अध्याय 1: यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय (The Rise of Nationalism in Europe)

परिचय

कक्षा 10 इतिहास का यह अध्याय **'यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय'** 19वीं सदी के यूरोप में हुए महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों का वर्णन करता है। यह वह दौर था जब बहु-राष्ट्रीय वंशवादी साम्राज्यों की जगह राष्ट्र-राज्यों (nation-states) ने ले ली। इस अध्याय में हम विभिन्न क्रांतियों, आंदोलनों, और नेताओं के बारे में जानेंगे जिन्होंने राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा दिया और यूरोप के नक्शे को हमेशा के लिए बदल दिया।

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1. फ्रांसीसी क्रांति और राष्ट्र का विचार (The French Revolution and the Idea of the Nation)

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2. यूरोप में राष्ट्रवाद का निर्माण (The Making of Nationalism in Europe)

(a) अभिजात वर्ग और नया मध्य वर्ग (The Aristocracy and the New Middle Class)

(b) उदारवादी राष्ट्रवाद क्या था? (What did Liberal Nationalism Stand For?)

(c) रूढ़िवाद का एक नया युग (1815 के बाद) (A New Conservatism after 1815)

(d) क्रांतिकारी (The Revolutionaries)

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3. क्रांतियों का युग: 1830-1848 (The Age of Revolutions: 1830-1848)

(a) भूख, कठिनाई और जन विद्रोह (Hunger, Hardship and Popular Revolt)

(b) 1848: उदारवादियों की क्रांति (1848: The Revolution of the Liberals)

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4. जर्मनी और इटली का निर्माण (The Making of Germany and Italy)

(a) जर्मनी: क्या सेना राष्ट्र की वास्तुकार हो सकती है? (Germany: Can the Army be the Architect of a Nation?)

(b) इटली का एकीकरण (Italy Unified)

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5. ब्रिटेन की अजीबोगरीब दास्तान (The Strange Case of Britain)

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6. राष्ट्र की दृश्य कल्पना (Visualising the Nation)

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7. राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद (Nationalism and Imperialism)

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

चर्चा करें (Discuss)

  1. फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान की भावना पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने क्या कदम उठाए?

    फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान और राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने के लिए अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए। ये कदम व्यक्तिगत निष्ठा को राजा से हटाकर राष्ट्र के प्रति समर्पित करने पर केंद्रित थे:
    • **पितृभूमि और नागरिक का विचार (La patrie and le citoyen):** उन्होंने 'पितृभूमि' (पिता की भूमि) और 'नागरिक' के विचारों पर जोर दिया, जिससे एक ऐसे समुदाय की अवधारणा विकसित हुई जिसे एक संविधान के तहत समान अधिकार प्राप्त थे।
    • **नया फ्रांसीसी झंडा:** राजशाही का पुराना शाही मानक झंडा हटाकर एक नया फ्रांसीसी तिरंगा झंडा चुना गया, जिसने राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक बन गया।
    • **स्टेट्स जनरल का चुनाव और नामकरण:** स्टेट्स जनरल को सक्रिय नागरिकों के समूह द्वारा चुना जाने लगा और इसका नाम बदलकर 'नेशनल असेंबली' कर दिया गया, जिससे लोगों की संप्रभुता का एहसास हुआ।
    • **नए राष्ट्रगान और शपथें:** नए राष्ट्रगान रचे गए, शपथें ली गईं, और शहीदों का गुणगान हुआ, ये सभी राष्ट्र के नाम पर किए गए।
    • **केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था:** एक केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई, जिसने अपने क्षेत्र में सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाए।
    • **आंतरिक सीमा शुल्क और शुल्क हटाना:** देश के भीतर वस्तुओं और पूंजी के मुक्त आवागमन की सुविधा के लिए आंतरिक आयात-निर्यात शुल्क समाप्त कर दिए गए।
    • **माप-तौल की एक समान प्रणाली:** पूरे देश में एक समान वजन और माप प्रणाली अपनाई गई, जिससे आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा मिला।
    • **क्षेत्रीय बोलियों को हतोत्साहित करना:** क्षेत्रीय बोलियों को हतोत्साहित किया गया और पेरिस में बोली जाने वाली फ्रेंच को राष्ट्र की आम भाषा बना दिया गया, जिससे राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिला।
    • **क्रांति के लक्ष्य का प्रचार:** क्रांतिकारियों ने यह भी घोषणा की कि फ्रांसीसी राष्ट्र का मिशन यूरोप के लोगों को निरंकुश शासन से मुक्त कराना और उन्हें राष्ट्रों में बदलना था।
    इन सभी उपायों का उद्देश्य लोगों में साझा पहचान, एकता और राष्ट्र के प्रति वफादारी की भावना को बढ़ावा देना था।

