अध्याय 1: संसाधन और विकास (Resources and Development)
परिचय
कक्षा 10 भूगोल का यह अध्याय **'संसाधन और विकास'** हमें यह समझने में मदद करता है कि संसाधन क्या होते हैं, वे हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण हैं, उनका वर्गीकरण कैसे किया जाता है और सतत विकास के लिए उनका प्रबंधन क्यों आवश्यक है। यह अध्याय विभिन्न प्रकार के संसाधनों, भूमि संसाधनों और मृदा (मिट्टी) के प्रकारों पर विस्तृत जानकारी प्रदान करता है, साथ ही उनके संरक्षण की रणनीतियों पर भी प्रकाश डालता है।
---1. संसाधन क्या हैं? (What are Resources?)
- हमारे पर्यावरण में हर वह वस्तु जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपलब्ध है और जिसे प्रौद्योगिकी की मदद से सुलभ, आर्थिक रूप से व्यवहार्य और सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य बनाया जा सकता है, एक **संसाधन** कहलाती है।
- मनुष्य पर्यावरण से सामग्री को प्रौद्योगिकी के माध्यम से संसाधनों में बदलता है और आर्थिक विकास में योगदान देता है।
संसाधनों का वर्गीकरण (Classification of Resources)
(क) उत्पत्ति के आधार पर (On the Basis of Origin):
- **जैव संसाधन (Biotic Resources):** वे संसाधन जो जीवमंडल से प्राप्त होते हैं और जिनमें जीवन होता है।
- उदाहरण: मनुष्य, वनस्पति, जीव-जंतु, मत्स्य जीवन, पशुधन।
- **अजैव संसाधन (Abiotic Resources):** वे सभी वस्तुएँ जो निर्जीव वस्तुओं से बनी होती हैं।
- उदाहरण: चट्टानें, धातुएँ, जल, वायु।
(ख) समाप्यता के आधार पर (On the Basis of Exhaustibility):
- **नवीकरणीय संसाधन (Renewable Resources):** वे संसाधन जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत या पुनः उत्पन्न किया जा सकता है।
- उदाहरण: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल, वन, वन्यजीव।
- इनमें से कुछ (जैसे सौर ऊर्जा) 'सतत' या 'प्रवाह' वाले होते हैं, जबकि अन्य (जैसे वन) को पुनर्जनन की आवश्यकता होती है।
- **अनवीकरणीय संसाधन (Non-renewable Resources):** वे संसाधन जो लाखों वर्षों में बनते हैं। एक बार उपयोग होने के बाद ये दोबारा उपलब्ध नहीं होते या इनके बनने में बहुत लंबा समय लगता है।
- उदाहरण: जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोलियम), धात्विक खनिज।
- इनमें से कुछ धातुएँ (जैसे लोहा) पुनर्चक्रण योग्य हो सकती हैं, लेकिन जीवाश्म ईंधन नहीं।
(ग) स्वामित्व के आधार पर (On the Basis of Ownership):
- **व्यक्तिगत संसाधन (Individual Resources):** वे संसाधन जो व्यक्तियों के निजी स्वामित्व में होते हैं।
- उदाहरण: खेत, घर, कुएँ, तालाब, बाग, पशुधन।
- **सामुदायिक स्वामित्व वाले संसाधन (Community-Owned Resources):** वे संसाधन जो समुदाय के सभी सदस्यों के लिए सुलभ होते हैं।
- उदाहरण: चरागाह, श्मशान भूमि, तालाब, सार्वजनिक पार्क, खेल के मैदान।
- **राष्ट्रीय संसाधन (National Resources):** वे संसाधन जो राष्ट्र के स्वामित्व में होते हैं। सरकार के पास कानूनी अधिकार होता है कि वह निजी संपत्ति को भी सार्वजनिक हित में अधिग्रहित कर ले।
- उदाहरण: सभी खनिज, जल संसाधन, वन, वन्यजीव, राजनीतिक सीमाओं के भीतर की भूमि, तथा तटरेखा से 12 समुद्री मील (22.2 किमी) तक का महासागरीय क्षेत्र (प्रादेशिक जल)।
- **अंतर्राष्ट्रीय संसाधन (International Resources):** वे संसाधन जो किसी भी राष्ट्र के क्षेत्राधिकार में नहीं होते और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा विनियमित होते हैं।
