन अणु की समग्र ज्यामिति ऐसी होती है कि व्यक्तिगत आबंध द्विध्रुव आघूर्ण एक-दूसरे को रद्द कर देते हैं, तो अणु अध्रुवीय हो सकता है (जैसे CO$_2$, CCl$_4$)। यदि वे रद्द नहीं होते हैं, तो अणु ध्रुवीय होता है (जैसे H$_2$O, NH$_3$)।
4.10 हाइड्रोजन आबंधन (Hydrogen Bonding)
**हाइड्रोजन आबंधन** एक विशेष प्रकार का द्विध्रुव-द्विध्रुव आकर्षण बल है जो तब उत्पन्न होता है जब हाइड्रोजन परमाणु एक अत्यधिक विद्युतऋणात्मक परमाणु (जैसे F, O, या N) से सहसंयोजी रूप से जुड़ा होता है। इस आबंध के कारण हाइड्रोजन परमाणु पर आंशिक धनात्मक आवेश आ जाता है, और यह आंशिक रूप से एक अन्य अत्यधिक विद्युतऋणात्मक परमाणु के एकाकी युग्म से आकर्षित होता है।
हाइड्रोजन आबंधन के कारण जल का असामान्य रूप से उच्च क्वथनांक, अल्कोहल की घुलनशीलता और प्रोटीन की संरचना जैसे कई महत्वपूर्ण गुण होते हैं।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)
I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।
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रासायनिक आबंध क्या है?
रासायनिक आबंध वह आकर्षक बल है जो विभिन्न रासायनिक स्पीशीज़ (परमाणु, आयन) को एक साथ रखता है ताकि अणु या अन्य बड़ी संरचनाएं बन सकें।
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आयनिक आबंध कैसे बनता है?
आयनिक आबंध एक परमाणु से दूसरे परमाणु में इलेक्ट्रॉनों के पूर्ण स्थानांतरण से बनता है, जिसके परिणामस्वरूप विपरीत आवेश वाले आयन बनते हैं।
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VSEPR सिद्धांत का मुख्य विचार क्या है?
VSEPR सिद्धांत का मुख्य विचार यह है कि केंद्रीय परमाणु के संयोजकता कोश में इलेक्ट्रॉन युग्म (आबंध और एकाकी) एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं और इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं कि उनके बीच प्रतिकर्षण न्यूनतम हो।
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एक सिग्मा ($\sigma$) आबंध कैसे बनता है?
एक सिग्मा ($\sigma$) आबंध दो परमाणु कक्षकों के अक्षीय (end-to-end) अतिव्यापन से बनता है।
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अनुनाद संकर क्या है?
अनुनाद संकर एक अणु का वास्तविक प्रतिनिधित्व होता है जो उसकी सभी संभावित अनुनाद संरचनाओं का एक औसत या मध्यवर्ती होता है, और यह किसी भी एक व्यक्तिगत अनुनाद संरचना से अधिक स्थिर होता है।
II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।
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अष्टक नियम को समझाएँ।
अष्टक नियम यह बताता है कि परमाणु रासायनिक आबंध बनाकर अपने संयोजकता कोश में आठ इलेक्ट्रॉन प्राप्त करने की प्रवृत्ति रखते हैं, ताकि वे अपनी निकटतम उत्कृष्ट गैस विन्यास प्राप्त कर सकें और स्थिर हो सकें।
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संकरण क्या है और यह क्यों होता है?
संकरण परमाणु कक्षकों का मिश्रण होकर नए, समान ऊर्जा और आकार के संकर कक्षक बनाना है। यह बेहतर अतिव्यापन और अधिक स्थिर आबंधों के निर्माण के लिए होता है, जिससे अणुओं की विशिष्ट ज्यामिति बनती है।
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ध्रुवीय और अध्रुवीय सहसंयोजी आबंधों में अंतर करें।
अध्रुवीय सहसंयोजी आबंध समान विद्युतऋणात्मकता वाले परमाणुओं के बीच बनते हैं जहाँ इलेक्ट्रॉन युग्म समान रूप से साझा होता है। ध्रुवीय सहसंयोजी आबंध भिन्न विद्युतऋणात्मकता वाले परमाणुओं के बीच बनते हैं जहाँ इलेक्ट्रॉन युग्म अधिक विद्युतऋणात्मक परमाणु की ओर आकर्षित होता है।
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हाइड्रोजन आबंधन की परिभाषा दें।
हाइड्रोजन आबंधन एक विशेष प्रकार का द्विध्रुव-द्विध्रुव आकर्षक बल है जो तब बनता है जब हाइड्रोजन परमाणु एक अत्यधिक विद्युतऋणात्मक परमाणु (F, O, या N) से सहसंयोजी रूप से जुड़ा होता है और दूसरे विद्युतऋणात्मक परमाणु के एकाकी युग्म से आकर्षित होता है।
III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।
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संयोजकता बंध सिद्धांत (VBT) और आणविक कक्षक सिद्धांत (MOT) की मुख्य अवधारणाओं की तुलना करें।
