अध्याय 2: भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक (Sectors of the Indian Economy)

परिचय

कक्षा 10 अर्थशास्त्र का दूसरा अध्याय **'भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक'** विभिन्न आर्थिक गतिविधियों को समझने पर केंद्रित है। यह अध्याय अर्थव्यवस्था को तीन प्रमुख क्षेत्रों - प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक - में वर्गीकृत करता है, उनकी अंतर्निर्भरता की व्याख्या करता है, और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में उनके योगदान का विश्लेषण करता है। इसके अतिरिक्त, यह रोज़गार के संदर्भ में इन क्षेत्रों की भूमिका, अदृश्य बेरोज़गारी की अवधारणा, और संगठित व असंगठित क्षेत्रों के बीच अंतर पर भी प्रकाश डालता है। अंत में, यह रोज़गार सृजन के उपायों और सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों के महत्व पर चर्चा करता है।

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1. आर्थिक गतिविधियों का वर्गीकरण (Classification of Economic Activities)

आर्थिक गतिविधियों को उनके उद्देश्य और प्रकृति के आधार पर तीन मुख्य क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

1.1. प्राथमिक क्षेत्रक (Primary Sector)

1.2. द्वितीयक क्षेत्रक (Secondary Sector)

1.3. तृतीयक क्षेत्रक (Tertiary Sector)

आर्थिक गतिविधियों के क्षेत्रक और उदाहरण
क्षेत्रक विवरण उदाहरण
**प्राथमिक क्षेत्रक** प्राकृतिक संसाधनों का सीधा उपयोग कृषि, मत्स्य पालन, वानिकी, खनन
**द्वितीयक क्षेत्रक** प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण से बदलना उद्योग, निर्माण, बिजली उत्पादन
**तृतीयक क्षेत्रक** सेवाएँ प्रदान करना, अन्य क्षेत्रों में सहायता परिवहन, बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य, आईटी
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2. तीनों क्षेत्रों की तुलना (Comparing the Three Sectors)

अर्थव्यवस्था में इन तीनों क्षेत्रों के योगदान को मापने और उनकी तुलना करने के लिए हम उनके द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का उपयोग करते हैं।

2.1. सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product - GDP)

2.2. अंतिम वस्तुएँ और सेवाएँ (Final Goods and Services)

2.3. क्षेत्रों में ऐतिहासिक परिवर्तन (Historical Change in Sectors)

भारत में क्षेत्रों द्वारा GDP का अंश (लगभग)
क्षेत्रक 1973-74 2013-14
**प्राथमिक** 40% 14%
**द्वितीयक** 12% 25%
**तृतीयक** 48% 61%

उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि भारत में तृतीयक क्षेत्रक का योगदान GDP में सबसे अधिक हो गया है।

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3. प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोज़गार (Employment in Primary, Secondary and Tertiary Sectors)

जबकि GDP में तृतीयक क्षेत्र का वर्चस्व है, रोजगार के मामले में स्थिति अलग है।

3.1. रोज़गार का वितरण (Distribution of Employment)

भारत में क्षेत्रों द्वारा रोज़गार का अंश (लगभग)
क्षेत्रक 1973-74 2013-14
**प्राथमिक** 74% 49%
**द्वितीयक** 11% 24%
**तृतीयक** 15% 27%

इस तालिका से पता चलता है कि लगभग आधे लोग अभी भी प्राथमिक क्षेत्रक में कार्यरत हैं, भले ही यह क्षेत्र केवल एक-चौथाई उत्पादन करता है। इसका तात्पर्य यह है कि कृषि क्षेत्र में श्रमिक अल्प-रोजगार (underemployment) से पीड़ित हैं।

3.2. अदृश्य बेरोज़गारी / प्रच्छन्न बेरोज़गारी (Disguised Unemployment / Underemployment)

3.3. अधिक रोज़गार का सृजन कैसे करें? (How to Create More Employment?)

