अध्याय 6: विनिर्माण उद्योग (Manufacturing Industries)

परिचय

कक्षा 10 भूगोल का छठवां अध्याय **'विनिर्माण उद्योग'** देश की अर्थव्यवस्था के लिए उद्योगों के महत्व पर केंद्रित है। यह अध्याय बताता है कि कैसे कच्चे माल को मूल्यवान उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है, उद्योगों के विभिन्न प्रकार क्या हैं, उनके स्थानीयकरण के लिए कौन से कारक जिम्मेदार हैं, भारत के प्रमुख विनिर्माण उद्योग कौन से हैं, और इन उद्योगों के सामने क्या चुनौतियाँ व समाधान हैं।

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1. विनिर्माण का महत्व (Importance of Manufacturing)

विनिर्माण, जिसे वस्तु निर्माण भी कहते हैं, वह प्रक्रिया है जिसमें कच्चे माल को अधिक मूल्यवान उत्पादों में बदला जाता है। इसका महत्व निम्नलिखित कारणों से है:

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2. उद्योगों का वर्गीकरण (Classification of Industries)

उद्योगों को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है:

2.1. कच्चे माल के स्रोत के आधार पर (On the Basis of Source of Raw Material):

2.2. प्रमुख भूमिका के आधार पर (On the Basis of Main Role):

2.3. पूंजी निवेश के आधार पर (On the Basis of Capital Investment):

2.4. स्वामित्व के आधार पर (On the Basis of Ownership):

2.5. कच्चे तथा तैयार माल की मात्रा व भार के आधार पर (On the Basis of Bulk and Weight of Raw Material and Finished Goods):

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3. उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Location of Industries)

किसी उद्योग की स्थापना का स्थान कई कारकों पर निर्भर करता है:

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4. प्रमुख विनिर्माण उद्योग (Major Manufacturing Industries of India)

4.1. सूती वस्त्र उद्योग (Cotton Textile Industry)

4.2. लौह-इस्पात उद्योग (Iron and Steel Industry)

4.3. एल्यूमीनियम प्रगलन (Aluminium Smelting)

4.4. रसायन उद्योग (Chemical Industry)

4.5. उर्वरक उद्योग (Fertiliser Industry)

4.6. सीमेंट उद्योग (Cement Industry)

4.7. ऑटोमोबाइल उद्योग (Automobile Industry)

4.8. सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग (Information Technology and Electronics Industry)

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5. औद्योगिक प्रदूषण और पर्यावरण क्षरण (Industrial Pollution and Environmental Degradation)

उद्योगों का विकास पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। प्रमुख प्रदूषण इस प्रकार हैं:

पर्यावरण क्षरण को नियंत्रित करने के उपाय:

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

अभ्यास के प्रश्न

  1. विनिर्माण का क्या अर्थ है? इसका महत्व क्यों है?

    **विनिर्माण (Manufacturing):** विनिर्माण का अर्थ कच्चे पदार्थ को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन से है। यह द्वितीयक गतिविधियों में आता है जहाँ प्राकृतिक संसाधनों को मानव उपयोग के लिए तैयार किया जाता है।

    **विनिर्माण का महत्व:**

    1. **आर्थिक विकास का आधार:** विनिर्माण उद्योग किसी भी देश के आर्थिक विकास की रीढ़ माने जाते हैं। यह देश की कुल जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
    2. **कृषि का आधुनिकीकरण:** विनिर्माण उद्योग कृषि को आधुनिक बनाने में सहायक हैं। ये कृषि क्षेत्र को मशीनरी, उर्वरक, कीटनाशक और सिंचाई उपकरण प्रदान करते हैं, जिससे कृषि उत्पादकता बढ़ती है।
    3. **रोजगार सृजन:** ये द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करके कृषि पर हमारी निर्भरता को कम करते हैं। इससे बेरोजगारी और गरीबी को दूर करने में मदद मिलती है।
    4. **व्यापार का विस्तार और विदेशी मुद्रा:** निर्मित वस्तुओं का निर्यात वाणिज्य और व्यापार को बढ़ाता है, जिससे देश को आवश्यक विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
    5. **क्षेत्रीय असमानताओं में कमी:** उद्योगों की स्थापना पिछड़े और जनजातीय क्षेत्रों में रोजगार प्रदान करके और बुनियादी ढांचे का विकास करके क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने में सहायक होती है।
    6. **समृद्धि और विकास:** बड़े पैमाने पर विनिर्माण से एक देश में संपन्नता आती है और विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।
    7. **जीवन स्तर में सुधार:** यह लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने में मदद करता है क्योंकि यह कम कीमत पर विभिन्न प्रकार की वस्तुएं उपलब्ध कराता है।

