अध्याय 1: संसाधन और विकास (Resources and Development)

परिचय

कक्षा 10 भूगोल का यह अध्याय **'संसाधन और विकास'** हमें यह समझने में मदद करता है कि संसाधन क्या होते हैं, वे हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण हैं, उनका वर्गीकरण कैसे किया जाता है और सतत विकास के लिए उनका प्रबंधन क्यों आवश्यक है। यह अध्याय विभिन्न प्रकार के संसाधनों, भूमि संसाधनों और मृदा (मिट्टी) के प्रकारों पर विस्तृत जानकारी प्रदान करता है, साथ ही उनके संरक्षण की रणनीतियों पर भी प्रकाश डालता है।

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1. संसाधन क्या हैं? (What are Resources?)

संसाधनों का वर्गीकरण (Classification of Resources)

(क) उत्पत्ति के आधार पर (On the Basis of Origin):

(ख) समाप्यता के आधार पर (On the Basis of Exhaustibility):

(ग) स्वामित्व के आधार पर (On the Basis of Ownership):

(घ) विकास के स्तर के आधार पर (On the Basis of Status of Development):

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2. संसाधनों का विकास (Development of Resources)

सतत विकास (Sustainable Development)

रियो डी जेनेरियो पृथ्वी सम्मेलन, 1992 (Rio de Janeiro Earth Summit, 1992)

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3. संसाधन नियोजन (Resource Planning)

संसाधनों का संरक्षण (Conservation of Resources)

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4. भूमि संसाधन (Land Resources)

भारत में भू-उपयोग पैटर्न (Land Utilisation Pattern in India)

भूमि निम्नीकरण और संरक्षण उपाय (Land Degradation and Conservation Measures)

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5. मृदा एक संसाधन के रूप में (Soil as a Resource)

मृदा का वर्गीकरण (Classification of Soils)

(क) जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil):

(ख) काली मृदा (Black Soil / Regur Soil):

(ग) लाल और पीली मृदा (Red and Yellow Soil):

(घ) लैटराइट मृदा (Laterite Soil):

(ङ) शुष्क मृदा (Arid Soil):

(च) वन मृदा (Forest Soil):

मृदा अपरदन और संरक्षण (Soil Erosion and Conservation)

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

  1. लौह अयस्क किस प्रकार का संसाधन है?
    (क) नवीकरणीय
    (ख) जैव
    (ग) प्रवाह
    (घ) अनवीकरणीय

    (घ) अनवीकरणीय

  2. ज्वारीय ऊर्जा किस प्रकार का संसाधन नहीं है?
    (क) पुनःपूर्ति योग्य
    (ख) अजैव
    (ग) मानव-निर्मित
    (घ) अचक्रीय

    (घ) अचक्रीय

  3. पंजाब में भूमि निम्नीकरण का मुख्य कारण क्या है?
    (क) गहन खेती
    (ख) अधिक सिंचाई
    (ग) वनों की कटाई
    (घ) अति-पशुचारण

    (ख) अधिक सिंचाई

  4. इनमें से किस प्रांत में सीढ़ीदार खेती की जाती है?
    (क) पंजाब
    (ख) उत्तर प्रदेश के मैदान
    (ग) हरियाणा
    (घ) उत्तराखंड

    (घ) उत्तराखंड

  5. इनमें से किस राज्य में काली मृदा मुख्य रूप से पाई जाती है?
    (क) जम्मू और कश्मीर
    (ख) महाराष्ट्र
    (ग) राजस्थान
    (घ) झारखंड

    (ख) महाराष्ट्र

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें (Answer the following questions in about 30 words)

  1. तीन राज्यों के नाम बताइए जहाँ काली मृदा पाई जाती है और इस पर कौन सी मुख्य फसल उगाई जाती है?

    काली मृदा मुख्य रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, और गुजरात में पाई जाती है। यह मृदा कपास की खेती के लिए बहुत उपयुक्त है, इसलिए इसे काली कपास मृदा भी कहते हैं।

  2. पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं में किस प्रकार की मृदा पाई जाती है? इस प्रकार की मृदा की तीन मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

    पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं में जलोढ़ मृदा पाई जाती है। इसकी तीन मुख्य विशेषताएँ हैं: यह बहुत उपजाऊ होती है, इसमें पोटाश, फॉस्फोरस और चूना प्रचुर मात्रा में होता है, और यह विभिन्न प्रकार की फसलों (जैसे धान, गेहूँ, गन्ना) के लिए उपयुक्त है।

  3. पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन को रोकने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए?

    पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन को रोकने के लिए सोपानी कृषि (सीढ़ीदार खेत बनाना), समोच्च जुताई (कंटूर जुताई), और पेड़ों की पट्टियाँ लगाकर शेल्टर बेल्ट बनाना जैसे उपाय किए जाने चाहिए।

  4. जैव और अजैव संसाधन क्या होते हैं? कुछ उदाहरण दें।

    **जैव संसाधन** वे हैं जो जीवमंडल से प्राप्त होते हैं और जिनमें जीवन होता है (जैसे मनुष्य, वनस्पति, जीव-जंतु)। **अजैव संसाधन** वे सभी वस्तुएँ जो निर्जीव वस्तुओं से बनी होती हैं (जैसे चट्टानें, धातुएँ, जल)।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दें (Answer the following questions in about 120 words)

  1. संसाधन नियोजन क्यों आवश्यक है?

    संसाधन नियोजन (Resource Planning) संसाधनों के विवेकपूर्ण और न्यायसंगत उपयोग के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति है। यह कई कारणों से आवश्यक है:
    • **संसाधनों की सीमित उपलब्धता:** अधिकांश संसाधन, विशेषकर अनवीकरणीय संसाधन, सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं। अनियोजित उपयोग से वे तेजी से समाप्त हो सकते हैं, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संकट पैदा हो सकता है।
    • **सतत विकास के लिए:** संसाधन नियोजन सतत विकास के लिए अनिवार्य है, जिसका अर्थ है कि विकास पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना हो और भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं से समझौता न करे। यह वर्तमान और भविष्य की जरूरतों के बीच संतुलन बनाता है।
    • **असमान वितरण:** संसाधनों का वितरण दुनिया और एक देश के भीतर भी असमान है। कुछ क्षेत्रों में कुछ संसाधन प्रचुर मात्रा में होते हैं, जबकि अन्य में उनकी कमी होती है। नियोजन से इन असमानताओं को दूर किया जा सकता है और संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित किया जा सकता है।
    • **पर्यावरणीय निम्नीकरण रोकना:** संसाधनों के अत्यधिक और अनियोजित दोहन से गंभीर पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जैसे ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण, भूमि निम्नीकरण और पारिस्थितिक असंतुलन। नियोजन इन समस्याओं को कम करने में मदद करता है।
    • **अंतर-पीढ़ीगत समानता:** संसाधन नियोजन यह सुनिश्चित करता है कि वर्तमान पीढ़ी अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते हुए भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी पर्याप्त संसाधन छोड़े। यह सभी के लिए जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने में सहायक है।
    • **क्षेत्रीय विकास में संतुलन:** भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, कुछ राज्यों में विशिष्ट संसाधनों की प्रचुरता है, जबकि कुछ में उनकी कमी। नियोजन एक संतुलित क्षेत्रीय विकास सुनिश्चित करता है, जिससे कोई भी क्षेत्र संसाधनों की कमी के कारण पिछड़ा न रहे।
    संक्षेप में, संसाधन नियोजन हमें संसाधनों का कुशलतापूर्वक, न्यायसंगत और पर्यावरणीय रूप से जिम्मेदार तरीके से उपयोग करने में मदद करता है, जिससे दीर्घकालिक समृद्धि और स्थिरता सुनिश्चित होती है।

  2. भूमि निम्नीकरण क्या है? इसके मुख्य कारण क्या हैं? इसके संरक्षण के उपाय भी बताइए।

