अध्याय 4: कृषि (Agriculture)
परिचय
कक्षा 10 भूगोल का चौथा अध्याय **'कृषि'** भारत की अर्थव्यवस्था और जनसंख्या के लिए कृषि के महत्व पर प्रकाश डालता है। यह अध्याय कृषि के विभिन्न प्रकारों, भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलों, फसल ऋतुओं, कृषि विकास में हुई तकनीकी और संस्थागत सुधारों और भूमंडलीकरण के कृषि पर पड़ने वाले प्रभावों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है।
---1. कृषि के प्रकार (Types of Farming)
भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहाँ विभिन्न प्रकार की कृषि पद्धतियाँ प्रचलित हैं:
- **प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि (Primitive Subsistence Farming):**
- यह छोटे भूखंडों पर आदिम उपकरणों (जैसे फावड़ा, डाओ, डिगिंग स्टिक्स) और पारिवारिक श्रम की मदद से की जाती है।
- यह मानसून, मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता और अन्य पर्यावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर करती है।
- इसे "कर्तन एवं दहन प्रणाली" (Slash and Burn Agriculture) या "झूम खेती" भी कहते हैं, जिसमें किसान जमीन के टुकड़े साफ करते हैं, उन पर फसल उगाते हैं, और जब मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है, तो वे दूसरे भूखंड पर चले जाते हैं।
- विभिन्न क्षेत्रों में इसके अलग-अलग नाम हैं: झूम (पूर्वोत्तर), बेवार या दहिया (मध्य प्रदेश), पोडू या पेंडा (आंध्र प्रदेश), पामा डबी या कोमन या ब्रिंगा (ओडिशा), कुमारी (पश्चिमी घाट), वलरे या वाल्ट्रे (राजस्थान)।
- **गहन जीविका कृषि (Intensive Subsistence Farming):**
- यह उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ जनसंख्या का दबाव अधिक होता है।
- यह अधिक उत्पादन के लिए उच्च मात्रा में जैव रासायनिक इनपुट और सिंचाई का उपयोग करती है।
- इसमें भूमि पर दबाव बहुत अधिक होता है।
- **वाणिज्यिक कृषि (Commercial Farming):**
- यह बाजार में बिक्री के लिए फसलों को उगाने पर केंद्रित है।
- इसमें उच्च पैदावार वाले बीज (HYV seeds), रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक और आधुनिक सिंचाई का उपयोग किया जाता है।
- फसल का वाणिज्यिकरण क्षेत्र से क्षेत्र में भिन्न होता है। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा में चावल एक वाणिज्यिक फसल है, लेकिन ओडिशा में यह एक जीविका फसल है।
- **रोपण कृषि (Plantation Agriculture):** यह एक प्रकार की वाणिज्यिक कृषि है जिसमें एक बड़े क्षेत्र में एकल फसल (जैसे चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला) उगाई जाती है। इसमें पूंजी-गहन इनपुट और व्यापक सिंचाई नेटवर्क की आवश्यकता होती है।
2. फसल ऋतुएँ (Cropping Seasons)
भारत में तीन प्रमुख फसल ऋतुएँ हैं:
- **रबी फसलें (Rabi Crops):**
- **बुवाई:** अक्टूबर से दिसंबर तक (सर्दियों में)।
- **कटाई:** अप्रैल से जून तक (गर्मियों में)।
- **उदाहरण:** गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों।
- उत्तरी राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण।
- **खरीफ फसलें (Kharif Crops):**
- **बुवाई:** मानसून की शुरुआत के साथ (जून-जुलाई)।
- **कटाई:** सितंबर से अक्टूबर तक।
- **उदाहरण:** चावल (धान), मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर (तूर), मूँग, उड़द, कपास, जूट, मूँगफली और सोयाबीन।
- असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में महत्वपूर्ण।
- **जायद फसलें (Zaid Crops):**
- **बुवाई:** रबी और खरीफ ऋतुओं के बीच (मार्च से जून तक)।
- **उदाहरण:** तरबूज, खरबूजा, खीरा, सब्जियाँ और चारा फसलें।
3. भारत की प्रमुख फसलें (Major Crops of India)
भारत विभिन्न प्रकार की खाद्य और गैर-खाद्य फसलें उगाता है:
- **चावल (Rice):**
- भारत दुनिया में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक है।
- यह एक खरीफ फसल है जिसके लिए उच्च तापमान (25°C से ऊपर) और उच्च आर्द्रता (100 सेमी से अधिक वर्षा) की आवश्यकता होती है।
- कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई से उगाया जाता है।
- प्रमुख उत्पादक: पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल।
- **गेहूँ (Wheat):**
- भारत की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण अनाज फसल।
- एक रबी फसल जिसे ठंडी बढ़ने की अवधि और पकने के समय तेज धूप की आवश्यकता होती है।
- 50-75 सेमी वार्षिक वर्षा की आवश्यकता।
- प्रमुख उत्पादक: पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान।
- **मोटे अनाज (Millets):**
- ज्वार, बाजरा और रागी भारत में उगाए जाने वाले महत्वपूर्ण मोटे अनाज हैं।
- इनमें पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है।
- **ज्वार:** महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश।
- **बाजरा:** राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा।
- **रागी:** कर्नाटक, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, झारखंड, अरुणाचल प्रदेश।
- **मक्का (Maize):**
- एक खरीफ फसल जो चारा और भोजन दोनों के रूप में उपयोग होती है।
- 21°C से 27°C तापमान और पुरानी जलोढ़ मिट्टी में अच्छी तरह से बढ़ती है।
- प्रमुख उत्पादक: कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश।
- **दालें (Pulses):**
- भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है।
- अरहर (तूर), उड़द, मूँग, मसूर, मटर और चना प्रमुख दालें हैं।
- ये फलीदार फसलें हैं जो मिट्टी की उर्वरता को नाइट्रोजन स्थिरीकरण द्वारा बहाल करती हैं।
- प्रमुख उत्पादक: मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक।
खाद्य फसलों के अलावा
- **गन्ना (Sugarcane):**
- यह एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय फसल है।
- इसे गर्म और आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है (21°C से 27°C तापमान और 75-100 सेमी वार्षिक वर्षा)।
- प्रमुख उत्पादक: उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, पंजाब, हरियाणा।
- **तिलहन (Oilseeds):**
- भारत दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा तिलहन उत्पादक है।
- मूँगफली, सरसों, नारियल, तिल, सोयाबीन, अरंडी, कपास के बीज, अलसी और सूरजमुखी प्रमुख तिलहन हैं।
- प्रमुख उत्पादक: मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक।
- **चाय (Tea):**
- एक महत्वपूर्ण पेय फसल और रोपण कृषि का उदाहरण।
- गर्म और आर्द्र, पाला रहित जलवायु और गहरी, उपजाऊ, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है।
- प्रमुख उत्पादक: असम, पश्चिम बंगाल (दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी), तमिलनाडु, केरल।
- **कॉफी (Coffee):**
- भारत की कॉफी अपनी अच्छी गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है। अरेबिका किस्म की खेती की जाती है।
- भारत में कॉफी की खेती की शुरुआत बाबा बुदन पहाड़ियों से हुई।
- प्रमुख उत्पादक: कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु।
- **बागवानी फसलें (Horticulture Crops):**
- भारत फल और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- आम (महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना), संतरे (नागपुर, चेरापूंजी), केला (केरल, मिजोरम, महाराष्ट्र, तमिलनाडु), लीची और अमरूद (उत्तर प्रदेश, बिहार), अनानास (मेघालय), अंगूर (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र), सेब, नाशपाती, खुबानी, अखरोट (जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश) प्रमुख हैं।
- **रबड़ (Rubber):**
- भूमध्यरेखीय फसल, लेकिन विशेष परिस्थितियों में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में भी उगाई जाती है।
- 25°C से ऊपर तापमान और 200 सेमी से अधिक वर्षा की आवश्यकता।
- प्रमुख उत्पादक: केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, मेघालय का गारो हिल्स।
- **कपास (Cotton):**