- उदाहरण: विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone - EEZ) से परे 200 समुद्री मील से दूर का महासागरीय क्षेत्र (खुला महासागर)। ऐसे संसाधनों का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के बिना नहीं किया जा सकता।
(घ) विकास के स्तर के आधार पर (On the Basis of Status of Development):
- **संभाव्य संसाधन (Potential Resources):** वे संसाधन जो किसी क्षेत्र में मौजूद हैं लेकिन उनका उपयोग अभी तक नहीं किया गया है।
- उदाहरण: राजस्थान और गुजरात में सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा की अपार संभावनाएँ, लेकिन उनका पूरी तरह से विकास नहीं हुआ है।
- **विकसित संसाधन (Developed Resources):** वे संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया गया है और उनकी गुणवत्ता तथा मात्रा उपयोग के लिए निर्धारित की गई है। इनका विकास प्रौद्योगिकी और उनकी व्यवहार्यता पर निर्भर करता है।
- उदाहरण: कोयला, पेट्रोलियम के ज्ञात भंडार।
- **भंडार (Stock):** पर्यावरण में वे पदार्थ जिनमें मानव आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता है, लेकिन मनुष्यों के पास उन्हें उपयोग करने के लिए उपयुक्त तकनीक नहीं है।
- उदाहरण: जल (H₂O) हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का एक यौगिक है, जो ऊर्जा का समृद्ध स्रोत हो सकता है, लेकिन इस उद्देश्य के लिए इसका उपयोग करने की कोई तकनीक नहीं है।
- **संचित कोष (Reserves):** भंडार का ही उपसमूह जिसे उपलब्ध तकनीकी ज्ञान की सहायता से उपयोग में लाया जा सकता है, लेकिन इनका उपयोग भविष्य के लिए बचाकर रखा गया है।
- उदाहरण: नदियों में जल जिसे भविष्य में जलविद्युत उत्पादन के लिए उपयोग किया जा सकता है। वन जिन्हें आवश्यकता पड़ने पर काटा जा सकता है।
2. संसाधनों का विकास (Development of Resources)
- मनुष्यों ने संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग किया है, जिससे कई समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं:
- संसाधनों का ह्रास।
- संसाधनों का कुछ ही हाथों में जमाव (धनवानों के पास), जिससे समाज दो वर्गों (अमीर और गरीब) में बँट गया।
- संसाधनों के अत्यधिक दोहन से वैश्विक पारिस्थितिक संकट, जैसे ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन परत का क्षरण, पर्यावरणीय प्रदूषण और भूमि का निम्नीकरण।
सतत विकास (Sustainable Development)
- सतत विकास का अर्थ है कि विकास पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना होना चाहिए, और वर्तमान विकास भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता नहीं करना चाहिए।
रियो डी जेनेरियो पृथ्वी सम्मेलन, 1992 (Rio de Janeiro Earth Summit, 1992)
- यह जून 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित किया गया था।
- यह अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी सम्मेलन में 100 से अधिक देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया था।
- मुख्य उद्देश्य: पर्यावरणीय संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक विकास की समस्याओं का समाधान ढूँढना।
- एजेंडा 21 (Agenda 21) पर हस्ताक्षर किए गए, जिसका लक्ष्य सतत विकास प्राप्त करना था।
3. संसाधन नियोजन (Resource Planning)
