अध्याय 2: भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक (Sectors of the Indian Economy)
परिचय
कक्षा 10 अर्थशास्त्र का दूसरा अध्याय **'भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक'** विभिन्न आर्थिक गतिविधियों को समझने पर केंद्रित है। यह अध्याय अर्थव्यवस्था को तीन प्रमुख क्षेत्रों - प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक - में वर्गीकृत करता है, उनकी अंतर्निर्भरता की व्याख्या करता है, और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में उनके योगदान का विश्लेषण करता है। इसके अतिरिक्त, यह रोज़गार के संदर्भ में इन क्षेत्रों की भूमिका, अदृश्य बेरोज़गारी की अवधारणा, और संगठित व असंगठित क्षेत्रों के बीच अंतर पर भी प्रकाश डालता है। अंत में, यह रोज़गार सृजन के उपायों और सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों के महत्व पर चर्चा करता है।
---1. आर्थिक गतिविधियों का वर्गीकरण (Classification of Economic Activities)
आर्थिक गतिविधियों को उनके उद्देश्य और प्रकृति के आधार पर तीन मुख्य क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
1.1. प्राथमिक क्षेत्रक (Primary Sector)
- यह वह क्षेत्र है जहाँ हम सीधे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके वस्तुओं का उत्पादन करते हैं।
- इसे **कृषि और संबद्ध क्षेत्रक** (Agriculture and Related Sector) भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें कृषि, वानिकी, पशुपालन, मत्स्य पालन और खनन जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
- उदाहरण: कपास उगाना (प्राकृतिक उत्पाद), दूध निकालना (प्राकृतिक उत्पाद), लौह अयस्क का खनन (प्राकृतिक उत्पाद)।
- यह क्षेत्र अन्य दो क्षेत्रों के लिए कच्चे माल का आधार प्रदान करता है।
1.2. द्वितीयक क्षेत्रक (Secondary Sector)
- इस क्षेत्र में प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रियाओं के माध्यम से अन्य रूपों में बदला जाता है।
- यह क्षेत्रक उन गतिविधियों से संबंधित है जहाँ कच्चे माल को तैयार वस्तुओं में परिवर्तित किया जाता है।
- इसे **विनिर्माण क्षेत्रक** (Manufacturing Sector) या **औद्योगिक क्षेत्रक** (Industrial Sector) भी कहा जाता है।
- उदाहरण: कपास से कपड़ा बनाना, गन्ने से चीनी या गुड़ बनाना, लौह अयस्क से इस्पात बनाना, बिस्कुट बनाना।
- यह उद्योगों और कारखानों पर आधारित होता है।
1.3. तृतीयक क्षेत्रक (Tertiary Sector)
- यह क्षेत्र वस्तुओं के बजाय सेवाओं का उत्पादन करता है। यह प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रों के विकास में मदद करता है।
- इसे **सेवा क्षेत्रक** (Service Sector) भी कहा जाता है।
- उदाहरण: परिवहन, भंडारण, संचार (टेलीफोन, इंटरनेट), बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य, बीमा, सॉफ्टवेयर सेवाएँ, वकील, डॉक्टर, शिक्षक, धोबी, नाई।
- यह क्षेत्र उत्पादन प्रक्रिया में प्रत्यक्ष रूप से वस्तुओं का उत्पादन नहीं करता, लेकिन उत्पादन और व्यापार के लिए आवश्यक सहायता प्रदान करता है।
क्षेत्रक | विवरण | उदाहरण |
---|---|---|
**प्राथमिक क्षेत्रक** | प्राकृतिक संसाधनों का सीधा उपयोग | कृषि, मत्स्य पालन, वानिकी, खनन |
**द्वितीयक क्षेत्रक** | प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण से बदलना | उद्योग, निर्माण, बिजली उत्पादन |
**तृतीयक क्षेत्रक** | सेवाएँ प्रदान करना, अन्य क्षेत्रों में सहायता | परिवहन, बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य, आईटी |
2. तीनों क्षेत्रों की तुलना (Comparing the Three Sectors)
अर्थव्यवस्था में इन तीनों क्षेत्रों के योगदान को मापने और उनकी तुलना करने के लिए हम उनके द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का उपयोग करते हैं।
2.1. सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product - GDP)
- **परिभाषा:** किसी विशेष वर्ष में प्रत्येक क्षेत्रक द्वारा उत्पादित **अंतिम वस्तुओं और सेवाओं** का मूल्य उस वर्ष में उस क्षेत्रक के कुल उत्पादन को दर्शाता है।