संयोजकता बंध सिद्धांत (VBT) और आणविक कक्षक सिद्धांत (MOT) रासायनिक आबंधन की व्याख्या करने वाले दो प्रमुख सिद्धांत हैं। VBT परमाणुओं के बीच आबंधों को परमाणु कक्षकों के अतिव्यापन के रूप में देखता है। इसके अनुसार, आबंध तब बनते हैं जब आधे भरे हुए परमाणु कक्षक एक दूसरे के साथ अतिव्यापन करते हैं, जिससे इलेक्ट्रॉन युग्मों का साझाकरण होता है। VBT संकरण की अवधारणा का उपयोग अणुओं की ज्यामिति और आबंध कोणों को समझाने के लिए करता है। यह सिग्मा और पाई आबंधों के गठन को भी बताता है। VBT रासायनिक अभिक्रियाओं में आबंध बनने और टूटने की सहज कल्पना प्रदान करता है, लेकिन यह ऑक्सीजन जैसे कुछ अणुओं के चुंबकीय गुणों और कुछ विषम-नाभिकीय अणुओं के अस्तित्व को समझाने में विफल रहता है।
आणविक कक्षक सिद्धांत (MOT) अधिक परिष्कृत मॉडल है जो परमाणुओं के बीच आबंधों को एक अलग दृष्टिकोण से देखता है। यह मानता है कि परमाणु कक्षक संयोजन करके नए आणविक कक्षक बनाते हैं जो पूरे अणु पर फैले होते हैं। ये आणविक कक्षक दो प्रकार के होते हैं: बंधी आणविक कक्षक (कम ऊर्जा वाले, स्थिरता प्रदान करते हैं) और प्रतिबंधी आणविक कक्षक (उच्च ऊर्जा वाले, अस्थिरता प्रदान करते हैं)। इलेक्ट्रॉन इन आणविक कक्षकों में ऑफबाऊ सिद्धांत और हुंड के नियम के अनुसार भरे जाते हैं। MOT आबंध क्रम, चुंबकीय गुण (जैसे ऑक्सीजन का अनुचुंबकीय व्यवहार), और विषम-नाभिकीय द्विपरमाणुक अणुओं के अस्तित्व को सफलतापूर्वक समझाता है। जबकि VBT एक स्थानीयकृत आबंध दृष्टिकोण प्रदान करता है, MOT एक विस्थानीकृत (delocalized) दृष्टिकोण प्रदान करता है, जहाँ इलेक्ट्रॉन पूरे अणु में फैल सकते हैं। दोनों सिद्धांत रासायनिक आबंधन की हमारी समझ में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं और एक-दूसरे के पूरक हैं।
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द्विध्रुव आघूर्ण क्या है और यह आणविक ज्यामिति को कैसे प्रभावित करता है? उदाहरणों सहित समझाएँ।
द्विध्रुव आघूर्ण ($\mu$) एक सदिश राशि है जो अणु में आवेश पृथक्करण के परिमाण का माप है। यह सहसंयोजी आबंधों की ध्रुवीयता और समग्र आणविक ध्रुवीयता को व्यक्त करता है। एक आबंध ध्रुवीय होता है यदि आबंधित परमाणुओं के बीच विद्युतऋणात्मकता में अंतर होता है, जिससे साझा इलेक्ट्रॉन युग्म अधिक विद्युतऋणात्मक परमाणु की ओर विस्थापित हो जाता है और आंशिक धनात्मक और ऋणात्मक आवेश उत्पन्न होते हैं। द्विध्रुव आघूर्ण की इकाई डीबाय (Debye, D) है। आणविक ज्यामिति द्विध्रुव आघूर्ण को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। एक अणु में व्यक्तिगत आबंध द्विध्रुव आघूर्ण सदिश राशियाँ होती हैं, और अणु का कुल द्विध्रुव आघूर्ण इन व्यक्तिगत आबंध द्विध्रुव आघूर्णों का सदिश योग होता है।
यदि अणु की ज्यामिति सममित है और सभी व्यक्तिगत आबंध द्विध्रुव आघूर्ण एक दूसरे को रद्द कर देते हैं, तो अणु का कुल द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होगा और अणु अध्रुवीय होगा। उदाहरण के लिए, कार्बन डाइऑक्साइड (CO$_2$) एक रैखिक अणु है जिसमें C=O आबंध ध्रुवीय होते हैं, लेकिन दो C=O आबंध द्विध्रुव आघूर्ण विपरीत दिशाओं में होते हैं और एक दूसरे को रद्द कर देते हैं, जिससे CO$_2$ अध्रुवीय होता है। इसी प्रकार, कार्बन टेट्राक्लोराइड (CCl$_4$) एक चतुष्फलकीय अणु है जिसमें चार C-Cl आबंध ध्रुवीय होते हैं, लेकिन सममित व्यवस्था के कारण उनका सदिश योग शून्य होता है, जिससे CCl$_4$ अध्रुवीय होता है। इसके विपरीत, यदि ज्यामिति असममित है या व्यक्तिगत आबंध द्विध्रुव आघूर्ण एक दूसरे को रद्द नहीं करते हैं, तो अणु का एक शुद्ध द्विध्रुव आघूर्ण होगा और वह ध्रुवीय होगा। उदाहरण के लिए, जल (H$_2$O) एक मुड़ा हुआ (bent) अणु है। इसमें दो ध्रुवीय O-H आबंध होते हैं और उनके द्विध्रुव आघूर्ण एक दूसरे को रद्द नहीं करते हैं, जिससे जल एक ध्रुवीय अणु है। अमोनिया (NH$_3$) एक पिरामिडी ज्यामिति वाला अणु है जिसमें N-H आबंध ध्रुवीय होते हैं और उनका सदिश योग शून्य नहीं होता, जिससे NH$_3$ भी ध्रुवीय होता है। इस प्रकार, आणविक ज्यामिति यह निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है कि एक अणु ध्रुवीय होगा या अध्रुवीय।
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