- एक खरीफ फसल जिसे 210 पाला-मुक्त दिनों की आवश्यकता होती है।
- काली मिट्टी में अच्छी तरह से बढ़ती है।
- प्रमुख उत्पादक: महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश।
- **जूट (Jute):**
- इसे 'सुनहरा रेशा' (Golden Fibre) के नाम से जाना जाता है।
- उच्च तापमान की आवश्यकता होती है।
- प्रमुख उत्पादक: पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, ओडिशा, मेघालय।
4. कृषि में तकनीकी और संस्थागत सुधार (Technological and Institutional Reforms in Agriculture)
भारत में कृषि को आधुनिक बनाने के लिए कई सुधार किए गए हैं:
- **संस्थागत सुधार:**
- **सामूहिकीकरण (Collectivisation) और चकबंदी (Consolidation of Holdings):** छोटी-छोटी बिखरी हुई जोतों को एक साथ लाना ताकि बड़े पैमाने पर खेती हो सके।
- **सहकारिता (Cooperation):** किसानों को सहायता प्रदान करने के लिए सहकारी समितियों का गठन।
- **जमींदारी प्रथा का उन्मूलन (Abolition of Zamindari):** किसानों को भूमि का स्वामित्व अधिकार देना।
- **हरित क्रांति (Green Revolution):** 1960 के दशक में उच्च पैदावार वाले बीजों (HYV), उर्वरकों और सिंचाई के उपयोग से गेहूं और चावल के उत्पादन में भारी वृद्धि।
- **श्वेत क्रांति (White Revolution/Operation Flood):** डेयरी विकास कार्यक्रम।
- **भूमि सुधार:** किसानों को भूमि का उचित वितरण सुनिश्चित करना।
- **तकनीकी सुधार:**
- **सिंचाई के साधन:** कुएँ, नलकूप, नहरें।
- **आधुनिक कृषि उपकरण:** ट्रैक्टर, हार्वेस्टर।
- **उच्च पैदावार वाले बीज (HYV seeds)।**
- **रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक।**
- **सरकार द्वारा पहल:**
- **किसान क्रेडिट कार्ड (KCC):** किसानों को आसान ऋण उपलब्ध कराना।
- **व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना (PAIS):** किसानों के लिए बीमा।
- **फसल बीमा योजनाएँ:** सूखा, बाढ़, आग, बीमारी आदि से फसलों को नुकसान होने पर किसानों को मुआवजा।
- **न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP):** सरकार द्वारा घोषित मूल्य जिस पर वह किसानों से उनकी फसल खरीदती है, ताकि उन्हें कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचाया जा सके।
- **ग्रामीण बैंकों और सहकारी समितियों की स्थापना:** किसानों को कम ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करना।
- **मौसम बुलेटिन और कृषि कार्यक्रम:** रेडियो और टेलीविजन पर किसानों को मौसम की जानकारी और कृषि सलाह प्रदान करना।
5. भूमंडलीकरण का कृषि पर प्रभाव (Impact of Globalisation on Agriculture)
भूमंडलीकरण ने भारतीय कृषि को कई तरह से प्रभावित किया है:
- **सकारात्मक प्रभाव:**
- भारतीय किसानों को नए बाजारों तक पहुँच मिली।
- कुछ फसलों (जैसे बासमती चावल) का निर्यात बढ़ा।
- नई तकनीकों और कृषि पद्धतियों का आगमन।
- **नकारात्मक प्रभाव:**
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में वृद्धि, जिससे छोटे किसानों के लिए जीवित रहना मुश्किल हो गया।
- कुछ फसलों की कीमतों में अस्थिरता।
- कॉर्पोरेट कृषि और सब्सिडी के कारण विकसित देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में कठिनाई।
- "हरित क्रांति" के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव (जैसे मिट्टी का क्षरण, भूजल की कमी)।
- जैव-विविधता का नुकसान (एकल फसल उगाने पर जोर)।
- **जैविक खेती (Organic Farming):**
- रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग के बिना खेती करना।
- यह पर्यावरण के अनुकूल है और मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखती है।
- यह भूमंडलीकरण के कुछ नकारात्मक प्रभावों का मुकाबला करने का एक तरीका हो सकती है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
अभ्यास के प्रश्न
-
कृषि के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।
