अध्याय 6: काम, आराम और जीवन (Work, Life and Leisure)

परिचय

कक्षा 10 इतिहास का यह अध्याय **'काम, आराम और जीवन'** 19वीं और 20वीं सदी के दौरान शहरीकरण और औद्योगिकरण के कारण शहरों के विकास, सामाजिक परिवर्तनों और लोगों के जीवन में आए बदलावों पर केंद्रित है। इसमें लंदन जैसे बड़े शहरों के अनुभवों, श्रमिकों की परिस्थितियों, महिलाओं के जीवन, मनोरंजन के साधनों और शहरों की साफ-सफाई व नियोजन के प्रयासों को समझाया गया है। यह अध्याय दिखाता है कि कैसे शहर आधुनिकता के प्रतीक बन गए और लोगों के काम करने, रहने और खाली समय बिताने के तरीके को बदल दिया।

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1. शहर, शहरीकरण और शहरवासी (Cities, Urbanisation and City Life)

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2. लंदन में सामाजिक परिवर्तन (Social Change in London)

(a) आपराधिक और खतरनाक वर्ग (The Criminal and Dangerous Class)

(b) महिलाएँ, काम और पारिवारिक जीवन (Women, Work and Family Life)

(c) अवकाश, मनोरंजन और संस्कृति (Leisure, Entertainment and Culture)

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3. शहर की योजना (The City in the Planning)

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4. शहर में राजनीति (Politics in the City)

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5. शहर में जीवन: बंबई (Life in the City: Bombay)

औपनिवेशिक शहर, विशेषकर बंबई, औद्योगिक और शहरी परिवर्तनों का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

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6. शहर और पर्यावरण (Cities and the Environment)

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7. शहर और महिलाएँ (Cities and Women)

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8. जाति, शहर और गरीबी (Caste, City and Poverty)

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

संक्षेप में लिखें (Write in brief)

  1. निम्नलिखित में प्रत्येक के बारे में 100 शब्दों में लिखें:
    (क) 'औद्योगिक शहर' का मतलब क्या होता है?

    'औद्योगिक शहर' वे शहर थे जो 19वीं शताब्दी में **औद्योगिक क्रांति** के परिणामस्वरूप तेज़ी से विकसित हुए। इन शहरों का मुख्य आधार कारखाने, उत्पादन और उनसे संबंधित गतिविधियाँ थीं। उदाहरण के लिए, मैनचेस्टर (इंग्लैंड) और बाद में भारत में बंबई (मुंबई) और कलकत्ता (कोलकाता) ऐसे ही औद्योगिक शहर बने।
    • **जनसंख्या वृद्धि:** ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोगों ने रोजगार की तलाश में इन शहरों की ओर पलायन किया, जिससे शहरों की आबादी में विस्फोटक वृद्धि हुई।
    • **कारखानों का केंद्र:** ये शहर कई कारखानों और उद्योगों के घर थे, जो बड़ी संख्या में श्रमिकों को आकर्षित करते थे।
    • **आवास और स्वच्छता की समस्याएँ:** तेज़ और अनियंत्रित विकास के कारण इन शहरों में अक्सर आवास की गंभीर कमी, भीड़भाड़, खराब स्वच्छता और प्रदूषण की समस्याएँ होती थीं। श्रमिकों को अक्सर झुग्गी-झोपड़ियों या छोटी, अस्वच्छ इमारतों (जैसे बंबई में चॉल) में रहना पड़ता था।
    • **सामाजिक वर्ग विभाजन:** औद्योगिक शहर सामाजिक वर्गों के बीच एक स्पष्ट विभाजन दिखाते थे—एक तरफ अमीर उद्योगपति और व्यापारी, और दूसरी तरफ बड़ी संख्या में गरीब श्रमिक।
    • **नए अवसर:** इन चुनौतियों के बावजूद, औद्योगिक शहरों ने रोजगार के नए अवसर प्रदान किए और लोगों की जीवनशैली और अवकाश गतिविधियों में बदलाव लाए।
    संक्षेप में, औद्योगिक शहर वह केंद्र थे जहाँ कारखानों और पूंजीवाद के उदय ने आबादी को आकर्षित किया, जिससे तीव्र विकास हुआ, लेकिन साथ ही नई सामाजिक और पर्यावरणीय समस्याएँ भी पैदा हुईं।