- तीनों क्षेत्रों के उत्पादन के योगफल को **सकल घरेलू उत्पाद (GDP)** कहते हैं।
- GDP किसी देश के भीतर एक विशेष अवधि (आमतौर पर एक वर्ष) में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है।
- **महत्व:** GDP एक अर्थव्यवस्था के आकार का सूचक है। यह किसी देश की आर्थिक वृद्धि का सबसे आम माप है।
2.2. अंतिम वस्तुएँ और सेवाएँ (Final Goods and Services)
- GDP की गणना करते समय केवल अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को शामिल किया जाता है।
- **मध्यवर्ती वस्तुएँ (Intermediate Goods):** वे वस्तुएँ जिनका उपयोग अंतिम वस्तुओं के उत्पादन में कच्चे माल के रूप में किया जाता है, उन्हें शामिल नहीं किया जाता है। ऐसा इसलिए है ताकि दोहरी गणना (double counting) से बचा जा सके।
- उदाहरण: एक किसान द्वारा बेचा गया गेहूँ (मध्यवर्ती) जो बेकरी द्वारा बिस्कुट बनाने में उपयोग किया जाता है। बिस्कुट (अंतिम वस्तु) के मूल्य में गेहूँ का मूल्य पहले से ही शामिल होता है।
2.3. क्षेत्रों में ऐतिहासिक परिवर्तन (Historical Change in Sectors)
- **आरंभिक चरण:** शुरुआती विकासशील देशों में, प्राथमिक क्षेत्रक (विशेषकर कृषि) सबसे महत्वपूर्ण होता है और अधिकांश लोग इसी में कार्यरत होते हैं।
- **औद्योगिक चरण:** जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था विकसित होती है, द्वितीयक क्षेत्रक (विनिर्माण) का महत्व बढ़ता है। लोग प्राथमिक से द्वितीयक क्षेत्रक में स्थानांतरित होते हैं।
- **सेवा चरण:** विकसित अर्थव्यवस्थाओं में, तृतीयक क्षेत्रक (सेवाएँ) सबसे महत्वपूर्ण बन जाता है, दोनों उत्पादन और रोजगार के मामले में।
क्षेत्रक | 1973-74 | 2013-14 |
---|---|---|
**प्राथमिक** | 40% | 14% |
**द्वितीयक** | 12% | 25% |
**तृतीयक** | 48% | 61% |
उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि भारत में तृतीयक क्षेत्रक का योगदान GDP में सबसे अधिक हो गया है।
---3. प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोज़गार (Employment in Primary, Secondary and Tertiary Sectors)
जबकि GDP में तृतीयक क्षेत्र का वर्चस्व है, रोजगार के मामले में स्थिति अलग है।
3.1. रोज़गार का वितरण (Distribution of Employment)
- भारत में, प्राथमिक क्षेत्रक (विशेषकर कृषि) अभी भी सबसे बड़ा नियोक्ता है, भले ही इसका GDP में योगदान काफी कम हो गया है।
- द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रक उस अनुपात में रोज़गार सृजित नहीं कर पाए हैं जिस अनुपात में उन्होंने GDP में वृद्धि की है।
क्षेत्रक | 1973-74 | 2013-14 |
---|---|---|
**प्राथमिक** | 74% | 49% |
**द्वितीयक** | 11% | 24% |
**तृतीयक** | 15% | 27% |
इस तालिका से पता चलता है कि लगभग आधे लोग अभी भी प्राथमिक क्षेत्रक में कार्यरत हैं, भले ही यह क्षेत्र केवल एक-चौथाई उत्पादन करता है। इसका तात्पर्य यह है कि कृषि क्षेत्र में श्रमिक अल्प-रोजगार (underemployment) से पीड़ित हैं।
3.2. अदृश्य बेरोज़गारी / प्रच्छन्न बेरोज़गारी (Disguised Unemployment / Underemployment)
- यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ लोग नियोजित (काम करते हुए) दिखते हैं, लेकिन वास्तव में उनकी सीमांत उत्पादकता शून्य होती है, यानी यदि उन्हें काम से हटा भी दिया जाए तो कुल उत्पादन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
- यह मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र में देखा जाता है, जहाँ एक ही छोटे खेत पर आवश्यकता से अधिक लोग काम करते हैं।
- उदाहरण: एक परिवार के पांच सदस्य एक छोटे खेत पर काम करते हैं, जबकि वही काम तीन सदस्य भी कुशलता से कर सकते हैं। अतिरिक्त दो सदस्य प्रच्छन्न रूप से बेरोजगार हैं।
- प्रच्छन्न बेरोज़गारी का अर्थ है कि लोग अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर रहे हैं और उनकी आय कम है।
3.3. अधिक रोज़गार का सृजन कैसे करें? (How to Create More Employment?)