  2. उद्योगों के वर्गीकरण के विभिन्न आधारों का वर्णन करें।

    उद्योगों को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है, जो उनके कार्य, उपयोग और स्वामित्व को समझने में मदद करते हैं:

    **1. कच्चे माल के स्रोत के आधार पर:**
    • **कृषि आधारित उद्योग:** ये उद्योग अपने कच्चे माल के लिए कृषि उत्पादों पर निर्भर करते हैं। उदाहरण: सूती वस्त्र, ऊनी वस्त्र, जूट वस्त्र, रेशम वस्त्र, रबर, चीनी, चाय, कॉफी और वनस्पति तेल उद्योग।
    • **खनिज आधारित उद्योग:** ये उद्योग अपने कच्चे माल के लिए खनिजों पर निर्भर करते हैं। उदाहरण: लोहा तथा इस्पात, सीमेंट, एल्यूमीनियम, मशीन औजार और पेट्रो-रसायन उद्योग।
    **2. प्रमुख भूमिका के आधार पर:**
    • **आधारभूत उद्योग (Basic/Key Industries):** ये वे उद्योग होते हैं जिनके उत्पादों या कच्चे माल पर दूसरे उद्योग निर्भर होते हैं। ये अन्य उद्योगों के लिए आधार प्रदान करते हैं। उदाहरण: लोहा-इस्पात उद्योग, तांबा प्रगलन और एल्यूमीनियम प्रगलन उद्योग।
    • **उपभोक्ता उद्योग (Consumer Industries):** ये उद्योग सीधे उपभोक्ताओं के उपभोग के लिए वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। उदाहरण: चीनी, कागज, दंतमंजन, सिलाई मशीनें, पंखे आदि।
    **3. पूंजी निवेश के आधार पर:**
    • **लघु उद्योग (Small Scale Industries):** वे उद्योग जिनमें निवेश की अधिकतम सीमा सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है (वर्तमान में यह सीमा ₹1 करोड़ है)। इनमें कम पूंजी और कम मशीनरी का उपयोग होता है, और ये अक्सर अधिक श्रम-प्रधान होते हैं।
    • **बृहद उद्योग (Large Scale Industries):** वे उद्योग जिनमें निवेश की सीमा ₹1 करोड़ से अधिक होती है। इनमें बड़ी पूंजी, उन्नत मशीनरी और बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है।
    **4. स्वामित्व के आधार पर:**
    • **सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग (Public Sector Industries):** जिनका स्वामित्व और संचालन सरकार द्वारा या उसकी एजेंसियों द्वारा किया जाता है। उदाहरण: भेल (BHEL - भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड), सेल (SAIL - स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड)।
    • **निजी क्षेत्र के उद्योग (Private Sector Industries):** जिनका स्वामित्व और संचालन व्यक्तिगत या व्यक्तियों के समूह द्वारा किया जाता है। उदाहरण: टिस्को (TISCO - टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी), रिलायंस इंडस्ट्रीज।
    • **संयुक्त क्षेत्र के उद्योग (Joint Sector Industries):** जिनका स्वामित्व और संचालन राज्य (सरकार) और निजी व्यक्तियों या समूहों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है। उदाहरण: ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL)।
    • **सहकारी क्षेत्र के उद्योग (Cooperative Sector Industries):** जिनका स्वामित्व और संचालन कच्चे माल के उत्पादकों या आपूर्तिकर्ताओं, श्रमिकों या दोनों द्वारा किया जाता है। लाभ या हानि का विभाजन सदस्यों द्वारा किए गए योगदान के अनुपात में होता है। उदाहरण: महाराष्ट्र में चीनी उद्योग, केरल में नारियल आधारित उद्योग।
    **5. कच्चे तथा तैयार माल की मात्रा व भार के आधार पर:**
    • **भारी उद्योग (Heavy Industries):** जो भारी और भारी मात्रा में कच्चे माल का उपयोग करते हैं और भारी तैयार माल का उत्पादन करते हैं। उदाहरण: लोहा तथा इस्पात उद्योग, सीमेंट उद्योग।
    • **हल्के उद्योग (Light Industries):** जो कम भार वाले कच्चे माल का प्रयोग कर हल्के तैयार माल का उत्पादन करते हैं। उदाहरण: विद्युतीय उपकरण उद्योग, घड़ी उद्योग।