  2. निम्नलिखित में प्रत्येक के बारे में 100 शब्दों में लिखें:
    (ख) अठारहवीं सदी के अंत में लंदन की आबादी क्यों बढ़ी?

    अठारहवीं सदी के अंत और विशेष रूप से 19वीं सदी की शुरुआत से लंदन की आबादी में तेजी से वृद्धि हुई, जिसके कई कारण थे:
    • **औद्योगीकरण का केंद्र:** लंदन स्वयं एक महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र बन रहा था, खासकर कपड़ा, धातु और इंजीनियरिंग जैसे उद्योगों में। यहाँ नई कारखाने और कार्यशालाएँ स्थापित हो रही थीं, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ रहे थे।
    • **ब्रिटेन का केंद्रीय शहर:** लंदन ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी था और एक प्रमुख बंदरगाह के रूप में कार्य करता था। यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वाणिज्य का एक विशाल केंद्र था, जिससे व्यापारिक गतिविधियाँ और उससे जुड़े रोजगार बढ़ रहे थे।
    • **ग्रामीण-शहरी प्रवास:** ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि में मशीनीकरण और भूस्वामित्व के पैटर्न में बदलाव के कारण बड़ी संख्या में ग्रामीण गरीब और भूमिहीन लोग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने लगे। लंदन उनके लिए एक प्रमुख गंतव्य था।
    • **आजीविका के विविध स्रोत:** लंदन केवल कारखानों का शहर नहीं था, बल्कि यहाँ विभिन्न प्रकार के सेवा क्षेत्र भी थे जैसे परिवहन, खुदरा व्यापार, निर्माण, और घरेलू सेवाएँ। इन सभी ने बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित किया।
    • **उच्च जन्म दर और बेहतर स्वास्थ्य:** हालाँकि शहरी जीवन में चुनौतियाँ थीं, फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में कुछ हद तक बेहतर स्वास्थ्य सेवाएँ (जैसे टीकाकरण) और खाद्य आपूर्ति उपलब्ध होने के कारण जन्म दर उच्च बनी रही, जिससे जनसंख्या वृद्धि में योगदान हुआ।
    इन सभी कारकों के संयोजन से लंदन एक विशाल महानगर में बदल गया, जहाँ 1810 में लगभग 10 लाख लोग रहते थे और 1880 तक यह संख्या 40 लाख तक पहुँच गई।

  3. निम्नलिखित में प्रत्येक के बारे में 100 शब्दों में लिखें:
    (ग) बंबई के 'चॉल' क्या थे?

