अध्याय 2: परमाणु की संरचना (Structure of Atom)

परिचय

हम जानते हैं कि पदार्थ परमाणुओं और अणुओं से मिलकर बना है। लंबे समय तक, परमाणुओं को अविभाज्य माना जाता था। हालांकि, 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में हुई खोजों ने इस विचार को बदल दिया और यह स्पष्ट हो गया कि परमाणु स्वयं उप-परमाण्विक कणों से मिलकर बने होते हैं। इस अध्याय में, हम परमाणु की संरचना के विकास को समझेंगे, जिसमें इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की खोज और परमाणु के विभिन्न मॉडलों का अध्ययन शामिल है।

2.1 उप-परमाण्विक कणों की खोज (Discovery of Sub-atomic Particles)

2.1.1 इलेक्ट्रॉन की खोज (Discovery of Electron)

**जे.जे. थॉमसन (J.J. Thomson)** ने 1897 में **कैथोड किरण नली (Cathode Ray Tube)** प्रयोगों के माध्यम से इलेक्ट्रॉन की खोज की। उन्होंने पाया कि कैथोड किरणें ऋणावेशित कणों से बनी होती हैं, जिन्हें बाद में इलेक्ट्रॉन नाम दिया गया। उन्होंने इलेक्ट्रॉन के लिए आवेश से द्रव्यमान अनुपात ($e/m$) का मान निर्धारित किया।

2.1.2 प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की खोज (Discovery of Proton and Neutron)

**ई. गोल्डस्टीन (E. Goldstein)** ने 1886 में **एनोड किरणें (Anode Rays)** या कैनाल किरणें (Canal Rays) देखीं, जो धनावेशित कणों से बनी होती हैं। बाद में, **रदरफोर्ड (Rutherford)** ने इन धनावेशित कणों को **प्रोटॉन** नाम दिया।

**जेम्स चैडविक (James Chadwick)** ने 1932 में **न्यूट्रॉन** की खोज की। न्यूट्रॉन अनावेशित होते हैं और इनका द्रव्यमान प्रोटॉन के लगभग बराबर होता है।

2.2 परमाणु के मॉडल (Atomic Models)

उप-परमाण्विक कणों की खोज के बाद, वैज्ञानिकों ने इन कणों को परमाणु में कैसे व्यवस्थित किया जाता है, यह समझाने के लिए विभिन्न मॉडल प्रस्तावित किए।

2.2.1 थॉमसन का परमाणु मॉडल (Thomson's Atomic Model)

1898 में, जे.जे. थॉमसन ने **"प्लम पुडिंग मॉडल"** प्रस्तावित किया। इस मॉडल के अनुसार:

यह मॉडल कुछ हद तक परमाणु की उदासीनता को समझा पाया, लेकिन बाद के प्रायोगिक परिणामों की व्याख्या करने में विफल रहा।

2.2.2 रदरफोर्ड का नाभिकीय परमाणु मॉडल (Rutherford's Nuclear Model of Atom)

अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने अपने छात्रों (हंस गाइगर और अर्नेस्ट मार्सडेन) के साथ 1911 में एक महत्वपूर्ण **$\alpha$-कण प्रकीर्णन प्रयोग (α-particle Scattering Experiment)** किया। उन्होंने सोने की पतली पन्नी पर धनावेशित $\alpha$-कणों की बौछार की और निम्न प्रेक्षण किए:

इन प्रेक्षणों के आधार पर, रदरफोर्ड ने अपना नाभिकीय मॉडल प्रस्तावित किया:

रदरफोर्ड का मॉडल सौरमंडल के समान था, जहाँ नाभिक सूर्य के समान और इलेक्ट्रॉन ग्रहों के समान होते हैं। हालांकि, इसमें कुछ कमियाँ थीं, जैसे कि यह परमाणु के स्थायित्व (स्थिर कक्षाओं में घूमते इलेक्ट्रॉन ऊर्जा विकीर्ण करेंगे और नाभिक में गिर जाएंगे) और हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की व्याख्या नहीं कर सका।

Rutherford's gold foil experiment showing alpha particles passing through, some deflecting, and a few bouncing back, illustrating the nuclear model of atom.

