अध्याय 4: भूमंडलीकृत विश्व का बनना (The Making of a Global World)
परिचय
कक्षा 10 इतिहास का चौथा अध्याय **'भूमंडलीकृत विश्व का बनना'** हमें यह समझने में मदद करता है कि आधुनिक वैश्विक दुनिया का निर्माण कैसे हुआ। यह अध्याय बताता है कि कैसे प्राचीन काल से ही व्यापार, प्रवास और विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम से विभिन्न समाज एक-दूसरे से जुड़े हुए थे और कैसे 19वीं और 20वीं शताब्दी में यह प्रक्रिया तेज हुई, जिससे भूमंडलीकरण का वर्तमान स्वरूप सामने आया।
---1. पूर्व-आधुनिक विश्व (The Pre-Modern World)
प्राचीन काल से ही लोग दूर-दराज के स्थानों की यात्रा कर रहे थे, व्यापार कर रहे थे और ज्ञान, अवसर तथा आध्यात्मिक शांति की तलाश में यात्राएँ कर रहे थे।
- **सिल्क रूट्स (Silk Routes):**
- ये प्राचीन भूमि और समुद्री मार्ग थे जो एशिया को यूरोप और अफ्रीका से जोड़ते थे।
- नाम रेशम व्यापार के महत्व से आया है, लेकिन इन मार्गों पर चीनी रेशम के अलावा भारतीय मसाले, चीनी मिट्टी के बर्तन और अन्य वस्तुएं भी ले जाई जाती थीं।
- इन मार्गों से व्यापार के साथ-साथ विचारों, धर्मों (जैसे बौद्ध धर्म) और बीमारियों (जैसे बुबोनिक प्लेग) का भी प्रसार हुआ।
- **भोजन यात्राएँ (Food Travels):**
- खाद्य पदार्थों का आदान-प्रदान भी वैश्विक जुड़ाव का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
- आलू, सोया, मूंगफली, मक्का, टमाटर, मिर्च आदि जैसे कई सामान्य खाद्य पदार्थ मूल रूप से यूरोप या एशिया के नहीं थे, बल्कि क्रिस्टोफर कोलंबस द्वारा अमेरिका की खोज के बाद वहां से यूरोप और एशिया पहुंचे।
- इन नए खाद्य पदार्थों ने गरीबों के जीवन को बेहतर बनाया और उनका पोषण स्तर बढ़ाया, जिससे उनकी औसत आयु भी बढ़ी।
2. 19वीं शताब्दी (1815-1914) (The Nineteenth Century)
19वीं शताब्दी में विश्व अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव आए, जिससे वैश्विक जुड़ाव और गहरा हुआ।
- **तीन प्रकार के प्रवाह (Three Types of Flows):**
- **व्यापार का प्रवाह (Flow of Trade):** मुख्य रूप से वस्तुओं (जैसे गेहूं, कपास) का व्यापार।
- **श्रम का प्रवाह (Flow of Labour):** रोजगार की तलाश में लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास।
- **पूंजी का प्रवाह (Flow of Capital):** अल्पकालिक या दीर्घकालिक निवेश के लिए पूंजी का प्रवाह।
- **विश्व अर्थव्यवस्था का उद्भव (Emergence of a World Economy):**
- **ब्रिटिश कृषि क्रांति:** ब्रिटेन में जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण के कारण खाद्यान्न की मांग बढ़ी। सरकार ने **कॉर्न लॉ (Corn Laws)** को रद्द कर दिया, जिससे सस्ते आयातित खाद्यान्न की बाढ़ आ गई।
- **वैश्विक कृषि प्रणाली का विकास:** पूर्वी यूरोप, रूस, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे क्षेत्रों में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ा। रेलवे, नए बंदरगाहों और जहाजों के विकास ने इस व्यापार को संभव बनाया।