    बंबई (मुंबई) के **'चॉल' (Chawls)** 19वीं सदी के मध्य से 20वीं सदी की शुरुआत तक शहर में श्रमिकों और गरीब परिवारों के लिए बनाए गए बहुमंजिला आवास थे। ये आमतौर पर निजी भूस्वामियों या कभी-कभी कपड़ा मिल मालिकों द्वारा बनाए जाते थे ताकि बढ़ती आबादी, विशेषकर कारखानों में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों को आवास प्रदान किया जा सके।
    • **संरचना:** एक चॉल में कई मंजिलें होती थीं, और प्रत्येक मंजिल पर कई छोटे-छोटे कमरे होते थे, जिनमें एक-एक परिवार रहता था। आमतौर पर, एक मंजिल पर शौचालय और पानी की सुविधा साझा की जाती थी।
    • **भीड़भाड़:** ये चॉल अत्यधिक भीड़भाड़ वाले थे। एक छोटे से कमरे में कई सदस्य वाला परिवार रहता था।
    • **खराब स्वच्छता:** पानी की कमी, साझा शौचालयों और खराब अपशिष्ट प्रबंधन के कारण चॉल में स्वच्छता की स्थिति बहुत खराब थी। इससे बीमारियों (जैसे प्लेग और इन्फ्लूएंजा) का खतरा बढ़ जाता था।
    • **सामाजिक जीवन:** हालांकि चॉल की स्थितियाँ कठिन थीं, वे सामुदायिक जीवन के केंद्र भी थे। लोग एक-दूसरे के साथ सामाजिक रूप से बातचीत करते थे, त्यौहार मनाते थे और संकट में एक-दूसरे का समर्थन करते थे।
    • **आर्थिक अनिवार्यता:** ये चॉल सस्ते थे और श्रमिकों के लिए कारखानों के करीब रहने का एकमात्र व्यवहार्य विकल्प थे, जो शहर में जीवन-यापन की उच्च लागत को वहन नहीं कर सकते थे।
    चॉल बंबई के तीव्र शहरीकरण और औद्योगिक विकास का एक परिणाम थे, जिसने शहर में बड़ी संख्या में प्रवासियों को आकर्षित किया लेकिन उनके लिए पर्याप्त और स्वच्छ आवास प्रदान करने में विफल रहा।

  4. निम्नलिखित में प्रत्येक के बारे में 100 शब्दों में लिखें:
    (घ) लंदन में भूमिगत रेलवे का विकास कैसे हुआ?

    लंदन में **भूमिगत रेलवे (Underground Railway)** का विकास 19वीं सदी के मध्य में शहर में बढ़ती भीड़भाड़ और यातायात की समस्याओं के समाधान के रूप में हुआ। यह परिवहन के इतिहास में एक क्रांतिकारी कदम था।
    • **भीड़भाड़ का समाधान:** लंदन की आबादी तेजी से बढ़ रही थी, और सड़कों पर भीड़भाड़ एक बड़ी समस्या बन गई थी। लोग काम के लिए दूर से आते थे, और उन्हें यात्रा करने में बहुत समय लगता था।
    • **पहला खंड:** 10 जनवरी, 1863 को दुनिया की पहली भूमिगत रेलवे लाइन, **मेट्रोपॉलिटन रेलवे (Metropolitan Railway)** खोली गई। यह पैडिंगटन से फ़ारिंगडन स्ट्रीट तक 6.5 किलोमीटर की दूरी तय करती थी।
    • **शुरुआती चुनौतियाँ:** शुरुआती भूमिगत रेलवे को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा। गाड़ियाँ भाप से चलती थीं, जिससे सुरंगों में धुआँ और कालिख भर जाती थी। यात्रियों को धुएँ और शोर का सामना करना पड़ता था।
    • **विकास और विस्तार:**
      • शुरुआती सफलताओं के बाद, कई नई लाइनें बिछाई गईं।
      • 1880 के दशक तक, गहरी-स्तरीय ट्यूबों का विकास हुआ, जिससे बिजली से चलने वाली ट्रेनें संभव हो गईं और धुएँ की समस्या का समाधान हुआ।
    • **शहर पर प्रभाव:**
      • भूमिगत रेलवे ने लोगों के लिए शहर के विभिन्न हिस्सों में यात्रा करना बहुत आसान बना दिया।
      • इससे लोग शहर के केंद्र से दूर, उपनगरों में जाकर रह सकते थे, जिससे शहरों में भीड़भाड़ कुछ कम हुई।
      • इसने लंदन के विस्तार और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे यह एक आधुनिक महानगर के रूप में और अधिक कार्यशील हो गया।
    भूमिगत रेलवे एक तकनीकी चमत्कार था जिसने शहरी परिवहन को हमेशा के लिए बदल दिया और लंदन को दुनिया के सबसे कुशल सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों में से एक दिया।

चर्चा करें (Discuss)

  1. उन्नीसवीं सदी में लंदन शहर में आने वाले लोगों के लिए आवासीय समस्याएँ क्या थीं? इन समस्याओं को हल करने के लिए क्या प्रयास किए गए?