- **कृषि में सुधार:** सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि, बेहतर बीज और उर्वरक प्रदान करना, भंडारण और विपणन सुविधाओं का विकास।
- **लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा:** ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में श्रम-गहन उद्योगों को बढ़ावा देना।
- **बुनियादी ढांचा विकास:** सड़कों, परिवहन, बिजली, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं का निर्माण, जो न केवल विकास को बढ़ावा देता है बल्कि रोज़गार भी सृजित करता है।
- **शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश:** इन क्षेत्रों में अधिक लोगों को नियुक्त करने से रोज़गार बढ़ेगा और मानव पूंजी में सुधार होगा।
- **पर्यटन और क्षेत्रीय शिल्प उद्योगों को बढ़ावा:** ये क्षेत्र बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार प्रदान कर सकते हैं।
- **मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम):** 2005 में लागू यह कानून ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार को 100 दिनों के सुनिश्चित रोजगार की गारंटी देता है, जिससे अदृश्य बेरोज़गारी कम होती है और ग्रामीण आय बढ़ती है।
4. संगठित और असंगठित क्षेत्रक (Organised and Unorganised Sectors)
रोज़गार की शर्तों के आधार पर आर्थिक गतिविधियों को दो क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
4.1. संगठित क्षेत्रक (Organised Sector)
- यह वह क्षेत्र है जहाँ रोज़गार की शर्तें नियमित होती हैं और लोगों के पास सुनिश्चित काम होता है।
- यह सरकार द्वारा पंजीकृत होता है और सरकारी नियमों और विनियमों का पालन करता है (जैसे कारखाना अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, ग्रेच्युटी अधिनियम)।
- इसमें कर्मचारियों को कई प्रकार के लाभ मिलते हैं:
- नियमित मासिक वेतन।
- काम के घंटे निश्चित होते हैं (ओवरटाइम के लिए अतिरिक्त भुगतान)।
- भुगतान सहित छुट्टियां, भविष्य निधि (PF), ग्रेच्युटी, चिकित्सा लाभ, और पेंशन।
- सुरक्षित कार्य वातावरण।
- नौकरी की सुरक्षा (आसानी से बर्खास्त नहीं किया जा सकता)।
- उदाहरण: सरकारी कर्मचारी, बड़े कारखानों के कर्मचारी, बैंकों के कर्मचारी, पंजीकृत कंपनियों में काम करने वाले लोग।
4.2. असंगठित क्षेत्रक (Unorganised Sector)
- यह वह क्षेत्र है जिसमें रोज़गार की शर्तें अनियमित होती हैं और इसमें सरकारी नियमों और विनियमों का पालन नहीं किया जाता।
- यह सरकार द्वारा पंजीकृत नहीं होता है।
- इसमें कर्मचारियों को संगठित क्षेत्र के लाभ नहीं मिलते:
- नियमित वेतन नहीं।
- काम के घंटे निश्चित नहीं होते, और कोई ओवरटाइम भुगतान नहीं।
- कोई सवेतन छुट्टी, भविष्य निधि, ग्रेच्युटी या चिकित्सा लाभ नहीं।
- कार्यस्थल अक्सर असुरक्षित होते हैं।
- नौकरी की सुरक्षा नहीं (किसी भी समय बर्खास्त किया जा सकता है)।
- उदाहरण: दैनिक वेतन भोगी मजदूर, छोटे दुकानदार, सड़क विक्रेता, निर्माण स्थलों पर काम करने वाले मजदूर, कृषि मजदूर, घरेलू नौकर।
