अध्याय 3: भारत में राष्ट्रवाद (Nationalism in India)

परिचय

कक्षा 10 इतिहास का तीसरा अध्याय **'भारत में राष्ट्रवाद'** भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण चरणों और विभिन्न सामाजिक समूहों, समुदायों और आंदोलनों की भूमिका पर केंद्रित है। यह अध्याय महात्मा गांधी के नेतृत्व, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारतीय राष्ट्रवाद के उदय में इन आंदोलनों के प्रभाव को विस्तार से बताता है।

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1. पहला विश्व युद्ध, खिलाफत और असहयोग (The First World War, Khilafat and Non-Cooperation)

पहले विश्व युद्ध (1914-1918) ने भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन पर गहरा प्रभाव डाला।

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2. सविनय अवज्ञा की ओर (Towards Civil Disobedience)

असहयोग आंदोलन की समाप्ति के बाद, कुछ नेताओं ने परिषदों के चुनावों में भाग लेने की वकालत की।

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3. सामूहिक अपनेपन की भावना (The Sense of Collective Belonging)

लोगों में राष्ट्रवाद की भावना को विकसित करने के लिए विभिन्न कारकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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निष्कर्ष

भारत में राष्ट्रवाद एक जटिल प्रक्रिया थी जिसमें विभिन्न सामाजिक समूहों ने भाग लिया और 'स्वराज' का अर्थ उनके लिए अलग-अलग था। महात्मा गांधी ने इन विभिन्न धाराओं को एक सामान्य आंदोलन में एकजुट करने का प्रयास किया। हालांकि, कांग्रेस के भीतर और बाहर कुछ मतभेद भी थे, जैसे कि दलितों और मुस्लिमों के मुद्दे। फिर भी, यह आंदोलन ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ भारत को एकजुट करने में सफल रहा और अंततः स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

अभ्यास के प्रश्न

  1. महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला क्यों किया?

    महात्मा गांधी ने फरवरी 1922 में असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला किया क्योंकि:

    1. **चौरी-चौरा की घटना:** फरवरी 1922 में, उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन हिंसक हो गया। भीड़ ने एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी, जिसमें कई पुलिसकर्मी मारे गए। गांधीजी अहिंसा के कट्टर समर्थक थे और इस हिंसक घटना से बहुत दुखी हुए।
    2. **सत्याग्रहियों को प्रशिक्षण की आवश्यकता:** गांधीजी को लगा कि आंदोलन हिंसक होता जा रहा है और सत्याग्रहियों को बड़े पैमाने पर संघर्ष से पहले ठीक से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है ताकि वे अहिंसक प्रतिरोध के सही अर्थ को समझ सकें और उसका पालन कर सकें।
    3. **आंदोलन की गति में कमी:** कुछ क्षेत्रों में आंदोलन की गति धीमी पड़ने लगी थी, और गांधीजी को लगा कि जनता अब थकने लगी है या कुछ नया तरीका अपनाने की जरूरत है।
    गांधीजी का मानना था कि यदि आंदोलन हिंसक हो जाता है, तो यह अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाएगा और ब्रिटिश सरकार को इसे दबाने का बहाना मिल जाएगा।

  2. गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन क्यों शुरू किया? इसका क्या महत्व था?

    **गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन क्यों शुरू किया?**
    1. **पूर्ण स्वराज की मांग:** कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन (दिसंबर 1929) में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित होने के बाद, गांधीजी को लगा कि अब पूर्ण स्वतंत्रता के लिए एक बड़ा और अधिक प्रभावी आंदोलन शुरू करने का समय आ गया है।
    2. **ब्रिटिश कानूनों का उल्लंघन:** गांधीजी का मानना था कि ब्रिटिश शासन अन्यायपूर्ण कानूनों के माध्यम से भारतीयों पर शासन कर रहा है। उन्होंने नमक कानून को इसका प्रतीक माना क्योंकि नमक गरीबों के भोजन का एक अनिवार्य हिस्सा था और उस पर कर लगाना ब्रिटिश सरकार की क्रूरता का प्रतीक था। नमक कानून तोड़कर वे प्रतीकात्मक रूप से ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देना चाहते थे।
    3. **विभिन्न वर्गों को एकजुट करना:** गांधीजी का मानना था कि नमक पर कर का मुद्दा सभी वर्गों - अमीर और गरीब, हिंदू और मुस्लिम - को एक साथ ला सकता है, क्योंकि यह एक सार्वभौमिक मुद्दा था।
    **इसका क्या महत्व था?**
    1. **जन भागीदारी का विस्तार:** इस आंदोलन में महिलाओं, किसानों, आदिवासियों और उद्योगपतियों सहित समाज के विभिन्न वर्गों की अभूतपूर्व भागीदारी देखी गई, जो असहयोग आंदोलन से भी अधिक व्यापक थी।
    2. **ब्रिटिश सत्ता को सीधी चुनौती:** सविनय अवज्ञा आंदोलन केवल सहयोग न करने तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें ब्रिटिश कानूनों को जानबूझकर तोड़ने का आह्वान किया गया था, जो ब्रिटिश सत्ता के लिए एक सीधी चुनौती थी।
    3. **महिलाओं की भूमिका में वृद्धि:** इस आंदोलन में महिलाओं ने बड़े पैमाने पर भाग लिया, जिससे राष्ट्र के निर्माण में उनकी भूमिका को एक नई पहचान मिली, भले ही बाद में उन्हें सीमित किया गया हो।
    4. **अंतर्राष्ट्रीय ध्यान:** इस आंदोलन, विशेष रूप से दांडी मार्च ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान आकर्षित किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को वैश्विक मंच पर उजागर किया।
    5. **नए नेताओं का उदय:** आंदोलन ने कई नए नेताओं को सामने आने का अवसर दिया और कांग्रेस को एक बड़े जन-आधार वाले संगठन के रूप में मजबूत किया।

  3. 'भारत माता' की छवि भारत में राष्ट्रवाद के विकास में कैसे सहायक हुई?