भारत में विभिन्न भौगोलिक विशेषताओं, वर्षा पैटर्न, मिट्टी के प्रकार और तकनीकी-सामाजिक प्रथाओं के आधार पर कई प्रकार की कृषि पद्धतियाँ प्रचलित हैं। इन्हें मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
1. **प्रारंभिक जीविका निर्वाह कृषि (Primitive Subsistence Farming):**- **विशेषताएँ:** यह कृषि छोटे भूखंडों पर आदिम औजारों (जैसे फावड़ा, डाओ, खुरपी) और परिवार या समुदाय के श्रम से की जाती है। यह पूरी तरह से मानसून, मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता और अन्य पर्यावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर करती है। इसका मुख्य उद्देश्य किसान और उसके परिवार की जरूरतों को पूरा करना है, न कि व्यावसायिक उत्पादन।
- **झूम खेती (Slash and Burn Agriculture):** यह इस प्रकार की कृषि का एक प्रमुख उदाहरण है। इसमें किसान भूमि के एक टुकड़े को साफ करके (वनस्पतियों को काटकर और जलाकर) अनाज और अन्य खाद्य फसलें उगाते हैं। जब मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है, तो वे दूसरे भूखंड पर चले जाते हैं और पिछली भूमि को प्राकृतिक रूप से पुनः उर्वर होने के लिए छोड़ देते हैं।
- **विभिन्न नाम:** इस पद्धति को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में 'झूम', मध्य प्रदेश में 'बेवार' या 'दहिया', आंध्र प्रदेश में 'पोडू' या 'पेंडा', ओडिशा में 'पामा डबी' या 'कोमन' या 'ब्रिंगा', पश्चिमी घाट में 'कुमारी', और राजस्थान में 'वलरे' या 'वाल्ट्रे'।
2. **गहन जीविका कृषि (Intensive Subsistence Farming):**- **विशेषताएँ:** यह कृषि उन क्षेत्रों में की जाती है जहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है और भूमि पर अत्यधिक दबाव होता है। इसका उद्देश्य प्रति इकाई भूमि से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना होता है ताकि बड़ी आबादी का पेट भरा जा सके।
- **तकनीकें:** इसमें उच्च मात्रा में जैव-रासायनिक इनपुट (रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक) और सिंचाई का अत्यधिक उपयोग किया जाता है। श्रम की तीव्रता अधिक होती है।
- **उदाहरण:** चावल की खेती भारत के घनी आबादी वाले मैदानी इलाकों में गहन जीविका कृषि का एक प्रमुख उदाहरण है।
3. **वाणिज्यिक कृषि (Commercial Farming):**- **विशेषताएँ:** इस प्रकार की कृषि का मुख्य उद्देश्य बाजार में बिक्री के लिए फसलों का उत्पादन करना है। इसमें आधुनिक इनपुट जैसे उच्च पैदावार वाले बीज (HYV seeds), रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, और सिंचाई के आधुनिक तरीकों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।
- **वाणिज्यिकरण का स्तर:** फसल का वाणिज्यिकरण क्षेत्र से क्षेत्र में भिन्न होता है। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा में चावल एक वाणिज्यिक फसल है (जो मुख्य रूप से बाजार में बेचने के लिए उगाई जाती है), जबकि ओडिशा में यह एक जीविका फसल है (जो मुख्य रूप से परिवार के उपभोग के लिए उगाई जाती है)।
- **रोपण कृषि (Plantation Agriculture):** यह वाणिज्यिक कृषि का एक विशेष प्रकार है जहाँ एक बड़े भूखंड पर एकल फसल (जैसे चाय, कॉफी, रबड़, गन्ना, केला) उगाई जाती है। इसमें बड़ी पूंजी, आधुनिक मशीनरी, और श्रम की आवश्यकता होती है। उत्पादन मुख्य रूप से प्रसंस्करण उद्योगों और बाजारों के लिए होता है।
-
फसल ऋतुओं का वर्णन करें और प्रत्येक का एक उदाहरण दें।
भारत में तीन प्रमुख फसल ऋतुएँ हैं, जो मानसून के आगमन और वापसी, तापमान, और वर्षा के पैटर्न पर आधारित होती हैं:
1. **रबी फसलें (Rabi Crops):**- **बुवाई का समय:** इन फसलों को अक्टूबर से दिसंबर के बीच, यानी सर्दियों की शुरुआत में बोया जाता है।
- **कटाई का समय:** इनकी कटाई अप्रैल से जून के बीच, यानी गर्मियों की शुरुआत में की जाती है।
- **महत्वपूर्ण कारक:** इन फसलों को बढ़ने के लिए ठंडी जलवायु और पकने के समय शुष्क तथा गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ (Western Cyclonic Disturbances) से होने वाली वर्षा इन फसलों के लिए महत्वपूर्ण होती है।