- संसाधन नियोजन संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए एक व्यापक रूप से स्वीकृत रणनीति है।
- यह विशेष रूप से भारत जैसे देश में महत्वपूर्ण है, जहाँ संसाधनों की उपलब्धता में बहुत विविधता है।
- **भारत में संसाधन नियोजन के चरण:**
- देश के विभिन्न क्षेत्रों में संसाधनों की पहचान और सूची तैयार करना (सर्वेक्षण, मानचित्रण, गुणात्मक और मात्रात्मक अनुमान)।
- संसाधन विकास योजनाओं को लागू करने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी, कौशल और संस्थागत ढाँचा विकसित करना।
- संसाधन विकास योजनाओं को समग्र राष्ट्रीय विकास योजनाओं के साथ एकीकृत करना।
- **औपनिवेशिक काल और संसाधन:**
- औपनिवेशिक शासकों ने संसाधनों का शोषण किया और बेहतर तकनीक के कारण अन्य देशों पर श्रेष्ठता स्थापित की।
- संसाधनों की प्रचुरता के साथ-साथ प्रौद्योगिकी और मानव संसाधन की गुणवत्ता भी विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
संसाधनों का संरक्षण (Conservation of Resources)
- संसाधनों का संरक्षण किसी भी विकासात्मक गतिविधि के लिए महत्वपूर्ण है।
- गांधी जी के विचार: "हमारे पास हर किसी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त है, लेकिन किसी के लालच को पूरा करने के लिए नहीं।" उन्होंने संसाधनों के ह्रास के लिए लालची और स्वार्थी व्यक्तियों तथा आधुनिक तकनीक की शोषणकारी प्रकृति को जिम्मेदार ठहराया।
- 'स्मॉल इज़ ब्यूटीफुल' (Small is Beautiful) पुस्तक शुमाकर द्वारा 1974 में लिखी गई थी, जिसमें उन्होंने संसाधन संरक्षण के लिए गांधीवादी दर्शन प्रस्तुत किया।
- 'ब्रंटलैंड कमीशन रिपोर्ट' (1987) ने 'सतत विकास' की अवधारणा को पेश किया।
4. भूमि संसाधन (Land Resources)
- भूमि एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। यह विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक वनस्पतियों, वन्यजीवों, मानव जीवन, आर्थिक गतिविधियों, परिवहन और संचार प्रणालियों को समर्थन देती है।
भारत में भू-उपयोग पैटर्न (Land Utilisation Pattern in India)
- भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्र 3.28 मिलियन वर्ग किमी है।
- हालांकि, 93% भूमि उपयोग डेटा ही उपलब्ध है, क्योंकि पूर्वोत्तर राज्यों (असम को छोड़कर) और पाकिस्तान व चीन द्वारा अधिकृत क्षेत्रों का सर्वेक्षण नहीं किया गया है।
- **भू-उपयोग के प्रकार:**
- **वन:** भारत में वनों का प्रतिशत राष्ट्रीय वन नीति (1952) द्वारा निर्धारित 33% से कम है।
- **बंजर और परती भूमि:** वह भूमि जो कृषि के लिए उपलब्ध नहीं है (जैसे चट्टानी, शुष्क और रेगिस्तानी क्षेत्र)।
- **कृषि के लिए गैर-उपलब्ध भूमि:** बस्तियों, सड़कों, रेलवे, उद्योगों आदि में उपयोग होने वाली भूमि।
- **स्थायी चरागाह:** पशुओं के चरने के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि, जो कम हो रही है।
- **विविध वृक्ष फसलें और उपवन:** फलदार वृक्षों आदि से ढकी भूमि जो शुद्ध बोए गए क्षेत्र में शामिल नहीं है।
- **कृषियोग्य बंजर भूमि:** 5 साल से अधिक समय से बिना खेती वाली भूमि।
- **वर्तमान परती भूमि (Current Fallow):** वह भूमि जो एक कृषि वर्ष या उससे कम समय से बिना खेती के छोड़ी गई है।
- **पुरातन परती भूमि (Other than Current Fallow):** वह भूमि जो 1 से 5 कृषि वर्षों से बिना खेती के छोड़ी गई है।