4.3. असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का संरक्षण (Protection of Workers in the Unorganised Sector)
- असंगठित क्षेत्र में बड़ी संख्या में गरीब और कमजोर श्रमिक होते हैं जिन्हें संरक्षण की आवश्यकता होती है।
- सरकार को ऐसे श्रमिकों को समर्थन देने के लिए नीतियां बनानी चाहिए, जैसे:
- न्यूनतम मजदूरी कानून को सख्ती से लागू करना।
- कम ब्याज पर ऋण प्रदान करना।
- स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना।
- सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना (जैसे बीमा)।
- रोज़गार सृजन योजनाओं का विस्तार करना।
5. सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक (Public and Private Sectors)
मालिक और सेवाओं के प्रावधान के आधार पर आर्थिक गतिविधियों को सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
5.1. सार्वजनिक क्षेत्रक (Public Sector)
- इस क्षेत्र में अधिकांश परिसंपत्तियों का स्वामित्व सरकार के पास होता है, और सरकार ही सभी सेवाओं का प्रावधान करती है।
- मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना नहीं, बल्कि **सार्वजनिक कल्याण** सुनिश्चित करना है।
- उदाहरण: रेलवे, डाकघर, सरकारी अस्पताल, सरकारी स्कूल, भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC), भारतीय स्टेट बैंक (SBI)।
- सरकार करों के माध्यम से या वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री से धन जुटाती है।
- आवश्यक लेकिन लाभहीन सेवाओं का प्रावधान करती है (जैसे सड़कें, पुल, स्कूल)।
5.2. निजी क्षेत्रक (Private Sector)
- इस क्षेत्र में परिसंपत्तियों का स्वामित्व और सेवाओं का प्रावधान एक व्यक्ति या निजी कंपनियों के हाथ में होता है।
- मुख्य उद्देश्य **लाभ कमाना** है।
- उदाहरण: टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (TISCO), रिलायंस इंडस्ट्रीज, मारुति सुजुकी, निजी अस्पताल, निजी स्कूल।
- उत्पादन और सेवाओं की लागत ग्राहकों से वसूल की जाती है।
आधार | सार्वजनिक क्षेत्रक | निजी क्षेत्रक |
---|---|---|
**मालिक** | सरकार | एक व्यक्ति या निजी कंपनी |
**मुख्य उद्देश्य** | सार्वजनिक कल्याण | लाभ कमाना |
**सेवा प्रदान करना** | सरकार | व्यक्ति/कंपनी द्वारा |
**उदाहरण** | रेलवे, डाकघर, सरकारी अस्पताल | TISCO, Reliance, निजी अस्पताल |
5.3. सरकार का दायित्व (Government's Responsibility)
- सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र की गतिविधियों पर खर्च करना चाहिए क्योंकि कई सेवाएँ हैं जिनकी समाज को सामूहिक रूप से आवश्यकता होती है लेकिन निजी क्षेत्र उन्हें उचित मूल्य पर प्रदान नहीं कर सकता।
- उदाहरण: रक्षा, पुलिस, सड़कें, पुल, रेलवे, सिंचाई, शिक्षा, स्वास्थ्य। इन सेवाओं को प्रदान करने की जिम्मेदारी सरकार की है।