  2. नेपोलियन के प्रशासनिक सुधारों ने उन क्षेत्रों में दक्षता बढ़ाने में कैसे मदद की जहाँ उसका शासन था?

    नेपोलियन बोनापार्ट ने हालांकि फ्रांस में लोकतंत्र को नष्ट कर दिया था, लेकिन उसने प्रशासन के क्षेत्र में कई क्रांतिकारी सुधार किए, जिन्हें **नेपोलियन कोड (Napoleonic Code) या 1804 का नागरिक संहिता** कहा जाता है। इन सुधारों ने उन क्षेत्रों में दक्षता बढ़ाने में मदद की जहाँ उसका शासन था:
    • **जन्म पर आधारित विशेषाधिकारों का उन्मूलन:** इसने जन्म के आधार पर सभी विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया, जिससे समाज में योग्यता और समानता को बढ़ावा मिला।
    • **कानून के समक्ष समानता और संपत्ति का अधिकार:** संहिता ने कानून के समक्ष समानता स्थापित की और संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित किया, जिससे लोगों में सुरक्षा और विश्वास की भावना बढ़ी।
    • **सामंती व्यवस्था का अंत:** नेपोलियन ने सामंती व्यवस्था को समाप्त कर दिया और किसानों को भू-दासत्व (serfdom) और जागीरदारी शुल्कों से मुक्त कर दिया, जिससे किसानों को अधिक स्वतंत्रता और आर्थिक अवसर मिले।
    • **गिल्ड प्रतिबंधों को हटाना:** शहरों में कारीगरों के गिल्ड (guilds) पर लगे प्रतिबंधों को हटा दिया गया। इससे व्यापार और उद्योग को बढ़ावा मिला, क्योंकि कारीगरों को अधिक स्वतंत्रता मिली।
    • **परिवहन और संचार प्रणालियों में सुधार:** नेपोलियन ने परिवहन और संचार प्रणालियों में सुधार किया। बेहतर सड़कें, नहरें और संचार नेटवर्क माल और विचारों के आवागमन को आसान बनाते थे, जिससे आर्थिक दक्षता बढ़ती थी।
    • **मानक माप और वजन प्रणाली:** उसने एक समान वजन और माप प्रणाली लागू की और एक सामान्य राष्ट्रीय मुद्रा को अपनाया। इससे व्यापार और वाणिज्य सरल हो गया, क्योंकि व्यापारियों को विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग प्रणालियों से निपटना नहीं पड़ता था।
    • **केंद्रीकृत प्रशासन:** उसने एक केंद्रीकृत प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की, जिससे प्रशासन में एकरूपता और दक्षता आई।
    ये सुधार आधुनिक प्रशासनिक प्रणालियों की नींव थे और उन्होंने नेपोलियन के शासन वाले क्षेत्रों में शासन, व्यापार और दैनिक जीवन को सुव्यवस्थित करके दक्षता में महत्वपूर्ण वृद्धि की। हालांकि इन सुधारों में जबरन भर्ती और सेंसरशिप जैसी नकारात्मक बातें भी थीं, लेकिन प्रशासनिक क्षेत्र में उनके दूरगामी सकारात्मक प्रभाव थे।

  3. ड्यूक मेट्टेर्निच ने 'जब फ्रांस छींकता है, तो बाकी यूरोप को सर्दी हो जाती है' टिप्पणी क्यों की? स्पष्ट करें।