- **शुद्ध बोया गया क्षेत्र (Net Sown Area):** वह क्षेत्र जहाँ एक वर्ष में एक या एक से अधिक बार फसलें उगाई जाती हैं। यह कुल बोए गए क्षेत्र का हिस्सा है।
भूमि निम्नीकरण और संरक्षण उपाय (Land Degradation and Conservation Measures)
- भारत में लगभग 130 मिलियन हेक्टेयर भूमि निम्नीकृत है।
- 28% निम्नीकृत भूमि वनों के अंतर्गत है।
- 56% जल-क्षरित है।
- बाकी लवणीय और क्षारीय है।
- **भूमि निम्नीकरण के कारण:**
- **वनों की कटाई:** खनन, विकास परियोजनाओं के लिए वनों का अत्यधिक विनाश।
- **अति-पशुचारण:** अत्यधिक चराई से मृदा आवरण का ह्रास।
- **खनन:** खनन स्थलों को उचित रूप से पुनर्स्थापित न करना।
- **सिंचाई:** अति-सिंचाई से मृदा में लवणता और क्षारीयता बढ़ना।
- **खनिज प्रसंस्करण:** चूना पत्थर, अभ्रक आदि के प्रसंस्करण से धूल का वायुमंडल में फैलना, जिससे मृदा की जल-अवरोधी क्षमता कम होती है।
- **औद्योगिक बहिःस्राव:** उद्योगों से निकलने वाला अपशिष्ट जल और ठोस कचरा भूमि और जल को प्रदूषित करता है।
- **भूमि संरक्षण के उपाय:**
- वनीकरण (अधिक पेड़ लगाना)।
- चरागाहों का उचित प्रबंधन।
- रेतीले टीलों का स्थिरीकरण (काँटेदार झाड़ियाँ लगाकर)।
- खनन गतिविधियों का नियंत्रण।
- औद्योगिक बहिःस्राव का उचित उपचार।
- शुष्क क्षेत्रों में शेल्टर बेल्ट (पेड़ों की कतारें) लगाना।
- कंटूर जुताई (Contours ploughing), सोपानी कृषि (terrace farming), स्ट्रिप क्रॉपिंग (strip cropping)।
5. मृदा एक संसाधन के रूप में (Soil as a Resource)
- मृदा सबसे महत्वपूर्ण नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन है। यह पौधों के विकास का माध्यम है और विभिन्न प्रकार के जीवमंडल को समर्थन देती है।
- मृदा बनने में लाखों वर्ष लगते हैं।
मृदा का वर्गीकरण (Classification of Soils)
(क) जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil):
- यह भारत में सबसे व्यापक और महत्वपूर्ण मृदा है।
- उत्तरी मैदानों में पाई जाती है (गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा लाई गई)।
- रेत, सिल्ट और चिकनी मिट्टी के विभिन्न अनुपातों से बनी होती है।
- **प्रकार:**
- **खादर (Khadar):** नई जलोढ़ मृदा, अधिक उपजाऊ, बारीक कण।
- **बांगर (Bangar):** पुरानी जलोढ़ मृदा, मोटे कण, कंकड़ होते हैं, कम उपजाऊ।
- पोटाश, फॉस्फोरिक एसिड और चूना से भरपूर। गन्ना, धान, गेहूँ और दालों की खेती के लिए आदर्श।
(ख) काली मृदा (Black Soil / Regur Soil):
- काले रंग की होती है और कपास की खेती के लिए आदर्श है, इसलिए इसे काली कपास मृदा भी कहते हैं।
- दक्कन पठार (महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात) के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में पाई जाती है।
- लावा प्रवाह से बनी होती है।
- चिकनी मिट्टी से बनी होती है, नमी धारण करने की क्षमता अधिक होती है।
- कैल्शियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम, पोटाश और चूना से भरपूर। फास्फोरस की मात्रा कम।
- गर्मियों में गहरी दरारें पड़ जाती हैं, जिससे वायु संचार अच्छा होता है। गीली होने पर चिपचिपी होती है।
(ग) लाल और पीली मृदा (Red and Yellow Soil):
- क्रिस्टलीय आग्नेय चट्टानों पर कम वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है।
- ओडिशा, छत्तीसगढ़, गंगा के मैदान के दक्षिणी हिस्सों और पश्चिमी घाट के पिडमोंट क्षेत्र में पाई जाती है।