- **उदाहरण:** गेहूँ, जौ, मटर, चना और सरसों। उत्तरी राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में ये फसलें बहुत महत्वपूर्ण हैं।
2. **खरीफ फसलें (Kharif Crops):**- **बुवाई का समय:** इन फसलों को मानसून की शुरुआत के साथ, यानी जून-जुलाई में बोया जाता है।
- **कटाई का समय:** इनकी कटाई सितंबर से अक्टूबर के बीच की जाती है।
- **महत्वपूर्ण कारक:** इन फसलों को बढ़ने के लिए उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता (भारी वर्षा) की आवश्यकता होती है।
- **उदाहरण:** चावल (धान), मक्का, ज्वार, बाजरा, अरहर (तूर), मूँग, उड़द, कपास, जूट, मूँगफली और सोयाबीन। असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में ये फसलें प्रमुख हैं।
3. **जायद फसलें (Zaid Crops):**ये तीनों फसल ऋतुएँ भारतीय कृषि में विविधता और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।- **बुवाई का समय:** यह एक छोटी ऋतु होती है जो रबी और खरीफ फसल ऋतुओं के बीच, यानी मार्च से जून के बीच आती है।
- **उदाहरण:** इस अवधि में तरबूज, खरबूजा, खीरा, विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ और चारा फसलें उगाई जाती हैं।
भारत में कृषि के विकास और किसानों की स्थिति में सुधार के लिए स्वतंत्रता के बाद से सरकार ने कई महत्वपूर्ण तकनीकी और संस्थागत सुधार किए हैं:
- **सामूहिकीकरण (Collectivisation) और चकबंदी (Consolidation of Holdings):** स्वतंत्रता के बाद किसानों की छोटी-छोटी और बिखरी हुई जोतों को एक साथ लाने और बड़े, आर्थिक रूप से व्यवहार्य कृषि जोतों में बदलने के प्रयास किए गए ताकि बड़े पैमाने पर खेती को प्रोत्साहित किया जा सके।
- **जमींदारी प्रथा का उन्मूलन (Abolition of Zamindari System):** जमींदारी प्रथा का उन्मूलन करके भूमि का स्वामित्व वास्तविक काश्तकारों को हस्तांतरित किया गया, जिससे लाखों किसानों को भूमि का अधिकार मिला और वे अपनी भूमि में निवेश करने के लिए प्रेरित हुए।
- **सहकारिता (Cooperation):** किसानों को बेहतर बीज, उर्वरक, उपकरण और विपणन सुविधाएं प्रदान करने के लिए सहकारी समितियों के गठन को बढ़ावा दिया गया।
- **हरित क्रांति (Green Revolution):** 1960 और 1970 के दशक में 'हरित क्रांति' लाई गई, जिसने भारतीय कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। इसमें मुख्य रूप से उच्च पैदावार वाले बीज (HYV seeds), रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और सिंचाई सुविधाओं के विस्तार पर जोर दिया गया। इसका उद्देश्य गेहूं और चावल के उत्पादन में तेजी से वृद्धि करना था।
- **श्वेत क्रांति (White Revolution / Operation Flood):** यह डेयरी क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पहल थी, जिसका उद्देश्य दूध उत्पादन में वृद्धि करना और किसानों की आय में सुधार करना था।
- **भूमि सुधार (Land Reforms):** भूमिहीनों को भूमि वितरित करने और जोत की सीमा निर्धारित करने जैसे कई भूमि सुधार कानून बनाए गए, हालांकि उनका कार्यान्वयन पूरी तरह सफल नहीं रहा।
- **सिंचाई के साधनों का विस्तार:** सरकार ने कुओं, नलकूपों, नहरों और छोटे बांधों के निर्माण के माध्यम से सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया ताकि कृषि को मानसून पर कम निर्भर बनाया जा सके।
- **आधुनिक कृषि उपकरण:** किसानों को ट्रैक्टर, थ्रेशर, हार्वेस्टर जैसे आधुनिक कृषि उपकरण खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
- **उच्च पैदावार वाले बीज (HYV Seeds):** विभिन्न फसलों, विशेषकर गेहूं और चावल के लिए बेहतर गुणवत्ता वाले और उच्च पैदावार वाले बीजों का विकास और वितरण किया गया।
- **रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक:** फसलों की उत्पादकता बढ़ाने और कीटों व बीमारियों से बचाने के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग बढ़ाया गया।
- **किसान क्रेडिट कार्ड (KCC):** किसानों को कम ब्याज दरों पर आसान और समय पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए KCC योजना शुरू की गई।