    ऑस्ट्रियाई चांसलर **ड्यूक मेट्टेर्निच** ने यह प्रसिद्ध टिप्पणी इसलिए की थी क्योंकि वह **फ्रांस में होने वाले राजनीतिक परिवर्तनों के यूरोप पर पड़ने वाले व्यापक प्रभाव** को अच्छी तरह समझते थे। यह टिप्पणी फ्रांस को यूरोपीय राजनीति के लिए एक ज्वलनशील केंद्र के रूप में देखती है, जहाँ किसी भी बड़ी घटना का पूरे महाद्वीप पर डोमिनो प्रभाव पड़ता है।
    **स्पष्टीकरण:**
    • **क्रांति का केंद्र:** 1789 की फ्रांसीसी क्रांति ने न केवल फ्रांस में राजशाही को उखाड़ फेंका बल्कि 'स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व' के विचार पूरे यूरोप में फैला दिए। इसने निरंकुश शासकों को भयभीत कर दिया और उदारवादी व राष्ट्रवादी आंदोलनों को प्रेरित किया।
    • **नेपोलियन का प्रभाव:** नेपोलियन बोनापार्ट ने अपने सैन्य अभियानों के माध्यम से इन क्रांतिकारी विचारों को यूरोप के एक बड़े हिस्से में निर्यात किया, सामंती व्यवस्था को समाप्त किया और विभिन्न क्षेत्रों में नागरिक संहिता लागू की। भले ही उसने लोकतंत्र को समाप्त कर दिया, उसके प्रशासनिक सुधारों ने पुरानी व्यवस्था को चुनौती दी।
    • **1830 और 1848 की क्रांतियाँ:** मेट्टेर्निच की टिप्पणी विशेष रूप से 1830 और 1848 की क्रांतियों के संदर्भ में प्रासंगिक है:
      • **जुलाई क्रांति (1830):** फ्रांस में बॉर्बन राजाओं को उखाड़ फेंका गया और एक संवैधानिक राजतंत्र स्थापित हुआ। इस घटना के तुरंत बाद ब्रुसेल्स में विद्रोह हुआ जिसके परिणामस्वरूप बेल्जियम यूनाइटेड किंगडम ऑफ नीदरलैंड्स से अलग हो गया। पूरे यूरोप में राष्ट्रवादी आंदोलन तेज हो गए।
      • **1848 की क्रांति:** जब फ्रांस में लुई फिलिप को उखाड़ फेंका गया और गणतंत्र घोषित किया गया, तो इसकी लहरें तुरंत जर्मनी, इटली, ऑस्ट्रिया-हंगरी और अन्य यूरोपीय देशों में फैल गईं, जहाँ उदारवादियों और राष्ट्रवादियों ने अपने अधिकारों और संवैधानिक सरकार के लिए विद्रोह किए।
    • **फ्रांस की केंद्रीयता:** फ्रांस उस समय यूरोप के सांस्कृतिक, बौद्धिक और राजनीतिक केंद्र के रूप में देखा जाता था। जब फ्रांस में कोई राजनीतिक उथल-पुथल होती थी ('छींकना'), तो इसके विचार और प्रभाव तेजी से यूरोप के अन्य हिस्सों में फैल जाते थे ('सर्दी होना'), जिससे अन्य देशों में भी अस्थिरता और क्रांतियाँ पैदा होती थीं।
    मेट्टेर्निच एक रूढ़िवादी नेता था और वह क्रांतिकारी परिवर्तनों का विरोधी था। उसकी टिप्पणी फ्रांस की उस शक्ति और प्रभाव को उजागर करती है जो यूरोपीय राजतंत्रों के लिए एक निरंतर खतरा था। वह जानता था कि फ्रांस में कोई भी छोटी सी राजनीतिक अशांति पूरे महाद्वीप में बड़े पैमाने पर विद्रोहों और अस्थिरता को जन्म दे सकती है।