- लौह अयस्क के प्रसार के कारण लाल रंग की होती है, जब यह हाइड्रेटेड रूप में होती है तो पीली दिखती है।
(घ) लैटराइट मृदा (Laterite Soil):
- उच्च तापमान और भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है।
- तेज लीचिंग (निक्षालन) का परिणाम।
- चाय, कॉफी और काजू के लिए उपयुक्त।
- कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और ओडिशा के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है।
(ङ) शुष्क मृदा (Arid Soil):
- रंग लाल से भूरा होता है।
- रेतीली और लवणीय होती है।
- उच्च तापमान के कारण वाष्पीकरण तेज होता है, जिससे नमी और ह्यूमस की कमी होती है।
- कंकड़ परत के कारण जल अंतःस्यंदन (पानी का रिसना) बाधित होता है।
- पश्चिमी राजस्थान में पाई जाती है। उचित सिंचाई से कृषि योग्य बनाई जा सकती है।
(च) वन मृदा (Forest Soil):
- पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
- पहाड़ी ढलानों पर ये मोटे कणों वाली होती है, जबकि निचली घाटियों में उपजाऊ गाद वाली होती है।
- घाटी के किनारों पर अम्लीय और कम ह्यूमस वाली होती है, लेकिन हिमपात वाले क्षेत्रों में अत्यधिक अम्लीय होती है।
मृदा अपरदन और संरक्षण (Soil Erosion and Conservation)
- **मृदा अपरदन:** मृदा आवरण का विनाश और उसके नीचे के पदार्थों का कटाव।
- **कारण:** वनों की कटाई, अति-पशुचारण, निर्माण, खनन, वायु, जल, हिमनद।
- **खड्ड (Gullies):** बहता जल मृत्तिका (चिकनी मिट्टी) युक्त मृदा को काटकर गहरी खड्डें बनाता है। ऐसी भूमि को 'उत्खात भूमि' (Badland) कहते हैं।
- **चादर अपरदन (Sheet Erosion):** जब जल व्यापक क्षेत्र से होकर ढलान के साथ बहता है, तो ऊपरी मृदा बह जाती है।
- **पवन अपरदन (Wind Erosion):** पवन द्वारा ढीली मृदा का उठाकर ले जाना।
- **मृदा संरक्षण के उपाय:**
- **कंटूर जुताई (Contour Ploughing):** ढलान के साथ जुताई करना जिससे जल के बहाव को कम किया जा सके।
- **सोपानी कृषि (Terrace Farming):** पहाड़ों पर सीढ़ीदार खेत बनाना जिससे अपरदन को नियंत्रित किया जा सके।
- **स्ट्रिप क्रॉपिंग (Strip Cropping):** फसलों के बीच घास की पट्टियाँ उगाना, जिससे पवन की गति कमजोर होती है।
- **शेल्टर बेल्ट (Shelter Belts):** पेड़ों की कतारें लगाना ताकि पवन के प्रभाव को कम किया जा सके।
- **वृक्षारोपण और अति-पशुचारण का नियंत्रण।**
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
-
लौह अयस्क किस प्रकार का संसाधन है?
(क) नवीकरणीय
(ख) जैव
(ग) प्रवाह
(घ) अनवीकरणीय(घ) अनवीकरणीय
-
ज्वारीय ऊर्जा किस प्रकार का संसाधन नहीं है?
(क) पुनःपूर्ति योग्य
(ख) अजैव
(ग) मानव-निर्मित
(घ) अचक्रीय(घ) अचक्रीय
-
पंजाब में भूमि निम्नीकरण का मुख्य कारण क्या है?
(क) गहन खेती
(ख) अधिक सिंचाई
(ग) वनों की कटाई
(घ) अति-पशुचारण(ख) अधिक सिंचाई
-
इनमें से किस प्रांत में सीढ़ीदार खेती की जाती है?
(क) पंजाब
(ख) उत्तर प्रदेश के मैदान
(ग) हरियाणा
(घ) उत्तराखंड(घ) उत्तराखंड
-
इनमें से किस राज्य में काली मृदा मुख्य रूप से पाई जाती है?
(क) जम्मू और कश्मीर
(ख) महाराष्ट्र
(ग) राजस्थान
(घ) झारखंड(ख) महाराष्ट्र
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें (Answer the following questions in about 30 words)
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तीन राज्यों के नाम बताइए जहाँ काली मृदा पाई जाती है और इस पर कौन सी मुख्य फसल उगाई जाती है?