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4. संगठित और असंगठित क्षेत्रक (Organised and Unorganised Sectors)

रोज़गार की शर्तों के आधार पर आर्थिक गतिविधियों को दो क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

4.1. संगठित क्षेत्रक (Organised Sector)

4.2. असंगठित क्षेत्रक (Unorganised Sector)

4.3. असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का संरक्षण (Protection of Workers in the Unorganised Sector)

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5. सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक (Public and Private Sectors)

मालिक और सेवाओं के प्रावधान के आधार पर आर्थिक गतिविधियों को सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है।

5.1. सार्वजनिक क्षेत्रक (Public Sector)

5.2. निजी क्षेत्रक (Private Sector)

सार्वजनिक और निजी क्षेत्रक के बीच अंतर
आधार सार्वजनिक क्षेत्रक निजी क्षेत्रक
**मालिक** सरकार एक व्यक्ति या निजी कंपनी
**मुख्य उद्देश्य** सार्वजनिक कल्याण लाभ कमाना
**सेवा प्रदान करना** सरकार व्यक्ति/कंपनी द्वारा
**उदाहरण** रेलवे, डाकघर, सरकारी अस्पताल TISCO, Reliance, निजी अस्पताल

5.3. सरकार का दायित्व (Government's Responsibility)

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न और उत्तर

अभ्यास के प्रश्न

  1. आर्थिक गतिविधियों को तीन क्षेत्रों में कैसे वर्गीकृत किया जाता है? उदाहरण सहित समझाइए।

    आर्थिक गतिविधियों को उनके उद्देश्य और प्रकृति के आधार पर तीन प्रमुख क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जाता है। ये क्षेत्रक अर्थव्यवस्था की संरचना और कार्यप्रणाली को समझने में मदद करते हैं:

    1. **प्राथमिक क्षेत्रक (Primary Sector):**

    • **परिभाषा:** इस क्षेत्र में वे गतिविधियाँ शामिल हैं जहाँ हम सीधे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। इसमें प्राकृतिक उत्पादों का निष्कर्षण और संग्रह शामिल होता है।
    • **अन्य नाम:** इसे 'कृषि और संबद्ध क्षेत्रक' (Agriculture and Related Sector) भी कहा जाता है।
    • **उदाहरण:**
      • **कृषि:** कपास उगाना (कपास एक प्राकृतिक उत्पाद है जो कृषि से प्राप्त होता है)।
      • **मत्स्य पालन:** मछली पकड़ना (मछली एक प्राकृतिक उत्पाद है)।
      • **वानिकी:** लकड़ी काटना, जंगल से अन्य उत्पाद इकट्ठा करना।
      • **पशुपालन:** दूध निकालना, अंडे प्राप्त करना।
      • **खनन:** लौह अयस्क, कोयला, खनिज तेल निकालना।
    2. **द्वितीयक क्षेत्रक (Secondary Sector):**
    • **परिभाषा:** इस क्षेत्र में वे गतिविधियाँ शामिल हैं जहाँ प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रक्रियाओं के माध्यम से अन्य रूपों में बदला जाता है। यह कच्चे माल को अधिक मूल्यवान तैयार वस्तुओं में परिवर्तित करता है।
    • **अन्य नाम:** इसे 'विनिर्माण क्षेत्रक' (Manufacturing Sector) या 'औद्योगिक क्षेत्रक' (Industrial Sector) भी कहा जाता है।
    • **उदाहरण:**
      • कपास से सूत कातना और फिर कपड़ा बनाना।
      • गन्ने से चीनी या गुड़ बनाना।
      • मिट्टी से ईंट बनाना।
      • लौह अयस्क से इस्पात बनाना और फिर मशीनें या वाहन बनाना।
      • बिस्कुट, ब्रेड बनाना (प्राथमिक कृषि उत्पादों को संसाधित करके)।
    3. **तृतीयक क्षेत्रक (Tertiary Sector):**
    • **परिभाषा:** यह क्षेत्र वस्तुओं का उत्पादन नहीं करता, बल्कि सेवाओं का उत्पादन करता है। यह प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रों के विकास में मदद करता है और स्वयं भी अपनी स्वतंत्र सेवाएँ प्रदान करता है।
    • **अन्य नाम:** इसे 'सेवा क्षेत्रक' (Service Sector) भी कहा जाता है।
    • **उदाहरण:**
      • **परिवहन:** वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना (ट्रक, ट्रेन, हवाई जहाज)।
      • **भंडारण:** उत्पादित वस्तुओं को सुरक्षित रखना।
      • **संचार:** टेलीफोन, इंटरनेट, पोस्ट ऑफिस।
      • **बैंकिंग:** वित्तीय सेवाएँ प्रदान करना।
      • **शिक्षा:** शिक्षक द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा।
      • **स्वास्थ्य:** डॉक्टर, नर्स द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवा।
      • **अन्य सेवाएँ:** बीमा, सॉफ्टवेयर सेवाएँ, वकील, नाई, धोबी, आईटी सेवाएँ।
    ये तीनों क्षेत्रक एक दूसरे पर निर्भर करते हैं और अर्थव्यवस्था के समग्र विकास में योगदान करते हैं।

  2. सकल घरेलू उत्पाद (GDP) से क्या अभिप्राय है? इसकी गणना करते समय किन बातों का ध्यान रखा जाता है?