  4. जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षेप में पता लगाएँ।

    जर्मनी का एकीकरण (1866-1871) एक जटिल और लंबी प्रक्रिया थी, जिसे मुख्य रूप से प्रशिया के नेतृत्व में पूरा किया गया। 1848 में उदारवादियों द्वारा राष्ट्र-राज्य बनाने का प्रयास विफल होने के बाद, प्रशिया ने यह बीड़ा उठाया। इस प्रक्रिया को संक्षेप में निम्नलिखित चरणों में समझा जा सकता है:
    1. **1848 का उदारवादी प्रयास और उसकी विफलता:**
      • 1848 में, जर्मन क्षेत्रों में उदारवादी राष्ट्रवादियों ने एक संवैधानिक राजतंत्र के तहत जर्मनी को एकजुट करने का प्रयास किया। फ्रैंकफर्ट संसद का गठन किया गया और एक जर्मन संविधान का मसौदा तैयार किया गया।
      • हालांकि, प्रशिया के राजा फ्रेडरिक विलियम IV ने ताज स्वीकार करने से इनकार कर दिया, और अभिजात वर्ग, सेना और रूढ़िवादियों ने उदारवादियों को दबा दिया। यह प्रयास विफल रहा।
    2. **प्रशिया का नेतृत्व और बिस्मार्क की भूमिका:**
      • इस विफलता के बाद, प्रशिया ने जर्मन एकीकरण के आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथों में ले लिया।
      • प्रशिया के मुख्यमंत्री **ओटो वॉन बिस्मार्क (Otto von Bismarck)** इस प्रक्रिया के मुख्य 'वास्तुकार' थे। उन्होंने 'रक्त और लौह' (Blood and Iron) की नीति अपनाई, जिसका अर्थ था सैन्य शक्ति और युद्ध के माध्यम से एकीकरण।
    3. **सात वर्षों में तीन युद्ध:**
      • बिस्मार्क ने प्रशिया की सेना और नौकरशाही की मदद से सात वर्षों की अवधि में तीन युद्ध लड़े (डेनमार्क, ऑस्ट्रिया और फ्रांस के खिलाफ) और प्रशिया की जीत हुई।
      • **डेनमार्क के साथ युद्ध (1864):** श्लेस्विग और होल्स्टीन के प्रश्न पर।
      • **ऑस्ट्रिया के साथ युद्ध (1866 - ऑस्ट्रो-प्रशियाई युद्ध):** इसने जर्मन राज्यों से ऑस्ट्रियाई प्रभाव को समाप्त कर दिया और उत्तरी जर्मन परिसंघ (North German Confederation) का मार्ग प्रशस्त किया, जिसकी अध्यक्षता प्रशिया ने की।
      • **फ्रांस के साथ युद्ध (1870-1871 - फ्रेंको-प्रशियाई युद्ध):** इसने दक्षिणी जर्मन राज्यों को प्रशिया के साथ एकजुट होने के लिए मजबूर किया, जिससे जर्मन साम्राज्य का गठन हुआ।
    4. **जर्मन साम्राज्य की घोषणा (1871):**
      • जनवरी 1871 में, वर्साय (फ्रांस) के महल के दर्पण हॉल में एक समारोह आयोजित किया गया।
      • प्रशिया के राजा **विलियम I (Wilhelm I)** को जर्मन सम्राट घोषित किया गया।
      • इस प्रकार, जर्मनी एक राष्ट्र-राज्य के रूप में एकीकृत हुआ।
    5. **नया जर्मन साम्राज्य:**
      • नए जर्मन साम्राज्य ने मुद्रा, बैंकिंग, कानूनी और न्यायिक प्रणालियों के आधुनिकीकरण पर बहुत जोर दिया, जिसे प्रशिया के मॉडल पर आधारित किया गया।
संक्षेप में, जर्मनी का एकीकरण एक सैन्य-केंद्रित प्रक्रिया थी जिसका नेतृत्व प्रशिया ने बिस्मार्क के मार्गदर्शन में किया, जिसने कई युद्धों के माध्यम से जर्मन राज्यों को एकजुट किया और एक मजबूत साम्राज्य की स्थापना की।