  3. लौह-इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग क्यों कहा जाता है?

    लौह-इस्पात उद्योग को 'आधारभूत उद्योग' (Basic Industry) कहा जाता है क्योंकि:

    1. **अन्य उद्योगों का आधार:** यह अन्य सभी उद्योगों के लिए आधार प्रदान करता है। मशीनें, औजार, परिवहन के साधन, कृषि उपकरण, रक्षा उपकरण, और भवन निर्माण सामग्री - इन सभी के उत्पादन के लिए इस्पात की आवश्यकता होती है। इसके बिना कोई भी आधुनिक उद्योग विकसित नहीं हो सकता।
    2. **बुनियादी ढांचे का विकास:** सड़कें, रेल, पुल, जहाज, कारखाने और आवासीय भवन - इन सभी के निर्माण में इस्पात का उपयोग होता है। यह देश के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अपरिहार्य है।
    3. **औद्योगिक विकास का सूचक:** किसी देश में इस्पात उत्पादन और खपत का स्तर उसके औद्योगिक विकास का एक महत्वपूर्ण सूचक होता है। अधिक इस्पात उत्पादन का अर्थ है अधिक औद्योगिक गतिविधियाँ और आर्थिक वृद्धि।
    4. **मध्यवर्ती उत्पाद:** इस्पात सीधे अंतिम उपभोक्ता को बेचा जाने वाला उत्पाद नहीं है, बल्कि यह अन्य उद्योगों द्वारा आगे के उत्पादन के लिए एक आवश्यक मध्यवर्ती उत्पाद है।
    संक्षेप में, इस्पात वह मूल सामग्री है जिस पर आधुनिक औद्योगिक अर्थव्यवस्था की नींव टिकी हुई है। इसलिए इसे आधारभूत उद्योग कहा जाता है।

  4. औद्योगिक प्रदूषण के प्रकारों का वर्णन करें और उन्हें नियंत्रित करने के उपाय सुझाएं।

    औद्योगिक गतिविधियाँ पर्यावरण को विभिन्न तरीकों से प्रदूषित करती हैं, जिससे विभिन्न प्रकार के प्रदूषण उत्पन्न होते हैं:

    **औद्योगिक प्रदूषण के प्रकार:**

    1. **वायु प्रदूषण (Air Pollution):**
      • **कारण:** उद्योगों से निकलने वाला धुआँ, जिसमें सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, लेड, धूल कण और अन्य विषैले गैसें होती हैं। कागज मिलें, ईंट के भट्ठे, रिफाइनरियां, और स्मेल्टिंग प्लांट इसके प्रमुख स्रोत हैं।
      • **प्रभाव:** श्वसन संबंधी बीमारियाँ (अस्थमा, ब्रोंकाइटिस), अम्लीय वर्षा, ओजोन परत का क्षरण, ग्लोबल वार्मिंग।
    2. **जल प्रदूषण (Water Pollution):**
      • **कारण:** उद्योगों (जैसे कागज, रासायनिक, वस्त्र, रंगाई, चमड़ा, इलेक्ट्रोप्लेटिंग उद्योग) द्वारा छोड़े गए कार्बनिक और अकार्बनिक अपशिष्टों को बिना उपचार के नदियों, झीलों और अन्य जल निकायों में छोड़ना। इसमें भारी धातुएँ, एसिड, लवण, कीटनाशक आदि शामिल होते हैं।
      • **प्रभाव:** जलीय जीवन को नुकसान, पीने के पानी की कमी, जल जनित बीमारियाँ (हैजा, टाइफाइड), मिट्टी की उर्वरता में कमी।
    3. **भूमि प्रदूषण (Land Pollution):**
      • **कारण:** ठोस अपशिष्टों (जैसे राख, जिप्सम, लौह-इस्पात की गंदगी), जहरीले रसायनों और औद्योगिक कीचड़ का ढेर लगाना, और मिट्टी में विषाक्त पदार्थों का रिसाव।
      • **प्रभाव:** मिट्टी की उर्वरता में कमी, भूजल का प्रदूषण, फसलों और मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव।
    4. **ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution):**
      • **कारण:** औद्योगिक और निर्माण गतिविधियों से उत्पन्न अत्यधिक शोर, जैसे मशीनरी का चलना, जनरेटर, कंप्रेसर, ड्रिलिंग मशीनें आदि।
      • **प्रभाव:** चिड़चिड़ापन, बहरापन, उच्च रक्तचाप, हृदय गति में वृद्धि, नींद में खलल और अन्य मनोवैज्ञानिक समस्याएं।
    5. **तापीय प्रदूषण (Thermal Pollution):**
      • **कारण:** उद्योगों और ताप विद्युत संयंत्रों से गर्म पानी को बिना ठंडा किए सीधे जलाशयों में बहाया जाना।
      • **प्रभाव:** जल निकायों का तापमान बढ़ना, जिससे जलीय जीवों के लिए ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है और वे मर जाते हैं।
    **औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय:**
    1. **जल प्रदूषण नियंत्रण:**
      • उद्योगों द्वारा उपयोग किए जाने वाले जल का न्यूनतम उपयोग करना और उसका पुनर्चक्रण (Recycling) करना।
      • वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) को बढ़ावा देना।
      • औद्योगिक अपशिष्ट जल को उपचारित करने के बाद ही नदियों और जलाशयों में छोड़ना। इसमें प्राथमिक (यांत्रिक), द्वितीयक (जैविक) और तृतीयक (रासायनिक और भौतिक) उपचार शामिल हैं।
    2. **वायु प्रदूषण नियंत्रण:**
      • चिमनियों की ऊँचाई बढ़ाना और उनमें इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर, फैब्रिक फिल्टर, स्क्रबर और इनर्टियल सेपरेटर जैसे उपकरण लगाना ताकि धूल कणों और हानिकारक गैसों को नियंत्रित किया जा सके।
      • धुएं में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए तेल और गैस जैसे स्वच्छ ईंधन का उपयोग करना, और कोयले के उपयोग को कम करना।
      • मशीनरी के डिजाइन में सुधार और नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
    3. **भूमि प्रदूषण नियंत्रण:**
      • औद्योगिक ठोस अपशिष्टों का सुरक्षित निपटान, पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग करना।
      • खतरनाक अपशिष्टों के लिए सुरक्षित डंपिंग साइट्स का निर्माण।
      • मिट्टी में विषाक्त पदार्थों के रिसाव को रोकने के लिए उचित प्रबंधन।
    4. **ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण:**
      • शोर पैदा करने वाली मशीनरी में साइलेंसर का उपयोग करना।
      • मशीनों को फिर से डिजाइन करना ताकि वे कम शोर करें।
      • शोर-शराबे वाले क्षेत्रों में व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (जैसे इयरप्लग) का उपयोग।
      • औद्योगिक इकाइयों के आसपास हरित पट्टी (पेड़ लगाना) विकसित करना, जो ध्वनि अवरोधक का काम करती है।
    5. **अन्य उपाय:**
      • पर्यावरण प्रबंधन प्रणालियों को लागू करना।
      • पर्यावरणीय मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाना और शिक्षा प्रदान करना।
      • सरकार द्वारा सख्त पर्यावरणीय नियमों का प्रवर्तन।
    इन उपायों को अपनाकर औद्योगिक विकास को पर्यावरणीय स्थिरता के साथ संतुलित किया जा सकता है।

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