अध्याय 2: वन और वन्यजीव संसाधन (Forest and Wildlife Resources)

परिचय

कक्षा 10 भूगोल का दूसरा अध्याय **'वन और वन्यजीव संसाधन'** भारत में वन और वन्यजीवों की समृद्ध विविधता, उनके महत्व, उनके सामने आने वाले खतरों और उनके संरक्षण के उपायों पर केंद्रित है। यह अध्याय बताता है कि कैसे ये संसाधन हमारे पारिस्थितिकी तंत्र और मानव जीवन के लिए अनिवार्य हैं, और कैसे मानव गतिविधियों ने इन पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।

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1. भारत में वनस्पति और जीव (Flora and Fauna in India)

भारत दुनिया के सबसे धनी वन्यजीव और वनस्पति विविधता वाले देशों में से एक है।

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2. वनों और वन्यजीवों का विनाश (Destruction of Forests and Wildlife)

भारत में वनों और वन्यजीवों को कई कारणों से खतरा है:

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3. जैव विविधता का वर्गीकरण (Classification of Biodiversity)

अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature and Natural Resources - IUCN) ने प्रजातियों को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया है:

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4. संरक्षण के उपाय (Conservation Measures)

भारत सरकार ने जैव विविधता के संरक्षण के लिए कई कदम उठाए हैं:

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5. वनों का वर्गीकरण (Classification of Forests)

भारत में वनों को प्रशासन के आधार पर वर्गीकृत किया गया है:

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6. समुदाय और संरक्षण (Community and Conservation)

भारत में, संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भागीदारी महत्वपूर्ण है:

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

अभ्यास के प्रश्न

  1. जैव विविधता क्या है? यह मानव जीवन के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?

    **जैव विविधता (Biodiversity):** जैव विविधता से तात्पर्य पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवन की विविधता से है। इसमें विभिन्न प्रकार के पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव और वे पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं जिनमें वे रहते हैं (जैसे वन, रेगिस्तान, महासागर)। यह न केवल प्रजातियों की विविधता है, बल्कि प्रजातियों के भीतर आनुवंशिक विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की विविधता भी है।
    **मानव जीवन के लिए महत्व:** जैव विविधता मानव जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें कई 'पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ' प्रदान करती है जिन पर हमारा अस्तित्व निर्भर करता है:
    1. **भोजन, आश्रय और कपड़े:** हम भोजन (फसलें, पशुधन, मछली), कपड़े (कपास, ऊन), लकड़ी (आश्रय, ईंधन) और दवाओं के लिए सीधे जैव विविधता पर निर्भर हैं।
    2. **स्वच्छ हवा और पानी:** वन हवा को शुद्ध करते हैं और जल चक्र को नियंत्रित करते हैं, जिससे हमें पीने के लिए स्वच्छ पानी मिलता है।
    3. **मिट्टी की उर्वरता:** सूक्ष्मजीव मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं, जो कृषि के लिए आवश्यक है।
    4. **परागण:** कई कीट और पक्षी फसलों और पौधों के परागण में मदद करते हैं, जो हमारी खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
    5. **जलवायु विनियमन:** वन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके जलवायु को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
    6. **मनोरंजन और पर्यटन:** वन्यजीव और वन क्षेत्र मनोरंजक गतिविधियों और पर्यावरण-पर्यटन के अवसर प्रदान करते हैं।
    7. **सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व:** कई संस्कृतियों और समुदायों के लिए वन और वन्यजीवों का गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है।
    संक्षेप में, जैव विविधता एक स्वस्थ ग्रह और मानव कल्याण की आधारशिला है। इसके बिना, पृथ्वी पर जीवन का वर्तमान स्वरूप असंभव होगा।

  2. भारत में वनस्पति और जीव के विनाश के मुख्य कारण क्या हैं?

