अध्याय 4: वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था (Globalization and the Indian Economy)
परिचय
कक्षा 10 अर्थशास्त्र का अध्याय **'वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था'** यह समझाता है कि कैसे वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाएँ एक-दूसरे से जुड़ रही हैं। यह अध्याय बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) की भूमिका, विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश के प्रभावों, और वैश्वीकरण को संभव बनाने वाले कारकों पर प्रकाश डालता है। साथ ही, यह भारत के संदर्भ में वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों का विश्लेषण करता है, और निष्पक्ष वैश्वीकरण की आवश्यकता पर जोर देता है।
---1. उत्पादन में फैलाव: बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) (Production Spread: Multinational Corporations - MNCs)
पिछली शताब्दी के अंत तक, उत्पादन मुख्य रूप से देश की सीमाओं के भीतर ही होता था। लेकिन अब, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) उत्पादन को वैश्विक स्तर पर फैला रही हैं।
1.1. बहुराष्ट्रीय कंपनी (MNC) क्या है? (What is a Multinational Corporation - MNC?)
- एक बहुराष्ट्रीय कंपनी (MNC) वह कंपनी है जो एक से अधिक देशों में उत्पादन को नियंत्रित या उसका स्वामित्व करती है।
- ये कंपनियाँ उन स्थानों पर उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करती हैं जहाँ उन्हें सस्ता श्रम, सस्ता कच्चा माल, और अन्य उत्पादन लागतों में कमी का लाभ मिलता है।
- MNCs न केवल माल का उत्पादन करती हैं बल्कि सेवाएँ भी प्रदान करती हैं (जैसे कॉल सेंटर)।
1.2. MNCs का उत्पादन और निवेश (MNCs' Production and Investment)
- MNCs उत्पादन लागत कम करने और अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से काम करती हैं।
- **विदेशी निवेश (Foreign Investment):** MNCs द्वारा अन्य देशों में किए गए निवेश को विदेशी निवेश कहते हैं। ये निवेश परिसंपत्तियों, जैसे भूमि, भवन, मशीन और अन्य उपकरण खरीदने के लिए किए जाते हैं।
- ये कंपनियाँ स्थानीय कंपनियों के साथ साझेदारी कर सकती हैं, स्थानीय कंपनियों को खरीद सकती हैं, या सीधे अपनी नई उत्पादन इकाइयाँ स्थापित कर सकती हैं।
1.3. MNCs द्वारा उत्पादन को नियंत्रित करने के तरीके (Ways MNCs Control Production)
- **स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त उत्पादन:** MNCs कभी-कभी स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन करती हैं। इससे स्थानीय कंपनी को नई तकनीक और धन मिलता है, जबकि MNC को स्थानीय बाजार का ज्ञान और स्थापित वितरण नेटवर्क का लाभ मिलता है।
- **स्थानीय कंपनियों को खरीदना:** बड़ी MNCs अक्सर छोटे उत्पादकों को खरीदने के लिए धन का उपयोग करती हैं।
- **बड़े ऑर्डर देना:** MNCs छोटे उत्पादकों को उत्पादन के बड़े ऑर्डर देती हैं, जैसे कपड़े, जूते, खेल के सामान। इससे इन उत्पादकों को अपनी कीमतों को नियंत्रित करने का अवसर मिलता है।
- **ब्रांडिंग और आपूर्ति श्रृंखला:** MNCs अपने ब्रांड और गुणवत्ता मानकों का उपयोग करके पूरी उत्पादन प्रक्रिया को नियंत्रित करती हैं, भले ही उत्पादन विभिन्न देशों में छोटे उत्पादकों द्वारा किया जा रहा हो।
2. विभिन्न देशों को आपस में जोड़ना (Interlinking Various Countries)
MNCs के उदय ने विभिन्न देशों के बीच उत्पादन और बाजार को आपस में जोड़ दिया है।
2.1. विदेशी व्यापार और बाज़ारों का एकीकरण (Foreign Trade and Integration of Markets)
- **विदेशी व्यापार (Foreign Trade):** विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान।
- विदेशी व्यापार उत्पादकों को अपने घरेलू बाजारों से बाहर, विदेशी बाजारों में पहुंचने का अवसर प्रदान करता है।
- यह खरीदारों को अधिक विकल्प और विभिन्न देशों से गुणवत्तापूर्ण उत्पाद खरीदने का अवसर देता है।
- विदेशी व्यापार विभिन्न देशों के बाजारों को जोड़ता है और उन्हें एकीकृत करता है, जिससे वस्तुओं का आदान-प्रदान आसान हो जाता है।
3. वैश्वीकरण क्या है? (What is Globalisation?)
वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा विश्व अर्थव्यवस्थाएँ एक-दूसरे के साथ अधिक एकीकृत और परस्पर निर्भर हो जाती हैं।
3.1. वैश्वीकरण की परिभाषा (Definition of Globalisation)
- वैश्वीकरण विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, निवेशों, और प्रौद्योगिकी के तीव्र एकीकरण या अंतर्संबंध की प्रक्रिया है।
- यह दुनिया भर में लोगों की आवाजाही को भी संदर्भित करता है।
- MNCs वैश्वीकरण की प्रक्रिया में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।
4. वैश्वीकरण को संभव बनाने वाले कारक (Factors Enabling Globalisation)
कुछ महत्वपूर्ण कारक हैं जिन्होंने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को तेज किया है:
4.1. प्रौद्योगिकी (Technology)
- **परिवहन प्रौद्योगिकी में सुधार:** तेज और सस्ते परिवहन ने लंबी दूरी पर सामानों को पहुंचाना आसान बना दिया है। कंटेनर शिपिंग एक बड़ा उदाहरण है।
- **सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT):** इंटरनेट, मोबाइल फोन, टेलीग्राफ, फैक्स आदि ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों के बीच संचार को अविश्वसनीय रूप से तेज और सस्ता बना दिया है।
- यह सेवाओं के व्यापार में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है (जैसे कॉल सेंटर, डेटा एंट्री)।
4.2. व्यापार और निवेश नीतियों का उदारीकरण (Liberalisation of Trade and Investment Policies)
- **व्यापार अवरोध (Trade Barriers):** व्यापार पर लगाए गए प्रतिबंध या अवरोध, जैसे आयात पर कर (टैरिफ) या कोटा। ये देश में घरेलू उत्पादन की रक्षा के लिए लगाए जाते हैं।
- **उदारीकरण (Liberalisation):** व्यापार अवरोधों को हटाना या कम करना। सरकारें विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश पर से प्रतिबंध हटाती हैं।
- उदारीकरण ने विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने और व्यापार करने की अनुमति दी है, और भारतीय कंपनियों को भी विदेशों में व्यापार करने का अवसर मिला है।
- **भारत में उदारीकरण (1991):** 1991 में भारत सरकार ने विदेशी व्यापार और निवेश पर से कई प्रतिबंध हटा दिए। इसका मुख्य कारण प्रतिस्पर्धा बढ़ाना और भारतीय उत्पादकों के प्रदर्शन में सुधार करना था।
5. विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation - WTO)
वैश्वीकरण को बढ़ावा देने में विश्व व्यापार संगठन (WTO) की महत्वपूर्ण भूमिका है।
5.1. WTO का उद्देश्य (Objective of WTO)
- WTO एक ऐसा संगठन है जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को **उदार बनाना** है।
- यह सुनिश्चित करना चाहता है कि व्यापारिक अवरोध न्यूनतम हों और व्यापार सभी देशों के लिए खुला हो।
- WTO सदस्य देशों के बीच व्यापार संबंधी विवादों को सुलझाने के लिए नियम बनाता है।
5.2. WTO की भूमिका और आलोचना (Role and Criticism of WTO)
- WTO के नियम विकसित देशों के पक्ष में होते हैं, क्योंकि उन्हें अपने बाजारों को खोलने के लिए बहुत कम दबाव का सामना करना पड़ा है, जबकि विकासशील देशों को व्यापार अवरोध हटाने के लिए मजबूर किया गया है।
- कृषि व्यापार के संबंध में, विकसित देशों ने अपने किसानों को भारी सब्सिडी देना जारी रखा है, जिससे विकासशील देशों के किसानों के लिए प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो गया है।
6. भारत में वैश्वीकरण का प्रभाव (Impact of Globalisation in India)
वैश्वीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर मिश्रित प्रभाव डाले हैं, कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक।
6.1. सकारात्मक प्रभाव (Positive Impacts)
- **उपभोक्ताओं के लिए लाभ:**