  • इटली के एकीकरण की प्रक्रिया का संक्षेप में पता लगाएँ।

    इटली का एकीकरण (1859-1871) एक लंबी और जटिल प्रक्रिया थी जिसमें कई क्रांतिकारी और राजनीतिक नेता शामिल थे। 19वीं सदी के मध्य तक, इटली कई स्वतंत्र राज्यों में बंटा हुआ था, जिनमें से अधिकांश पर विदेशी शक्तियों का शासन था। यह प्रक्रिया संक्षेप में निम्नलिखित चरणों में समझी जा सकती है:
    1. **विखंडन की स्थिति:**
      • 19वीं सदी के मध्य में, इटली सात राज्यों में बंटा हुआ था, जिनमें से केवल सार्डिनिया-पीडमोंट पर एक इतालवी राजशाही का शासन था।
      • उत्तरी भाग ऑस्ट्रियाई हैब्सबर्ग साम्राज्य के अधीन था, मध्य भाग पोप के अधीन था, और दक्षिणी क्षेत्र स्पेन के बॉर्बन राजाओं के अधीन थे।
    2. **मेत्सिनी और शुरुआती क्रांतिकारी प्रयास:**
      • 1830 के दशक में, **गुइसेपे मेत्सिनी (Giuseppe Mazzini)** ने 'यंग इटली' (Young Italy) जैसे गुप्त समाजों का गठन करके इटली को एकजुट करने का प्रयास किया। उनका मानना था कि इटली को छोटे-छोटे राज्यों का पैचवर्क नहीं होना चाहिए बल्कि एक एकीकृत गणराज्य होना चाहिए।
      • हालांकि, 1831 और 1848 के उनके क्रांतिकारी प्रयास विफल हो गए।
    3. **सार्डिनिया-पीडमोंट का नेतृत्व:**
      • क्रांतिकारी विफलताओं के बाद, इटली को एकजुट करने की जिम्मेदारी सार्डिनिया-पीडमोंट के शासक **किंग विक्टर इमैनुएल II (King Victor Emmanuel II)** पर आ गई।
      • उनके मुख्यमंत्री **काउंट कैमिलो डी कावूर (Count Camillo de Cavour)** ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। कावूर न तो एक क्रांतिकारी था और न ही लोकतांत्रिक, लेकिन वह इटली को एकजुट करने के लिए एक कुशल कूटनीतिज्ञ था।
    4. **युद्ध और कूटनीति:**
      • कावूर ने फ्रांस के साथ एक चतुर राजनयिक गठबंधन किया। 1859 में, सार्डिनिया-पीडमोंट ने ऑस्ट्रियाई सेनाओं को हराया, जिससे उत्तरी इटली के कई राज्य सार्डिनिया-पीडमोंट में शामिल हो गए।
    5. **गैरीबाल्डी और दक्षिणी इटली:**
      • 1860 में, **गुइसेपे गैरीबाल्डी (Giuseppe Garibaldi)** के नेतृत्व में स्वयंसेवकों की एक बड़ी सेना, जिन्हें 'रेड शर्ट्स' (Red Shirts) कहा जाता था, ने दक्षिणी इटली और दो सिसिली के साम्राज्य की ओर कूच किया।
      • उन्होंने स्थानीय किसानों का समर्थन जीता और स्पेनिश बॉर्बन शासकों को सफलतापूर्वक बाहर निकाला।
      • इसके बाद गैरीबाल्डी ने दक्षिण में अपनी जीती हुई भूमि को किंग विक्टर इमैनुएल II को सौंप दिया।
    6. **रोम का अधिग्रहण और एकीकरण का समापन:**
      • 1861 में, **विक्टर इमैनुएल II** को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया।
      • हालांकि, अभी भी रोम (पोप के राज्यों) पर कब्जा करना बाकी था। 1870 में, जब फ्रेंको-प्रशियाई युद्ध के दौरान फ्रांस ने अपनी सेनाओं को रोम से हटा लिया, तो इतालवी सैनिकों ने रोम पर कब्जा कर लिया और इसे इटली की राजधानी बना दिया, जिससे एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हुई।
    इस प्रकार, इटली का एकीकरण कई राजनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक प्रयासों का परिणाम था, जिसमें मेत्सिनी के शुरुआती क्रांतिकारी आदर्शों से लेकर कावूर की कूटनीति और गैरीबाल्डी के सैन्य अभियानों तक सभी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  • ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का उदय बाकी यूरोप से किस प्रकार भिन्न था?

    ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का उदय और राष्ट्र-राज्य का निर्माण बाकी यूरोप के देशों (जैसे जर्मनी और इटली) से कई मायनों में भिन्न था। जबकि महाद्वीपीय यूरोप में राष्ट्रवाद अक्सर क्रांतियों, युद्धों और तत्काल राजनीतिक उथल-पुथल का परिणाम था, ब्रिटेन में यह एक लंबी, क्रमिक प्रक्रिया थी, जिसे 'अजीबोगरीब दास्तान' (Strange Case) कहा जाता है।
    **मुख्य अंतर:**
    1. **क्रांति का अभाव:**
      • **यूरोप:** फ्रांस, जर्मनी, इटली जैसे देशों में राष्ट्रवाद का उदय अक्सर खूनी क्रांतियों (जैसे फ्रांसीसी क्रांति) और युद्धों (जैसे जर्मन एकीकरण के लिए बिस्मार्क के युद्ध, इतालवी एकीकरण के युद्ध) से जुड़ा था।
      • **ब्रिटेन:** ब्रिटेन में 1688 की 'गौरवपूर्ण क्रांति' (Glorious Revolution) ने राजशाही से सत्ता छीन ली, लेकिन यह एक अपेक्षाकृत रक्तहीन प्रक्रिया थी। इसके बाद राष्ट्र-राज्य का निर्माण किसी अचानक क्रांति या विद्रोह के बजाय धीरे-धीरे हुआ।
    2. **जातीय पहचान बनाम साझा संस्कृति:**
      • **यूरोप:** अक्सर, एक भाषा, साझा संस्कृति, या सामान्य इतिहास वाले लोग एक एकीकृत राष्ट्र-राज्य बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
      • **ब्रिटेन:** ब्रिटिश द्वीप समूह में विभिन्न जातीय समूह थे जैसे अंग्रेज, वेल्श, स्कॉट और आयरिश। इनमें से प्रत्येक समूह की अपनी सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपराएँ थीं। 'ब्रिटिश राष्ट्र' एक प्राकृतिक जातीय इकाई के रूप में मौजूद नहीं था।
    3. **संसद के माध्यम से एकीकरण (एक्ट ऑफ यूनियन):**
      • **यूरोप:** एकीकरण अक्सर सैन्य विजय या लोकप्रिय आंदोलनों के माध्यम से होता था।
      • **ब्रिटेन:** 'यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन' का निर्माण 1707 के 'एक्ट ऑफ यूनियन' के माध्यम से हुआ, जिसने इंग्लैंड और स्कॉटलैंड को एकजुट किया। यह एक संसदीय अधिनियम था, न कि कोई लोकप्रिय जन विद्रोह या युद्ध। इस अधिनियम ने धीरे-धीरे स्कॉटलैंड पर अंग्रेजी संसद और संस्कृति का प्रभुत्व स्थापित किया।
    4. **आयरलैंड का जबरन अधिग्रहण:**
      • **यूरोप:** राष्ट्रवादी आंदोलन स्व-शासन और स्वतंत्रता पर केंद्रित थे।
      • **ब्रिटेन:** आयरलैंड को 1801 में बलपूर्वक यूनाइटेड किंगडम में शामिल कर लिया गया, जब कैथोलिक विद्रोहियों को अंग्रेजी सेना ने दबा दिया। यह एकीकरण के बजाय प्रभुत्व का मामला था।
    5. **नए ब्रिटिश पहचान का निर्माण:**
      • **यूरोप:** राष्ट्र-राज्यों ने अक्सर एक साझा इतिहास और संस्कृति के आधार पर अपनी पहचान को पुनर्जीवित या आविष्कार किया।
      • **ब्रिटेन:** एक नया 'ब्रिटिश राष्ट्र' कृत्रिम रूप से एक 'एकीकृत' संस्कृति को बढ़ावा देकर बनाया गया था, जिसमें ब्रिटिश झंडा (यूनियन जैक), राष्ट्रगान (गॉड सेव आवर नोबल किंग/क्वीन), और अंग्रेजी भाषा को प्रमुखता दी गई।
    संक्षेप में, ब्रिटेन में राष्ट्रवाद का उदय एक क्रमिक, संसदीय प्रक्रिया थी, जिसमें मौजूदा जातीय समूहों पर एक प्रभावी 'अंग्रेजी' संस्कृति का विस्तार शामिल था, जबकि महाद्वीपीय यूरोप में यह अक्सर हिंसक क्रांतियों और युद्धों के माध्यम से विभिन्न भाषाई और सांस्कृतिक समूहों के एकीकरण के लिए संघर्ष था।

  • बाल्कन क्षेत्र में राष्ट्रवादी तनाव क्यों उभरा?