    उन्नीसवीं सदी में लंदन में तेजी से बढ़ती आबादी के कारण भयानक आवासीय समस्याएँ उत्पन्न हुईं। औद्योगिकरण और ग्रामीण-शहरी प्रवास ने बड़ी संख्या में लोगों को शहर में ला दिया, लेकिन उनके लिए पर्याप्त और स्वच्छ आवास उपलब्ध नहीं थे।
    **आवासीय समस्याएँ:**
    • **भीड़भाड़ और झुग्गी-झोपड़ियाँ:** शहर के सबसे गरीब इलाकों में, विशेषकर ईस्ट एंड जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में, भीड़भाड़ अत्यधिक थी। लाखों मजदूर छोटे-छोटे कमरों में, अक्सर एक कमरे में कई परिवारों के साथ, झुग्गियों में रहते थे।
    • **अस्वच्छ परिस्थितियाँ:** इन आवासों में बुनियादी सुविधाओं (जैसे स्वच्छ पानी, शौचालय और सीवेज प्रणाली) का अभाव था। गलियाँ कूड़े से भरी रहती थीं, और खुली नालियाँ बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं का प्रजनन स्थल थीं।
    • **स्वास्थ्य जोखिम:** खराब स्वच्छता और भीड़भाड़ के कारण हैजा, तपेदिक (टीबी) और अन्य बीमारियाँ तेजी से फैलती थीं। बच्चों में मृत्यु दर बहुत अधिक थी।
    • **गुणवत्ता में गिरावट:** मकान सस्ते और खराब गुणवत्ता वाली सामग्री से बने होते थे, जो अक्सर असुरक्षित होते थे और आसानी से ढह सकते थे।
    • **किराये का दबाव:** आवास की कमी के कारण मकान मालिकों को अत्यधिक किराया वसूलने का अवसर मिला, जिससे गरीब श्रमिकों के लिए अच्छी जगह पर रहना और भी मुश्किल हो गया।
    **इन समस्याओं को हल करने के प्रयास:**
    • **किफायती आवास योजनाएँ:** 1880 के दशक के बाद, अधिकारियों ने श्रमिकों के लिए किफायती आवास की आवश्यकता को महसूस किया। उन्होंने पुरानी और अस्वच्छ झुग्गियों को ध्वस्त करना शुरू किया और उनकी जगह नए, बेहतर अपार्टमेंट बनाने का प्रयास किया।
    • **किरायेदार प्रतिबंध अधिनियम (Tenant Restrictions Act - 1885):** इस अधिनियम का उद्देश्य एक ही घर में बहुत अधिक किरायेदारों को रहने से रोकना था, हालांकि इसका प्रभाव सीमित रहा।
    • **बगीचा शहर आंदोलन (Garden City Movement):** रेमंड अनविन (Raymond Unwin) जैसे नियोजकों ने 'बगीचा शहर' के विचार को बढ़ावा दिया। इसका उद्देश्य ऐसे स्व-निहित समुदाय बनाना था जहाँ अच्छे आवास, हरे-भरे स्थान (बगीचे) और सामुदायिक सुविधाएँ हों, जिससे निवासियों को बेहतर जीवन शैली मिल सके।
    • **भूमिगत रेलवे का विकास:** लंदन में भूमिगत रेलवे (1863) के विकास ने लोगों को शहर के केंद्र से दूर, उपनगरों में रहने और फिर भी काम के लिए आसानी से आने-जाने की सुविधा प्रदान की। इसने शहर के केंद्र में भीड़भाड़ को कम करने में मदद की।
    • **सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधार:** सीवेज प्रणालियों में सुधार, स्वच्छ पानी की आपूर्ति और सार्वजनिक स्वास्थ्य कानूनों को लागू करने से बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद मिली।
    • **कानूनी उपाय:** कुछ कानून पास किए गए, जैसे कि 1875 का निवास-स्थल निर्माण अधिनियम, जिसने शहरों में मकानों के लिए न्यूनतम मानकों को निर्धारित किया।
    इन प्रयासों का उद्देश्य लंदन को एक अधिक रहने योग्य शहर बनाना था, लेकिन गरीबी और असमानता की समस्याएँ लंबे समय तक बनी रहीं।