- बाजार में वस्तुओं और सेवाओं की अधिक विविधता और बेहतर गुणवत्ता।
- प्रतिस्पर्धा के कारण उत्पादों की कीमतें कम हुईं, जिससे उपभोक्ताओं को अधिक क्रय शक्ति मिली।
- **भारतीय कंपनियों के लिए लाभ:**
- कुछ बड़ी भारतीय कंपनियों को MNCs के साथ प्रतिस्पर्धा करने और विदेशों में निवेश करने का अवसर मिला (जैसे टाटा मोटर्स, इंफोसिस, रैनबैक्सी)।
- वैश्वीकरण ने नई प्रौद्योगिकियों और उत्पादन विधियों तक पहुंच प्रदान की।
- **रोज़गार के अवसर:**
- नए उद्योगों और सेवाओं (जैसे आईटी, कॉल सेंटर, ऑटोमोबाइल) में रोज़गार के अवसर सृजित हुए।
- **निवेश में वृद्धि:**
- विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि हुई, जिससे देश में पूंजी और तकनीक आई।
6.2. नकारात्मक प्रभाव (Negative Impacts)
- **छोटे उत्पादकों के लिए चुनौती:**
- भारतीय बाजार में सस्ती विदेशी वस्तुओं की बाढ़ आने से छोटे उत्पादकों को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।
- कई छोटे उद्योगों (जैसे खिलौने, बैटरी, कैपेसिटर, डेयरी उत्पाद) को बंद करना पड़ा, जिससे रोज़गार का नुकसान हुआ।
- **असुरक्षित रोज़गार:**
- MNCs और भारतीय कंपनियों ने भी लागत कम करने के लिए श्रमिकों को अनियमित आधार पर (अस्थायी, कम वेतन पर) नियुक्त करना शुरू कर दिया, जिससे नौकरी की सुरक्षा और श्रमिकों के अधिकार प्रभावित हुए।
- असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
- **असमान विकास:**
- वैश्वीकरण का लाभ मुख्य रूप से बड़े और कुशल उत्पादकों तथा शिक्षित शहरी उपभोक्ताओं को मिला है।
- ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में, साथ ही कृषि क्षेत्र में इसका लाभ कम या नकारात्मक रहा है।
- **कृषि क्षेत्र पर प्रभाव:**
- WTO नियमों और विकसित देशों की सब्सिडी के कारण भारतीय किसानों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने में मुश्किल हुई।
7. निष्पक्ष वैश्वीकरण के लिए संघर्ष (The Struggle for a Fair Globalisation)
वैश्वीकरण ने निश्चित रूप से लाभ प्रदान किए हैं, लेकिन ये लाभ समान रूप से वितरित नहीं हुए हैं। सभी के लिए लाभ सुनिश्चित करने के लिए निष्पक्ष वैश्वीकरण की आवश्यकता है।
7.1. निष्पक्ष वैश्वीकरण क्या है? (What is Fair Globalisation?)
- निष्पक्ष वैश्वीकरण का अर्थ है कि वैश्वीकरण के लाभ सभी लोगों को मिलें, न कि केवल धनी और शक्तिशाली लोगों को।
- यह सुनिश्चित करना है कि श्रमिकों के अधिकार सुरक्षित हों, पर्यावरण की रक्षा हो, और छोटे उत्पादकों को पर्याप्त अवसर मिलें।
7.2. निष्पक्ष वैश्वीकरण के लिए कदम (Steps Towards Fair Globalisation)
- **सरकारी नीतियाँ:** सरकार को अपनी नीतियों में सुधार करना चाहिए ताकि वह छोटे उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा से बचाने में मदद कर सके और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा कर सके (जैसे श्रम कानूनों का सख्त प्रवर्तन)।
- **व्यापार अवरोधों को तर्कसंगत बनाना:** विकासशील देशों को अपने कमजोर उद्योगों की रक्षा के लिए कुछ व्यापार अवरोधों को बनाए रखने की अनुमति दी जानी चाहिए।
- **श्रमिकों के अधिकार:** श्रमिकों को संघ बनाने और अपने अधिकारों के लिए बातचीत करने की अनुमति मिलनी चाहिए।
- **विश्व व्यापार संगठन (WTO) में सुधार:** WTO को विकसित देशों के पक्ष में झुकाव कम करना चाहिए और विकासशील देशों को समान अवसर प्रदान करने चाहिए।
- **जन आंदोलन और दबाव:** जन संगठन और आंदोलन निष्पक्ष वैश्वीकरण के लिए सरकारों और MNCs पर दबाव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
संक्षेप में, वैश्वीकरण एक शक्तिशाली प्रक्रिया है जिसने विश्व अर्थव्यवस्था को बदल दिया है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़े हैं। चुनौती यह है कि वैश्वीकरण को इस तरह से प्रबंधित किया जाए जिससे यह सभी के लिए अधिक समावेशी और न्यायसंगत हो सके।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