- सरकार को असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और गरीबों के कल्याण के लिए भी हस्तक्षेप करना चाहिए।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर
अभ्यास के प्रश्न
-
आर्थिक गतिविधियों को तीन क्षेत्रों में कैसे वर्गीकृत किया जाता है? उदाहरण सहित समझाइए।
आर्थिक गतिविधियों को उनके उद्देश्य और प्रकृति के आधार पर तीन प्रमुख क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जाता है। ये क्षेत्रक अर्थव्यवस्था की संरचना और कार्यप्रणाली को समझने में मदद करते हैं:
1. **प्राथमिक क्षेत्रक (Primary Sector):**- **परिभाषा:** इस क्षेत्र में वे गतिविधियाँ शामिल हैं जहाँ हम सीधे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। इसमें प्राकृतिक उत्पादों का निष्कर्षण और संग्रह शामिल होता है।
- **अन्य नाम:** इसे 'कृषि और संबद्ध क्षेत्रक' (Agriculture and Related Sector) भी कहा जाता है।
- **उदाहरण:**
- **कृषि:** कपास उगाना (कपास एक प्राकृतिक उत्पाद है जो कृषि से प्राप्त होता है)।
- **मत्स्य पालन:** मछली पकड़ना (मछली एक प्राकृतिक उत्पाद है)।
- **वानिकी:** लकड़ी काटना, जंगल से अन्य उत्पाद इकट्ठा करना।
- **पशुपालन:** दूध निकालना, अंडे प्राप्त करना।
- **खनन:** लौह अयस्क, कोयला, खनिज तेल निकालना।
- **परिभाषा:** इस क्षेत्र में वे गतिविधियाँ शामिल हैं जहाँ प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रियाओं के माध्यम से अन्य रूपों में बदला जाता है। यह कच्चे माल को अधिक मूल्यवान तैयार वस्तुओं में परिवर्तित करता है।
- **अन्य नाम:** इसे 'विनिर्माण क्षेत्रक' (Manufacturing Sector) या 'औद्योगिक क्षेत्रक' (Industrial Sector) भी कहा जाता है।
- **उदाहरण:**
- कपास से सूत कातना और फिर कपड़ा बनाना।
- गन्ने से चीनी या गुड़ बनाना।
- मिट्टी से ईंट बनाना।
- लौह अयस्क से इस्पात बनाना और फिर मशीनें या वाहन बनाना।
- बिस्कुट, ब्रेड बनाना (प्राथमिक कृषि उत्पादों को संसाधित करके)।
- **परिभाषा:** यह क्षेत्र वस्तुओं का उत्पादन नहीं करता, बल्कि सेवाओं का उत्पादन करता है। यह प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रों के विकास में मदद करता है और स्वयं भी अपनी स्वतंत्र सेवाएँ प्रदान करता है।
- **अन्य नाम:** इसे 'सेवा क्षेत्रक' (Service Sector) भी कहा जाता है।
- **उदाहरण:**
- **परिवहन:** वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना (ट्रक, ट्रेन, हवाई जहाज)।
- **भंडारण:** उत्पादित वस्तुओं को सुरक्षित रखना।
- **संचार:** टेलीफोन, इंटरनेट, पोस्ट ऑफिस।
- **बैंकिंग:** वित्तीय सेवाएँ प्रदान करना।
- **शिक्षा:** शिक्षक द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा।
- **स्वास्थ्य:** डॉक्टर, नर्स द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा।
- **अन्य सेवाएँ:** बीमा, सॉफ्टवेयर सेवाएँ, वकील, नाई, धोबी, आईटी सेवाएँ।
-
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से क्या अभिप्राय है? इसकी गणना करते समय किन बातों का ध्यान रखा जाता है?
**सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product - GDP):** सकल घरेलू उत्पाद (GDP) किसी देश की आर्थिक गतिविधि को मापने का एक प्रमुख तरीका है। इसकी परिभाषा है: **किसी विशेष वर्ष में किसी देश की सीमा के भीतर उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहलाता है।**
यह एक वर्ष की अवधि में एक अर्थव्यवस्था द्वारा प्राप्त कुल उत्पादन (मूल्य के रूप में) को दर्शाता है और इसे देश की आर्थिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण संकेतक माना जाता है।
**इसकी गणना करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:** GDP की गणना करते समय निम्नलिखित महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखा जाता है ताकि दोहरी गणना से बचा जा सके और सही आर्थिक गतिविधि को मापा जा सके:
1. **अंतिम वस्तुएँ और सेवाएँ (Final Goods and Services) ही शामिल की जाती हैं:**- GDP की गणना में केवल उन वस्तुओं और सेवाओं को शामिल किया जाता है जो अंतिम उपभोक्ता तक पहुँचती हैं और आगे उत्पादन प्रक्रिया में उपयोग नहीं की जातीं।
- **मध्यवर्ती वस्तुएँ (Intermediate Goods) शामिल नहीं की जातीं।** मध्यवर्ती वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जिनका उपयोग अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में किया जाता है, या जिन्हें पुनर्विक्रय के लिए खरीदा जाता है।
- **कारण:** यदि मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य को भी GDP में शामिल किया जाए, तो एक ही वस्तु के मूल्य की कई बार गणना हो जाएगी, जिससे GDP का आकार कृत्रिम रूप से बढ़ जाएगा (दोहरी गणना की समस्या)।
- **उदाहरण:**
- एक किसान द्वारा बेचा गया गेहूँ (मध्यवर्ती वस्तु) जो एक बेकरी द्वारा बिस्कुट बनाने में उपयोग किया जाता है, उसे सीधे GDP में शामिल नहीं किया जाता।
- लेकिन बिस्कुट (अंतिम वस्तु) का मूल्य, जिसमें गेहूँ, आटा, चीनी, तेल आदि का मूल्य पहले से ही शामिल होता है, उसे GDP में शामिल किया जाता है।
- इसी तरह, एक कार के उत्पादन में प्रयुक्त स्टील या टायर मध्यवर्ती वस्तुएँ हैं, जबकि पूरी कार अंतिम वस्तु है।
इन बातों का ध्यान रखकर ही एक देश के वास्तविक आर्थिक उत्पादन और स्वास्थ्य का सटीक माप प्राप्त किया जा सकता है। -
असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को कैसे संरक्षण दिया जा सकता है?
असंगठित क्षेत्रक में काम करने वाले श्रमिकों को अक्सर शोषण, कम मजदूरी, नौकरी की असुरक्षा, और किसी भी प्रकार के सामाजिक सुरक्षा लाभों से वंचित रहना पड़ता है। उन्हें संरक्षण प्रदान करना एक महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक आवश्यकता है। असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को कई तरीकों से संरक्षण दिया जा सकता है:
1. **न्यूनतम मजदूरी कानून का सख्त प्रवर्तन (Strict Enforcement of Minimum Wage Laws):**- सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी को असंगठित क्षेत्र में भी सख्ती से लागू किया जाना चाहिए ताकि श्रमिकों को उचित मेहनताना मिल सके।
- नियमित निरीक्षण और उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगाना आवश्यक है।
- **पेंशन योजनाएँ:** वृद्धावस्था में आय सुरक्षा के लिए पेंशन योजनाएँ (जैसे अटल पेंशन योजना)।
- **स्वास्थ्य बीमा:** स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने के लिए किफायती स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ (जैसे प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना/आयुष्मान भारत)।
- **जीवन बीमा और दुर्घटना बीमा:** श्रमिकों और उनके परिवारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सस्ती बीमा योजनाएँ।
- **मातृत्व लाभ:** महिला श्रमिकों के लिए मातृत्व अवकाश और लाभ सुनिश्चित करना।
- असंगठित क्षेत्र के कई श्रमिक अक्सर साहूकारों से उच्च ब्याज दरों पर ऋण लेते हैं। सरकार को बैंकों और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराना चाहिए, ताकि वे अपनी आजीविका में सुधार कर सकें या छोटे व्यवसाय शुरू कर सकें।
- असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और उनके बच्चों के लिए शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण तक पहुंच में सुधार करना, ताकि वे बेहतर रोजगार के अवसर प्राप्त कर सकें और संगठित क्षेत्र में स्थानांतरित हो सकें।