    **भूमि निम्नीकरण (Land Degradation):**
    भूमि निम्नीकरण से तात्पर्य भूमि की उर्वरता, उत्पादकता और पारिस्थितिक संतुलन में कमी से है, जिससे वह कृषि या अन्य उद्देश्यों के लिए कम उपयोगी हो जाती है। यह एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है जो मानव गतिविधियों और प्राकृतिक प्रक्रियाओं दोनों के कारण होती है। भारत में लगभग 130 मिलियन हेक्टेयर भूमि निम्नीकृत है।
    **मुख्य कारण:**
    1. **वनों की कटाई:** खनन, शहरीकरण, कृषि विस्तार और विकास परियोजनाओं के लिए वनों का अत्यधिक विनाश भूमि के कटाव और उसके नीचे के पदार्थों के अपरदन का प्रमुख कारण है।
    2. **अति-पशुचारण (Over-grazing):** पशुओं द्वारा अत्यधिक चराई से वनस्पति आवरण हट जाता है, जिससे मृदा सीधे पवन और जल के संपर्क में आती है और उसका अपरदन तेजी से होता है। गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में यह एक मुख्य समस्या है।
    3. **खनन (Mining):** खनन स्थलों पर खुदाई के बाद उचित पुनर्स्थापन न होने से भूमि पर गहरे निशान और अपशिष्ट के ढेर बन जाते हैं, जो भूमि को अनुपयोगी बना देते हैं। झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और मध्य प्रदेश में खनन भूमि निम्नीकरण का एक महत्वपूर्ण कारण है।
    4. **अति-सिंचाई (Over-irrigation):** पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में अत्यधिक सिंचाई से भूमि में जलजमाव और लवणता तथा क्षारीयता (salinity and alkalinity) बढ़ जाती है, जिससे भूमि बंजर हो जाती है।
    5. **खनिज प्रसंस्करण (Mineral Processing):** चूना पत्थर के पीसने (सीमेंट उद्योग) और अभ्रक (mica) के टुकड़ों को पीसने (मिट्टी के बर्तनों के उद्योग) से निकलने वाली धूल वायुमंडल में फैल जाती है। जब यह धूल भूमि पर जम जाती है, तो यह मृदा की जल-अंतःस्यंदन (पानी के रिसने) की क्षमता को बाधित करती है।
    6. **औद्योगिक बहिःस्राव और अपशिष्ट:** उद्योगों से निकलने वाला अपशिष्ट जल और ठोस कचरा भूमि और जल को प्रदूषित करता है, जिससे भूमि निम्नीकृत होती है।
    **संरक्षण के उपाय:**
    1. **वनीकरण (Afforestation):** अधिक से अधिक पेड़ लगाना और वन आवरण को बढ़ाना मृदा अपरदन को रोकने और भूमि की गुणवत्ता में सुधार करने का सबसे प्रभावी तरीका है।
    2. **चरागाहों का उचित प्रबंधन:** पशुचारण को नियंत्रित करना और चरागाहों का वैज्ञानिक प्रबंधन मृदा आवरण के क्षरण को रोक सकता है।
    3. **रेतीले टीलों का स्थिरीकरण:** शुष्क क्षेत्रों में रेतीले टीलों पर काँटेदार झाड़ियाँ लगाकर उन्हें स्थिर करना चाहिए ताकि पवन अपरदन कम हो।
    4. **खनन गतिविधियों का नियंत्रण और पुनर्स्थापन:** खनन के बाद भूमि का उचित पुनर्स्थापन और उत्खनन के बाद के स्थलों को भरना।
    5. **औद्योगिक अपशिष्ट का उपचार:** औद्योगिक बहिःस्राव को उपचारित करके ही छोड़ा जाना चाहिए ताकि भूमि और जल प्रदूषण को रोका जा सके।
    6. **शेल्टर बेल्ट (Shelter Belts):** विशेषकर शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में फसलों के चारों ओर पेड़ों की कतारें लगाना, जो पवन की गति को कम करती हैं और मृदा अपरदन को रोकती हैं।
    7. **कृषि विधियों में सुधार:** कंटूर जुताई (Contours ploughing), सोपानी कृषि (terrace farming), स्ट्रिप क्रॉपिंग (strip cropping) जैसी विधियों का उपयोग करना।
    ये उपाय भूमि निम्नीकरण को कम करने और हमारे महत्वपूर्ण भूमि संसाधनों के दीर्घकालिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं।

(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। प्रकटन भिन्न हो सकता है।)