2.2.3 बोर का परमाणु मॉडल (Bohr's Atomic Model)

नील्स बोर ने 1913 में रदरफोर्ड के मॉडल की कमियों को दूर करने के लिए क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों का उपयोग करके अपना मॉडल प्रस्तावित किया। बोर के मॉडल की मुख्य अभिधारणाएँ (Postulates) थीं:

बोर के मॉडल ने हाइड्रोजन परमाणु के स्पेक्ट्रम और स्थायित्व की सफलतापूर्वक व्याख्या की, लेकिन बहु-इलेक्ट्रॉनिक परमाणुओं के स्पेक्ट्रम और ज़ीमन (Zeeman) व स्टार्क (Stark) प्रभावों की व्याख्या करने में विफल रहा।

2.3 क्वांटम यांत्रिकी परमाणु मॉडल (Quantum Mechanical Model of Atom)

बोर मॉडल की सीमाओं ने परमाणु की संरचना की अधिक परिष्कृत समझ की आवश्यकता को जन्म दिया। **क्वांटम यांत्रिकी मॉडल** परमाणु की संरचना का सबसे आधुनिक और स्वीकृत मॉडल है। यह दोहरे प्रकृति (De Broglie's dual nature) और हाइजेनबर्ग के अनिश्चितता सिद्धांत (Heisenberg's Uncertainty Principle) पर आधारित है।

इन सिद्धांतों के कारण, इलेक्ट्रॉन की स्थिति को कक्षाओं के बजाय **कक्षकों (Orbitals)** के रूप में वर्णित किया जाता है। एक कक्षक वह त्रि-आयामी क्षेत्र है जहाँ एक इलेक्ट्रॉन के पाए जाने की संभावना अधिकतम होती है।

2.3.1 क्वांटम संख्याएँ (Quantum Numbers)

एक परमाणु में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा, आकार, आकृति और अभिविन्यास का वर्णन करने के लिए चार क्वांटम संख्याओं का उपयोग किया जाता है:

2.3.2 ऑफबाऊ सिद्धांत (Aufbau Principle)

यह सिद्धांत बताता है कि परमाणुओं के मूल अवस्था में, इलेक्ट्रॉन पहले सबसे कम ऊर्जा वाले कक्षकों में भरे जाते हैं, और फिर क्रमिक रूप से उच्च ऊर्जा वाले कक्षकों में।

2.3.3 पाउली का अपवर्जन सिद्धांत (Pauli's Exclusion Principle)

इस सिद्धांत के अनुसार, एक परमाणु में किन्हीं भी दो इलेक्ट्रॉनों के लिए सभी चार क्वांटम संख्याओं का सेट समान नहीं हो सकता है। इसका मतलब है कि एक कक्षक में अधिकतम दो इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं, और यदि एक कक्षक में दो इलेक्ट्रॉन हैं, तो उनका स्पिन विपरीत होना चाहिए।

2.3.4 हुंड का अधिकतम बहुलता का नियम (Hund's Rule of Maximum Multiplicity)

इस नियम के अनुसार, समान ऊर्जा वाले कक्षकों (अपभ्रष्ट कक्षक) में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन तब तक नहीं होता जब तक कि प्रत्येक कक्षक में एक-एक इलेक्ट्रॉन भर न जाए। इसके अलावा, एक-एक इलेक्ट्रॉन भरने के बाद, सभी इलेक्ट्रॉनों का स्पिन समानांतर (समान दिशा में) होता है।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर (Questions & Answers)

I. कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों में उत्तर दें।

  1. इलेक्ट्रॉन की खोज किसने की थी?

    जे.जे. थॉमसन ने इलेक्ट्रॉन की खोज की थी।

  2. परमाणु के नाभिक में कौन से कण पाए जाते हैं?

    परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन और न्यूट्रॉन पाए जाते हैं।

  3. थॉमसन के परमाणु मॉडल का दूसरा नाम क्या है?

    थॉमसन के परमाणु मॉडल का दूसरा नाम "प्लम पुडिंग मॉडल" है।

  4. बोर के परमाणु मॉडल में मुख्य क्वांटम संख्या क्या दर्शाती है?

    मुख्य क्वांटम संख्या ($n$) कक्षक के आकार और ऊर्जा को दर्शाती है।

  5. डी-ब्रोगली का द्वैत प्रकृति सिद्धांत क्या बताता है?

    डी-ब्रोगली का द्वैत प्रकृति सिद्धांत बताता है कि इलेक्ट्रॉन जैसे कण भी तरंग और कण दोनों की तरह व्यवहार कर सकते हैं।

II. प्रत्येक प्रश्न का एक लघु पैराग्राफ (लगभग 30 शब्द) में उत्तर दें।

  1. रदरफोर्ड के अल्फा-कण प्रकीर्णन प्रयोग के दो मुख्य प्रेक्षण क्या थे?