- **व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा योजना (PAIS):** यह योजना किसानों को व्यक्तिगत दुर्घटनाओं के खिलाफ बीमा कवर प्रदान करती है।
- **फसल बीमा योजनाएँ:** सूखा, बाढ़, आग, बीमारी आदि प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसल को नुकसान होने पर किसानों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिए विभिन्न फसल बीमा योजनाएँ शुरू की गईं (जैसे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना)।
- **न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP):** सरकार ने किसानों को उनकी फसलों के लिए एक निश्चित न्यूनतम मूल्य (MSP) घोषित करना शुरू किया, ताकि उन्हें बाजार में कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचाया जा सके और उनकी आय सुनिश्चित की जा सके।
- **ग्रामीण बैंक और सहकारी समितियाँ:** किसानों को साहूकारों के शोषण से बचाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों और सहकारी ऋण समितियों की स्थापना की गई।
- **मौसम बुलेटिन और कृषि कार्यक्रम:** रेडियो और टेलीविजन पर विशेष कृषि कार्यक्रम और मौसम बुलेटिन प्रसारित किए गए ताकि किसानों को नवीनतम कृषि पद्धतियों, बाजार कीमतों और मौसम की जानकारी मिल सके।
भूमंडलीकरण (Globalisation) ने भारतीय कृषि को विभिन्न तरीकों से प्रभावित किया है, जिसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव शामिल हैं:
- **नए बाजारों तक पहुँच:** भूमंडलीकरण ने भारतीय किसानों को अपने उत्पादों (जैसे बासमती चावल, मसाले, चाय) को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेचने के अवसर प्रदान किए हैं।
- **प्रौद्योगिकी और निवेश का प्रवाह:** विकसित देशों से नई कृषि प्रौद्योगिकियां, बीज किस्में और कृषि पद्धतियाँ भारत में आईं, जिससे उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिली। विदेशी निवेश से कृषि प्रसंस्करण और बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ।
- **किसानों के लिए अधिक विकल्प:** किसानों को अब विभिन्न प्रकार के बीज, उर्वरक और उपकरण उपलब्ध हैं, जिससे उन्हें अपनी खेती के तरीकों को बेहतर बनाने में मदद मिली है।
- **अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में वृद्धि:** भारतीय किसानों को अब वैश्विक बाजारों में विकसित देशों के किसानों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है, जिन्हें अक्सर भारी सरकारी सब्सिडी मिलती है। इससे भारतीय किसानों के लिए अपनी फसलों की अच्छी कीमत प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
- **कीमतों में अस्थिरता:** वैश्विक बाजार में मांग और आपूर्ति के उतार-चढ़ाव के कारण कृषि उत्पादों की कीमतों में अत्यधिक अस्थिरता आई है, जिससे किसानों की आय अनिश्चित हो गई है।
- **आयात पर निर्भरता:** कुछ कृषि उत्पादों के आयात बढ़ने से घरेलू किसानों को नुकसान हुआ है, खासकर जब सस्ते आयातित उत्पाद उपलब्ध होते हैं।
- **हरित क्रांति के नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव:** भूमंडलीकरण के दबाव में उत्पादन बढ़ाने के लिए हरित क्रांति की तकनीकों का अत्यधिक उपयोग हुआ, जिससे मिट्टी का क्षरण, भूजल स्तर में गिरावट, और रासायनिक प्रदूषण जैसी पर्यावरणीय समस्याएँ बढ़ीं।
- **जैव विविधता का नुकसान:** कुछ फसलों (जैसे चावल, गेहूं) पर अधिक जोर देने और स्थानीय किस्मों को नजरअंदाज करने से कृषि जैव विविधता का नुकसान हुआ है।
- **कॉर्पोरेट कृषि का उदय:** बड़े कॉर्पोरेट खिलाड़ियों का कृषि क्षेत्र में प्रवेश हुआ है, जो छोटे और सीमांत किसानों के लिए प्रतिस्पर्धा को और भी कठिन बना रहा है।
- **किसानों का संकट:** बढ़ती लागत, बाजार की अनिश्चितता और ऋणग्रस्तता ने कई किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर किया है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ नगदी फसलों की खेती अधिक होती है।