अभ्यास के प्रश्न
-
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) किस प्रकार उत्पादन को विभिन्न देशों में फैलाती हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (Multinational Corporations - MNCs) वे कंपनियाँ हैं जो एक से अधिक देशों में उत्पादन का स्वामित्व या नियंत्रण करती हैं। वे उत्पादन लागत कम करने और अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से उत्पादन को विश्व स्तर पर फैलाती हैं। वे ऐसा कई तरीकों से करती हैं:
1. **निवेश और उत्पादन इकाइयों की स्थापना:**- MNCs उन देशों में अपनी उत्पादन इकाइयाँ (फैक्ट्री, कार्यालय) स्थापित करती हैं जहाँ उन्हें सस्ता श्रम (जैसे चीन, भारत), सस्ता कच्चा माल, और अन्य उत्पादन लागतों (जैसे बिजली) में कमी का लाभ मिलता है। वे बाजार की निकटता और सरकार की नीतियों पर भी विचार करती हैं।
- **उदाहरण:** एक अमेरिकी MNC नाइके (Nike) अपने जूते बनाने के लिए चीन और वियतनाम में कारखाने स्थापित करती है, क्योंकि वहाँ श्रम लागत कम है। वे तैयार माल को दुनिया भर के बाजारों में भेजती हैं।
- कभी-कभी MNCs उत्पादन के लिए स्थानीय कंपनियों के साथ साझेदारी करती हैं। इससे MNC को स्थानीय कंपनी के स्थापित वितरण नेटवर्क, बाजार के ज्ञान और स्थानीय कानूनों की जानकारी का लाभ मिलता है। वहीं, स्थानीय कंपनी को MNC से नई तकनीक, उत्पादन के तरीके और निवेश के लिए धन मिलता है।
- **उदाहरण:** भारत में मारुति उद्योग लिमिटेड (अब मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड) ने जापान की सुजुकी मोटर्स के साथ मिलकर काम करना शुरू किया, जिससे भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार में बड़े पैमाने पर कारों का उत्पादन संभव हुआ।
- बड़ी और शक्तिशाली MNCs अक्सर अन्य देशों में छोटी स्थानीय कंपनियों को खरीद लेती हैं। ऐसा करने से उन्हें तुरंत एक स्थापित उत्पादन इकाई, ब्रांड और बाजार तक पहुंच मिल जाती है।
- **उदाहरण:** पार्ले फूड्स (जिसका 'थम्स अप' एक लोकप्रिय ब्रांड था) को अमेरिकी MNC कोका-कोला द्वारा भारत में खरीदा गया था।
- कुछ मामलों में, MNCs सीधे उत्पादन नहीं करतीं, बल्कि वे दुनिया भर के छोटे उत्पादकों को उत्पादन के बड़े ऑर्डर देती हैं। ये उत्पादक फिर MNC के ब्रांड नाम के तहत निर्धारित गुणवत्ता मानकों के अनुसार उत्पादन करते हैं।
- **उदाहरण:** कपड़े, जूते, खेल के सामान और खिलौने बनाने वाली कई MNCs ऐसा करती हैं। भारत में छोटे गारमेंट निर्माता अक्सर विदेशी ब्रांडों के लिए कपड़े बनाते हैं। MNCs अपने ब्रांड नाम पर बेचकर और गुणवत्ता नियंत्रण करके पूरी उत्पादन प्रक्रिया को नियंत्रित करती हैं।
- MNCs उत्पादन प्रक्रिया को टुकड़ों में बांट देती हैं और प्रत्येक टुकड़े को उस देश में पूरा करवाती हैं जहाँ यह सबसे सस्ता और कुशल हो।
- **उदाहरण:** एक कंप्यूटर कंपनी अपने घटक चीन में बना सकती है, सॉफ्टवेयर भारत में विकसित करवा सकती है, डेटा एंट्री पूर्वी यूरोप में करवा सकती है, और तैयार उत्पाद को दुनिया भर में बेच सकती है। कॉल सेंटर जैसी सेवाएँ भारत जैसे देशों से प्रदान की जाती हैं क्योंकि यहाँ अंग्रेजी बोलने वाले और कुशल श्रम सस्ता है।
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वैश्वीकरण क्या है? वैश्वीकरण को संभव बनाने वाले कारकों की व्याख्या करें।