- **पशुपालन का वैश्वीकरण:** अमेरिका से यूरोप तक मांस का व्यापार शुरू हुआ। रेफ्रिजरेटेड जहाजों (refrigerated ships) के विकास ने मांस जैसे खराब होने वाले उत्पादों को लंबी दूरी तक ले जाना संभव बनाया। इससे यूरोप में मांस की कीमतें गिरीं और गरीबों के लिए भोजन उपलब्ध हुआ।
- **भारत से गिरमिटिया श्रमिक (Indentured Labour from India):**
- 19वीं शताब्दी में, गरीबी और अवसरों की कमी के कारण लाखों भारतीय श्रमिकों को अनुबंध (गिरमिटिया) पर काम करने के लिए कैरिबियन द्वीप समूह (जैसे त्रिनिदाद, गुयाना, सूरीनाम), मॉरीशस, फिजी, सीलोन (श्रीलंका) और मलाया ले जाया गया।
- यह व्यवस्था शोषणकारी थी, जहाँ श्रमिकों को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया और उन्हें कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ा। इसे "नई दास प्रथा" भी कहा गया।
- **अवरुद्ध प्रवास:** भारतीयों को ब्रिटिश कानून के तहत कुछ देशों में प्रवास करने की अनुमति नहीं थी।
- **भारतीय उद्यमी विदेशों में (Indian Entrepreneurs Abroad):**
- कुछ भारतीय व्यापारी और साहूकार भी विदेशों में व्यापार और वित्तपोषण के लिए गए, जैसे शिकारीपुरी श्रॉफ और नट्टूकोट्टई चेट्टियार, जिन्होंने मध्य और दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापार और कृषि के लिए पैसा उधार दिया।
- **भारत और वैश्विक अर्थव्यवस्था (India and the Global Economy):**
- भारत ब्रिटिश उपनिवेश था और वैश्विक कृषि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
- यह कपास, अफीम और नील का एक बड़ा उत्पादक और निर्यातक था।
- ब्रिटिश निर्यात के लिए एक बड़ा बाजार था।
- ब्रिटिश व्यापार अधिशेष को बनाए रखने में भारत ने मदद की।
3. अंतर-युद्ध अर्थव्यवस्था (The Inter-War Economy)
पहले विश्व युद्ध (1914-1918) ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को गहराई से प्रभावित किया।
- **पहला विश्व युद्ध (The First World War):**
- यह पहला आधुनिक औद्योगिक युद्ध था, जिसमें मशीन गन, टैंक, विमान, रासायनिक हथियार जैसे औद्योगिक हथियारों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया।
- करोड़ों लोग मारे गए और घायल हुए। इससे कामकाजी उम्र के पुरुषों की संख्या में भारी कमी आई।
- ब्रिटेन विश्व की प्रमुख आर्थिक शक्ति से संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर शक्ति का स्थानांतरण हुआ।
- **युद्धोत्तर सुधार (Post-War Recovery):**
- युद्ध के बाद अर्थव्यवस्था संघर्ष कर रही थी। ब्रिटेन को अब अमेरिकी ऋणों का सामना करना पड़ा।
- भारत में कृषि उत्पादन में उछाल आया, लेकिन बाद में कीमतें गिर गईं।
- **उत्पादन और खपत का गर्जन बीस का दशक (Roaring Twenties: Production and Consumption):**
- 1920 के दशक में अमेरिका में आर्थिक वृद्धि हुई। बड़े पैमाने पर उत्पादन (mass production) का विस्तार हुआ, जिसका नेतृत्व **हेनरी फोर्ड (Henry Ford)** ने किया (असेंबली लाइन)।
- उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं (जैसे कार, रेफ्रिजरेटर) की मांग बढ़ी, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला।
- अमेरिका एक प्रमुख ऋणदाता बन गया।
- **महामंदी (The Great Depression) (1929-1930 के मध्य):**
- **कारण:**
- कृषि क्षेत्र में अधिक उत्पादन और कीमतों में गिरावट।