  2. उन्नीसवीं सदी में शहर किस प्रकार सामाजिक एकजुटता में बाधाएँ डालते थे?

    उन्नीसवीं सदी में शहरों का तेजी से विकास, विशेषकर औद्योगिकरण के कारण, सामाजिक एकजुटता (social solidarity) या सामंजस्य में कई प्रकार से बाधाएँ डालता था। जहाँ गाँव में समुदाय और पारिवारिक संबंध मजबूत होते थे, वहीं शहरों में नई चुनौतियाँ पैदा हुईं:
    • **अज्ञातवास और अलगाव (Anonymity and Isolation):**
      • शहरों में बड़ी संख्या में अजनबी लोग एक साथ रहते थे। गाँवों के विपरीत, जहाँ हर कोई एक-दूसरे को जानता था, शहरों में व्यक्तिगत संबंध अक्सर कमजोर होते थे।
      • प्रवासी मजदूर अपने परिवारों और सामाजिक नेटवर्क से दूर हो जाते थे, जिससे उनमें अलगाव की भावना बढ़ सकती थी।
    • **वर्ग विभाजन (Class Division):**
      • शहरों में धन और शक्ति के आधार पर स्पष्ट सामाजिक वर्ग विभाजन उत्पन्न हुए। एक तरफ अमीर उद्योगपति और व्यापारी थे, और दूसरी तरफ गरीब श्रमिक।
      • इन वर्गों के बीच जीवन शैली, अवसर और अनुभवों में भारी अंतर था, जिससे सामाजिक खाई बढ़ गई। अमीर लोग अक्सर गरीबों के जीवन से कट जाते थे और उनके संघर्षों से अनजान रहते थे।
    • **बेरोजगारी और प्रतिस्पर्धा:**
      • शहरों में रोजगार के अवसर सीमित थे और बड़ी संख्या में कामगारों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा होती थी। इससे श्रमिकों के बीच एकता के बजाय प्रतिद्वंद्विता उत्पन्न हो सकती थी।
      • अनियमित रोजगार और बेरोजगारी की समस्या ने भी सामाजिक अस्थिरता को बढ़ाया।
    • **खराब जीवन स्थितियाँ और अपराध:**
      • भीड़भाड़ वाले, अस्वच्छ झुग्गी-झोपड़ियों और अपर्याप्त बुनियादी सुविधाओं ने श्रमिकों के जीवन को कठिन बना दिया। ऐसी स्थितियाँ कभी-कभी अपराध और असामाजिक व्यवहार को जन्म देती थीं, जिससे सामाजिक ताना-बाना कमजोर होता था।
      • अधिकारियों ने कुछ गरीब वर्गों को 'आपराधिक' के रूप में लेबल करना शुरू कर दिया, जिससे समाज में और विभाजन पैदा हुआ।
    • **पारंपरिक नियंत्रणों का अभाव:** गाँवों में सामाजिक नियंत्रण और रीति-रिवाज अक्सर मजबूत होते थे। शहरों में, ये नियंत्रण कमजोर पड़ गए, जिससे कुछ हद तक अराजकता और अनियंत्रित व्यवहार को बढ़ावा मिला।
    • **शहरी नियोजन में असमानता:** शहर नियोजन के प्रयासों ने अक्सर गरीबों को शहर के केंद्रों से दूर धकेल दिया, जिससे वे और अधिक हाशिए पर चले गए और सामाजिक अलगाव बढ़ा।
    हालांकि शहरों में कुछ नए प्रकार की सामाजिक एकजुटता (जैसे श्रमिक संघ या मनोरंजन क्लब) भी विकसित हुई, लेकिन कुल मिलाकर, 19वीं सदी के शहरों ने अपनी तीव्र गति, असमानता और अज्ञातवास के कारण पारंपरिक सामाजिक एकजुटता के लिए महत्वपूर्ण बाधाएँ पैदा कीं।

