अध्याय 2: वन और वन्यजीव संसाधन (Forest and Wildlife Resources)
परिचय
कक्षा 10 भूगोल का दूसरा अध्याय **'वन और वन्यजीव संसाधन'** भारत में वन और वन्यजीवों की समृद्ध विविधता, उनके महत्व, उनके सामने आने वाले खतरों और उनके संरक्षण के उपायों पर केंद्रित है। यह अध्याय बताता है कि कैसे ये संसाधन हमारे पारिस्थितिकी तंत्र और मानव जीवन के लिए अनिवार्य हैं, और कैसे मानव गतिविधियों ने इन पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।
---1. भारत में वनस्पति और जीव (Flora and Fauna in India)
भारत दुनिया के सबसे धनी वन्यजीव और वनस्पति विविधता वाले देशों में से एक है।
- यह दुनिया के कुल प्रजातियों का 8% हिस्सा है, अनुमानित 1.6 मिलियन प्रजातियाँ।
- भारत में लगभग 81,000 प्रजातियों के जीव और 47,000 प्रजातियों की वनस्पति पाई जाती है।
- इनमें से लगभग 15,000 प्रजातियाँ भारत में स्थानिक (endemici.e., केवल भारत में पाई जाती हैं) हैं।
- मनुष्यों ने अपने विकास के लिए प्रकृति के संसाधनों का अत्यधिक उपयोग किया है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो गया है।
2. वनों और वन्यजीवों का विनाश (Destruction of Forests and Wildlife)
भारत में वनों और वन्यजीवों को कई कारणों से खतरा है:
- **औपनिवेशिक काल के प्रभाव:**
- रेलवे का विस्तार, कृषि का विस्तार, वाणिज्यिक वानिकी, और खनन जैसी गतिविधियों के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की गई।
- **स्वतंत्रता के बाद के कारण:**
- **कृषि विस्तार:** स्वतंत्रता के बाद भी कृषि भूमि का विस्तार प्रमुख कारण रहा।
- **विकास परियोजनाएँ:** बड़े पैमाने पर नदी घाटी परियोजनाएँ (जैसे नर्मदा घाटी परियोजना) और खनन परियोजनाएँ (जैसे बक्सा टाइगर रिजर्व में डोलोमाइट खनन) वनों के विनाश का कारण बनीं।
- **पशुधन और ईंधन की लकड़ी:** अति-चराई और ईंधन की लकड़ी के लिए वनों की कटाई भी एक कारण है।
- **शिकार और अवैध व्यापार:** वन्यजीवों का शिकार और उनके अंगों का अवैध व्यापार कई प्रजातियों के विलुप्त होने का प्रमुख कारण है।
- **पर्यावरणीय प्रदूषण:** प्रदूषण और वनों में आग लगना भी जैव विविधता के लिए खतरा है।
- **संसाधनों का असमान वितरण:** संसाधनों का असमान वितरण और उपभोग पैटर्न भी पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव डालता है।
3. जैव विविधता का वर्गीकरण (Classification of Biodiversity)
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature and Natural Resources - IUCN) ने प्रजातियों को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया है:
- **सामान्य प्रजातियाँ (Normal Species):** वे प्रजातियाँ जिनकी जनसंख्या का स्तर सामान्य माना जाता है, जैसे पशु, साल, चीड़, रोडेंट्स आदि।
- **लुप्तप्राय प्रजातियाँ (Endangered Species):** वे प्रजातियाँ जो विलुप्त होने के कगार पर हैं। इनके जीवित रहने के लिए नकारात्मक कारक जारी रहते हैं, तो उनका जीवित रहना मुश्किल होगा, जैसे काला हिरण (Blackbuck), मगरमच्छ (Crocodile), भारतीय गैंडा (Indian Rhinoceros), शेर पूंछ वाला मकाक (Lion Tailed Macaque), संगाई (Sangai - मणिपुर हिरण)।
- **सुभेद्य प्रजातियाँ (Vulnerable Species):** वे प्रजातियाँ जिनकी संख्या घट रही है और यदि नकारात्मक कारक जारी रहते हैं, तो वे लुप्तप्राय श्रेणी में आ सकती हैं, जैसे नीली भेड़ (Blue Sheep), एशियाई हाथी (Asiatic Elephant), गंगा डॉल्फिन (Gangetic Dolphin)।
- **दुर्लभ प्रजातियाँ (Rare Species):** छोटी आबादी वाली प्रजातियाँ जो सुभेद्य या लुप्तप्राय श्रेणी में आ सकती हैं यदि नकारात्मक कारक उन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, जैसे हिमालयी भूरा भालू (Himalayan Brown Bear), जंगली एशियाई भैंसा (Wild Asiatic Buffalo), डेजर्ट फॉक्स (Desert Fox), हॉर्नबिल (Hornbill)।