- अमेरिकी बैंकों द्वारा ऋण देने में कमी।
- वॉल स्ट्रीट क्रैश (Wall Street Crash) 1929।
- **प्रभाव:**
- वैश्विक व्यापार में भारी कमी आई।
- बेरोजगारी में नाटकीय वृद्धि।
- आय में भारी गिरावट।
- भारत में कृषि उत्पादों की कीमतें गिरीं, जिससे किसानों की स्थिति खराब हुई।
महामंदी के दौरान एक सूप किचन - **कारण:**
4. विश्व अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण: युद्धोत्तर युग (Rebuilding a World Economy: The Post-War Era)
द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) ने दुनिया को एक बार फिर से बदल दिया।
- **द्वितीय विश्व युद्ध (The Second World War):**
- यह दो प्रमुख अक्ष शक्तियों (जर्मनी, इटली, जापान) और मित्र राष्ट्रों (ब्रिटेन, फ्रांस, सोवियत संघ, अमेरिका) के बीच लड़ा गया।
- बड़े पैमाने पर मौतें और विनाश हुआ।
- पुनर्निर्माण के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए।
- **ब्रेटन वुड्स संस्थाएँ (Bretton Woods Institutions):**
- जुलाई 1944 में न्यू हैम्पशायर, अमेरिका में ब्रेटन वुड्स में एक सम्मेलन आयोजित किया गया।
- इसका उद्देश्य युद्धोत्तर विश्व में आर्थिक स्थिरता और पूर्ण रोजगार सुनिश्चित करना था।
- **अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund - IMF):** सदस्य देशों के भुगतान संतुलन के घाटे को पूरा करने के लिए वित्तपोषण।
- **विश्व बैंक (World Bank) (पुनर्निर्माण और विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय बैंक - IBRD):** युद्धोत्तर पुनर्निर्माण के लिए वित्तपोषण।
- ये संस्थान निश्चित विनिमय दर प्रणाली (fixed exchange rates) पर आधारित थे।
- इन्हें "ब्रेटन वुड्स ट्विन्स" भी कहा जाता है।
- **डी-कॉलोनाइजेशन और स्वतंत्रता (Decolonisation and Independence):**
- ब्रेटन वुड्स प्रणाली ने पश्चिम के औपनिवेशिक शक्तियों को लाभ पहुँचाया, जबकि अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के नए स्वतंत्र राष्ट्रों को सहायता की आवश्यकता थी।
- इन देशों ने **G-77 (ग्रुप ऑफ 77)** का गठन किया ताकि वे अपनी आवाज़ उठा सकें और एक नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (New International Economic Order - NIEO) की मांग कर सकें।
- **ब्रेटन वुड्स का अंत और भूमंडलीकरण की शुरुआत (End of Bretton Woods and the Beginning of Globalisation):**
- 1960 के दशक से, डॉलर का मूल्य गिर गया, और निश्चित विनिमय दर प्रणाली ध्वस्त हो गई।
- बहुराष्ट्रीय निगमों (multinational corporations - MNCs) का उदय हुआ, जिन्होंने विभिन्न देशों में उत्पादन और निवेश का विस्तार किया।
- विकासशील देशों से कम मजदूरी वाले देशों में उत्पादन कार्यों का स्थानांतरण हुआ।
- चीन, भारत और अन्य एशियाई देशों में महत्वपूर्ण आर्थिक वृद्धि हुई।
- आधुनिक भूमंडलीकरण ने दुनिया को और भी अधिक जुड़ा हुआ बना दिया है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
अभ्यास के प्रश्न
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'सिल्क रूट्स' क्या थे? वे आधुनिक भूमंडलीकृत विश्व के बनने में कैसे महत्वपूर्ण थे?