    रदरफोर्ड के प्रयोग के दो मुख्य प्रेक्षण थे: अधिकांश अल्फा-कण सोने की पन्नी से सीधे निकल गए, और बहुत कम कण (लगभग 20,000 में से 1) 90° से अधिक के कोण पर वापस उछल गए।

  2. पाउली के अपवर्जन सिद्धांत को संक्षिप्त में समझाएं।

    पाउली का अपवर्जन सिद्धांत बताता है कि एक परमाणु में किन्हीं भी दो इलेक्ट्रॉनों के लिए सभी चार क्वांटम संख्याओं का सेट समान नहीं हो सकता है। इसका अर्थ है कि एक कक्षक में अधिकतम दो इलेक्ट्रॉन ही हो सकते हैं, जिनका स्पिन विपरीत होना चाहिए।

  3. इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के सापेक्ष आवेश और द्रव्यमान का उल्लेख करें।

    इलेक्ट्रॉन का सापेक्ष आवेश -1 और द्रव्यमान लगभग $1/1837$ प्रोटॉन का होता है। प्रोटॉन का सापेक्ष आवेश +1 और द्रव्यमान लगभग 1 होता है। न्यूट्रॉन का कोई आवेश नहीं होता (0) और द्रव्यमान लगभग 1 होता है।

  4. ऑफबाऊ सिद्धांत का महत्व क्या है?

    ऑफबाऊ सिद्धांत परमाणुओं के मूल अवस्था में इलेक्ट्रॉनों को भरने के क्रम को निर्धारित करता है। यह बताता है कि इलेक्ट्रॉन पहले सबसे कम ऊर्जा वाले कक्षकों में भरे जाते हैं, जो तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।

III. प्रत्येक प्रश्न का दो या तीन पैराग्राफ (100–150 शब्द) में उत्तर दें।

  1. रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की व्याख्या करें। इस मॉडल की प्रमुख कमियाँ क्या थीं?

    अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने अपने प्रसिद्ध अल्फा-कण प्रकीर्णन प्रयोग के आधार पर 1911 में परमाणु का नाभिकीय मॉडल प्रस्तावित किया। इस मॉडल के अनुसार, परमाणु का अधिकांश द्रव्यमान और उसका समस्त धनावेश एक बहुत छोटे, सघन केंद्र में केंद्रित होता है, जिसे नाभिक कहा जाता है। उन्होंने यह भी प्रस्तावित किया कि इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृत्ताकार कक्षाओं में घूमते हैं, ठीक वैसे ही जैसे ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। उनके प्रयोग से यह भी पता चला कि परमाणु का अधिकांश भाग रिक्त होता है, क्योंकि अधिकांश अल्फा-कण बिना किसी विचलन के सीधे सोने की पन्नी से होकर गुजर गए।

    हालांकि, रदरफोर्ड का मॉडल दो प्रमुख कमियों के कारण दोषपूर्ण पाया गया। पहली कमी यह थी कि यह परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या नहीं कर सका। चिरसम्मत भौतिकी के अनुसार, वृत्ताकार कक्षाओं में घूमने वाला एक आवेशित कण (इलेक्ट्रॉन) लगातार ऊर्जा का विकिरण करेगा। ऊर्जा खोने पर, इलेक्ट्रॉन की कक्षा छोटी होती जाएगी और अंततः वह नाभिक में गिर जाएगा, जिससे परमाणु अस्थायी हो जाएगा। लेकिन वास्तविकता में परमाणु स्थायी होते हैं। दूसरी कमी यह थी कि रदरफोर्ड का मॉडल परमाणु के स्पेक्ट्रम की व्याख्या करने में विफल रहा। यह हाइड्रोजन जैसे परमाणुओं के लाइन स्पेक्ट्रम की विशिष्ट प्रकृति को नहीं समझा सका, जो यह दर्शाता है कि इलेक्ट्रॉन केवल कुछ विशिष्ट ऊर्जा स्तरों में ही ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं।

  2. बोर के परमाणु मॉडल की मुख्य अभिधारणाओं की व्याख्या करें और बताएं कि यह रदरफोर्ड की कमियों को कैसे दूर करता है।

    नील्स बोर ने 1913 में रदरफोर्ड के मॉडल की कमियों को दूर करने के लिए अपना परमाणु मॉडल प्रस्तावित किया, जिसमें उन्होंने क्वांटम यांत्रिकी के कुछ सिद्धांतों को शामिल किया। बोर के मॉडल की पहली मुख्य अभिधारणा यह थी कि इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर केवल कुछ निश्चित, स्थायी वृत्ताकार कक्षाओं में ही घूम सकते हैं, और इन कक्षाओं में घूमते समय वे ऊर्जा का विकिरण नहीं करते। इन कक्षाओं को ऊर्जा स्तर कहा जाता है। दूसरी अभिधारणा यह थी कि प्रत्येक स्थायी कक्षा की एक निश्चित ऊर्जा होती है, और नाभिक के निकटतम कक्षा की ऊर्जा सबसे कम होती है। तीसरी अभिधारणा के अनुसार, इलेक्ट्रॉन केवल तभी ऊर्जा का अवशोषण या उत्सर्जन कर सकते हैं जब वे एक ऊर्जा स्तर से दूसरे में कूदते हैं। जब इलेक्ट्रॉन उच्च से निम्न ऊर्जा स्तर में कूदते हैं तो ऊर्जा उत्सर्जित होती है, और जब वे निम्न से उच्च ऊर्जा स्तर में जाते हैं तो ऊर्जा अवशोषित होती है।