    बाल्कन क्षेत्र (आधुनिक रोमानिया, बुल्गारिया, अल्बानिया, ग्रीस, मैसेडोनिया, क्रोएशिया, बोस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया, सर्बिया और मोंटेनेग्रो शामिल) में 19वीं सदी के अंत तक राष्ट्रवादी तनाव एक अत्यधिक विस्फोटक स्थिति में विकसित हो गए, जिसके कई जटिल कारण थे:
    1. **ओटोमन साम्राज्य का विघटन:**
      • बाल्कन क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा सदियों से ओटोमन साम्राज्य के नियंत्रण में था।
      • 19वीं सदी में ओटोमन साम्राज्य कमजोर और विघटित होने लगा, जिससे इस क्षेत्र के अधीन राष्ट्रों को अपनी स्वतंत्रता की घोषणा करने का अवसर मिला। लेकिन यह प्रक्रिया बहुत अव्यवस्थित थी।
    2. **स्लाव राष्ट्रवाद का उदय:**
      • बाल्कन क्षेत्र में विभिन्न जातीय समूह रहते थे, जिन्हें सामूहिक रूप से 'स्लाव' कहा जाता था।
      • जैसे-जैसे ओटोमन साम्राज्य का नियंत्रण कमजोर हुआ, इन स्लाव लोगों में राष्ट्रवाद की भावना विकसित होने लगी। उन्होंने अपनी पहचान और स्वतंत्रता का दावा करना शुरू कर दिया, जो अक्सर एक-दूसरे के खिलाफ होता था।
      • प्रत्येक जातीय समूह अपने लिए अधिक क्षेत्र की मांग करता था और एक-दूसरे के हितों को नजरअंदाज करता था।
    3. **ऐतिहासिक दावों का पुनरुत्थान:**
      • बाल्कन के लोगों ने अक्सर इतिहास का उपयोग यह साबित करने के लिए किया कि वे कभी स्वतंत्र थे, लेकिन बाद में विदेशी शक्तियों द्वारा अधीन कर लिए गए थे। इससे उनकी पहचान और स्वतंत्रता की इच्छा और भी प्रबल हुई।
    4. **एक-दूसरे पर प्रतिस्पर्धा और ईर्ष्या:**
      • जैसे-जैसे बाल्कन राज्यों ने अपनी स्वतंत्रता हासिल की, वे अत्यधिक ईर्ष्यालु और प्रतिस्पर्धी बन गए।
      • प्रत्येक राज्य दूसरों की तुलना में अधिक क्षेत्र प्राप्त करना चाहता था और अपनी पहचान को मजबूत करना चाहता था, जिससे लगातार संघर्ष होते रहे।
    5. **बड़ी शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता:**
      • बाल्कन क्षेत्र में तनाव इस तथ्य से और बढ़ गया कि यह यूरोपीय बड़ी शक्तियों (जैसे रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया-हंगरी) के बीच प्रतिद्वंद्विता का क्षेत्र बन गया था।
      • प्रत्येक शक्ति बाल्कन पर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती थी, क्योंकि यह व्यापार, नौसैनिक शक्ति और रणनीतिक महत्व के लिए महत्वपूर्ण था।
      • ये शक्तियाँ अक्सर बाल्कन राज्यों के बीच संघर्षों को बढ़ावा देती थीं या उनका समर्थन करती थीं, जिससे स्थिति और भी अस्थिर हो जाती थी।
    इन सभी कारकों के संयोजन ने बाल्कन क्षेत्र को 1914 में एक बड़े विस्फोट, यानी **प्रथम विश्व युद्ध (First World War)** का केंद्र बना दिया।

  • (ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। प्रकटन भिन्न हो सकता है।)