- असंगठित क्षेत्र के कार्यस्थलों (जैसे निर्माण स्थल, ईंट भट्टे) में सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने के लिए नियम बनाना और उनका पालन करवाना।
- श्रमिकों को खतरनाक वातावरण से बचाने के लिए उचित उपकरण और प्रशिक्षण प्रदान करना।
- असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का पंजीकरण करना और उन्हें पहचान पत्र जारी करना, जिससे उन्हें सरकारी योजनाओं और लाभों तक पहुँचने में मदद मिल सके।
- जैसे 'ई-श्रम पोर्टल' पर असंगठित श्रमिकों का पंजीकरण।
- श्रमिकों को उनके अधिकारों और सरकार द्वारा प्रदान की जा रही योजनाओं के बारे में जागरूक करना।
- असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को अपने अधिकारों के लिए सामूहिक रूप से बातचीत करने और लड़ने के लिए संघों या यूनियनों में संगठित होने के लिए प्रोत्साहित करना।
- मौजूदा श्रम कानूनों (जैसे कारखाना अधिनियम, कर्मचारी मुआवजा अधिनियम) को असंगठित क्षेत्र पर भी लागू करने की संभावना का पता लगाना, या इस क्षेत्र के लिए विशिष्ट कानून बनाना।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) जैसी योजनाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की सुरक्षा प्रदान करती हैं और विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को लाभ पहुँचाती हैं। ऐसी योजनाओं का विस्तार किया जा सकता है।
-
सार्वजनिक क्षेत्रक और निजी क्षेत्रक के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।
सार्वजनिक क्षेत्रक और निजी क्षेत्रक आर्थिक गतिविधियों को स्वामित्व और सेवाओं के प्रावधान के आधार पर वर्गीकृत करते हैं। इनके बीच मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं:
आधार सार्वजनिक क्षेत्रक (Public Sector) निजी क्षेत्रक (Private Sector) **1. स्वामित्व (Ownership)** इस क्षेत्र में अधिकांश परिसंपत्तियों और सेवाओं का स्वामित्व सरकार (केंद्र या राज्य सरकार) के पास होता है। इस क्षेत्र में परिसंपत्तियों और सेवाओं का स्वामित्व एक व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह, या निजी कंपनियों के हाथ में होता है। **2. मुख्य उद्देश्य (Main Objective)** इसका मुख्य उद्देश्य **लाभ कमाना नहीं**, बल्कि **सार्वजनिक कल्याण** और सामाजिक सेवाएँ प्रदान करना होता है। सरकार उन सेवाओं को प्रदान करती है जो समाज के लिए आवश्यक हैं। इसका मुख्य उद्देश्य **लाभ कमाना** और निवेशकों के लिए अधिकतम प्रतिफल (रिटर्न) प्राप्त करना होता है। **3. सेवाओं का प्रावधान (Provision of Services)** सरकार या उसके उपक्रम सीधे सेवाओं का प्रावधान करते हैं। वे जनता को सस्ती या निःशुल्क सेवाएँ प्रदान करते हैं। व्यक्तिगत कंपनियाँ या उद्यमी सेवाओं का प्रावधान करते हैं। वे सेवाओं के लिए ग्राहकों से शुल्क वसूल करते हैं। **4. वित्तपोषण (Funding)** सार्वजनिक क्षेत्र की गतिविधियों का वित्तपोषण मुख्य रूप से सरकार के राजस्व (करों और शुल्कों से प्राप्त) से होता है। निजी क्षेत्र की गतिविधियों का वित्तपोषण निजी निवेश, शेयरधारकों के धन, और बाजार से लिए गए ऋणों से होता है। **5. श्रमिकों की सुरक्षा और लाभ (Worker Security and Benefits)** इस क्षेत्र में श्रमिकों को आमतौर पर नौकरी की सुरक्षा, नियमित वेतन, निश्चित काम के घंटे, भुगतान सहित छुट्टियाँ, भविष्य निधि, पेंशन, चिकित्सा लाभ आदि मिलते हैं। इस क्षेत्र में नौकरी की सुरक्षा और लाभ अक्सर कम होते हैं, विशेषकर असंगठित निजी क्षेत्र में। वेतन और काम के घंटे अक्सर कंपनी की नीतियों पर निर्भर करते हैं। **6. उदाहरण (Examples)** भारतीय रेलवे, डाकघर, भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC), भारतीय स्टेट बैंक (SBI), सरकारी अस्पताल, सरकारी स्कूल, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL)। टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (TISCO), रिलायंस इंडस्ट्रीज, मारुति सुजुकी, अपोलो अस्पताल, निजी स्कूल, निजी बैंक। **7. विनियमन (Regulation)** सरकार द्वारा सीधे प्रबंधित और विनियमित। बाजार की शक्तियों (मांग और आपूर्ति) और सरकारी नियमों/कानूनों द्वारा विनियमित।
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