    भारत में वनस्पति और जीव (Flora and Fauna) के विनाश के कई मुख्य कारण हैं, जो ऐतिहासिक और वर्तमान दोनों हैं:

    1. **कृषि का विस्तार:** आजादी के बाद भी कृषि भूमि की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए वनों को साफ किया गया। "झूम खेती" (स्थानांतरण खेती) भी कुछ क्षेत्रों में वन विनाश का कारण बनी है।
    2. **विकास परियोजनाएँ:**
    • **बड़े पैमाने पर नदी घाटी परियोजनाएँ:** बांधों के निर्माण और सिंचाई परियोजनाओं के लिए बड़े वन क्षेत्रों को जलमग्न कर दिया गया। उदाहरण के लिए, नर्मदा घाटी परियोजना।
    • **खनन गतिविधियाँ:** खनिज संसाधनों के निष्कर्षण के लिए खनन से वनों का विनाश होता है और वन्यजीवों के आवास नष्ट होते हैं। पश्चिम बंगाल में बक्सा टाइगर रिजर्व में डोलोमाइट खनन इसका एक उदाहरण है।
    3. **औपनिवेशिक नीतियाँ:** ब्रिटिश काल में रेलवे, कृषि, वाणिज्यिक वानिकी और खनन गतिविधियों के विस्तार के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की गई, जिससे वनों का भारी नुकसान हुआ।
    4. **पशुधन और ईंधन की लकड़ी:** मवेशियों द्वारा अत्यधिक चराई और ईंधन की लकड़ी के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से वनों पर दबाव बढ़ता है।
    5. **शिकार और अवैध व्यापार:** दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों का शिकार (पोचिंग) उनके खाल, दांत, हड्डियों, सींग और अन्य अंगों के अवैध व्यापार के लिए किया जाता है, जिससे उनकी आबादी तेजी से घट रही है।
    6. **पर्यावरणीय प्रदूषण और आग:** औद्योगिक प्रदूषण, रासायनिक अपशिष्ट और वनों में लगने वाली आग (मानवजनित या प्राकृतिक) पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाती हैं और कई प्रजातियों के लिए खतरा पैदा करती हैं।
    7. **संसाधनों का असमान वितरण और उपभोग:** संसाधनों का असमान वितरण और कुछ समूहों द्वारा अत्यधिक उपभोग पैटर्न (विशेषकर अमीर वर्ग द्वारा) जैव विविधता पर अतिरिक्त दबाव डालता है।
    8. **पर्यावरण प्रबंधन का अभाव:** अपर्याप्त पर्यावरण नीतियों और उनके कमजोर कार्यान्वयन ने भी वन और वन्यजीवों के विनाश में योगदान दिया है।

  3. संरक्षण के लिए भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के मुख्य प्रावधानों का उल्लेख करें।

    भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 भारत में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए एक मील का पत्थर था। इसके मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:

    1. **लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची (Scheduling of Endangered Species):** अधिनियम ने विभिन्न अनुसूचियों (Schedules) में वन्यजीव प्रजातियों की एक सूची स्थापित की, जिसमें विभिन्न स्तर की सुरक्षा प्रदान की गई। अनुसूची I में सबसे अधिक लुप्तप्राय प्रजातियों को रखा गया, जिन्हें सर्वोच्च स्तर की सुरक्षा मिली।
    2. **शिकार पर प्रतिबंध (Ban on Hunting):** अधिनियम ने अनुसूची में शामिल सभी वन्यजीव प्रजातियों के शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। किसी भी वन्यजीव को मारना, घायल करना या फंसाना गैरकानूनी घोषित किया गया, सिवाय कुछ विशेष परिस्थितियों (जैसे आत्मरक्षा) के।
    3. **वन्यजीव आवासों का कानूनी संरक्षण (Legal Protection to Wildlife Habitats):** अधिनियम ने राष्ट्रीय उद्यानों (National Parks), वन्यजीव अभयारण्यों (Wildlife Sanctuaries) और संरक्षण भंडारों (Conservation Reserves) जैसे संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना और प्रबंधन के लिए कानूनी ढाँचा प्रदान किया। इन क्षेत्रों में मानव गतिविधियों को नियंत्रित किया जाता है ताकि वन्यजीवों के प्राकृतिक आवासों को संरक्षित किया जा सके।
    4. **वन्यजीव व्यापार का विनियमन (Regulation of Wildlife Trade):** अधिनियम ने वन्यजीवों और उनके उत्पादों (जैसे खाल, दांत, हड्डियां) के वाणिज्यिक व्यापार को प्रतिबंधित या विनियमित किया। यह अवैध शिकार और व्यापार को रोकने के लिए महत्वपूर्ण था।
    5. **संरक्षण कार्यक्रमों का समर्थन:** अधिनियम ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को वन्यजीव संरक्षण परियोजनाओं को शुरू करने और समर्थन देने के लिए सशक्त बनाया, जैसे कि 'परियोजना टाइगर' और 'परियोजना हाथी'।
    6. **दंड का प्रावधान (Penalties):** अधिनियम ने इसके प्रावधानों का उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दंड (जुर्माना और कारावास) निर्धारित किए, ताकि वन्यजीव अपराधों को रोका जा सके।
    यह अधिनियम भारत में वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को मजबूत करने और जैव विविधता के नुकसान को रोकने में महत्वपूर्ण रहा है।