    **सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product - GDP):** सकल घरेलू उत्पाद (GDP) किसी देश की आर्थिक गतिविधि को मापने का एक प्रमुख तरीका है। इसकी परिभाषा है: **किसी विशेष वर्ष में किसी देश की सीमा के भीतर उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहलाता है।**

    यह एक वर्ष की अवधि में एक अर्थव्यवस्था द्वारा प्राप्त कुल उत्पादन (मूल्य के रूप में) को दर्शाता है और इसे देश की आर्थिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण संकेतक माना जाता है।

    **इसकी गणना करते समय ध्यान रखने योग्य बातें:** GDP की गणना करते समय निम्नलिखित महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखा जाता है ताकि दोहरी गणना से बचा जा सके और सही आर्थिक गतिविधि को मापा जा सके:

    1. **अंतिम वस्तुएँ और सेवाएँ (Final Goods and Services) ही शामिल की जाती हैं:**

    • GDP की गणना में केवल उन वस्तुओं और सेवाओं को शामिल किया जाता है जो अंतिम उपभोक्ता तक पहुँचती हैं और आगे उत्पादन प्रक्रिया में उपयोग नहीं की जातीं।
    • **मध्यवर्ती वस्तुएँ (Intermediate Goods) शामिल नहीं की जातीं।** मध्यवर्ती वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जिनका उपयोग अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए कच्चे माल के रूप में किया जाता है, या जिन्हें पुनर्विक्रय के लिए खरीदा जाता है।
    • **कारण:** यदि मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य को भी GDP में शामिल किया जाए, तो एक ही वस्तु के मूल्य की कई बार गणना हो जाएगी, जिससे GDP का आकार कृत्रिम रूप से बढ़ जाएगा (दोहरी गणना की समस्या)।
    • **उदाहरण:**
      • एक किसान द्वारा बेचा गया गेहूँ (मध्यवर्ती वस्तु) जो एक बेकरी द्वारा बिस्कुट बनाने में उपयोग किया जाता है, उसे सीधे GDP में शामिल नहीं किया जाता।
      • लेकिन बिस्कुट (अंतिम वस्तु) का मूल्य, जिसमें गेहूँ, आटा, चीनी, तेल आदि का मूल्य पहले से ही शामिल होता है, उसे GDP में शामिल किया जाता है।
      • इसी तरह, एक कार के उत्पादन में प्रयुक्त स्टील या टायर मध्यवर्ती वस्तुएँ हैं, जबकि पूरी कार अंतिम वस्तु है।
    2. **मौद्रिक मूल्य (Monetary Value):** GDP वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा के बजाय उनके मौद्रिक मूल्य को मापता है। यह वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्य पर आधारित होता है। 3. **एक निश्चित समय अवधि (Specific Time Period):** GDP को हमेशा एक विशिष्ट समय अवधि के लिए मापा जाता है, जो आमतौर पर एक वित्तीय वर्ष (जैसे भारत में 1 अप्रैल से 31 मार्च) या एक तिमाही होती है। यह उस अवधि के दौरान उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं को ही शामिल करता है। 4. **देश की सीमा के भीतर (Within a Country's Borders):** GDP किसी देश की भौगोलिक सीमा के भीतर उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं को शामिल करता है, भले ही उनका उत्पादन विदेशी कंपनियों या नागरिकों द्वारा किया गया हो। 5. **तीनों क्षेत्रों का योगदान:** GDP तीनों प्रमुख क्षेत्रों (प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक) द्वारा उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को जोड़कर प्राप्त किया जाता है।

    इन बातों का ध्यान रखकर ही एक देश के वास्तविक आर्थिक उत्पादन और स्वास्थ्य का सटीक माप प्राप्त किया जा सकता है।

  3. असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को कैसे संरक्षण दिया जा सकता है?