  3. उन्नीसवीं सदी में महिलाओं के लिए शहरों में किस तरह के नए अवसर सामने आए?

    उन्नीसवीं सदी में शहरीकरण और औद्योगिकरण ने महिलाओं के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाए, जिससे उन्हें कुछ नए अवसर मिले, हालांकि वे अक्सर चुनौतियों और असमानताओं से घिरे रहे:
    1. **रोजगार के अवसर:**
      • औद्योगिक क्रांति से पहले ग्रामीण इलाकों में काम करने वाली कई महिलाएँ (जैसे कताई करने वाली) शहरों में कारखानों में रोजगार की तलाश में आईं।
      • कपास और जूट मिलों में, महिलाएँ अक्सर बड़ी संख्या में कार्यरत थीं, खासकर शुरुआती चरणों में।
      • फैक्ट्रियों के अलावा, महिलाओं को घरेलू कामगारों, कपड़ों की सिलाई, माचिस बनाने, या प्रिंटिंग प्रेस में सहायक के रूप में भी काम मिलता था।
    2. **व्यक्तिगत स्वतंत्रता का बढ़ा हुआ भाव:**
      • शहरों में, महिलाएँ ग्रामीण समाज के कड़े पारंपरिक नियंत्रणों से कुछ हद तक मुक्त थीं।
      • काम करने से उन्हें कुछ वित्तीय स्वतंत्रता मिली, जिससे उन्हें अपने जीवन के बारे में अधिक निर्णय लेने की अनुमति मिली।
    3. **सार्वजनिक जीवन में भागीदारी:**
      • कुछ महिलाएँ, विशेषकर मध्य वर्ग से, सामाजिक सुधार आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल हुईं। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों, शिक्षा, मताधिकार (suffrage) और श्रमिक सुधारों के लिए संघर्ष किया।
      • उन्होंने राजनीतिक प्रदर्शनों और सभाओं में भाग लेना शुरू किया, जिससे उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में एक नई उपस्थिति मिली।
    4. **शिक्षा के अवसर:**
      • हालांकि सीमित, शहरों में महिलाओं के लिए शिक्षा के अवसर धीरे-धीरे बढ़ रहे थे, खासकर मध्यवर्गीय लड़कियों के लिए।
      • इससे उन्हें बेहतर रोजगार के अवसर और बौद्धिक विकास का मौका मिला।
    5. **मनोरंजन और अवकाश:**
      • शहरी जीवन ने महिलाओं को मनोरंजन के नए साधन उपलब्ध कराए, जैसे कि थिएटर, संगीत हॉल, सिनेमा और शॉपिंग।
      • हालांकि अक्सर सुरक्षित और सम्मानजनक स्थानों पर सीमित, ये अवसर ग्रामीण जीवन की तुलना में अधिक विविधतापूर्ण थे।
    6. **संगठन और एकजुटता:** कामकाजी महिलाओं ने कभी-कभी अपने अधिकारों के लिए लड़ने और अपनी कामकाजी परिस्थितियों में सुधार करने के लिए श्रमिक संघों और अन्य संगठनों में भाग लिया।
    हालांकि महिलाओं को अभी भी लैंगिक भेदभाव, कम मजदूरी और मुश्किल काम की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था, शहरीकरण ने उन्हें पारंपरिक बाधाओं से कुछ हद तक मुक्ति दी और नए आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक अवसर प्रदान किए।