**'सिल्क रूट्स' (Silk Routes):** ये प्राचीन काल से लेकर मध्ययुगीन काल तक के व्यापक भूमि और समुद्री मार्गों का एक नेटवर्क था जो एशिया को यूरोप और अफ्रीका से जोड़ता था। "सिल्क रूट" नाम चीनी रेशम के व्यापार से आया है, लेकिन इन मार्गों पर केवल रेशम ही नहीं, बल्कि विभिन्न वस्तुएं, विचार, धर्म, ज्ञान और बीमारियाँ भी एक जगह से दूसरी जगह तक पहुँचती थीं।**आधुनिक भूमंडलीकृत विश्व के बनने में महत्व:**
- **व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का माध्यम:** सिल्क रूट्स ने शताब्दियों तक विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों के बीच व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को संभव बनाया। इसने वस्तुओं, प्रौद्योगिकियों (जैसे कागज, बारूद), कला और विचारों के प्रसार में मदद की।
- **धर्मों का प्रसार:** बौद्ध धर्म जैसे धर्मों का प्रसार इन्हीं मार्गों से हुआ, जिससे विभिन्न समाजों के बीच धार्मिक संबंध स्थापित हुए।
- **महामारियों का प्रसार:** व्यापार और यात्रा के साथ-साथ बीमारियों (जैसे बुबोनिक प्लेग) का भी प्रसार हुआ, जिसने दूर-दराज के क्षेत्रों में लोगों और अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया। यह दर्शाता है कि कैसे प्रारंभिक वैश्विक जुड़ाव के नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं।
- **आधुनिक भूमंडलीकरण की नींव:** सिल्क रूट्स ने एक प्रारंभिक वैश्विक नेटवर्क का उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसने दिखाया कि कैसे दूरस्थ क्षेत्र आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से जुड़ सकते हैं। यह आधुनिक भूमंडलीकरण की नींव थी, जहाँ व्यापार, लोगों के प्रवास और पूंजी के प्रवाह ने वैश्विक एकीकरण को आगे बढ़ाया। यह दर्शाता है कि भूमंडलीकरण कोई नई घटना नहीं है, बल्कि इसका एक लंबा इतिहास रहा है।
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भोजन यात्राएँ (Food Travels) भूमंडलीकृत विश्व के बनने में कैसे सहायक हुईं? उदाहरणों सहित समझाइए।
भोजन यात्राएँ भूमंडलीकृत विश्व के बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, क्योंकि इन्होंने विभिन्न महाद्वीपों के बीच कृषि उत्पादों, खाद्य आदतों और पाक कलाओं के आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया। इससे न केवल लोगों के भोजन में विविधता आई, बल्कि अर्थव्यवस्थाओं और संस्कृतियों पर भी गहरा प्रभाव पड़ा।
**उदाहरण:**- **आलू (Potato) और अमेरिका का योगदान:**
- आलू मूल रूप से अमेरिका का था। क्रिस्टोफर कोलंबस द्वारा अमेरिका की खोज के बाद, यह यूरोप पहुँचा।
- यूरोप में, विशेषकर आयरलैंड और ब्रिटेन में, आलू एक महत्वपूर्ण फसल बन गया क्योंकि यह कम लागत पर अधिक पोषण प्रदान करता था। इसने गरीबों के जीवन को बेहतर बनाया और उनकी औसत आयु बढ़ाई।
- हालांकि, आलू पर अत्यधिक निर्भरता के कारण आयरलैंड में 1840 के दशक में आलू अकाल (Potato Famine) पड़ा, जिसने लाखों लोगों को प्रभावित किया और बड़े पैमाने पर मौतें और प्रवास हुआ। यह दर्शाता है कि कैसे वैश्विक खाद्य निर्भरता के नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं।
- **सोया (Soy), मूंगफली (Groundnut), मक्का (Maize), टमाटर (Tomato), मिर्च (Chilli) और अन्य:**
- ये सभी खाद्य पदार्थ भी मूल रूप से अमेरिका से आए और बाद में यूरोप, एशिया और अफ्रीका में फैल गए।
- इन नए खाद्य पदार्थों को अपनाने से विभिन्न क्षेत्रों की पाक कलाओं में क्रांति आ गई और स्थानीय आहार में विविधता आई। उदाहरण के लिए, मिर्च के आगमन से भारत में मसालेदार भोजन की परंपरा विकसित हुई।
- **नूडल्स (Noodles) और स्पेगेटी (Spaghetti):**
- यह माना जाता है कि नूडल्स चीन से पश्चिम में पहुंचे और उनसे ही स्पेगेटी जैसे पास्ता का विकास हुआ। यह सांस्कृतिक और पाक कला के आदान-प्रदान का एक और उदाहरण है।
इन खाद्य यात्राओं ने दूर-दराज के क्षेत्रों को जोड़ा, जनसंख्या वृद्धि में योगदान दिया, और कृषि प्रणालियों व खाद्य आदतों को विश्व स्तर पर बदल दिया, जिससे भूमंडलीकृत विश्व का निर्माण हुआ। - **आलू (Potato) और अमेरिका का योगदान:**
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19वीं शताब्दी में यूरोप में बड़े पैमाने पर उत्प्रवास क्यों हुआ?