    असंगठित क्षेत्रक में काम करने वाले श्रमिकों को अक्सर शोषण, कम मजदूरी, नौकरी की असुरक्षा, और किसी भी प्रकार के सामाजिक सुरक्षा लाभों से वंचित रहना पड़ता है। उन्हें संरक्षण प्रदान करना एक महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक आवश्यकता है। असंगठित क्षेत्रक के श्रमिकों को कई तरीकों से संरक्षण दिया जा सकता है:

    1. **न्यूनतम मजदूरी कानून का सख्त प्रवर्तन (Strict Enforcement of Minimum Wage Laws):**

    • सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी को असंगठित क्षेत्र में भी सख्ती से लागू किया जाना चाहिए ताकि श्रमिकों को उचित मेहनताना मिल सके।
    • नियमित निरीक्षण और उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगाना आवश्यक है।
    2. **सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ (Social Security Schemes):**
    • **पेंशन योजनाएँ:** वृद्धावस्था में आय सुरक्षा के लिए पेंशन योजनाएँ (जैसे अटल पेंशन योजना)।
    • **स्वास्थ्य बीमा:** स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने के लिए किफायती स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ (जैसे प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना/आयुष्मान भारत)।
    • **जीवन बीमा और दुर्घटना बीमा:** श्रमिकों और उनके परिवारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सस्ती बीमा योजनाएँ।
    • **मातृत्व लाभ:** महिला श्रमिकों के लिए मातृत्व अवकाश और लाभ सुनिश्चित करना।
    3. **कम ब्याज पर ऋण की उपलब्धता (Availability of Low-Interest Loans):**
    • असंगठित क्षेत्र के कई श्रमिक अक्सर साहूकारों से उच्च ब्याज दरों पर ऋण लेते हैं। सरकार को बैंकों और स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराना चाहिए, ताकि वे अपनी आजीविका में सुधार कर सकें या छोटे व्यवसाय शुरू कर सकें।
    4. **शिक्षा और कौशल विकास (Education and Skill Development):**
    • असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और उनके बच्चों के लिए शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण तक पहुंच में सुधार करना, ताकि वे बेहतर रोजगार के अवसर प्राप्त कर सकें और संगठित क्षेत्र में स्थानांतरित हो सकें।
    5. **कार्यस्थल की सुरक्षा और स्वच्छता (Workplace Safety and Hygiene):**
    • असंगठित क्षेत्र के कार्यस्थलों (जैसे निर्माण स्थल, ईंट भट्टे) में सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने के लिए नियम बनाना और उनका पालन करवाना।
    • श्रमिकों को खतरनाक वातावरण से बचाने के लिए उचित उपकरण और प्रशिक्षण प्रदान करना।
    6. **पंजीकरण और पहचान पत्र (Registration and Identity Cards):**
    • असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का पंजीकरण करना और उन्हें पहचान पत्र जारी करना, जिससे उन्हें सरकारी योजनाओं और लाभों तक पहुँचने में मदद मिल सके।
    • जैसे 'ई-श्रम पोर्टल' पर असंगठित श्रमिकों का पंजीकरण।
    7. **जागरूकता अभियान (Awareness Campaigns):**
    • श्रमिकों को उनके अधिकारों और सरकार द्वारा प्रदान की जा रही योजनाओं के बारे में जागरूक करना।
    8. **श्रमिक संगठनों को बढ़ावा (Promotion of Labour Unions):**
    • असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को अपने अधिकारों के लिए सामूहिक रूप से बातचीत करने और लड़ने के लिए संघों या यूनियनों में संगठित होने के लिए प्रोत्साहित करना।
    9. **मौजूदा कानूनों का विस्तार (Extension of Existing Laws):**
    • मौजूदा श्रम कानूनों (जैसे कारखाना अधिनियम, कर्मचारी मुआवजा अधिनियम) को असंगठित क्षेत्र पर भी लागू करने की संभावना का पता लगाना, या इस क्षेत्र के लिए विशिष्ट कानून बनाना।
    10. **मनरेगा जैसी रोज़गार गारंटी योजनाएँ (Employment Guarantee Schemes like MGNREGA):**
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) जैसी योजनाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की सुरक्षा प्रदान करती हैं और विशेष रूप से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को लाभ पहुँचाती हैं। ऐसी योजनाओं का विस्तार किया जा सकता है।
    इन उपायों को लागू करने से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की स्थिति में सुधार होगा, जिससे न केवल उनकी व्यक्तिगत गरिमा और आय बढ़ेगी, बल्कि यह समाज में असमानता को कम करने और समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में भी मदद करेगा।

