अध्याय 3: मुद्रा और साख (Money and Credit)

परिचय

कक्षा 10 अर्थशास्त्र का यह अध्याय **'मुद्रा और साख'** मुद्रा के एक विनिमय माध्यम के रूप में कार्य, बैंकों की भूमिका, ऋण के विभिन्न रूपों, और औपचारिक तथा अनौपचारिक ऋण स्रोतों के महत्व की व्याख्या करता है। यह अध्याय भारतीय अर्थव्यवस्था में ऋण के महत्व और ऋण जाल की समस्या पर भी प्रकाश डालता है।

---

1. विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange)

---

2. मुद्रा के आधुनिक रूप (Modern Forms of Money)

बैंकों में जमा का कार्य (Functions of Deposits in Banks):

---

3. बैंकों की ऋण गतिविधियाँ (Loan Activities of Banks)

---

4. ऋण की दो विभिन्न स्थितियाँ (Two Different Credit Situations)

ऋण (या उधार) एक समझौता है जहाँ ऋणदाता उधारकर्ता को धन, वस्तुएँ या सेवाएँ प्रदान करता है, और बदले में उधारकर्ता भविष्य में ऋणदाता को भुगतान करने का वादा करता है।

---

5. ऋण की शर्तें (Terms of Credit)

ऋण समझौते में ऋणदाता और उधारकर्ता के बीच कुछ शर्तें होती हैं। इन शर्तों में शामिल हैं:

ऋण की शर्तें अलग-अलग ऋण समझौतों में अलग-अलग हो सकती हैं।

---

6. भारत में औपचारिक क्षेत्रक ऋण (Formal Sector Credit in India)

---

7. भारत में अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण (Informal Sector Credit in India)

औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण की तुलना (Comparison of Formal and Informal Sector Credit):

विशेषता औपचारिक क्षेत्रक ऋण अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण
**स्रोत** बैंक, सहकारी समितियाँ साहूकार, व्यापारी, नियोक्ता, रिश्तेदार, दोस्त
**पर्यवेक्षण** भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा पर्यवेक्षित कोई पर्यवेक्षण नहीं
**ब्याज दर** कम और निश्चित उच्च और परिवर्तनशील, अक्सर मनमानी
**गिरवी/सुरक्षा** आमतौर पर आवश्यक आवश्यक हो सकती है या नहीं
**दस्तावेज** विस्तृत दस्तावेज आवश्यक आमतौर पर कोई दस्तावेज नहीं
**लक्ष्य** सभी के लिए ऋण का विस्तार करना, लाभ कमाना भी मुख्य रूप से लाभ कमाना
**ऋण जाल का जोखिम** कम बहुत अधिक
---

8. गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups - SHGs)

---

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

  1. वस्तु विनिमय प्रणाली में मुख्य समस्या क्या है?
    (क) मुद्रा की कमी
    (ख) आवश्यकताओं का दोहरा संयोग
    (ग) वस्तुओं का क्षय
    (घ) परिवहन की समस्या

    (ख) आवश्यकताओं का दोहरा संयोग

  2. भारत में करेंसी नोट कौन जारी करता है?
    (क) वित्त मंत्रालय
    (ख) भारतीय स्टेट बैंक
    (ग) भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)
    (घ) वाणिज्यिक बैंक

    (ग) भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)

  3. मांग जमा किसे कहते हैं?
    (क) वह जमा जो बैंक में लंबी अवधि के लिए रखी जाती है।
    (ख) वह जमा जिसे किसी भी समय निकाला जा सकता है।
    (ग) वह जमा जिस पर कोई ब्याज नहीं मिलता।
    (घ) वह जमा जिसका उपयोग केवल निवेश के लिए होता है।

    (ख) वह जमा जिसे किसी भी समय निकाला जा सकता है।

  4. निम्नलिखित में से कौन सा अनौपचारिक क्षेत्रक ऋण का उदाहरण है?
    (क) बैंक से ऋण
    (ख) सहकारी समिति से ऋण
    (ग) साहूकार से ऋण
    (घ) स्वयं सहायता समूह (SHG) से ऋण (SHG बैंक से ऋण प्राप्त करता है)

    (ग) साहूकार से ऋण

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें (Answer the following questions in about 30 words)

  1. ऋण जाल क्या है?

    ऋण जाल एक ऐसी स्थिति है जहाँ एक उधारकर्ता अपने पुराने ऋणों को चुकाने में असमर्थ हो जाता है और नए ऋण लेने पर मजबूर हो जाता है, जिससे वह ऋण के एक दुष्चक्र में फंस जाता है जिससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है।

  2. संपार्श्विक (Collateral) क्या है?

    संपार्श्विक एक ऐसी संपत्ति (जैसे भूमि, भवन, वाहन) है जिसे उधारकर्ता ऋणदाता को ऋण चुकाने की गारंटी के रूप में देता है। यदि उधारकर्ता ऋण चुकाने में विफल रहता है, तो ऋणदाता को उस संपत्ति को बेचने और अपना पैसा वसूल करने का अधिकार होता है।

  3. स्वयं सहायता समूह (SHG) के दो लाभ बताएँ।

    SHG के दो लाभ हैं: पहला, यह गरीबों को साहूकारों के उच्च ब्याज दरों से बचाता है और उन्हें कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराता है। दूसरा, यह महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है और सामाजिक मुद्दों पर चर्चा करने का मंच प्रदान करता है।

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 120 शब्दों में दें (Answer the following questions in about 120 words)

  1. बैंक ऋण गतिविधियों में मध्यस्थ के रूप में कैसे कार्य करते हैं?