**वैश्वीकरण (Globalisation):** वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा विश्व अर्थव्यवस्थाएँ और समाज एक-दूसरे के साथ अधिक एकीकृत और परस्पर निर्भर हो जाते हैं। यह विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं, निवेशों, प्रौद्योगिकी और यहाँ तक कि लोगों के आवागमन में तेजी से वृद्धि को दर्शाता है। सरल शब्दों में, यह दुनिया के देशों के बीच बढ़ती हुई अंतर्संबंध और अंतर्निर्भरता है।
**वैश्वीकरण को संभव बनाने वाले कारक:** कई कारकों ने वैश्वीकरण की प्रक्रिया को तेज और व्यापक बनाया है:
1. **प्रौद्योगिकी में तेजी से सुधार (Rapid Improvements in Technology):**- **परिवहन प्रौद्योगिकी:** पिछले 50 वर्षों में परिवहन प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं। कंटेनरों में सामानों की लोडिंग और अनलोडिंग ने माल ढुलाई को बहुत तेज और सस्ता बना दिया है। हवाई परिवहन भी अब अधिक किफायती हो गया है, जिससे खराब होने वाले उत्पादों को भी लंबी दूरी तक पहुंचाया जा सकता है। इससे लागत कम हुई है और उत्पादों की गतिशीलता बढ़ी है।
- **सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT):** सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का विकास (जैसे इंटरनेट, मोबाइल फोन, टेलीग्राफ, फैक्स, ईमेल, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग) ने वैश्वीकरण में क्रांति ला दी है।
- यह दुनिया के विभिन्न हिस्सों के बीच संचार को तुरंत और बहुत कम लागत पर संभव बनाता है।
- इससे दूरदराज के क्षेत्रों में भी सेवाओं का व्यापार संभव हो गया है (जैसे भारत में कॉल सेंटर, डेटा एंट्री और अकाउंटिंग सेवाएँ प्रदान करना)।
- MNCs अब दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अपनी उत्पादन प्रक्रियाओं को आसानी से समन्वयित कर सकती हैं।
- **व्यापार अवरोध:** स्वतंत्रता के बाद, भारत जैसे देशों ने अपने घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए आयात पर भारी कर (टैरिफ) और अन्य प्रतिबंध लगाए थे। इन्हें 'व्यापार अवरोध' कहा जाता था।
- **उदारीकरण:** 1991 के बाद, भारत सरकार ने इन व्यापार अवरोधों और प्रतिबंधों को काफी हद तक हटा दिया, जिससे विदेशी व्यापार और विदेशी निवेश के लिए अर्थव्यवस्था को 'उदार' बनाया गया।
- **प्रभाव:** व्यापार अवरोधों को हटाने से विदेशी कंपनियों के लिए भारत में निवेश करना और अपने उत्पाद बेचना आसान हो गया। इसी तरह, भारतीय कंपनियों के लिए भी विदेशों में व्यापार और निवेश करना आसान हो गया। इसका उद्देश्य भारतीय उत्पादकों की प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार करना था।
- WTO एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना है। यह व्यापार बाधाओं को कम करने और व्यापार को सभी देशों के लिए खुला रखने के लिए नियम बनाता है।
- हालाँकि WTO के नियमों को अक्सर विकसित देशों के पक्ष में होने की आलोचना की जाती है, फिर भी इसने वैश्विक व्यापार को बढ़ाने और देशों के बीच आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- हालाँकि यह वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही जितना स्वतंत्र नहीं है, फिर भी शिक्षा, रोजगार और अन्य अवसरों की तलाश में एक देश से दूसरे देश में लोगों की आवाजाही ने भी वैश्वीकरण को बढ़ावा दिया है।
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भारत में वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों की चर्चा करें।
भारत में वैश्वीकरण (1991 के आर्थिक सुधारों के बाद) ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहन और मिश्रित प्रभाव डाले हैं। इसके कुछ सकारात्मक प्रभाव रहे हैं, जबकि कुछ नकारात्मक प्रभाव भी देखे गए हैं।
**सकारात्मक प्रभाव (Positive Impacts):**
1. **उपभोक्ताओं के लिए लाभ:**- **अधिक विकल्प और बेहतर गुणवत्ता:** भारतीय बाजारों में विदेशी उत्पादों की उपलब्धता बढ़ने से उपभोक्ताओं को पहले से कहीं अधिक प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं का विकल्प मिला है, जिनकी गुणवत्ता भी अक्सर बेहतर होती है।