- **स्थानिक प्रजातियाँ (Endemic Species):** वे प्रजातियाँ जो केवल कुछ विशेष भौगोलिक क्षेत्रों में पाई जाती हैं, जैसे अंडमान टील (Andaman Teal), निकोबार कबूतर (Nicobar Pigeon), अंडमान जंगली सुअर (Andaman Wild Pig), मिथुन (Mithun - अरुणाचल प्रदेश में)।
- **विलुप्त प्रजातियाँ (Extinct Species):** वे प्रजातियाँ जो खोजे गए या संभावित क्षेत्रों में अनुपस्थित पाई गई हैं। ये प्रजातियाँ अब पृथ्वी पर मौजूद नहीं हैं, जैसे एशियाई चीता (Asiatic Cheetah), गुलाबी सिर वाली बत्तख (Pink-headed Duck)।
4. संरक्षण के उपाय (Conservation Measures)
भारत सरकार ने जैव विविधता के संरक्षण के लिए कई कदम उठाए हैं:
- **भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (Indian Wildlife (Protection) Act, 1972):**
- इस अधिनियम ने लुप्तप्राय प्रजातियों को सूचीबद्ध किया और शिकार पर प्रतिबंध लगाया।
- इसका उद्देश्य वन्यजीवों के आवासों का कानूनी संरक्षण प्रदान करना, शिकार पर प्रतिबंध लगाना और वन्यजीवों के व्यापार को विनियमित करना था।
- **परियोजना टाइगर (Project Tiger):**
- 1973 में शुरू की गई यह परियोजना भारत में बाघों के संरक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण वन्यजीव अभियानों में से एक है।
- इसका उद्देश्य बाघों की घटती संख्या को रोकना और उनकी आबादी को बढ़ाना था।
- रणथंभौर, सुंदरवन, सरिस्का, बांधवगढ़, मानस जैसे कई बाघ अभयारण्य स्थापित किए गए।
रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में एक बाघ - **अन्य संरक्षण परियोजनाएँ:**
- मगरमच्छ, घड़ियाल, एशियाई शेर, भारतीय गैंडा आदि के लिए विशिष्ट परियोजनाएँ।
- केंद्रीय सरकार ने कई तितलियों, पतंगों, भृंगों और एक ड्रैगनफ्लाई को भी संरक्षित प्रजातियों में जोड़ा है।
- पौधों की 6 प्रजातियों को भी पहली बार इस सूची में शामिल किया गया है।
5. वनों का वर्गीकरण (Classification of Forests)
भारत में वनों को प्रशासन के आधार पर वर्गीकृत किया गया है:
- **आरक्षित वन (Reserved Forests):**
- भारत में आधे से अधिक वन क्षेत्र आरक्षित वन घोषित किए गए हैं।
- इन्हें सबसे मूल्यवान माना जाता है और इनमें किसी भी प्रकार की गतिविधि (जैसे लकड़ी काटना, चराई) की अनुमति नहीं होती है, जब तक कि विशेष रूप से अनुमति न हो।
- जम्मू और कश्मीर, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में अधिकांश वन आरक्षित वन हैं।
- **संरक्षित वन (Protected Forests):**
- भारत के कुल वन क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा संरक्षित वन है।
- इन्हें आगे के विनाश से बचाने के लिए घोषित किया गया है। कुछ स्थानीय समुदायों को कुछ शर्तों के साथ सीमित चराई या ईंधन की लकड़ी इकट्ठा करने की अनुमति हो सकती है।
- बिहार, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान में अधिकांश वन संरक्षित वन हैं।
- **अवर्गीकृत वन (Unclassed Forests):**
- ये सरकार, व्यक्तियों और समुदायों के स्वामित्व वाले वन और बंजर भूमि हैं।
- इनमें सभी प्रकार के वन और बंजर भूमि शामिल हैं जो न तो आरक्षित हैं और न ही संरक्षित।
- पूर्वोत्तर राज्यों और गुजरात के कुछ हिस्सों में अवर्गीकृत वनों का एक बड़ा हिस्सा है।
6. समुदाय और संरक्षण (Community and Conservation)
भारत में, संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भागीदारी महत्वपूर्ण है:
- **स्थानीय समुदायों की भूमिका:**
- कई आदिवासी समुदाय वनों पर निर्भर हैं और सदियों से वनों के साथ सामंजस्य बिठाकर रहते आए हैं।