    बैंक ऋण गतिविधियों में मध्यस्थ (Intermediary) के रूप में कार्य करते हैं, जो उन लोगों को जोड़ते हैं जिनके पास अतिरिक्त धन है (जमाकर्ता) और जिन्हें धन की आवश्यकता है (ऋण लेने वाले)।
    • **जमा स्वीकार करना:** बैंक लोगों से अतिरिक्त धन (जिसे वे स्वयं उपयोग नहीं कर रहे हैं) को जमा के रूप में स्वीकार करते हैं। इन जमाओं पर बैंक जमाकर्ताओं को ब्याज देते हैं। यह धन सुरक्षित रहता है और जमाकर्ता अपनी आवश्यकतानुसार इसे कभी भी निकाल सकते हैं (मांग जमा)।
    • **ऋण प्रदान करना:** बैंक इन जमा राशि के एक बड़े हिस्से का उपयोग उन लोगों को ऋण प्रदान करने के लिए करते हैं जिन्हें विभिन्न उद्देश्यों (जैसे व्यवसाय, घर खरीदना, कृषि) के लिए धन की आवश्यकता होती है। बैंक ऋण लेने वालों से जमाकर्ताओं को दिए जाने वाले ब्याज से अधिक ब्याज दर वसूलते हैं।
    • **आय का स्रोत:** ब्याज दरों का यह अंतर (जो ऋणदाताओं से लिया जाता है और जमाकर्ताओं को दिया जाता है) बैंकों की आय का मुख्य स्रोत होता है। इस प्रकार, बैंक एक वित्तीय चैनल के रूप में काम करते हैं जो समाज के बचतकर्ताओं की बचत को उधारकर्ताओं तक पहुँचाता है, जिससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है। वे अर्थव्यवस्था में तरलता (लिक्विडिटी) बनाए रखने में भी मदद करते हैं।
    यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि धन बेकार न पड़ा रहे, बल्कि उत्पादक उपयोग में लाया जाए, जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिलती है।

  2. भारत में औपचारिक क्षेत्रक ऋण को बढ़ावा देने के लिए किन कदमों की आवश्यकता है?

    भारत में औपचारिक क्षेत्रक ऋण को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है ताकि लोगों को अनौपचारिक स्रोतों के शोषण से बचाया जा सके और समावेशी आर्थिक विकास सुनिश्चित किया जा सके। इसके लिए निम्नलिखित कदम आवश्यक हैं:
    • **बैंकों और सहकारी समितियों का ग्रामीण विस्तार:** ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में अधिक से अधिक बैंक शाखाएँ और सहकारी समितियाँ खोलना, ताकि औपचारिक ऋण तक पहुँच बढ़ाई जा सके। वर्तमान में, ग्रामीण गरीबों का एक बड़ा हिस्सा अभी भी अनौपचारिक स्रोतों पर निर्भर है।
    • **ऋण प्रक्रिया को सरल बनाना:** औपचारिक ऋण प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल और कम कागजी बनाना चाहिए। छोटे किसानों और स्वरोजगार करने वालों के लिए दस्तावेजों और संपार्श्विक की आवश्यकताओं को कम करना चाहिए ताकि वे आसानी से ऋण प्राप्त कर सकें।
    • **जागरूकता बढ़ाना:** लोगों को औपचारिक ऋण के लाभों और अनौपचारिक ऋण के जोखिमों के बारे में शिक्षित करना। वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए।
    • **स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को मजबूत करना:** SHGs को बढ़ावा देना और उन्हें बैंकों से जोड़ने की प्रक्रिया को और सुगम बनाना। SHGs बिना संपार्श्विक के छोटे ऋणों तक पहुँच प्रदान करने में अत्यधिक प्रभावी साबित हुए हैं, विशेषकर महिलाओं के लिए।
    • **कम ब्याज दरों को बनाए रखना:** RBI को बैंकों को निर्देश देना जारी रखना चाहिए कि वे छोटे उधारकर्ताओं और गरीब किसानों को उचित और कम ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करें, ताकि वे ऋण जाल में न फँसें।
    • **निगरानी और विनियमन:** RBI को अनौपचारिक ऋणदाताओं के अनैतिक प्रथाओं पर सख्त निगरानी रखनी चाहिए, हालांकि यह मुश्किल है। साथ ही, औपचारिक क्षेत्र की ऋण वितरण प्रक्रिया की प्रभावी ढंग से निगरानी करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि लक्ष्यित समूह तक ऋण पहुँच रहा है।
    इन कदमों से औपचारिक ऋण की उपलब्धता और पहुँच बढ़ेगी, जिससे देश में आर्थिक विकास अधिक न्यायसंगत और टिकाऊ होगा।

(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। प्रकटन भिन्न हो सकता है।)