    बोर का मॉडल रदरफोर्ड के मॉडल की प्रमुख कमियों को सफलतापूर्वक दूर करता है। ऊर्जा के विकिरण के बिना इलेक्ट्रॉन का स्थायी कक्षाओं में घूमना यह बताता है कि परमाणु स्थायी क्यों होते हैं, क्योंकि इलेक्ट्रॉन नाभिक में नहीं गिरते। इसके अलावा, बोर के ऊर्जा स्तर की अवधारणा ने हाइड्रोजन परमाणु के लाइन स्पेक्ट्रम की व्याख्या की। चूंकि इलेक्ट्रॉन केवल निश्चित ऊर्जा स्तरों के बीच ही संक्रमण कर सकते हैं, इसलिए वे केवल विशिष्ट आवृत्तियों (और तरंगदैर्ध्य) पर ऊर्जा का उत्सर्जन या अवशोषण करेंगे, जिससे एक विशिष्ट लाइन स्पेक्ट्रम उत्पन्न होगा। हालांकि, बोर का मॉडल भी बहु-इलेक्ट्रॉनिक परमाणुओं के जटिल स्पेक्ट्रम और कुछ अन्य सूक्ष्म प्रभावों की व्याख्या करने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया।

  3. क्वांटम संख्याएँ क्या हैं? प्रत्येक क्वांटम संख्या के महत्व का वर्णन करें।

    क्वांटम संख्याएँ पूर्णांकों का एक सेट हैं जो एक परमाणु में इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा, स्थिति और अन्य गुणों का पूरी तरह से वर्णन करती हैं। वे क्वांटम यांत्रिकी मॉडल का एक अभिन्न अंग हैं और यह समझने में मदद करती हैं कि इलेक्ट्रॉन परमाणु में कैसे व्यवस्थित होते हैं। चार मुख्य क्वांटम संख्याएँ हैं: मुख्य क्वांटम संख्या ($n$), दिगंशी क्वांटम संख्या ($l$), चुंबकीय क्वांटम संख्या ($m_l$), और इलेक्ट्रॉन स्पिन क्वांटम संख्या ($m_s$)। ये संख्याएँ एक कक्षक को परिभाषित करती हैं, जो एक त्रि-आयामी क्षेत्र होता है जहाँ इलेक्ट्रॉन के पाए जाने की अधिकतम संभावना होती है।

    प्रत्येक क्वांटम संख्या का अपना विशिष्ट महत्व होता है:

    • **मुख्य क्वांटम संख्या ($n$):** यह कक्षक के आकार और इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा स्तर को निर्धारित करती है। $n$ का मान जितना अधिक होता है, कक्षक उतना ही बड़ा होता है और इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा उतनी ही अधिक होती है। यह मुख्य कोश (shell) को इंगित करता है।
    • **दिगंशी क्वांटम संख्या ($l$):** इसे कक्षीय कोणीय संवेग क्वांटम संख्या भी कहते हैं। यह कक्षक की त्रिविमीय **आकृति** को निर्धारित करती है। $l$ के मान $0$ से $n-1$ तक होते हैं। $l=0$ एक गोलाकार $s$-कक्षक को दर्शाता है, $l=1$ एक डंबल-आकार के $p$-कक्षक को, और इसी तरह। यह उपकोश (subshell) को इंगित करता है।
    • **चुंबकीय क्वांटम संख्या ($m_l$):** यह एक उपकोश के भीतर कक्षकों के त्रिविमीय **अभिविन्यास** को निर्धारित करती है। इसके मान $-l$ से $+l$ तक होते हैं, जिसमें शून्य भी शामिल है। उदाहरण के लिए, $l=1$ ($p$-उपकोश) के लिए, $m_l$ के मान $-1, 0, +1$ होते हैं, जो तीन $p$-कक्षकों ($p_x, p_y, p_z$) के विभिन्न अभिविन्यास को दर्शाते हैं।
    • **इलेक्ट्रॉन स्पिन क्वांटम संख्या ($m_s$):** यह इलेक्ट्रॉन के आंतरिक स्पिन (घूर्णन) के अभिविन्यास को बताती है, जो दक्षिणावर्त या वामावर्त हो सकता है। इसके केवल दो मान होते हैं: $+\frac{1}{2}$ और $-\frac{1}{2}$। यह बताता है कि एक कक्षक में केवल दो इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं, और उनका स्पिन विपरीत होना चाहिए।
    ये चार क्वांटम संख्याएँ मिलकर एक परमाणु में प्रत्येक इलेक्ट्रॉन की अनूठी "पहचान" प्रदान करती हैं।


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