- सरिस्का टाइगर रिजर्व में ग्रामीणों ने खनन के खिलाफ संघर्ष किया है।
- राजस्थान के बिश्नोई समुदाय ने वन्यजीवों (विशेषकर काले हिरण) के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- **चिपको आंदोलन (Chipko Movement):** हिमालय में स्थानीय समुदायों द्वारा वनों की कटाई का विरोध करने के लिए पेड़ों को गले लगाने का एक प्रसिद्ध आंदोलन।
चिपको आंदोलन - पेड़ों से लिपट कर बचाने का प्रयास - **संयुक्त वन प्रबंधन (Joint Forest Management - JFM):**
- यह कार्यक्रम 1988 में ओडिशा में शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य स्थानीय समुदायों को वनों के प्रबंधन और संरक्षण में शामिल करना है।
- इसके बदले में, समुदाय को गैर-इमारती वन उत्पादों (non-timber forest products) का लाभ मिलता है।
- यह कार्यक्रम वनों और स्थानीय लोगों के बीच एक सहजीवी संबंध स्थापित करने में मदद करता है।
- **पवित्र उपवन (Sacred Groves):**
- भारत में कई संस्कृतियों में प्रकृति की पूजा एक प्राचीन परंपरा रही है।
- कुछ वन क्षेत्रों या पेड़ों को पवित्र माना जाता है और देवी-देवताओं को समर्पित किया जाता है, जिससे उनकी कटाई या नुकसान पर प्रतिबंध लगता है।
- जैसे-मुंडा और संथाली छोटानागपुर क्षेत्र में महुआ और कदंब के पेड़ों की पूजा करते हैं।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
अभ्यास के प्रश्न
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जैव विविधता क्या है? यह मानव जीवन के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
**जैव विविधता (Biodiversity):** जैव विविधता से तात्पर्य पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवन की विविधता से है। इसमें विभिन्न प्रकार के पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव और वे पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं जिनमें वे रहते हैं (जैसे वन, रेगिस्तान, महासागर)। यह न केवल प्रजातियों की विविधता है, बल्कि प्रजातियों के भीतर आनुवंशिक विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की विविधता भी है।**मानव जीवन के लिए महत्व:** जैव विविधता मानव जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें कई 'पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ' प्रदान करती है जिन पर हमारा अस्तित्व निर्भर करता है:
- **भोजन, आश्रय और कपड़े:** हम भोजन (फसलें, पशुधन, मछली), कपड़े (कपास, ऊन), लकड़ी (आश्रय, ईंधन) और दवाओं के लिए सीधे जैव विविधता पर निर्भर हैं।
- **स्वच्छ हवा और पानी:** वन हवा को शुद्ध करते हैं और जल चक्र को नियंत्रित करते हैं, जिससे हमें पीने के लिए स्वच्छ पानी मिलता है।
- **मिट्टी की उर्वरता:** सूक्ष्मजीव मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं, जो कृषि के लिए आवश्यक है।
- **परागण:** कई कीट और पक्षी फसलों और पौधों के परागण में मदद करते हैं, जो हमारी खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
- **जलवायु विनियमन:** वन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके जलवायु को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
- **मनोरंजन और पर्यटन:** वन्यजीव और वन क्षेत्र मनोरंजक गतिविधियों और पर्यावरण-पर्यटन के अवसर प्रदान करते हैं।
- **सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व:** कई संस्कृतियों और समुदायों के लिए वन और वन्यजीवों का गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व है।
संक्षेप में, जैव विविधता एक स्वस्थ ग्रह और मानव कल्याण की आधारशिला है। इसके बिना, पृथ्वी पर जीवन का वर्तमान स्वरूप असंभव होगा। -
भारत में वनस्पति और जीव के विनाश के मुख्य कारण क्या हैं?