काली मृदा मुख्य रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, और गुजरात में पाई जाती है। यह मृदा कपास की खेती के लिए बहुत उपयुक्त है, इसलिए इसे काली कपास मृदा भी कहते हैं।
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पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं में किस प्रकार की मृदा पाई जाती है? इस प्रकार की मृदा की तीन मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं में जलोढ़ मृदा पाई जाती है। इसकी तीन मुख्य विशेषताएँ हैं: यह बहुत उपजाऊ होती है, इसमें पोटाश, फॉस्फोरस और चूना प्रचुर मात्रा में होता है, और यह विभिन्न प्रकार की फसलों (जैसे धान, गेहूँ, गन्ना) के लिए उपयुक्त है।
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पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन को रोकने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए?
पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन को रोकने के लिए सोपानी कृषि (सीढ़ीदार खेत बनाना), समोच्च जुताई (कंटूर जुताई), और पेड़ों की पट्टियाँ लगाकर शेल्टर बेल्ट बनाना जैसे उपाय किए जाने चाहिए।
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जैव और अजैव संसाधन क्या होते हैं? कुछ उदाहरण दें।
**जैव संसाधन** वे हैं जो जीवमंडल से प्राप्त होते हैं और जिनमें जीवन होता है (जैसे मनुष्य, वनस्पति, जीव-जंतु)। **अजैव संसाधन** वे सभी वस्तुएँ जो निर्जीव वस्तुओं से बनी होती हैं (जैसे चट्टानें, धातुएँ, जल)।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दें (Answer the following questions in about 120 words)
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संसाधन नियोजन क्यों आवश्यक है?
संसाधन नियोजन (Resource Planning) संसाधनों के विवेकपूर्ण और न्यायसंगत उपयोग के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति है। यह कई कारणों से आवश्यक है:
- **संसाधनों की सीमित उपलब्धता:** अधिकांश संसाधन, विशेषकर अनवीकरणीय संसाधन, सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं। अनियोजित उपयोग से वे तेजी से समाप्त हो सकते हैं, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संकट पैदा हो सकता है।
- **सतत विकास के लिए:** संसाधन नियोजन सतत विकास के लिए अनिवार्य है, जिसका अर्थ है कि विकास पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना हो और भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं से समझौता न करे। यह वर्तमान और भविष्य की जरूरतों के बीच संतुलन बनाता है।
- **असमान वितरण:** संसाधनों का वितरण दुनिया और एक देश के भीतर भी असमान है। कुछ क्षेत्रों में कुछ संसाधन प्रचुर मात्रा में होते हैं, जबकि अन्य में उनकी कमी होती है। नियोजन से इन असमानताओं को दूर किया जा सकता है और संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित किया जा सकता है।
- **पर्यावरणीय निम्नीकरण रोकना:** संसाधनों के अत्यधिक और अनियोजित दोहन से गंभीर पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जैसे ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण, भूमि निम्नीकरण और पारिस्थितिक असंतुलन। नियोजन इन समस्याओं को कम करने में मदद करता है।
- **अंतर-पीढ़ीगत समानता:** संसाधन नियोजन यह सुनिश्चित करता है कि वर्तमान पीढ़ी अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते हुए भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी पर्याप्त संसाधन छोड़े। यह सभी के लिए जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने में सहायक है।
- **क्षेत्रीय विकास में संतुलन:** भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, कुछ राज्यों में विशिष्ट संसाधनों की प्रचुरता है, जबकि कुछ में उनकी कमी। नियोजन एक संतुलित क्षेत्रीय विकास सुनिश्चित करता है, जिससे कोई भी क्षेत्र संसाधनों की कमी के कारण पिछड़ा न रहे।