    'भारत माता' की छवि भारत में राष्ट्रवाद के विकास में कई मायनों में सहायक हुई:

    1. **राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक:** 19वीं सदी के अंत में, राष्ट्रवाद के विकास के साथ, भारत के लिए एक राष्ट्रीय पहचान की आवश्यकता महसूस की गई। भारत माता की छवि ने इस पहचान को एक मूर्त रूप दिया, जिससे लोगों को अपने देश के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ने में मदद मिली।
    2. **एकता और साझा संस्कृति:** भारत माता को एक देवी के रूप में चित्रित किया गया, जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के लोगों को एक साझा मातृभूमि के रूप में एकजुट कर सकती थी। यह छवि विविधता में एकता का प्रतीक बनी।
    3. **आंदोलन का प्रेरणा स्रोत:** यह छवि राष्ट्रवादियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी। अपनी माँ (भारत माता) को विदेशी शासन से मुक्ति दिलाने का विचार लोगों में देशभक्ति और बलिदान की भावना को जगाने में सहायक हुआ।
    4. **बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय और रवींद्रनाथ टैगोर का योगदान:** बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 'वंदे मातरम' गीत लिखा, जो बाद में भारत माता के प्रति एक भजन बन गया और राष्ट्रवादी आंदोलन का एक शक्तिशाली गीत बना। रवींद्रनाथ टैगोर ने भारत माता की प्रसिद्ध छवि को चित्रित किया, जिसमें उन्हें शांत, दिव्य और आध्यात्मिक गुणों वाली देवी के रूप में दिखाया गया।
    5. **सांस्कृतिक राष्ट्रवाद:** यह केवल एक राजनीतिक आंदोलन नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का भी हिस्सा था, जिसमें लोककथाओं, इतिहास और प्रतीकों का उपयोग किया गया था ताकि भारत के गौरवशाली अतीत को पुनर्जीवित किया जा सके और लोगों में अपनेपन की भावना पैदा की जा सके। भारत माता की छवि इस प्रक्रिया का एक केंद्रीय हिस्सा थी।

  4. भारतीय राष्ट्रवाद के उदय में प्रथम विश्व युद्ध के प्रभावों का वर्णन कीजिए।

    प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) ने भारतीय राष्ट्रवाद के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई:

    1. **आर्थिक प्रभाव और असंतोष:** युद्ध के कारण ब्रिटिश सरकार के रक्षा व्यय में भारी वृद्धि हुई। इसे पूरा करने के लिए, भारत में सीमा शुल्क बढ़ा दिए गए, आय कर पेश किया गया, और कीमतों में तेजी से वृद्धि हुई। इससे आम लोगों, खासकर किसानों और मजदूरों में भारी असंतोष फैल गया, क्योंकि उनकी जीवन-यापन की लागत बढ़ गई थी।
    2. **जबरन भर्ती और ग्रामीण क्रोध:** ब्रिटिश सेना को बड़ी संख्या में सैनिकों की आवश्यकता थी, जिसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों से लोगों की जबरन भर्ती की गई। इससे गाँवों में व्यापक गुस्सा और प्रतिरोध पैदा हुआ, जिससे लोगों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ भावनाएँ बढ़ीं।
    3. **फसल खराब होना और महामारी:** 1918-19 और 1920-21 में देश के कई हिस्सों में फसलें खराब हो गईं, जिससे खाद्य पदार्थों की भारी कमी हो गई। इसी दौरान इन्फ्लूएंजा महामारी भी फैली, जिससे लाखों लोग मारे गए। इन आपदाओं के लिए भी लोगों ने ब्रिटिश सरकार को दोषी ठहराया।
    4. **स्वशासन की उम्मीदें:** युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों से सहयोग प्राप्त करने के लिए स्वशासन के वादे किए थे, लेकिन युद्ध के बाद इन वादों को पूरा नहीं किया गया। इससे भारतीयों में निराशा हुई और उनमें स्वतंत्रता की तीव्र इच्छा पैदा हुई।
    5. **महात्मा गांधी का उदय:** युद्ध के बाद की परिस्थितियों ने महात्मा गांधी जैसे नेताओं के लिए एक मंच तैयार किया। उनकी सत्याग्रह की रणनीति ने लोगों को एक नए और अहिंसक तरीके से विरोध करने का मार्ग दिखाया, जिसने राष्ट्रवादी आंदोलन को एक नई दिशा दी।
    6. **रॉलेट एक्ट का विरोध:** युद्ध के तुरंत बाद पारित किए गए रॉलेट एक्ट ने भारतीयों को ब्रिटिश सरकार के दमनकारी चरित्र से परिचित कराया, जिसने राष्ट्रव्यापी विरोध को जन्म दिया और राष्ट्रवादी भावनाओं को और मजबूत किया।
    संक्षेप में, प्रथम विश्व युद्ध ने भारतीय समाज में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से गहरी जड़ें जमाईं, जिससे लोगों में ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष बढ़ा और उन्हें स्वतंत्रता के लिए एक साथ आने के लिए प्रेरित किया।



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