भारत में वनस्पति और जीव (Flora and Fauna) के विनाश के कई मुख्य कारण हैं, जो ऐतिहासिक और वर्तमान दोनों हैं:
1. **कृषि का विस्तार:** आजादी के बाद भी कृषि भूमि की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए वनों को साफ किया गया। "झूम खेती" (स्थानांतरण खेती) भी कुछ क्षेत्रों में वन विनाश का कारण बनी है।2. **विकास परियोजनाएँ:**- **बड़े पैमाने पर नदी घाटी परियोजनाएँ:** बांधों के निर्माण और सिंचाई परियोजनाओं के लिए बड़े वन क्षेत्रों को जलमग्न कर दिया गया। उदाहरण के लिए, नर्मदा घाटी परियोजना।
- **खनन गतिविधियाँ:** खनिज संसाधनों के निष्कर्षण के लिए खनन से वनों का विनाश होता है और वन्यजीवों के आवास नष्ट होते हैं। पश्चिम बंगाल में बक्सा टाइगर रिजर्व में डोलोमाइट खनन इसका एक उदाहरण है।
3. **औपनिवेशिक नीतियाँ:** ब्रिटिश काल में रेलवे, कृषि, वाणिज्यिक वानिकी और खनन गतिविधियों के विस्तार के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई की गई, जिससे वनों का भारी नुकसान हुआ।4. **पशुधन और ईंधन की लकड़ी:** मवेशियों द्वारा अत्यधिक चराई और ईंधन की लकड़ी के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से वनों पर दबाव बढ़ता है।5. **शिकार और अवैध व्यापार:** दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों का शिकार (पोचिंग) उनके खाल, दांत, हड्डियों, सींग और अन्य अंगों के अवैध व्यापार के लिए किया जाता है, जिससे उनकी आबादी तेजी से घट रही है।6. **पर्यावरणीय प्रदूषण और आग:** औद्योगिक प्रदूषण, रासायनिक अपशिष्ट और वनों में लगने वाली आग (मानवजनित या प्राकृतिक) पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाती हैं और कई प्रजातियों के लिए खतरा पैदा करती हैं।7. **संसाधनों का असमान वितरण और उपभोग:** संसाधनों का असमान वितरण और कुछ समूहों द्वारा अत्यधिक उपभोग पैटर्न (विशेषकर अमीर वर्ग द्वारा) जैव विविधता पर अतिरिक्त दबाव डालता है।8. **पर्यावरण प्रबंधन का अभाव:** अपर्याप्त पर्यावरण नीतियों और उनके कमजोर कार्यान्वयन ने भी वन और वन्यजीवों के विनाश में योगदान दिया है। -
संरक्षण के लिए भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के मुख्य प्रावधानों का उल्लेख करें।
भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 भारत में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए एक मील का पत्थर था। इसके मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:
1. **लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची (Scheduling of Endangered Species):** अधिनियम ने विभिन्न अनुसूचियों (Schedules) में वन्यजीव प्रजातियों की एक सूची स्थापित की, जिसमें विभिन्न स्तर की सुरक्षा प्रदान की गई। अनुसूची I में सबसे अधिक लुप्तप्राय प्रजातियों को रखा गया, जिन्हें सर्वोच्च स्तर की सुरक्षा मिली।2. **शिकार पर प्रतिबंध (Ban on Hunting):** अधिनियम ने अनुसूची में शामिल सभी वन्यजीव प्रजातियों के शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। किसी भी वन्यजीव को मारना, घायल करना या फंसाना गैरकानूनी घोषित किया गया, सिवाय कुछ विशेष परिस्थितियों (जैसे आत्मरक्षा) के।3. **वन्यजीव आवासों का कानूनी संरक्षण (Legal Protection to Wildlife Habitats):** अधिनियम ने राष्ट्रीय उद्यानों (National Parks), वन्यजीव अभयारण्यों (Wildlife Sanctuaries) और संरक्षण भंडारों (Conservation Reserves) जैसे संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना और प्रबंधन के लिए कानूनी ढाँचा प्रदान किया। इन क्षेत्रों में मानव गतिविधियों को नियंत्रित किया जाता है ताकि वन्यजीवों के प्राकृतिक आवासों को संरक्षित किया जा सके।