  4. शहरों में पर्यावरण संबंधी चिंताएँ क्या थीं? उनपर संक्षेप में चर्चा करें।

    औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण 19वीं और 20वीं शताब्दी के शहरों में गंभीर पर्यावरणीय चिंताएँ उत्पन्न हुईं, जिन्होंने लोगों के स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित किया। इन चिंताओं को दूर करने के लिए शुरुआती प्रयास भी किए गए।
    **मुख्य पर्यावरणीय चिंताएँ:**
    1. **वायु प्रदूषण (Air Pollution):**
      • **कारण:** औद्योगिक कारखानों (जैसे कोयले से चलने वाली भाप इंजन), घरों में कोयले का बड़े पैमाने पर उपयोग, और रेलवे से निकलने वाला धुआँ और कालिख।
      • **प्रभाव:** शहर की हवा धुएँ और प्रदूषकों से भरी रहती थी, जिससे श्वसन संबंधी बीमारियाँ (जैसे ब्रोंकाइटिस और तपेदिक) आम हो गईं। दीवारों और इमारतों पर कालिख जम जाती थी।
    2. **जल प्रदूषण (Water Pollution):**
      • **कारण:** औद्योगिक कचरा, घरेलू सीवेज और अपशिष्ट सीधे नदियों और जल स्रोतों में बहाए जाते थे।
      • **प्रभाव:** पेयजल दूषित हो गया, जिससे हैजा और टाइफाइड जैसी जल-जनित बीमारियाँ तेजी से फैलती थीं। कई शहरों में साफ पानी की भारी कमी थी।
    3. **कचरा और अपशिष्ट प्रबंधन (Waste Management):**
      • **कारण:** बढ़ती आबादी और औद्योगिक गतिविधियों से भारी मात्रा में ठोस कचरा उत्पन्न होता था।
      • **प्रभाव:** शहर की गलियाँ और सार्वजनिक स्थान कूड़े-करकट से अटे रहते थे, जिससे गंदगी और बदबू फैलती थी। यह बीमारियों के लिए एक प्रजनन स्थल था।
    4. **भीड़भाड़ और खराब स्वच्छता (Overcrowding and Poor Sanitation):**
      • **कारण:** आबादी का तेजी से बढ़ना और पर्याप्त, स्वच्छ आवास का अभाव।
      • **प्रभाव:** भीड़भाड़ वाले आवासों (जैसे बंबई के चॉल या लंदन की झुग्गियाँ) में हवा और रोशनी की कमी थी, और साझा शौचालयों व पानी की अपर्याप्त व्यवस्था ने स्वच्छता की स्थिति को बहुत खराब कर दिया था।
    **इनपर किए गए प्रयास (संक्षेप में):**
    • **धुआँ निवारण कानून (Smoke Nuisance Legislation):** 1858 में मैनचेस्टर में और 1863 में कलकत्ता (भारत) में पहला धुआँ निवारण कानून पारित किया गया, जिसने औद्योगिक धुएँ को नियंत्रित करने का प्रयास किया। हालांकि, इन्हें लागू करना अक्सर मुश्किल होता था।
    • **सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधार:** 1860 के दशक से सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधारों पर ध्यान दिया गया, जिसमें सीवेज सिस्टम को बेहतर बनाना, साफ पानी की आपूर्ति प्रदान करना और घरों के लिए न्यूनतम स्वच्छता मानकों को स्थापित करना शामिल था।
    • **शहर नियोजन:** बगीचा शहर आंदोलन (Garden City Movement) जैसे विचारों ने हरे-भरे स्थानों और बेहतर रहने की स्थिति वाले नियोजित शहरों के निर्माण पर जोर दिया, ताकि पर्यावरणीय दबावों को कम किया जा सके।
    इन शुरुआती चिंताओं और प्रयासों ने आधुनिक शहरी नियोजन और पर्यावरण नियमों की नींव रखी, हालाँकि समस्याएँ पूरी तरह से हल नहीं हुईं।

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