संक्षेप में, संसाधन नियोजन हमें संसाधनों का कुशलतापूर्वक, न्यायसंगत और पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार तरीके से उपयोग करने में मदद करता है, जिससे दीर्घकालिक समृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित होती है। -
भूमि निम्नीकरण क्या है? इसके मुख्य कारण क्या हैं? इसके संरक्षण के उपाय भी बताइए।
**भूमि निम्नीकरण (Land Degradation):**भूमि निम्नीकरण से तात्पर्य भूमि की उर्वरता, उत्पादकता और पारिस्थितिक संतुलन में कमी से है, जिससे वह कृषि या अन्य उद्देश्यों के लिए कम उपयोगी हो जाती है। यह एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है जो मानव गतिविधियों और प्राकृतिक प्रक्रियाओं दोनों के कारण होती है। भारत में लगभग 130 मिलियन हेक्टेयर भूमि निम्नीकृत है।**मुख्य कारण:**
- **वनों की कटाई:** खनन, शहरीकरण, कृषि विस्तार और विकास परियोजनाओं के लिए वनों का अत्यधिक विनाश भूमि के कटाव और उसके नीचे के पदार्थों के अपरदन का प्रमुख कारण है।
- **अति-पशुचारण (Over-grazing):** पशुओं द्वारा अत्यधिक चराई से वनस्पति आवरण हट जाता है, जिससे मृदा सीधे पवन और जल के संपर्क में आती है और उसका अपरदन तेजी से होता है। गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में यह एक मुख्य समस्या है।
- **खनन (Mining):** खनन स्थलों पर खुदाई के बाद उचित पुनर्स्थापन न होने से भूमि पर गहरे निशान और अपशिष्ट के ढेर बन जाते हैं, जो भूमि को अनुपयोगी बना देते हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और मध्य प्रदेश में खनन भूमि निम्नीकरण का एक महत्वपूर्ण कारण है।
- **अति-सिंचाई (Over-irrigation):** पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में अत्यधिक सिंचाई से भूमि में जलजमाव और लवणता तथा क्षारीयता (salinity and alkalinity) बढ़ जाती है, जिससे भूमि बंजर हो जाती है।
- **खनिज प्रसंस्करण (Mineral Processing):** चूना पत्थर के पीसने (सीमेंट उद्योग) और अभ्रक (mica) के टुकड़ों को पीसने (मिट्टी के बर्तनों के उद्योग) से निकलने वाली धूल वायुमंडल में फैल जाती है। जब यह धूल भूमि पर जम जाती है, तो यह मृदा की जल-अंतःस्यंदन (पानी के रिसने) की क्षमता को बाधित करती है।
- **औद्योगिक बहिःस्राव और अपशिष्ट:** उद्योगों से निकलने वाला अपशिष्ट जल और ठोस कचरा भूमि और जल को प्रदूषित करता है, जिससे भूमि निम्नीकृत होती है।
**संरक्षण के उपाय:**- **वनीकरण (Afforestation):** अधिक से अधिक पेड़ लगाना और वन आवरण को बढ़ाना मृदा अपरदन को रोकने और भूमि की गुणवत्ता में सुधार करने का सबसे प्रभावी तरीका है।
- **चरागाहों का उचित प्रबंधन:** पशुचारण को नियंत्रित करना और चरागाहों का वैज्ञानिक प्रबंधन मृदा आवरण के क्षरण को रोक सकता है।
- **रेतीले टीलों का स्थिरीकरण:** शुष्क क्षेत्रों में रेतीले टीलों पर काँटेदार झाड़ियाँ लगाकर उन्हें स्थिर करना चाहिए ताकि पवन अपरदन कम हो।
- **खनन गतिविधियों का नियंत्रण और पुनर्स्थापन:** खनन के बाद भूमि का उचित पुनर्स्थापन और उत्खनन के बाद के स्थलों को भरना।
- **औद्योगिक अपशिष्ट का उपचार:** औद्योगिक बहिःस्राव को उपचारित करके ही छोड़ा जाना चाहिए ताकि भूमि और जल प्रदूषण को रोका जा सके।
- **शेल्टर बेल्ट (Shelter Belts):** विशेषकर शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में फसलों के चारों ओर पेड़ों की कतारें लगाना, जो पवन की गति को कम करती हैं और मृदा अपरदन को रोकती हैं।
- **कृषि विधियों में सुधार:** कंटूर जुताई (Contours ploughing), सोपानी कृषि (terrace farming), स्ट्रिप क्रॉपिंग (strip cropping) जैसी विधियों का उपयोग करना।
ये उपाय भूमि निम्नीकरण को कम करने और हमारे महत्वपूर्ण भूमि संसाधनों के दीर्घकालिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं।
(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। प्रकटन भिन्न हो सकता है।)