  4. सार्वजनिक क्षेत्रक और निजी क्षेत्रक के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।

    सार्वजनिक क्षेत्रक और निजी क्षेत्रक आर्थिक गतिविधियों को स्वामित्व और सेवाओं के प्रावधान के आधार पर वर्गीकृत करते हैं। इनके बीच मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं:

    आधार सार्वजनिक क्षेत्रक (Public Sector) निजी क्षेत्रक (Private Sector)
    **1. स्वामित्व (Ownership)** इस क्षेत्र में अधिकांश परिसंपत्तियों और सेवाओं का स्वामित्व सरकार (केंद्र या राज्य सरकार) के पास होता है। इस क्षेत्र में परिसंपत्तियों और सेवाओं का स्वामित्व एक व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह, या निजी कंपनियों के हाथ में होता है।
    **2. मुख्य उद्देश्य (Main Objective)** इसका मुख्य उद्देश्य **लाभ कमाना नहीं**, बल्कि **सार्वजनिक कल्याण** और सामाजिक सेवाएँ प्रदान करना होता है। सरकार उन सेवाओं को प्रदान करती है जो समाज के लिए आवश्यक हैं। इसका मुख्य उद्देश्य **लाभ कमाना** और निवेशकों के लिए अधिकतम प्रतिफल (रिटर्न) प्राप्त करना होता है।
    **3. सेवाओं का प्रावधान (Provision of Services)** सरकार या उसके उपक्रम सीधे सेवाओं का प्रावधान करते हैं। वे जनता को सस्ती या निःशुल्क सेवाएँ प्रदान करते हैं। व्यक्तिगत कंपनियाँ या उद्यमी सेवाओं का प्रावधान करते हैं। वे सेवाओं के लिए ग्राहकों से शुल्क वसूल करते हैं।
    **4. वित्तपोषण (Funding)** सार्वजनिक क्षेत्र की गतिविधियों का वित्तपोषण मुख्य रूप से सरकार के राजस्व (करों और शुल्कों से प्राप्त) से होता है। निजी क्षेत्र की गतिविधियों का वित्तपोषण निजी निवेश, शेयरधारकों के धन, और बाजार से लिए गए ऋणों से होता है।
    **5. श्रमिकों की सुरक्षा और लाभ (Worker Security and Benefits)** इस क्षेत्र में श्रमिकों को आमतौर पर नौकरी की सुरक्षा, नियमित वेतन, निश्चित काम के घंटे, भुगतान सहित छुट्टियाँ, भविष्य निधि, पेंशन, चिकित्सा लाभ आदि मिलते हैं। इस क्षेत्र में नौकरी की सुरक्षा और लाभ अक्सर कम होते हैं, विशेषकर असंगठित निजी क्षेत्र में। वेतन और काम के घंटे अक्सर कंपनी की नीतियों पर निर्भर करते हैं।
    **6. उदाहरण (Examples)** भारतीय रेलवे, डाकघर, भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC), भारतीय स्टेट बैंक (SBI), सरकारी अस्पताल, सरकारी स्कूल, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL)। टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (TISCO), रिलायंस इंडस्ट्रीज, मारुति सुजुकी, अपोलो अस्पताल, निजी स्कूल, निजी बैंक।
    **7. विनियमन (Regulation)** सरकार द्वारा सीधे प्रबंधित और विनियमित। बाजार की शक्तियों (मांग और आपूर्ति) और सरकारी नियमों/कानूनों द्वारा विनियमित।
    दोनों क्षेत्रों का एक अर्थव्यवस्था में अपना महत्व है। सार्वजनिक क्षेत्र सामाजिक कल्याण और आधारभूत संरचना प्रदान करता है, जबकि निजी क्षेत्र नवाचार, दक्षता और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।

(ब्राउज़र के प्रिंट-टू-पीडीएफ फ़ंक्शन का उपयोग करता है। प्रकटन भिन्न हो सकता है।)