19वीं शताब्दी में यूरोप में बड़े पैमाने पर उत्प्रवास (emigration) के कई प्रमुख कारण थे:
1. **गरीबी और भुखमरी:** यूरोप के कई हिस्सों, विशेषकर आयरलैंड जैसे क्षेत्रों में, गरीबी व्यापक थी। आलू अकाल जैसी घटनाओं ने भुखमरी की स्थिति पैदा कर दी, जिससे लोगों को जीवित रहने के लिए प्रवास करने के लिए मजबूर होना पड़ा।2. **जनसंख्या वृद्धि और संसाधनों पर दबाव:** 18वीं शताब्दी के अंत से यूरोप में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई थी। इसने भूमि और अन्य संसाधनों पर दबाव बढ़ाया, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के अवसर सीमित हो गए।3. **औद्योगीकरण और शहरीकरण:** औद्योगीकरण के कारण कई लोग ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर आकर्षित हुए, लेकिन शहरों में भी अक्सर बेरोजगारी और भीड़भाड़ की समस्या थी। जो लोग शहरों में काम नहीं ढूंढ पाए, वे विदेशों में अवसरों की तलाश में निकल पड़े।4. **बेहतर अवसरों की तलाश:** अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अन्य उपनिवेशों में नई भूमि, कृषि और औद्योगिक विकास के लिए असीमित अवसर उपलब्ध थे। लोगों को यह उम्मीद थी कि वे इन नए स्थानों पर बेहतर जीवन और आर्थिक स्थिरता पा सकेंगे।5. **परिवहन में सुधार:** 19वीं शताब्दी में समुद्री जहाजों और रेलवे जैसे परिवहन के साधनों में सुधार हुआ, जिससे लंबी दूरी की यात्राएं सस्ती और सुलभ हो गईं। इससे लोगों के लिए विदेश जाना आसान हो गया।6. **धार्मिक उत्पीड़न:** कुछ मामलों में, धार्मिक उत्पीड़न या राजनीतिक अस्थिरता ने भी लोगों को अपने मूल देशों को छोड़कर नए स्थानों पर बसने के लिए मजबूर किया।इन सभी कारकों के संयोजन ने 19वीं शताब्दी में यूरोप से उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और अन्य उपनिवेशों में लाखों लोगों के बड़े पैमाने पर उत्प्रवास को प्रेरित किया।
बहुराष्ट्रीय निगमों (Multinational Corporations - MNCs) ने भूमंडलीकरण में एक केंद्रीय और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। MNCs वे कंपनियाँ हैं जो एक से अधिक देशों में उत्पादन का स्वामित्व या नियंत्रण करती हैं।
- **उत्पादन का वैश्विक प्रसार:** MNCs ने उत्पादन गतिविधियों को उन देशों में स्थानांतरित किया जहाँ श्रम लागत कम थी (जैसे चीन, भारत)। इससे उत्पादों की लागत कम हुई और विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं के प्रवाह में वृद्धि हुई।
- **निवेश और पूंजी का प्रवाह:** MNCs दुनिया भर में विभिन्न देशों में निवेश करते हैं, जिससे पूंजी का सीमा पार प्रवाह बढ़ता है। यह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) मेजबान देशों में रोजगार सृजित करता है और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
- **प्रौद्योगिकी और ज्ञान का हस्तांतरण:** जब MNCs किसी देश में उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करते हैं, तो वे अक्सर नई तकनीकों, प्रबंधन प्रथाओं और विशेषज्ञता को अपने साथ लाते हैं। इससे मेजबान देशों की औद्योगिक और तकनीकी क्षमता में सुधार होता है।
- **श्रृंखला और आपूर्ति नेटवर्क:** MNCs ने जटिल वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का निर्माण किया है, जहाँ विभिन्न देशों में उत्पादों के अलग-अलग हिस्से बनाए जाते हैं और फिर उन्हें इकट्ठा करके दुनिया भर में बेचा जाता है। इससे वैश्विक व्यापार और जुड़ाव बढ़ा है।
- **बाजारों का एकीकरण:** MNCs विभिन्न देशों में अपने उत्पादों का विपणन करते हैं, जिससे दुनिया भर में बाजारों का एकीकरण होता है। वे वैश्विक ब्रांडों का निर्माण करते हैं जो विभिन्न संस्कृतियों और उपभोग पैटर्न को प्रभावित करते हैं।
- **रोजगार सृजन:** विकासशील देशों में MNCs द्वारा स्थापित कारखानों और कार्यालयों ने लाखों लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा किए हैं।