4. **वन्यजीव व्यापार का विनियमन (Regulation of Wildlife Trade):** अधिनियम ने वन्यजीवों और उनके उत्पादों (जैसे खाल, दांत, हड्डियां) के वाणिज्यिक व्यापार को प्रतिबंधित या विनियमित किया। यह अवैध शिकार और व्यापार को रोकने के लिए महत्वपूर्ण था।5. **संरक्षण कार्यक्रमों का समर्थन:** अधिनियम ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को वन्यजीव संरक्षण परियोजनाओं को शुरू करने और समर्थन देने के लिए सशक्त बनाया, जैसे कि 'परियोजना टाइगर' और 'परियोजना हाथी'।6. **दंड का प्रावधान (Penalties):** अधिनियम ने इसके प्रावधानों का उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर दंड (जुर्माना और कारावास) निर्धारित किए, ताकि वन्यजीव अपराधों को रोका जा सके।यह अधिनियम भारत में वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को मजबूत करने और जैव विविधता के नुकसान को रोकने में महत्वपूर्ण रहा है। -
वनों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।
भारत में, वनों को मुख्य रूप से प्रशासन और प्रबंधन के उद्देश्य से तीन मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
1. **आरक्षित वन (Reserved Forests):**- **परिभाषा:** ये वे वन हैं जिन्हें स्थायी वन संपदा के रूप में घोषित किया गया है, जहाँ लकड़ी के उत्पादन और अन्य वन उत्पादों के लिए संरक्षण और प्रबंधन पर विशेष जोर दिया जाता है।
- **सुरक्षा स्तर:** ये भारत में सबसे अधिक संरक्षित वन हैं। इन वनों में किसी भी प्रकार की मानवीय गतिविधि (जैसे लकड़ी काटना, चराई, शिकार) की अनुमति नहीं होती है, जब तक कि विशेष रूप से सरकार द्वारा अनुमति न दी जाए। इनका उद्देश्य वन्यजीवों और वनों को सर्वोच्च स्तर की सुरक्षा प्रदान करना है।
- **हिस्सा:** भारत के कुल वन क्षेत्र का आधे से अधिक (लगभग 54%) आरक्षित वनों के अंतर्गत आता है।
- **उदाहरण:** जम्मू और कश्मीर, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के अधिकांश वन क्षेत्र आरक्षित वन हैं।
2. **संरक्षित वन (Protected Forests):**- **परिभाषा:** ये वे वन हैं जिन्हें आगे के किसी भी नुकसान या क्षरण से बचाने के लिए घोषित किया गया है।
- **सुरक्षा स्तर:** आरक्षित वनों की तुलना में इनमें प्रतिबंध थोड़े कम कठोर होते हैं। कुछ स्थानीय समुदायों को कुछ शर्तों के साथ सीमित चराई या ईंधन की लकड़ी इकट्ठा करने की अनुमति हो सकती है, बशर्ते वे वन को नुकसान न पहुँचाएँ।
- **हिस्सा:** भारत के कुल वन क्षेत्र का लगभग एक-तिहाई (लगभग 29%) संरक्षित वनों के अंतर्गत आता है।
- **उदाहरण:** बिहार, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान में अधिकांश वन संरक्षित वन हैं।
3. **अवर्गीकृत वन (Unclassed Forests):**इन वर्गीकरणों का उद्देश्य भारत के वन संसाधनों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन और संरक्षण करना है, जबकि स्थानीय समुदायों की आवश्यकताओं और अधिकारों को भी ध्यान में रखा जाता है।- **परिभाषा:** ये वे वन और बंजर भूमि हैं जो सरकार, व्यक्तियों या समुदायों के स्वामित्व में हैं और जिन्हें न तो आरक्षित किया गया है और न ही संरक्षित किया गया है।
- **सुरक्षा स्तर:** इन वनों पर प्रतिबंध सबसे कम होते हैं, और इनमें कई प्रकार की गतिविधियों की अनुमति होती है।
- **हिस्सा:** ये वनों और बंजर भूमि का शेष भाग बनाते हैं।
- **उदाहरण:** पूर्वोत्तर राज्यों (जैसे असम, नागालैंड) और गुजरात के कुछ हिस्सों में अवर्गीकृत वनों का एक बड़ा हिस्सा है, जहाँ स्थानीय समुदाय इन वनों का प्रबंधन करते हैं।