- **कम कीमतें:** बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा के कारण कई उत्पादों की कीमतें कम हुई हैं, जिससे उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ी है। उदाहरण के लिए, मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक्स और कारों की कीमतें और गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
- **विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि:** वैश्वीकरण ने भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित किया है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) ने भारत में कारखाने और कार्यालय स्थापित किए हैं, जिससे पूंजी और नई तकनीक देश में आई है।
- **नए उद्योगों का विकास:** ऑटोमोबाइल, मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक्स, सॉफ्ट ड्रिंक जैसे नए उद्योग स्थापित हुए हैं।
- कुछ क्षेत्रों में नए रोज़गार के अवसर सृजित हुए हैं, खासकर सेवा क्षेत्र में जैसे सूचना प्रौद्योगिकी (IT), कॉल सेंटर (BPOs), और अन्य व्यावसायिक प्रक्रिया आउटसोर्सिंग (BPO) सेवाएँ।
- विनिर्माण क्षेत्र में भी कुछ बड़ी भारतीय और विदेशी कंपनियों में रोजगार बढ़ा है।
- कुछ बड़ी भारतीय कंपनियों (जैसे टाटा मोटर्स, इंफोसिस, रैनबैक्सी, एशियन पेंट्स) ने वैश्वीकरण से लाभ उठाया है। उन्होंने नई तकनीकों में निवेश किया है, उत्पादन के नए तरीकों को अपनाया है, और सफलतापूर्वक MNCs के साथ प्रतिस्पर्धा की है। इनमें से कुछ कंपनियाँ स्वयं बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ बन गई हैं और विदेशों में निवेश कर रही हैं।
- भारतीय कंपनियों को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में शामिल होने और वैश्विक बाजारों तक पहुँचने का अवसर मिला है।
**नकारात्मक प्रभाव (Negative Impacts):**
1. **छोटे उत्पादकों के लिए चुनौती:**- **कठोर प्रतिस्पर्धा:** भारतीय बाजार में सस्ती विदेशी वस्तुओं की बाढ़ आने से छोटे पैमाने के उद्योगों (Small Scale Industries) और स्थानीय उत्पादकों को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा है।
- **उद्योगों का बंद होना और रोज़गार का नुकसान:** गुणवत्ता, कीमत और विज्ञापन में विदेशी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा न कर पाने के कारण कई छोटे उद्योगों को बंद करना पड़ा, जिससे हजारों श्रमिकों की आजीविका प्रभावित हुई। खिलौने, बैटरी, कैपेसिटर, डेयरी उत्पाद, वनस्पति तेल जैसे उद्योग इसके उदाहरण हैं।
- लागत कम करने के दबाव में, MNCs और यहाँ तक कि कुछ भारतीय कंपनियों ने भी श्रमिकों को अनियमित आधार पर (अस्थायी, कम वेतन पर, बिना सामाजिक सुरक्षा लाभों के) नियुक्त करना शुरू कर दिया है।
- इससे श्रमिकों की नौकरी की सुरक्षा कम हुई है, काम के घंटे बढ़ गए हैं, और उन्हें उचित मजदूरी और अन्य लाभों से वंचित रहना पड़ता है, खासकर असंगठित क्षेत्र में।
- श्रमिकों के संघ बनाने के अधिकार पर भी असर पड़ा है।
- वैश्वीकरण के लाभ मुख्य रूप से बड़े और कुशल उत्पादकों, बड़े शहरों, और शिक्षित तथा कुशल श्रमिकों तक ही सीमित रहे हैं।
- कृषि क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्रों को वैश्वीकरण से उतना लाभ नहीं मिला है, और कई स्थानों पर तो उनकी स्थिति और भी खराब हुई है। इससे आय असमानता बढ़ी है।
- विकसित देशों द्वारा अपने किसानों को दी जाने वाली भारी सब्सिडी के कारण भारतीय किसानों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा करने में कठिनाई होती है, जिससे उनका निर्यात प्रभावित होता है।
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