  4. वनों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।

    भारत में, वनों को मुख्य रूप से प्रशासन और प्रबंधन के उद्देश्य से तीन मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:

    1. **आरक्षित वन (Reserved Forests):**
    • **परिभाषा:** ये वे वन हैं जिन्हें स्थायी वन संपदा के रूप में घोषित किया गया है, जहाँ लकड़ी के उत्पादन और अन्य वन उत्पादों के लिए संरक्षण और प्रबंधन पर विशेष जोर दिया जाता है।
    • **सुरक्षा स्तर:** ये भारत में सबसे अधिक संरक्षित वन हैं। इन वनों में किसी भी प्रकार की मानवीय गतिविधि (जैसे लकड़ी काटना, चराई, शिकार) की अनुमति नहीं होती है, जब तक कि विशेष रूप से सरकार द्वारा अनुमति न दी जाए। इनका उद्देश्य वन्यजीवों और वनों को सर्वोच्च स्तर की सुरक्षा प्रदान करना है।
    • **हिस्सा:** भारत के कुल वन क्षेत्र का आधे से अधिक (लगभग 54%) आरक्षित वनों के अंतर्गत आता है।
    • **उदाहरण:** जम्मू और कश्मीर, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के अधिकांश वन क्षेत्र आरक्षित वन हैं।
    2. **संरक्षित वन (Protected Forests):**
    • **परिभाषा:** ये वे वन हैं जिन्हें आगे के किसी भी नुकसान या क्षरण से बचाने के लिए घोषित किया गया है।
    • **सुरक्षा स्तर:** आरक्षित वनों की तुलना में इनमें प्रतिबंध थोड़े कम कठोर होते हैं। कुछ स्थानीय समुदायों को कुछ शर्तों के साथ सीमित चराई या ईंधन की लकड़ी इकट्ठा करने की अनुमति हो सकती है, बशर्ते वे वन को नुकसान न पहुँचाएँ।
    • **हिस्सा:** भारत के कुल वन क्षेत्र का लगभग एक-तिहाई (लगभग 29%) संरक्षित वनों के अंतर्गत आता है।
    • **उदाहरण:** बिहार, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान में अधिकांश वन संरक्षित वन हैं।
    3. **अवर्गीकृत वन (Unclassed Forests):**
    • **परिभाषा:** ये वे वन और बंजर भूमि हैं जो सरकार, व्यक्तियों या समुदायों के स्वामित्व में हैं और जिन्हें न तो आरक्षित किया गया है और न ही संरक्षित किया गया है।
    • **सुरक्षा स्तर:** इन वनों पर प्रतिबंध सबसे कम होते हैं, और इनमें कई प्रकार की गतिविधियों की अनुमति होती है।
    • **हिस्सा:** ये वनों और बंजर भूमि का शेष भाग बनाते हैं।
    • **उदाहरण:** पूर्वोत्तर राज्यों (जैसे असम, नागालैंड) और गुजरात के कुछ हिस्सों में अवर्गीकृत वनों का एक बड़ा हिस्सा है, जहाँ स्थानीय समुदाय इन वनों का प्रबंधन करते हैं।
    इन वर्गीकरणों का उद्देश्य भारत के वन संसाधनों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन और संरक्षण करना है, जबकि स्थानीय समुदायों की आवश्यकताओं और अधिकारों को भी ध्यान में रखा जाता है।

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